कि चाहीः भगवान् कि भोग?

pncनैतिक कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
 
अस्त-व्यस्त बाजार – दुपहरियाक बाद बेसीकाल एतुका एहने हाल होएत छैक, लोक सब अपन पसार तऽ भोरे सँ दुपहर धरि लगबैत रहैत अछि… मुदा आब खरीददार सबहक भीड़ बाजारक चारूकातक क्षेत्र सँ पूर्ण रूप मे आबि जेबाक कारणे कोनो पसारी केँ फुर्सत नहि रहैत छैक। सब पसार पर कम सँ कम पाँच गो गैंहकी! आर्थिक कारोबार भरपूर! एहि बाजारक यैह खासियत होएत छैक। जहिना समान खचाखच – तहिना गैंहकी। कोनो एहेन मेल नहि जे एतय नहि भेटत। खाद्य-अखाद्य उपभोग्य वस्तु सँ लैत माल-जालक पैकार तक एहि बाजार केर प्रयोग करैत अछि। ई बाजार कम आ मेला बेसी प्रतीत होएत अछि कोनो नव आगन्तुक केँ। भोरक समय मे सरपट-सुन्न आ जेना-जेना दिन चढैत गेल तेना-तेना एतय लटखेना आ पसार सब लागैत गेल। फेर जेना-जेना साँझ ढलैत गेल दोकानदार आ गैंहकी सब अपन-अपन घर लौटैत गेल। फेर रातिक १० बजे जाएत-जाएत सरपट‍-सुन्न!
 
शहरक बाजार आ गामक बाजार मे किछु अन्तर होएत छैक। शहर मे बेसी रास बाजार होलसेल मार्केट – कतहु जाएब तऽ आलुवे-आलू, कतहु जाएब तऽ भालुवे-भालु, यानि कि सब समानक अपन-अपन थोक बिक्री क्षेत्र बान्हल भेटैत छैक। गामक बाजार आ शहरक बाजार मे नीक लिंक रहैत छैक। मुनाफाक स्तर सेहो दुनू ठाँ दू तरहक! शहर मे ४-५ फीसदी लाभ पर लागत असुलि लैत अछि, गाम मे यैह १५-२० फीसदी धरि पहुँचि जाएत छैक। शहर आ गाम बीच लिंक जोड़निहार केँ एतेक लाभ उठबैत कियो नाजायज नहि कहि सकैत छैक, कारण शहर जेबा मे जे खर्चा हेतैक तेकर बदला एतेक लाभ ओहि दोकानदार केँ देब उचित छैक। गाम-घरक लोक एहि वास्ते तत्पर रहैत अछि। समान भेटबाक चाही।
 
किछु दिन सँ बाजार मे एकटा नव लटखेनावला आबय लागल अछि। ओकर लटखेना पर एकटा बैनर टांगल भेटैत छैक, ओहि पर लिखल छैक ‘कि चाहीः भगवान् कि भोग?’ लोक सब खूब उत्सुकता सऽ ओतय पहुँचैत अछि। ओकरा सँ पूछने बिना ओकर दोकान केँ खूब नीक जेकाँ निरीक्षण लगभग सब कियो करैत अछि। ओहि बैनर पर लिखल बात आ दोकान पर राखल समान – एहि सब मे तादात्म्य बैसेनिहार अपना हिसाबे खूब माथ लगबैत ई बुझबाक चेष्टा करैत छैक जे आखिर ई दोकानदार एहि बैनरक माध्यम सँ कि कहय लेल चाहैत अछि – कि भेटैत छैक, कि बेचैत अछि, आदि। किछु लोक हिम्मत कय केँ ओतय पहुँचैत अछि आ दोकानदार सँ पूछि बैसैत छैक। ऐँ हौ! ई तोरा दोकान पर कि लिखल छह? कि चाही – भगवान आ कि भोग… कि थिकैक? कि बेचैत छह तोँ? दोकानदार सहजहि हँसैत कहैत छैक, “नहि बुझलियैक! हमरा दोकान मे दुइये तरहक समान भेटत। एकटा भगवान् अपने भेटता, दोसर भोग भेटत।” लोक तैयो चकराय, समान दिस घूर-घूरि ताकय। बात पूरा बुझय मे नहि आबय। आरो फरिछाकय पूछय – से नहि! भगवान् सेहो तूँ बेचैत छह? भोगक वस्तु वास्ते तऽ ई सौंसे बाजार नामी अछि। मुदा भगवान् सेहो तूँ रखैत छह कि?
 
दोकानदार तखन ओहि ग्राहक केँ लग मे बजाकय किछु समान देखबैक, कहैक, “देखू! जेना ई गीता भेल। ई स्वयं कृष्ण वचने छथि अर्जुन सँ। एहि मे बहुत रास बात मनुष्य जीवन लेल महत्वपूर्ण ढंग सँ राखल गेल छैक। ई लेब तऽ से भेलाह भगवान्। आ! हे एम्हर देखू! एतय निरोध राखल अछि। आइ-काल्हि सरकारी विज्ञापन सब सेहो देखैत हेबैक जे परिवार नियोजन लेल लोक निरोधक प्रयोग करय। तऽ हमरा दोकान मे अहिना रेन्ज मिलल समान सब भेटत। एक तरफ भगवान् भेटता, दोसर तरफ भोग भेटत।” ताबत एकटा युवाक टोली ओहि दोकान पर आबिकय कहलकैक, “यौ जी दोकानदार! हम सब जवान-जहान छी। भगवान् लऽ कय कि करब! बरु भोगवला समान सब देखाउ।” दोकानदार ओकरा सबकेँ किछु रास नग्न पोर्न स्टार सबहक तस्वीर देलकैक। कहलकैक, “बाउ! अहाँ सब आब कृष्णजी केर राधा संग बाँसुरी बजबयवला फोटो तऽ लेब नहि, अहाँ सब हैया सनी लियोनी केर जानदार फोटो लेल जाउ।”
 
बुढ-बुजुर्ग सब बात केँ बुझि गेलाह। धीरे-धीरे एहि दोकान पर स्त्री-पुरुष सब उमेरक लोक केर खूब भीड़ लागय लागल। दोकानदार सेहो आब असगरे ब्यापार सम्हारय मे सक्षम नहि। दोकान केँ साइज सेहो बढा देल गेल छल। दू भाग कय देल गेल छल। ब्रोशर आ कैटलग मे भगवानक भाग मे भक्ति-साधना सँ जुड़ल विभिन्न बात लिखल रहैक, तऽ भोगक भाग मे ठीक ओकर बिपरीत भौतिक सुख केर समानादिक सूची देल गेल रहैक। भगवानक भाग मे दाम सेहो न्युनतम् राखल गेल रहैक। भौतिक सुख केर भोग-पदार्थक दाम सेहो जस्ट डबल-ट्रिपल। एक तरफ शास्त्र-पुराण तऽ दोसर तरफ वयस्क फिल्म केर सीडी, एक तरफ चुनरी-साड़ी-धोती आदि तऽ दोसर तरफ ब्रा-पैन्टी-सौर्टीज। एक तरफ चानन-टीका-भस्म आदि छलैक तऽ दोसर तरफ एक सँ बढिकय एक कस्मेटिक-लिपस्टिक आदि। बेसीकाल भगवान् भेटयवला भाग खालिये रहैत छलैक। मुदा भोगवला काउन्टर सदिखन फूल।
 
एक दार्शनिक अपन विचार दैत कहैत अछि जे ई बाजार वर्तमान मानव जीवनक स्तर केँ प्रदर्शित करैत अछि। कि ई युगक प्रभाव थिकैक? आ कि भगवान् केर द्योतक वस्तुक माँग मे आयल कमी मानवीय आवश्यकताक सूची सँ तर्कपूर्वक बहरा रहलैक अछि? सच छैक जे कहियो हरेक परिवार मे रामचरितमानस-गीता केर प्रति राखल जाएत छलैक, लेकिन आब फिल्मी मैगजीन – फैन्टासी स्टोरीज – पोर्न कथा आदि कीनकय लोक खूब चाव सँ पढैत अछि। आर तऽ आर, यदि अहाँ कोनो न्युजपेपर कीनब तऽ समाचारक भाग लोक पढय नहि पढय, मुदा नग्न तस्वीर आ आकर्षक रंगीन आवरण चित्र सब देखबाक लेल ओ न्युजपेपर हाथो-हाथ बिका जाएत अछि। गुणस्तरक बात छोड़ू – मानसिक उत्तेजना आ शारीरिक भोग लेल लोक वियाग्रा आ जिनसेंग कि नहि इस्तेमाल करैत जीवन मे भोग मात्र केँ प्रधानता दैत अछि। साधु‍-संतक संग लेल लोक समय निकालय नहि निकालय, मुदा भोग प्रधान कूसंग लेल प्रतिदिन टेबुल सजबय मे कतहु असोकर्ज नहि छैक। प्रत्यक्ष साधना आ योग केर प्रभाव सँ परिचितो मनुष्य जीवन केँ फूल ऊपयग केवल भोग – खाउ, पिबू आ मौज उड़ाउ केँ मानैत अछि। तऽ कि भगवानक महत्व कम भऽ गेल? या मानव विनाशोन्मुख भऽ गेल? ई दुनू प्रश्न पाठक पर छोड़ैत एहि वैचारिक कथा केँ एतहि विराम दैत छी।
 
हरिः हरः!!