राजा आ रफ्फूः गप्पी मैथिल समाज लेल नैतिक कथा

mss pnc2राजा आ रफ्फू

– प्रवीण नारायण चौधरी

एकटा बड पैघ गप्पी राजा छलाह आ हुनकर दरबारियो सब लगभग सबटा तेहने वीर गप्पी सब छल। राजा केँ जखन राजकाज सँ फूर्सत भे जाएत छलन्हि तखन अपन गप्पी दरबारिया सब संग बैसिकय गप्प छाँटय लागथि। आब गप्पी राजा आ गप्पी दरबारी… खूब तूकबन्दी चलैत छलैक। तरह-तरह केर गप्प-सरक्का!! अन्त मे राजा जीतबाक लेल महाझूठ सब सेहो बाजि दैथ आर एकटा विशेष दरबारिया ‘रफ्फू’ नाम सँ रखैथ जे हुनकर केहनो झूठ केँ रफ्फू कय केँ अन्य दरबारी गप्पी सबहक सामने सत्य प्रमाणित कय दैत छल।
एक विशेष दिन राजा किछु विशेषे गप्प दैत कहलखिन, “ओह! कि कही! एक बेर जंगल मे शिकार पर एकटा बाघ भेटल। कनेक दूरे सऽ सार केँ तेहेन बाण मारल जे एक्के बाण मे माथ आ पय्र दुनू बिंध देलियैक।”
सब दरबारिया गप्पी सब हल्ला करय लागल। “सरकार! ई कोना हेतैक?”
पहिने तऽ राजा सरकार अपनहि सँ तथानाम तर्क दैत रहला, परन्तु दरबारियो सब हुनकर सब गप केँ कटैत रहलनि। अन्त मे खौंझाकय राजा आवाज देलनि, “रफ्फू!”
रफ्फू इशारा पबिते अपन कार्य करैत कहलखिन, “एह! कि बात करैत छी अहाँ सब? जाहि समय राजा बाण चलेला ताहि समय बाघ अपन माथ कुरिया रहल छल। ठीक ओहि समय ओ बाण ओकर माथ आ पय्र दुनू केँ बिंध देलक।”
सब दरबारिया ई सुनिते कोनो तर्क सँ ओहि बात केँ नहि काटि सकल। सब कियो सहमति मे मूरी डोलबैत बाजल जे “ई संभव अछि। सरकारक तीरंदाजीक जबाब नहि!”
आब राजा कनेक जोश मे आबि कहलनखिन, “यौऽ ओतबा कि भेल! आब सुनू!! दोसर बेर एकटा बाघ अभरल, ओ देख लेलक जे फल्लाँ राजा शिकार पर आयल छथि। जरुर ई वैह बाघ जेकाँ हमरो मारि देता से सोचिते ओ ५०-१०० गो गाछक ओट मे नुका गेल। मुदा! फेर हम बाण समधानि कय तरकस पर चढा तेना लंभा खींचिकय मारल जे ओहि गाछ सब केँ बिंधैत बाघ केँ मारि खसा देलक।”
दरबारी गप्पी सब ठहाकय हँसय लगलाह। “हौ बाप हौ! सरकार ५०-१०० गो गाछ केँ बिंधैत … हाहाहा…. एहेन कोन बाण छल?” राजा फेरो अपन बचाव मे तर्क सब देलनि। मुदा दरबारिया गप्पी, अपने माहिर! कियो बात सुनबा लेल तैयार नहि। राजा फेर बाध्य भऽ आवाज लगौलनि, “रफ्फू!”
रफ्फू फेर बजलाह, “ऐँ यौ! अहाँ सब एना अतिश्योक्ति मे कियैक डूबि जाएत छी? सरकार कोन बेजा बात कहलनि? सरकारक बाण मे एतबो तागति नहि जे ५०-१०० गो केरा गाछ केँ बिंधैत बाघ केँ मारि सकत?”
दरबारी गप्पी सब रफ्फूक इशारा बुझि हँसैत बाजय लगलाह… हाहाहा! सरकार से पहिने कहितियैक न जे केराक गाछक ओट मे ओ बाघ नुका गेल छल। राजा कहलखिन, “गाछ तऽ गाछे होएत छैक, केराक हो आ कि पिपर-बरगद!”
लगले हाथ राजा फेर कहलखिन, “हौ! महानुभाव लोकनि! तेसर बेर जे बाघ अभरल ओ केना मरल से सुनय जाउ।”
दरबारियो सब उत्सुकतावश पूछलक, “कोना?” ताहि पर राजा बजलाह, “तेसर बाघ बुझू जे बड छकबयवला छल। कतेक बेर बाण मारलाक बादो जखन वश मे नहि आयल तखन खेहारैत-खेहारैत ओकरा एकटा सरपट मैदान मे लऽ गेलहुँ। मुदा ओत्तहु एकटा मोटका बरक गाछ छल। ओ बाघ बरक गाछक चारूकात परिक्रमा करय लागल। कय गो बाण हमर खालिये गेल। अन्त मे एहेन बाण धनुष नचाकय मारल जे ओहि घुमघुमौआ बाघे जेकाँ घूमय लागल, जाबत धरि बाघ घूमैत रहल ताबत धरि हमर बाण घूमैत रहल। जखन बाघ थाकिकय रुकल तखन हमर बाण सेहो ओहि रुकल-थाकल बाघ केर पछुऐते मे भेंसा गेल आर बाघ मारल गेल।” राजा बाजैत-बाजैत हाँफय लागल छलाह मानू जेना अपने सेहो ओहि बाणहि संग घूमि रहल होएथ। दरबारी सब जोरदार ठहक्का मारिकय हँसय लागल। “सरकार, गप्पोक एकटा सीमा होएत छैक! ई तऽ अपने से गप कहि देलियैक जे कोनो जनम मे सच नहि भऽ सकैत अछि।” पूर्ववत् राजा अपने सँ हुनका लोकनि केँ बुझेबाक असफल प्रयास कएलनि, मुदा परिणाम पहिने जेकाँ बेअसर भेल। ताहि पर राजा तमसाकय आवाज लगौलनि, “रफ्फू!”
रफ्फू बाजल, “ईह! कपार रफ्फू!! आब कि रफ्फू! भूर सँ भोकाँर कय केँ राखि देलियैक आ आब रफ्फू?”
खिस्सा खत्तम, पैसा हजम!!
हरिः हरः!!