मिथिलाक ऐतिहासिक पुरुषः मैथिली भाषा-साहित्यक पहिल साहित्यकार ‘ज्योतिरिश्वर’

मिथिलाक ऐतिहासिक पुरुष परिचयः शोधग्रन्थ आधारित तथ्यक संकलन

– प्रवीण नारायण चौधरी, विराटनगर। फरबरी २, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!

हे मिथिलाक युवा पीढी!

एकदिस मनभावन तस्वीर अछि, दोसर दिस अछि ज्ञान!

मिथिला सचमुच विदेहक भूमि, आध्यात्मिकता सँ कल्याण!!

बंधुगण, अहाँ सब मिथिलाक छी लेकिन संबोधन आइ ‘मैथिल’ केर नहि भेटैत अछि। अहाँ मे मैथिल केर महत्व स्वतः प्रवेश नहि कय सकल अछि। कियो जातिक नामपर त कियो सामर्थ्यक नामपर – अहाँ सब केँ आपस मे तोड़िते रहैत अछि। अहाँ सेहो टूटिते रहैत छी। लोकतंत्र मे रहितो अहाँपर एखनहु सामंतवादक चाप चढले देखाएत अछि। कहियो जमीन्दारक चाप मे रही, आइ राज्य संचालनक ठेकेदारक चाप मे छी। कहल जाएछ जे जमीन्दारक चाप त भोजन-कपास-वासक इन्तजाम उपरान्त होएत छल, आजुक ठेकेदार सँ वोटहि काल एक-दु टा नमड़ी जँ भेट जाय त भेटल बुझू – बाकी समय त झेलय पड़त कतेको दलाल आ ताकय पड़त समाधान निज कर्महि केर आधार। एहेन समय मे गूढ ज्ञानक बात करब त बेकार आ ब्यर्थे थिक, मुदा हमरे सनक अक्खज कठोर मनक लोक, रहलो नहि जाएत अछि बिन कहने जे आखिर हम सब के थिकहुँ, कि रहल अछि हमरा सभक इतिहास।

तकैत रहैत छी जे कतहु किछु भेट जाय त अहाँ सब धरि पहुँचाबैत रही। एहि क्रम मे शुरु कएल ‘मैथिली जिन्दाबाद’ – www.maithilijindabaad.com आर परसैत रहल छी टुकड़ा-टुकड़ा मे अपन मिथिलाक सब गूढ-गंभीर बात। आशा करैत छी जे अपने लोकनि सेहो पूर्णरूपेण एकर सदुपयोग करैत अपन जीवन केँ धन्य-धन्य बनबैत छी। आइ सँ शुरु करय जा रहलहुँ अछि अपना ओतुका एहेन महावीर सपुत लोकनिक जे अपन कलम आ कागज केर सही-सही उपयोग करैत हमरा सब लेल बहुत रास महत्वपूर्ण जनतब छोड़ि गेल छथि। जनतब हो जे एहने लोक केँ बेर-बेर इतिहास सुमिरैत छैक जे अपन कर्मठता सँ – त्याग सँ एहेन-एहेन कीर्ति कय जाएत छथि जे समाजक सब वर्ग आ सर्वजन केर हित ओ कल्याण लेल होएत छैक। एहने महावीर सपुत सभक जीवनपर शोधार्थी लोकनिक लिखल बात सब हमरा लोकनि पढैत-बुझैत छी; प्रभावित होएत प्रेरणा ग्रहण करैत छी, आर समय-समयपर अहाँ सब धरि सेहो पहुँचाबैत छी। त, आब जे श्रृंखला हम शुरु करय लेल जा रहलहुँ अछि ई मिथिलेश कुमार झा केर शोध पर आधारित मैथिली साहित्यक ओहि दिग्गज हस्ती सभक थिक जे इतिहास मे स्वर्णाक्षर मे अंकित अछि। बाकी त आयल पानि – गेल पानि – बाटहि बिलायल पानि सब भेल; कतेक गानब! हम अपन बौद्धिकताक चरमविन्दु पर जा कय एकर अनुवाद कय रहलहुँ अछि, अक्षरशः त नहिये सिद्ध होयत, मुदा भाव समुचित आ अनुकूल जरुर भेटत। अंग्रेजीक प्रयुक्त लेख सेहो अपने लोकनिक स्वविवेक अनुरूप बेसी नीक जेकाँ बुझबाक लेल राखि रहल छी।

आइ प्रथम दिन, मैथिली भाषा-साहित्यक ओहि नामक चर्चा करब जिनक कृति ‘हस्तलिखित-पाण्डुलिपि’ सुरक्षित अछिः ओ थिकाह ‘ज्योतिरिश्वर’

 

ज्योतिरिश्वर (मैथिलीक पहिल साहित्यिक योगदानदाता)

 

हिनक जीवनकाल १२९४ सँ १३४८ ई. मानल जाएत अछि। एखन धरिक सर्वथा प्राचीन अभिलेख जे मैथिली भाषाक किंवा उत्तर भारतवर्षीय कोनो टा भाषाक उपलब्ध अछि ओ थिक ‘वर्णरत्नाकर’ जे १३म सदी मे ज्योतिरिश्वर द्वारा लिखल गेल अछि।

 

ज्योतिरिश्वर पाली मूलक मैथिल ब्राह्मण छलाह। हुनक पिताक नाम धीरेश्वर आ बाबाक नाम रामेश्वर छलन्हि। मिथिला मे कर्नाट वंशक अन्तिम शासक महाराजा हरसिंह देव केर समय हिनक जीवनकाल मानल जाएत अछि। डा. जयकान्त मिश्र केर मुताबिक हिनक जीवनकाल १२८० ई. सँ १३४० ई. मानल जाएछ।

 

ज्योतिरिश्व केर ‘वर्णरत्नाकर’ मैथिलीक सर्वोत्तम कृति मानल जाएत अछि। हिनकर काज पर दुइ गोट विश्वसनीय प्रकाशन भेल अछि। पहिल प्रकाशन १९४० ई. मे डा. सुनीति कुमार चटर्जी एवं पं. बबुआजी मिश्र केर संपादकत्व मे रोयल सोसाइटी अफ बंगाल द्वारा कएल गेल। आर दोसर प्रकाशन मैथिली अकादमी, पटना द्वारा १९८० ई. मे प्रो. आनन्द मिश्र एवं पं. गोविन्द झा केर संपादकत्व मे भेल। महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री १८९५ सँ १९०० ई. केर बीच दु-दु बेर नेपाल गेलाह। एहि यात्राक समय हुनक शिष्य पं. रखल चन्द्र काब्यतीर्थ आर विनोद विहारी काब्यतीर्थ मिथिलाक एहि पोथीपर शोध कएलनि। एहि पोथीक पहिने दुइ प्रति पाण्डुलिपि उपलब्ध छल, मुदा आब एक्के टा अछि। वर्णरत्नाकरक ई पाण्डुलिपि बंगाल रोयल एशियाटिक सोशाइटी केर पुस्तकालय मे राखल अछि। ई तिरहुता लिपि मे लिखल गेल अछि। एहि मे पहिने ७७ गो पन्ना छल मुदा समयक संग १७ गो पन्ना गायब अछि। एहि मे सम्पूर्ण कार्य ८ शीर्षक मे विभक्त अछि जेकरा कल्लोल कहल गेल अछि। एहि मे मध्यकालीन मैथिल समाज, एतुका नगर, जीवनशैली, संगीत, सुन्दरता, राजदरबार, वन, पहाड़, मौसम, संत, कवि, नदी, तीर्थस्थल, विवाह, चोर, हथियार, किला, राज्य, इत्यादिक सूक्ष्म सँ सूक्ष्मतम वर्णन कएल गेल अछि। सुनीति कुमार चटर्जीक मुताबिक, एकर महानता एहि मे वर्णित विवरणक प्रचुरता मे निहित अछि, आर यथार्थतः एहि मे मानव जीवन सँ जुड़ल लगभग सभ बातक महत्व वर्णण समाहित अछि। मध्ययुगीन मिथिलाक समाज, अर्थतंत्र, संस्कृति आ राजनीति केर बुझबाक लेल एहि काज केर महत्व अनमोल अछि।

 

जयकान्त मिश्रक अनुसार हिनकर बाकी रचना धूर्तसमागम आ पंचायक थिक, ज्योतिरिश्वरक ई रचनादि आर लेखनशैलीक पूर्णता देखि ई सहजहि अनुमान लगायल जा सकैत अछि ज्योतिरिश्वरक मातृभाषा (मैथिली) केर कार्य नहि त पहिल थिक आर नहिये मैथिलीक एकमात्र साहित्यिक कार्य। मुदा जाबत धरि पूर्वहु केर कार्यक नमूनादिक खोज नहि होयत ताबत धरि हिनकहि कार्य केँ मैथिली साहित्यक सबसँ पहिलुक गंभीर कार्य मानल जायत।

 

JYOTIRISHVAR (1294-1348)

 

So far the most ancient prose text available in Maithili or any other north Indian languages is Varnaratnakar written by Jyotirishvar in thirteenth century. He was a Pali Moolak Maithili Brahaman. His father name was Dhireshwar and his Grandfather name was Rameshwar. His period was considered to be the reign of the last Karnat ruler in Mithila – Maharaja Harisingh Dev. According to Dr. Jayakant Mishra

his period was 1280 – 1340.

 

His Varnaratnakar is one of his best known works in Maithili. There has been two authentic publication of this work so far. The first was published by the Royal Society of Bengal in 1940 under the editorship of Dr. Suniti Kumar Chatterjee and Pt. Babuajee Mishra. And the second was published by the Maithili Akademy, Patna in 1980 under the editorship of Prof. Anand Mishra and Pt. Govind Jha. M. M. Harprasad Shastri visited Nepal twice during 1895 – 1900. During these visits his disciples – Pt. Rakhalchandra Kabyateerth and Vinod Bihari Kabyateerth researched this book in Mithila. There were two copy of manuscript of this book but now there is only one copy that is available. This manuscript of Varnratnakar is kept in the library of the Bangal Royal Asiatic Society. It is written in Tirhuta. This manuscript had originally 77 leaves but by the time of preservation 17 leaves were lost. The work is divided into eight chapters, which is called

Kallol. It is a nuance description of medieval Maithil society, its city, lifestyle, music, beauty, palace, forest, mountains, seasons, saints, poetry, river, pilgrimage places, marriage, thieves, weapons, fortress, state etc. According to Suniti Kumar Chatterjee, its greatness lies in the profusion of its details, and in the fact that it includes description of

almost all things worth describing in human life. This work is of great value to understand society, economy, culture and politics of medieval Mithila.

His other works are Dhurtsamagam and Panchayak. According to Jayakant Mishra, it is quite obvious from the maturity of style and composition of Jyotirishvara’s

vernacular (Maithili) works that the literary use of the vernacular by the Jyotirishvar was neither first nor the only one. But so long as other older Maithili specimens are

not discovered they must continue to be considered as the earliest conscious literature in Maithili.

 

हरिः हरः!!