मिथिलावासी अपन राज्य लेल कहिया चेतत?

मिथिला राज्यक आवश्यकता जनगणमन धरि आब पहुँचत

सन्दर्भः बिहार मे मिथिला केँ कि भेटल? बिहारक शासन पद्धति कि? मिथिला संग उपेक्षा कोना? उड़ीसा आ झारखंड अलग कियैक भेल? बिहार आ बिहारी पहिचान आइ धरि अपमानक पर्याय कोना? आदि!

 
आइ २२ मार्च, २०१७ – बिहार नाम्ना राज्य मे मिथिला केँ पोठी-टेंगरा-गरइ जेकाँ गाँथबाक १०५ वर्ष आर ताहू सँ पूर्व मे देखब त ब्रिटिश इंडियाक हुकुमतवला भारतक बंग प्रान्तक अधीन रहबाक लगभग ३०० वर्ष आर ताहू सँ पहिलुका अवस्था मुगलकालीन भारतक विभिन्न नबाबक मातहत शासित प्रदेशक रूप मे एकर आयू लगभग ८०० वर्ष पूरा हेबाक बात इतिहास कहैत अछि। सबसँ पैघ दुरावस्था बिहार मे गँथेला सँ होयबाक तथ्य विभिन्न शोध आ राजकीय उपेक्षा सँ स्पष्ट होएत अछि, कारण ब्रिटिश इंडिया मे जेहो गहिंर शोध मैथिली भाषा आ मिथिला सभ्यता सँ जुड़ल विभिन्न विधा मे पूर्व आ पश्चिम दर्शनक विद्वान् लोकनि कएलनि तेकर दसांशो बिहार मे नहि भऽ सकल। बिहार केर स्थापनाक समय सँ मौलिक पहिचानक रक्षा हेतु चौंकल त बहुतो समाज – मुदा बिहार सँ स्वतंत्रता १९३६ ई. मे उड़ीसा आ फेर २००० ई. मे झारखंड केँ भेटलैक, आर ओ सब राज्य अपन मूल राज्य सँ कइएको गुना बेसी आगू होयबाक कीर्तिमान बना चुकल अछि। बिहार आ बिहारी आइयो क्रमशः बदनाम प्रान्त ओ अपमानित पहचानक परिचायक मात्र बनिकय रहि गेल अछि – जेकर एकमात्र कारण छैक ‘बिहार’ अपन निजत्व केँ परित्याग करैत अछि आ नव आवरण केँ पहिरि अपन फीका – रंगहीन – मौलिकताहीन चमक सँ दुनिया केँ प्रभावित करबाक कुचेष्टा करैत अछि, जे छद्म-क्षुद्र-अल्पबुद्धि लेल त तैयो कारगर प्रमाणित भऽ जाएछ, मुदा प्रदेशक बाहर विश्व परिवेश मे या भारतहि केर आन-आन प्रदेश मे एकरा आइयो निकृष्ट बुझल जाएत छैक। ई वर्णसंकर पहिचान सँ एहि प्रदेशक सोझमतिया जनता प्रतिकार तक करबाक अवस्था मे नहि जाएछ, कारण एतय जे सत्ताभोगी मानसिकता राज-काज करैत अछि ओकरा निजत्व केर रक्षा सँ कम आ स्वार्थ, पदलोलुपता आ सत्ताक मद सँ बहुत बेसी मतलब रहि आयल छैक जे अपनहि जनता केँ अपन प्रदेश सँ पलायन करेबाक लेल मानू पटना सँ नीति-निर्माण आ राज्य संचालन करैत अछि। ओ चाहे झारखंडक बिहार मे रहबाक समय खदानक दुरुपयोग सँ आन राज्य केँ फायदा पहुँचेबाक नीति सँ हो, चाहे बिहारक अपन जन, जल, जमीन सनक प्राकृतिक संसाधनक अपर्याप्त विकासक बात सँ हो – बिहार अपन स्वाबलंबन लेल कोनो ठोस डेग आइ १०५ वर्ष मे नहि उठेलक से स्पष्ट छैक। १९३६ ई. सँ बिहार सरकार केर बागडोर चलेनिहार श्रीकृष्ण सिंह निश्चित एकरा लेल दूरगामी दृष्टि राखि बहुतो तरहक परियोजनादिक शिलापट्ट रखलाह – लेकिन अन्ततोगत्वा एतय वैह शक्ति हावी रहल जे बिहारक मौलिकता केँ नाश कय एकरा सब दिन आन राज्यक चाकर बनि रहबाक बुनियाद तैयार केलक।
 
एक्के गोट अविस्मर्णीय उदाहरण बेर-बेर मोन पड़ैत अछि जे १९४३ ई. मे ब्रिटिश सरकारक मुखिया (वायसराय) वैभेल बाढिक स्थायी निदान आ जल-संसाधनक समुचित दोहन लेल एहि प्रदेश केँ आ खासकय उत्तर बिहार यानि मिथिला लेल उपलब्ध करेलक, आखिरकार ओहि कोष केँ स्वतंत्र देशक पहिल सरकार बिहार सँ छीनिकय पंजाब आ बंगाल केर निर्माण मे लगा देलक। कियैक? पंजाब आ बंगाल केर विभाजन पाकिस्तान नाम सँ भेल छल। ओतय विभाजनक दंश सँ समाज मे प्रतिक्रिया बेसी छल। राजनीतिक सामर्थ्यक हिसाब सँ सेहो ई दू राज्य भारतक आन राज्य आ खासकय बिहार सँ बहुत बेसी आगू छल। एतुका नेतृत्वक पाँति केँ कोहुना रिझेबाक लेल बिहार केँ बलि केर बकरा समान बध कय देल गेल। श्रीकृष्ण बाबू एकर विरोध कएलनि, परञ्च एतुका अगुआ केँ त बस पद आ प्रतिष्ठा मे प्रदेशक कल्याण बिसरबाक आदति रहल मानू, आदतियो सँ खराब चाइल रहबाक आरोप आइ धरिक स्थिति देखि जँ लगायब तैयो बेजा नहि होयत। डा. राजेन्द्र प्रसाद केँ राष्ट्रपति बना देलाक बाद बिहार लेल श्रीकृष्ण बाबूक बेर-बेर कहलोपर आवाज नहि लगा सकलाह। दोसर बात, हुनका सरदार बल्लभ भाई पटेल खेमाक लोक बुझल जाएत छल, तहू कारण सँ हुनकर बात केर अनदेखी कएल गेल होयत बस अन्दाज लगा सकैत छी। हर तरहें, वैभेल परियोजनाक अनुदान राशि आन राज्य मे लगानी होयब एतुका जनताक लेल जे अभिशाप सिद्ध भेल ओ पूर्ण अवैज्ञानिक आ कामचलाउ कोसी प्रोजेक्ट केर निर्माण, भारत-नेपालक सीमा भीमनगर मे कोसी पर बैरेज आ नेपाली पहाड़क जैड़ चतरा मे परियोजनान्तर्गत विभिन्न कार्य सँ प्रदेशक जनता केँ आइ धरि कि सब भेटल एकर विस्तृत समीक्षा लेल अलगे चर्चा करय पड़त। संछेप मे एतेक कहब जे बिहारक जनता लेल कटैया बिजली प्लान्ट सँ १०० मेगावाट बिजली उत्पादन, पूर्वी आ पश्चिमी कोसी नहर सँ पटवन केर सुविधा गोटेक लाख हेक्टर जमीन केँ भेल होयत। एकरो वर्तमान अवस्था देखि यैह कहल जा सकैत छैक जे बस रुसल बच्चा केँ मना लेबाक लेल हाथ मे झुनझुन्ना धरा देल गेल। एहि सँ एतुका अर्थतंत्र मे कतेक लाभ प्राप्त भेल तेकर लेखा-जोखा स्वतः प्रतिवेदन आ बजट घाटा सँ लगायल जा सकैत छैक।
 
भ्रष्टाचारिता केँ बढाबा दय केँ ऊपर सँ नीचाँ धरि मात्र आ मात्र सरकारी माल उड़ेबाक काज छोड़ि एतय विकास केर कोनो समुचित ढंगक काज कि भेल, ई देखबाक लेल माथपर खूब जोर दैत छी। नस फाटय लगैत अछि ई देखि जे भ्रष्टाचारिता बिहार केर शासन व्यवस्था मे इंजेक्टेड प्वाइजन जेकाँ नीतिगत रूप सँ कएल गेल अछि। एतुका राजनीति मे विरोधी केँ ओहिना शान्त कएल गेल जेना पहिने जमीन्दार – सामंती सब अपन सामंत ओ रैय्यत सब केँ मेह मे उन्टा बान्ह बान्हि चाबूक सँ गत्तर तोड़ि दैत छलैक। कोनो विकसित सभ्यता मे वर्ग विभेद बहुत बेसी रहबाक उदाहरण आइयो भेटैत छैक। मुगलकाल सँ ब्रिटिशकाल होएत स्वतंत्र संघीय गणराज्य भारत मे पर्यन्त शासन प्रणाली आखिरकार एहि वर्ग विभेदक स्थिति केर अनुचित लाभ उठबैत अछि, एकरे समाधान मे सब लगैत अछि आर बिल्कुल वर्ग विभेदहि केर आरो गहिंर करैत घुमा-घुमाकय अपन सत्तारोहणक आ सत्ताभोगक सपना पूरा करैत अछि। मुगलकाल मे सेहो जमीन्दारक हाथ मे चाभी देल गेल, ओ रैय्यत आ सामंतक मार्फत अपन शासन चलौलक। तहिना ब्रिटिश हुकुमत द्वारा सेहो एहि विभेदक सूत्र अनुरूप गोटेक लोक केँ लाटसाहेब बना अपन खिचड़ी पकायल गेल। आर स्वतंत्र भारतहु मे शासन प्रणाली एहि सँ भिन्न नहि हो ताहि लेल एक दिशि गरीबी उन्मुलनक नारा आ दोसर दिशि गरीब जनता केँ कोना वोट बैंक बनायल जाय – कोन तरहें ओकरा सत्तारोहण मे ओकरा उपयोग मे लेल जाय, केहेन ठीकेदार केँ सामंती व्यवस्था चलेबाक लेल भार देल जाय, बस एहि सब सूत्र पर शासन प्रणाली आइ धरि एहि क्षेत्र मे कायम अछि। लोक छिन्न-भिन्न अछि। नेता मालामाल अछि। जनसरोकारक बात दरकिनार कएल गेल अछि। जनता केँ स्वराज्यक स्वाद आइ धरि नहि लागल अछि। थाना, प्रखंड, अनुमंडल, जिला – हर स्तर पर सरकारक मुलाजिम केँ भ्रष्ट व्यवस्था – अँधेरा कायम रहे – एहि सिद्धान्त केँ अपनाबैत चलबाक घुमघुमौआ निर्देशन देल गेल अछि। लेकिन दोसर दिशि बाँटल जा रहल अछि छूछ सपना – गर्व से कहो हम बिहारी हैं। मूर्ख आ निरीह जनता – करत त करत कि! एतय त पढल-लिखल जनता सेहो ‘गर्वान्वित बिहारीक सूची’ मे नाम लिखबैत अछि, कारण छैक जे शिक्षा आ समझ मे शासनक मानसिकता पकड़बाक सामर्थ्य विकसित होएते नहि छैक। सब अपन जातीय पहिचानक मद मे चूर – मैनजन राति केँ दिन कहि देलक तऽ वैह सही, जातिक सम्मानक बात जे छैक। बाकी बात गेल तेल लेबय!
 
स्वतंत्रताक बाद राजनीतिक इतिहास देखल जाय त स्पष्टे छैक जे एकटा राजनीतिक दल अपना केँ स्वतंत्रता दियेबाक ठेक्का चलेबाक दाबी कयलक, बाकी केँ अंग्रेजक दलाल आ चमचा कहिकय सिद्धान्ते पर सवाल ठाढ करैत आइ धरि भारत सनक विशाल गणराज्य मे एकात्मक शासनाधिकार राखय चाहैत अछि। बिहार ओ मिथिला मे सेहो देशक आन भाग जेकाँ कम्युनिस्ट आन्दोलन, सोशियलिस्ट आन्दोलन आदि खूब चलल। लेकिन ओहि एकाधिकारवादीक मनगढंत राज्य संचालन पद्धतिक आगू केकरो ठाढ तक नहि होबय देल गेल। आर जखन देश मे परिदृश्य बदलल त बिहारहु केर जनताक आँखि खुजल – लेकिन आँखि खुजलो पर ओ सोशियलिस्टिक राजनीति मे केहेन-केहेन घटना-दुर्घटना घटल से केकरो सँ छूपल नहि अछि। सामाजिक न्यायक नामपर बिहारक जनता सँ वोट लैत जे राज्याधिकारी भेल ओ परिवारवाद मे केना लागल तेकर नंगा ताण्डव सब देखलक। ओकरा जंगलराज केर संज्ञा देल गेल। सुशासन आ विकास केर नारा दैत पुनः एकटा नव समीकरण शासन व्यवस्था पर कब्जा त केलक, मुदा ओ सकारात्मक व्यवस्था कतेक दिन धरि चलि सकल से केकरो सँ छूपल नहि अछि। आइ फेर महागठबंधन कय बिहारक सत्ता तथाकथित बिहारी स्वाभिमानक ठीकेदार सबकेँ शासनाधिकारी बनौने अछि। परञ्च उपलब्धि कि अछि? कहबाक तात्पर्य जे एतय पटनाक इर्द-गिर्द शासन केँ गछाड़िकय राखल गेल अछि। जनप्रतिनिधि केँ खूल्ला छूट अछि जे समाज केँ बाँट, वोट ले कोनो तरहें आ पटना मे आबिकय सत्ताक मलाई खो।
 

सब समस्याक एक समाधानः मिथिला राज्य केर हो निर्माण

 
कोनो संघीय गणराज्य (गणतांत्रिक मुलुक) मे देशक मजबूती प्रदेशक मजबूती सँ पूरा होएछ। भारत मे एखनहु विभिन्न राज्यक आकार-प्रकार मे जमीन-आसमान केर फर्क साफ देखाएत अछि। छोट राज्य बनाकय प्रशासनिक व्यवस्था आरो चुस्त-दुरुस्त करैत आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक ओ समग्र विकास केर दरबाजा खुजैत छैक – एहि परिकल्पनाक आधार पर मिथिला राज्य निर्माण परमावश्यक विन्दु थिक। परञ्च विभिन्न राजनीतिक दाव-पेंच सँ एतुका समाज केँ आन्तरिक विभाजनक शिकार बना, तरह-तरह केर भ्रान्ति पसारि, आइ धरि मिथिला राज्यक मांग मात्र कागज आ ज्ञापन पत्र धरि सीमित राखल गेल। ई मांग एखनहु जमीन नहि धऽ सकल स्पष्ट अछि।
 
अंग्रेजक जमाना मे गोटेक लोकक अदूरदर्शी-अवैज्ञानिक प्रान्त निर्धारण मे बिहारक निर्माण विफलता सिद्ध कय चुकल अछि। १९४० ई. सँ प्रबुद्ध समाज द्वारा मिथिला केँ अलग राज्यक दर्जाक मांग राखल जा चुकल अछि। देश स्वतंत्र भेलाक बाद चर्चा संसद मे सेहो पहुँचल। कोनो उग्र आन्दोलन त नहि मुदा दूरदृष्टिसंपन्न अनेको विज्ञजन द्वारा मिथिला राज्यक मांग सहितक ज्ञापन-पत्र बेर-बेर देलनि। तथापि बिहार केर लोकलुभावन नारा जे विभिन्न संस्कृति आ भाषाक एकमुष्ट समूह आ राजनीतिक हित साधन लेल एक सशक्त निर्णायक शक्ति बनेबाक लालसा मे मिथिला राज्यक मांग केँ दबायल गेल। एतुका लोकमानस मे ‘राज्य’ केर महत्व बुझि जनभावना मे मिथिला राज्यक मांग प्रबल होइ सँ पहिने बिपरीत भावना बनेबाक लेल अनेकों दुष्प्रयास सफल होएत चलि गेल। लोकतंत्र केर नाम पर जनप्रतिनिधिक चुनाव मे फेर सँ सामंती सभक हाथ मे राजनीतिक वर्चस्व बनेबाक चाभी सौंपि सत्तालोलूप दल द्वारा मिथिलावाद केँ जैड़ पर्यन्त नहि पकड़य देल गेल। डा. लक्ष्मण झा सन प्रखर आ प्रतिभावान केँ जनताक मत नहि भेटल आर ओ हारि गेलाह – मातृभूमि मिथिलाक वास्ते सपना देखेनिहार केँ जखन मतदाता अपन मत नहि देलक त स्वभाविक रूप सँ उम्मीदवारक संग-संग ओ मुद्दा सेहो हारि गेल। डा. झा लगभग संन्यास ग्रहण कय लेलनि। आरो दिग्गज नेतृत्वकर्ता सब केँ राजनीतिक दल अनेक झाँसा मे फँसाकय मिथिला सँ इतर बिहार लेल नेतृत्व देबाक सपना देखा मिथिला राज्यक मुद्दा केँ दरकिनार कय देलक। राज्य पुनर्संरचना लेल बनल फजली आयोग द्वारा ‘मिथिला राज्य’ लेल जनभावना नहि रहि जेबाक कारण देखाय १९५६ ई. मे अन्ततोगत्वा नकारि देल गेल। विदिते अछि जे १९५६ ई. केर उपरान्त जतेक राज्य बनल अछि ताहि मे जनभावना प्रबल आधार सिद्ध भेल अछि, परञ्च मिथिलाक मतदाता केँ जाति-धर्म पर तोड़िकय हाल धरि पटना आ दिल्लीक सत्ता-समीकरण निर्माण होएत अछि, मिथिला केर अपन कोनो मुद्दा एखन धरि चुनावी नहि भऽ सकबाक कारण राज्य अलग करबाक मांग कोनो खास स्थान नहि बना सकल।
 
जनमानस मे जेना-जेना बिहारक शोषण नीति स्पष्ट होएत जायत, एतय मिथिला राज्यक भावना तिव्र होयत। हाल धरि सरकारी शिक्षा आ विभिन्न सरकारी योजनाक लाभ सँ एतुका कतेक प्रतिशत जनता लाभ उठबैत अछि – एतय सँ लोकपलायनक संख्या दिन-ब-दिन बढिते जा रहल अछि। एहि ठामक भाषा, साहित्य, संस्कृति आ पहिचानक विशिष्टताक सब आधार लगभग अन्त होबय लागल बात सेहो सबकेँ स्पष्ट देखाय लागल। नेताक नीति, नेत, नियति – सब केवल स्वार्थक दिशा मे रहबाक बात सेहो सिद्ध भेल। यदि अपन राज्य होयत त निश्चिते एकर आर्थिक विकास सँ लैत आर सब तरहक विभेदक अन्त संभव होयत। सबसँ पैघ बात जे वर्तमान शासन व्यवस्था आ ओकर नीति केर अन्त भऽ एक नव शुरुआत होयत जे केवल आ केवल अपन लोकहित दिशि ध्यान देत।
 
मिथिला राज्यक मांग तेलंगाना या झारखंड सँ भिन्न अछि। कतेक लोकक मन मे ई जिज्ञासा रहैत अछि जे जाहि तरहक संघर्ष तेलंगाना या झारखंड या विदर्भ आदिक लेल भेल वा होएत अछि, से संघर्ष मिथिला मे कियैक नहि होएत अछि। प्रश्न जतबा सहज छैक ओतबा एकर उत्तर बुझब कठिन छैक। मिथिला राज्यक मांग हिंसक आन्दोलन मार्फत प्राप्त करबाक दिशा मे एखन धरि नहि त कियो सोचलक आ नहिये निकट भविष्य मे एहि तरहक संभावना हम देखैत छी। कारण, मिथिला दुइ राष्ट्रक संप्रभुताक सम्मान करयवला सेतु थिक; संगहि राष्ट्रीय सुरक्षाक दृष्टि सँ सेहो ई भाग बड पैघ मायना रखैत अछि जतय कोनो तरहक हिंसक आन्दोलन वा उग्रताक लाभ विदेशी दुश्मन सेहो भजा सकैत अछि। एकमात्र डा. लक्ष्मण झा एहेन मिथिलाक सपुत भेलाह जे मिथिलाक सीनापर ठोकल गेल नेपाल-भारतक सीमाक खंभा केँ ‘गोरखा पाया विरोध’ आन्दोलन चलाकय शुरू कएलनि, परन्तु भारत सरकार द्वारा १९५० ई. मे सुगौली संधि केँ मान्यता दय देबाक कारण ईहो कोनो खास उपलब्धिमूलक नहि भेल। आजुक जे अभियान सब अछि ताहि मे दुनू देशक संप्रभुताक सम्मान करैत दुनू देश मे अलग-अलग मिथिला राज्य बनय, यैह मांग सार्वजनिक तौर पर देखाएत रहल अछि। दोसर महत्वपूर्ण बात ईहो जे मिथिला जेना पहिने देश-निर्माण कार्य मे सहायक भेल, ब्रिटिश अत्याचार विरुद्ध जेना एतुका जनमानस अपन निजता केँ ताख पर राखि पहिने हिन्दी केँ मजबूत करैत राष्ट्र आ राष्ट्रीयताक भावनाक प्रदर्शन केलक, तहिना वर्तमान समय मे एतुका जनमानस मे एखनहु ई लिलसा बाकिये छैक जे बिहार केँ आरो नहि तोड़ि जँ पटना सँ न्याय आइयो भेट सकैत अछि त ओहि दिशा मे पहिल प्रयास कएल जाय। लेकिन एतुका जनप्रतिनिधिक पास नहि त एहि तरहक कोनो कार्ययोजना छैक, नहिये एहेन कोनो प्रखर दृष्टिकोण। पटनाक रणनीति केँ दबाकय कियो अपन क्षेत्रक विकास लेल संघर्ष करत, अथवा योजना बनायत से विरले कोनो नेता मे देखाएत अछि। अधिकांश लोक एखनहु राज्य अलग करबाक पक्ष मे मानसिकताक विकास नहि कय सकल अछि, द्वंद्व कायम छैक।
 
राजनीतिक दल जे एहि क्षेत्रक जनता केँ अपन वोट बैंक मानैत अछि, ओहो सब खुलिकय एहि पक्ष मे नीतिगत निर्णय नहि कय सकल अछि। उल्टा मैथिली भाषा केँ संस्कृत जेकाँ उच्चवर्गक भाषा मानबाक भ्रम आ मिथिला राज्य सँ ब्राह्मणक वर्चस्व बढबाक कपोलकल्पित भय जनमानस मे बाँटि बिहारी सत्ताक षड्यन्त्रक शिकार भऽ अपन कार्यकर्ता केँ पर्यन्त एहि दिशा मे जनमत बनेबाक लेल कियो कतहु काज करैत नहि देखा रहल अछि। नव-नव राजनीतिक शक्ति जे उदय होएत अछि ओ शुरुआत त मिथिलाक नाम सँ करैछ, मुदा दृढतापूर्वक कियो एहि मुद्दापर ठाढ भेल नहि देखायल अछि। वर्तमान समय राष्ट्रीय राजनीति केर प्रमुख हैसियतवला दल भारतीय जनता पार्टी या भारतीय काँग्रेस वा अन्य दल सेहो नीतिगत निर्णय मिथिला राज्य लेल हाल धरि नहि कय सकल अछि, अवश्य विषय प्रवेश नीति-निर्माणकर्ताक पास मे भेल छैक आ भारत मे संभावित नव राज्यक सूची मे २०४० केर आसपास जे राज्य बनत ताहि मे मिथिला राज्य केँ सूचीकृत कएने अछि। सामाजिक-राजनीतिक विचारधारा पर दखल रखनिहार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सेहो भविष्य मे मिथिला राज्य निर्माणक बात यदाकदा करैत देखायल अछि। वर्तमान समय मे एहि राजनीतिक दल सभक चरित्र मिथिला राज्यक मांग केँ किनारे राखि आगू बढबाक देखल गेल अछि, ईहो एक प्रमुख कारण थिक जे मिथिला राज्यक मुद्दा जनभावना मे प्रवेश नहि पाबि सकल अछि।
 
सामाजिक – सांस्कृतिक दशा-दिशा पर चिन्तन कएनिहार थोड़-बहुत जे अभियानी वा समूह सब कार्यरत अछि, ओ सब छिटफूट मिथिला राज्यक समर्थन मे आवाज उठबैत बस मुद्दा केँ जीबित रखने अछि। कतेक लोक त ईहो इन्तजार मे अछि जे जहिना मैथिली भाषा संविधान मे सम्मानित रूप सँ स्थान पेलक, तहिना कोनो चमत्कारिक शक्ति मिथिला राज्य केर निर्माण करत। जनता मे राजनीतिक जागृतिक कमी मे ई चमत्कार तखनहि संभव होएत छैक जखन एहि तरहक कोनो नव सत्तारोहणक समीकरण तैयार होएत छैक। एहि बात केँ नकारल नहि जा सकैत छैक जे अन्डर-करेन्ट मिथिला राज्य निर्माणक पक्ष मे छैक आर छोट-छोट स्तर पर जनजागरणक प्रयास सँ ई बहुत जल्दियो संभव भऽ जाय, २०१९ केर संसदीय चुनावी वर्ष एहि बातक निर्णय देत से अन्दाज करैत छी। मिथिला राज्य निर्माण सेनाक प्रतिनिधिमंडल सँ २०१३ मे भेंटघांटक समय वर्तमान गृहमंत्री आ ताहि समयक भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह एहि बातक समर्थन केने छलाह जे देश मे फेर सँ राज्य पुनर्गठन आयोग बनेबाक जरुरत अछि। एकटा महत्वपूर्ण सभा मे मैथिली अभियन्ता संग एक अनौपचारिक भेंटघाँट मे भाजपाक वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी कहने छलाह, “मैथिली केँ संविधान मे स्थान के देलक, वैह मिथिला केँ सेहो स्थापित करत”। डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’, डा. धनाकर ठाकुर, डा. बुचरू पासवान, डा. सत्यनारायण महतो, डा. भुवनेश्वर गुरमैता – अनेक नाम एहि सूची मे अछि जे वर्तमान समय मिथिला राज्यक ध्वजा केँ हाथ मे लेने आगू बढि रहला अछि। डा. रंगनाथ ठाकुर हालहि मिथिला राज्य निर्माण सेनाक अध्यक्ष बनलाह आ एहि आन्दोलन केँ जमीनपर उतारबाक सद्प्रयास करैत जिला परिषद् केर बैसार सँ मिथिला राज्यक पक्ष मे प्रस्ताव पारित करबैक भारतक राष्ट्रपति धरि एहि मांगपत्र केँ पठौलनि। तथापि, एकटा बड पैघ कमजोरी एहि आन्दोलनक यैह छैक जे ई कोनो कमीशन अथवा भ्रष्टाचार सँ अर्जित कोषपर नहि चलैत छैक, एहि मे जे किछु योगदान मिथिलाक समर्पित सपुत सब दैत छथिन ओकरे बल पर टुघरैत रहैत छैक, अतः ई अन्य जनान्दोलन समान जमीन पर नहि देखाएत अछि आ नहिये एकरा लेल राज्य अथवा केन्द्र अथवा देशक चारिम स्तम्भ मानल जायवला मीडियाक कोनो ध्यान छैक – तैयो मुद्दा जिबैत छैक। आगू कहिया ई कोन करोट फेरत से कहब संभव नहि अछि। ओना ई सर्वविदिते अछि जे जहिया जनता चाहत तहिये मिथिला राज्य बनि जायत आर एतय बेसी संघर्षो करबाक आवश्यकता नहि छैक, कारण भारत केँ पता छैक मिथिलाक भौगोलिक स्थिति स्वयं समस्या मे रहलाक बादो देश लेल कतेक महत्वपूर्ण छैक आर एतय कोनो तरहक अशान्ति कतेक घातक भऽ सकैछ। हम सब शुभे-शुभ आ शान्तिपूर्ण ढंग सँ मिथिलाक प्राचीन पहिचान संविधान मे सम्मानित ढंग सँ स्थापित होइ, यैह चाहैत छी।
 

हरिः हरः!!