तीन बात

प्रत्येक मनुष्य लेल निम्न तीन बात विचारपूर्वक करबाक चाही। १. शरीरक तप: देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्। ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते॥ देवता, द्विज (ब्राह्मण व जीवन मे संस्कार प्रदान केला उपरान्त दोसर बेर जन्म भेनाय माननिहार), गुरु, प्राज्ञ (विद्वान्, ज्ञानी, गुणी) केर पूजन; शौच (शारीरिक मलादि सँ निवृत्ति, स्नान आ सफाइ आदि) आ मार्जव (शारीरिक सरलता, साधारण पहिरन आदि); ब्रह्मचर्य आ अहिंसा; ई सब शरीरक तप मानल गेल अछि। २. वाणीक तप: अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्। स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्गमयं तप उच्यते॥ बोली (वचन, शब्द, आवाज, आदि) जे केकरो कष्ट नहि पहुँचाबय, जे सत्य बात हो आ जे प्रिय (आनन्ददायक) आ हितकारी हो; स्वाध्याय (निरंतर शास्त्रीय उपदेशादिक अध्ययन); ई सब बात वाणीक तप मानल जाइछ। ३. मनक तप: मन:प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह:। भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते॥ मनक सौम्यता, भद्रता, मौनता, स्वयं-नियंत्रण, हृदयक विशुद्धता – ई सबटा मानस केर तप मानल जाइछ। Worship of the gods (Devas), the twice-born, teachers and the wise; cleanliness, simplicity, continence and non-injury – these are said to be austerity of the body. Words that cause no offence, and which are truthful, pleasant and beneficial, and also regular recitation of scriptures – these are said to be austerity of speech. Serenity of mind, gentleness, silence, self-control and purity of heart – these are said to be mental austerity.