मैथिली कथाः छुटल बस आ बाबूजी

कथाः छुटल बस आ बाबूजी

praveen-k-jha1– प्रवीण कुमार झा, बेलौन, दरभंगा (हाल दिल्ली सँ)

हम बाबूजी संगे दक्षिण केर यात्रा में छलहुँ, दुनु आदमी बस में रही. संभवतः कोनो मन्दिर बला शहर आबै बला रहैक. बस केँ चाय पान के लेल रोकल गेल छल.

सबटा संपन्न भेला के बाद बस फूजल् त हम कनेक पछुआ गेलौं. हम पाछाँ, आ बस आगाँ आगाँ. बाबूजी संभवतः ध्यान नै देलैन्. हम दौड़ के बस पकड़बाक के कोशिश में रही. गला फाड़ि चिकडाइतो नै रहे. अचानक अहि क्रम में जखन बस कनेक आस्ते भेल, हम कनेक नजदीक एलौं, जी जान लगा के कुदवा के कोशिश में बसक चक्का तर में.. आब बस रुकल मुदा हमर शरीर खंड खंड रहैक… माथक भरकुस्सा भ गेल रहे… हम मरि चुकल रही… सब यात्रीगण हमरा सड़क पर लहूलुहान देख रहल छलाह… बाबूजी केर हालात खराब छलैन… हम उठि के हुनका लग बैसय चाहैत छलौं मुदा… कोना उठितौं.
पुलिस, डॉक्टर सब आबि गेल… बाबूजी केँ बस में बैसाओल गेल.. हुनका पहिल बेर कानैत देखने रही… हुनका कहल गेल, अहाँ आगाँ शहर चलु, लाश जडेलाक बाद अस्थि आ अंगवस्त्र आहाँ केँ पहुँच जायत…
फेर बस फूजल्… हम फेर उठि के दौड़य चाहैत रहि, बाबूजी केँ चुप करय चाहैत रही. बड्ड कोशिशो कैल… मुदा नै उठि सकल हमर देह…आब हम कानैत रही… उठबाक प्रयास में पसीना सौं लथपथ मुदा एको रत्ती नै घुसकि सकलौं….
अचक्के मे नीन टुटि गेल… लागल जेना लाइट चलि गेल आ गर्मी सौं नींद टुटल.. मुदा लाइटो छल आ ऐ सी सेहो चलि रहल छल… ओह, हम पलंग पर रही… ई त भोरहरवा के 5 बजे के गप छल….