मनुष्य कोना महिस बनैत अछि (नैतिक कथा)

गुरुजी केर श्राप

(यथार्थ घटना पर आधारित)

– प्रवीण नारायण चौधरी

teacher taking classबौआ भाइ कहियो घर मे करबाक लेल कहल गेल टास्क नहि करैत छलखिन तऽ मास्टरसाहेब सबहक आँखि पर चढि गेनाय स्वाभाविके छलन्हि।

खास कऽ के इन्द्र नारायण बाबु केर क्लास मे हुनका ५ मिनट झार-झपाड़ पड़िते टा छलन्हि। एक दिन इन्द्र नारायण बाबु बौआ भाइ केँ बेन्च पर ठाढ करा के कहय लगलखिन –

“व्हाट यू डू फेलो! होल डे ओनली बफैलो!! सो यू हैव बिकम लाइक बफैलो यू फेलो!! योर स्कीन लाइक बफैलो, योर व्वाइस लाइक बफैलो, योर बिहेवियर लाइक बफैलो…”

बौआ भाइ केँ आइ हुनकर बात बड खराब लगलैन। ओ हुनका क्लास सँ निकललाक बाद छौंड़ा सब द्वारा खौंझेबाक काज मे सेहो ‘बफैलो-फेलो’ कहबाक बात पर तमशाइत पूछलखिन जे, “रौ! ई बफैलो फेलो कि भेलैक?”

हुनका तखन छौंड़ा सब बुझेलकैन जे, “तूँ घर मे करयवला काज जे कऽ के नहि अबैत छिहीन, भैर दिन कि महींस चरबैत रहैत छिहीन? तही द्वारा इन्द्र नारायण बाबु मास्टरसाहेब तोरा ‘बफैलो-फेलो’ नाम धऽ देलखुन हँ।”

बौआ भाइ केँ ई बात बड़ा भीतर मे छू देलकैन। ओ मोने-मोन नियारय लगला जे इन्द्र नारायण बाबु मास्टरसाहेब केँ एहि लेल किछु कय केँ देखाबय पड़त। ओ उठला आ ओही दिना इजोरिया राइत हुनकर ५ कट्ठा मे गम्हरायल धान केँ जैड़ सँ काटिकय महींस केँ कुटी काटि खुआबय लेल बोझ बनाकय अपन खरिहान मे राखि देला।

बेचारे मास्टरसाहेब, मास्टरी सँ फुर्सत भेला पर कोना-कोना खेती करबाबैत छलाह, हुनका पता चललैन जे, “अहाँ जे बौआ भाइ केँ ओहि दिन बफैलो फेलो कहलियैन से हुनका बड दु:ख भेलैन आ ताँइ ओ बफैलो बनिकय अहाँक खेत ग्रेज (चैर) कय गेला।”

इन्द्र नारायण बाबु केँ आ हुनकर विद्यार्थी केँ ई आदति लागि गेल छलन्हि जे कोनो बात करयकाल मैक्सिमम अंग्रेजी शब्दक प्रयोग कएला सँ अंग्रेजीक नीक ज्ञान गामो-घर मे रहैत भऽ जाइत छैक, बाद मे ओ बड काजक होइत छैक।

मास्टरसाहेब जखनहि सुनलाह जे बौआभाइ सही मे ह्युमैन बफैलो फेलो बनिकय हुनकर खेत मे हरियायल-गम्हरायल धान काटि लेला तऽ ओ हँसय लगलाह…. आ कहलखिन, “हौ! हम तऽ ओकरा सुधारय लेल बोकियेने रहियैक। हमरो मास्टरसाहेब सब तहिना बूरि बनबैत छलाह, एक रत्ती गलती केला पर भरल समाजक बीच ठाढकय फज्झेतक तर कय दैत छलाह। हम तऽ बौआ केँ सुधारय लेल कहने रहियैक ‘बफैलो फेलो’। ओ सच मे बफैलो बनि गेल?”

विद्यार्थी सब मास्टरसाहेब सहित खूब हँसलाह, मुदा तरे-तर ५ कट्ठा खेत मे लागल धान बर्बाद होयबाक दु:ख, मास्टरसाहेब फेर दर्द भरल आवाज लेकिन हँसिते बजलाह, “जाह! जाय दहक!! दु:ख एतबे जे आब ओ जीवन भैर महींसे बनिकय रहि जेता।”

सच मे! गुरुजीक श्राप एहेन लागल जे बौआ भाइ जीवन भरि किछु नहि कय सकलाह आ महींस बनिकय जीवन गुजारय पड़लैन।

हरि: हर:!!