कविता हमर

  1. || कविता हमर ||

लेखकः✍👤 विकाश वत्सनाभ 

हमर कविता

समयक घाओ पर लेपल 

गन्हकीक पात अछि

 

जे कामिनीक उत्तंग यौवन सँ मुहफेरि

औखन सुभ्यस्त नगरक मुहथरि पर

एकगोट बिसुखल मायक

पेटकुनिआ लधने 

दुधकट्टू ननकिरबू केँ ठिकिआ रहल अछि 

 

एहि मे काव्य शास्त्रक 

नओ मे सँ एकोटा ‘रस’ नहि छैक

मुदा भीजल छैक एकर सर्वाङ्ग

कोनो लाल टरेस कुमकुम सजाओल हाथ सँ

मंगलसुत हटेबाक क्रम मे

कजराएल आँखिए टघरल नोरक बुन्न सँ 

 

एहि पृथ्वीक पहिलुक क्रान्ति

एकर पहिलुक कविता

जकर जड़ि मे रहै

क्रौंच युगलक असफल मैथुनक घनीभूत पीड़ा

अंतहीन जिनगीक अंतिम संवेदना

 

सएह क्रान्ति औखन बेसी जड़िआएल 

नगरक मुहथरि पर

दुधकट्टू ननकिरबू केँ ठिकिआ रहल अछि 

घौआएल काल-समय पर

गन्हकीक पात लेपि

हमरा सँ कविता लिखबा रहल अछि ।

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-বিকাশ ঝা

२२.०३.२०१७