लक्ष्मीनाथ गोसांंईः एक अवतारी पुरुष

मिथिलाक ऐतिहासिक विभूतिः लक्ष्मीनाथ गोसांई

लक्ष्मीनाथ गोसांंईः एक अवतारी पुरुष

मूल आलेखः डा. लक्ष्मीप्रसाद श्रीवास्तव

भाव-अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी

श्री लक्ष्मीनाथ गोसांई केर जन्म १७९३ ई. मे भेलनि। ई परसरमावासी (वर्तमान सुपौल जिला) श्री बच्चा झा केर छोट पुत्र छलाह। हिनक मूल नाम ‘लच्छन’ छलन्हि। अपन गुरु ‘तरौनी’ (दरभंगा) ग्रामवासी पं. रोहिणी दत्त ओतय रहिकय ओ ज्योतिष, योग आर तंत्रविद्या मे निपुणता प्राप्त कएलनि। हिनक सिद्धि सँ प्रभावित भऽ रघुवर झा (तरौनी) हुनकर शिष्य बनि गेलाह। गोसांई जी केर अग्रज श्री रघुनाथ झा छलाह। कहुआ (दरभंगा) ग्रामवासी सुखदत्त झा अपन कन्याक विवाह लक्ष्मीनाथ सँ करौलनि।

 

विवाहक थोड़बे दिनक बाद लक्ष्मीनाथ गृहस्थ जीवन छोड़िकय पशुपतिनाथ महादेवक दर्शनार्थ काठमाण्डू (नेपाल) चलि गेलाह। देश-देशान्तर भ्रमण करैत ओ मक्का-मदीना सेहो गेलाह। काफी समय बितलाक बाद ओ फेरो मिथिला वापसी कएलनि आर अपन गामहि मे रहय लगलाह। आब गोसांई जी जगह-जगह घुमैथ आर लोकमानस मे आध्यात्म प्रति जनचेतनाक जागरण एवम् विदेशी गुलामी (अंग्रेजी शासन) विरुद्ध जन-जागरण करैय लगलाह।

 

हुनक तीक्ष्ण बौद्धिकता एवम् ज्ञान पूर्णताक प्रभाव सँ कियो कतहु प्रेरित भऽ जाएत छल। आमजनक त बाते कि राजा-महाराजा सेहो हुनक अनुयायी आ प्रशंसक किछुए क्षण मे भऽ जाएत छलाह। हुनकर दर्शन लेल कतेको लोक व्याकुल रहैत छल। गोसांई जी केर प्रभाव आ जीवनचर्या सँ प्रेरित भऽ सैकड़ों – हजारों जनमानस हुनका संगहि एक स्थान सँ दोसर स्थान धरि चलैत छल। राजा-महाराजाक समदिया सब गोसांई जी केर चरण सम्बन्धित रजवाड़ा आर प्रजाहित लेल ओहू क्षेत्र मे होएक से लालायित रहैत छल।

 

गोसांई जी केर चरण जाहि स्थान पर पड़ल ओत्तहि किछु न किछु धर्म आ परमार्थक कार्य निश्चित रूप सँ स्थापित भेल। आइयो हिनकर प्रभाव-प्रेरणा सँ निर्मित हजारों धर्मस्थली जिवन्त अछि, जाहि मे स्वयं हमरा (अनुवादक) गाम कुर्सों (दरभंगा)क श्री राम-जानकी मन्दिर केर उदाहरण हम सब बच्चे सँ सुनैत-देखैत आबि रहलहुँ अछि। जनकपुर सँ सटले भारत-नेपाल सीमापर मधुबनी जिलान्तर्गत पड़यवला ओ प्रसिद्ध स्थान जतय जानकी जी फूल लोढय लेल अबैत छलीह आर दशरथपुत्र राजकुमार राम संग पहिल नजरि-मिलानी होयबाक प्रचलित रामायणी गाथा सुनैत छी – जेकर नाम फूलहर, गिरिजास्थान आदि कहल जाएछ, ताहू स्थानक जीर्णोद्धार करेनिहार गोसांई जी छलाह।

 

हिनका नेनालाल झा नामक एक पुत्र भेलनि। नेनालालक पुत्रक नाम योगेश्वर झा भेलाह। पुनः योगेश्वर झा सँ सृष्टिनारायण झा उर्फ लालबाबू भेलाह। हिनक संतति परिवार सब आइयो निरंतरता मे छथि आर गोसांई जी केर समाधिस्थल फैटकी कुटी पर साल मे एक बेर कियो न कियो अवस्से पहुँचैत छथि, ई संस्मरण कुटीक रेखदेख मे जीवन समर्पित कएनिहार महंथ सँ भेटल।

 

गोसांई जी द्वारा ३२ स्थान पर कुटिया (आश्रम) तथा मंदिर बनेबाक-बनबेबाक उल्लेख बहुचर्चित अछिः १. नारागाँव २. परसरमा ३. बनगाँव ४. महिनाथपुर (ई सब सहरसा-सुपौल जिला मे) ५. लखनौर ६. कटकी मौजे (मधुबनी) आदि। हिनक कतेको रास आश्रम नेपाल मे सेहो छन्हि।

 

बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं पर ऐतिहासिक कृति रचना: प्रो. अरविन्द मिश्र निरज द्वारा महाकाव्य केर रचना सँ मैथिली साहित्य जगत् मे उल्लास

गोसांई जी एक प्रखर भजनियां – कीर्तनियां होयबाक संग-संग स्वयं एक सुप्रतिष्ठित रचनाकार सेहो छलाह। हिनक प्रमुख रचना सबः १. श्री कृष्णरत्नावली २. राम गीतावली ३. कृष्ण गीतावली ४. प्रश्नोत्तरमाला ५. अकरादि दोहावली ६. भाषा-तत्त्व-बोध ७. श्रीराम रत्नावली ८. गुरुचौबीसी ९. योग रत्नावली १०. मोह-मुद्गर ११. भजन-संग्रह (१८०० पद केर)।

 

हिनकर कतेको रास दिव्य चमत्कारी सिद्धि सब जनश्रुति मे जीबित अछि। एक बेर अपन शिष्य मंडली सहित गोसांई जी ठेंगहा (दरभंगा) कमला-बलान नदीक तटपर पहुँचलाह। ओतय कूबेरा मे नदी टपबाक लेल नाव-खेबैया केवट सँ नदी टपेबाक अनुनय उपरान्त खेवाइ (शुल्क) लेल किछु कहा-सुनी भेलाक कारण गोसांई जी केर सिद्धि-भक्तिक उपहास उड़ेबाक दुस्साहस हेबाक प्रत्युत्तर मे ओ अपन चमत्कार प्रत्यक्ष कएलनि। स्वयं खड़ाम पहिरने जलधाराक उपरे-ऊपर चलि देलाह आर सब अनुयायी लोकनि सँ पाछू-पाछू एबाक निर्देश देलनि। पानि घटिकय ठेहुनो भैर नहि रहि गेल। मल्लाह विस्मित-चकित-हैरान क्षमा-प्रार्थना सेहो केलक। आब उल्टे ओकरा ओहि स्थान सँ नाव चलेबाक योग्य जल नहि रहि जेबाक कारण घाट तक बदलय पड़ि गेल। चूँकि गोसांई जी केर आश्रम नदीक दोसर तट – कमला-बलानक पूर्वी भाग मे स्थित अछि जेकर नाम फैटकी कुटी थिक; आइयो एहि ठामक लोकमानस मे गोसांई जी केर छाप ओहिना देखल जा सकैत अछि।

 

गोसांई जी केर लेखनशैली मे लोकमानस केर बोध होयबाक आर गान करबाक समय सहज गायन संभव होयबाक सब गुण भरल छलन्हि। विद्यापति आ तुलसीदास सँ गोसांई जी काफी प्रभावित छलाह। हुनके लोकनि जेकाँ अपन हरेक रचना मे भाषा-प्रयोग केर व्यापकता हिनकर रचना मे भेटैत अछि। भाषाक सर्वसुबोधताक गुण हिनको मान्य छलन्हि। मैथिलीक अतिरिक्त ओ अवधी आर खड़ी बोली केँ सेहो अपन रचना मे स्थान देलनि।

 

हिनक मृत्युक समय – तारीख ५ दिसम्बर १८७२ ई. कहल गेल अछि। तिथिक गणनानुसार अगहन सुदी पंचमी १२२० फसली केर ओ दिन छल। ई तिथिक उल्लेख हुनकर एक भक्त-अनुयायी अंग्रेज शिष्य जौन साहेब (बरिआहीकोठी, सहरसा) द्वारा लिखित दस्तावेज मे कएल गेल अछि। हिनकर मृत्युक समयक सेहो अनेको किंवदन्ति कथा सब जनश्रुति मे प्रचलित अछि। फैटकी कुटी जतय हिनक समाधि-स्थल अछि ताहि ठामक महंथक कथनानुसार ओ अपन शरीर केँ एतय छोड़ि सूक्ष्म शरीर सँ अनन्त यात्रा करबाक कतेको बेर गाथा शिष्य सबकेँ सुनौने छलाह। अपन मृत्युक बारे मे सेहो ओ शिष्य सब सँ कहि देने छलाह। एहने कोनो अनन्त यात्रा पर जेबा सँ पहिने ओ कहि गेल छलाह जे फल्लाँ समय धरि जँ हम नहि लौटी त हमर दाह-संस्कार संपन्न करिहें। आदि-आदि।

 

आइयो गोसांई जी केर लाखों-करोड़ों अनुयायी हुनका मे भगवान् समान आस्था रखैत अछि। कतेको स्थान पर राखल गेल अछि हिनकर स्मृति-चिह्न आर नित्य लगैत अछि सेज जाहिपर ओ अबैत छथि आर आस्थावान् भक्तक मानवर्धन करैत छथि। हम (अनुवादक) स्वयं हुनकर स्मरण करैत छी, विशेष रूप सँ अपन माय-बाबीक मुंहे सुनल प्राती जाहि मे जय गंगा गंगा कहू भोरे नित उठि भोरे भाई – आर एक दोहा ‘रामनाम जेहि वंश मे – सो कुल परम पुनीत; लक्ष्मीपति तरि जातु हैं, देव पितर ओ मीत’ सदा-सदा लेल अविस्मरणीय अछि।

 

हरिः हरः!!