मिथिला मे खच्चरहि केर दर्शन – तीत-सत्य

खच्चरहि प्रसंग – यथार्थ अनुभूति पर आधारित

santosh kr santoshi– संतोष कुमार संतोषी

ई खच्चरैहि……बाप रे…….

उजरका पैजामा आ चितकबरा बुसट पहिरने, बिच्चैहि आँगन में खाट पर बैसल डाक्टर साहेब —
कोनो जानवरक छाला सँ बनल अपन करिकबा बेग में भरल रंगबिरहा गोटी आ दबाई संग तोर जोर क रहला…
एम्हर,,
जर (बुखार )सँ तलफैत अपन चाईर बरखक नाईत के कोरा में नेने, निच्चैहि में बैसल बुढ़िया काकी जेना आर्तनाद करैत बाईज उठलीह….
काकी: –डाक्डर सेहाब कनी नीक -नीक दबाई सब देथुन
बच्चा के मोन बड्ड तलफैये…. कीजानै गेलियै कोन गलनी लागल जाईये बाबूके….

डा:—अरे किछु नै हेतै, अहाँ सब त अनेरो के घबरा जाई छी… तुरन्ते ठीक भ जेतै (एकटा सीसी दैत )हलिये ऐ में सँ एक मुन्ना एखने पिया दियौ आ बाकि चाईर -चाईर घंटा पर दैत रहियौ.

काकी: -हिनका उपर बड्ड विश्वास अई हमरा सबके डाक्डर सेहाब… से नीक सँ देखथून, कनी निरोग कए दौथ हमरा बाबू के……

डा:-हँ हँ.. एकदम ठीक भए जेतै, एक नम्मर दबाई देलौं हँ.. दामो कम छै आ काजो बढिया करै छै
पिया देलियै ने, देखियौ अखने आराम भए जेतै..
अछ:आब एखन विदाह करू हमरा, एक सय सरसैठ रूपैया होईछै.. दू टका के कोनो बात नै एक सय पैंसठ गो टका दियौ… बड्ड समय लाईग जाईये अहाँअंगना में.. हमरा कतेक ठाम जेबाक रहै छै से बुझै छियै अहाँ सब…

काकी: -(आँचर के खूट सँ दू टा सय के नौट बाहर करैत)
हईया लौथ नमरी छैन दू टा, जे होईन से एहि में सँ काईट लौथ…. आ हमरा बाबू टा के नीक धैरि कए दौथ…

डा:–कहै त छी नीक भ जेतै… आ ई खूदरा हम कतय सँ आनब, हम की कोनो नून तेलक दोकान करै छी.. आब साँझू पहर में जहन आएब तखने पैसा फिरता भेटत.. आ दबाई सब त औरो देबै परतै न.. तखने सबटा हिसाब किताब भ जाएत…..
(चल्हा के आँच सलगाबैत बुढिया काकी के पुतहू घोघे तर सँ किछु संकेत केलखिन काकी के )

काकी: -(पुतहूक संकेत बुझैत )हँ बेस मोन.पारलौं कनिया… एक पत्ता ऐसिलौक द देथुन डाक्डर सेहाब. ई जरलाहा गैईस त मोन बेचैन केने रहै अई…

(बुढ़िया काकी के दस बरखक जेठका नाईत सुरजा, ओहि दबाई के सीसी हाथ में नेने उलटाबैत पुलटाबैत किछु खास पढबाक कोशिश संगहि दादी के कोरा में बेसुध भेल परल अपना सहोदर भाई के सिनेहिल नजैरि सँ निहाईर रहल छल )

काकी: -(सुरजा सँ ) धुर कंसा उम्हर जा न ,कि लेबह एतह … यै कनियाँ ऐहि छौरा के हटाऊ एतय सँ ओहो दबाई के सीसी फोरियै के दम लेतै ई…….. (डा:सँ ) देथुन न एसिलौक…

डा:- हलियह… दू पत्ता राईख लिय…. आब एखुनका हिसाब बराबर भ गेल… लेनी देनी खतम..

काकी: – ओतेक की हेतै, एक्कहि टा देथुन ने डाक्डर सेहाब….

डा:- अरे राईख न लिय.. घर में राखल कोनो सैर जेतै ई. फेर त काज परबे करत, एकटा के साती दू टा के खाएल करू….. गैस त डरे पराएल फिरत, आ ऐहि में कोनो पावर होईछै जे खराब कए जाएत……..
(चीचीया उठल सुरजा )

सुरजा:–दादी गै…ऐहि दबाई के डेट त खतम भए गेल छै. पिछले महिना पन्द्रह तारिक तक के नाम लिखल छै..

काकी: –डाक्डर सेहाब ई कोन दबाई द देलखिन, छौरा त कहै छै खराब भए गेल छै दबाई… बाबू के पिया सेहो देलौं खराब क नै क जेतै डाक्टर सेहाब..

डा:- अरे किछु नै हेतै.. डा:हम छियै की अहाँ सब…. एक नम्मर दबाई छै…. पिछला पन्द्रह तारिक के कतेक दिन भेलै हन, एखन एक महिना चलतै ई दबाई….

काकी: – नै हमरा बाबू के दोसर नीक दबाई दौथ, हम ई दबाई नै देबै….मोन में खुटका लागले रहत…

डा:— अरे हद्द करै छी अहाँ सब……. हम कहै छी से कोनो नै आ बीत भैरिक बच्चा के बात पर अठबज्जर गारने छी.. अहाँ ई दबाई दैत रहियौ न यै……

काकी: -(सुरजा के गाल छुवि )पेट काईट के बाबू सबके पढबै छी तकर साफल भेटि ऱहल अई, ऐहिना मोन लगा के पढैत रहू बाबू सब……. खूब जीबू, अमर भ जाऊ…

डा:– आब ई फुजलाहा दबाई के लेतै, कोनो की मंगनी में आनै छी दबाई हम….

काकी: – जे कहथिन से हम देबैन, मुदा हमरा ई दबाई बदैल दौथ डाक्डर सेहाब..

डा:– (दोसर दबाई दैत )हलियह सत्तैरि गो टका एकर साँझू पहर में राखने रहब,जेहिना ओहि में सँ दै लेल कहने रहौं तहिना एहु में सँ देबै.. ऐहि सब दुआरे नै आबैत रहै छी अहाँ सब के अंगना. उपकारो करू आ घाटो अपनहि कपार लिय…..(प्रस्थान )

(अँगना सँ बहराईते बाट पर ठार एकटा युवक जे ई सबटा क्रिया कलाप देखि सुईन रहल छल, डाक्टर साहेब के सोझाँ आबि ठार भ गेल )

युवक: -ई सब की भ रहलै… प्रभु!

डा:- धू: फुसियाही के बात रहै छै एकरा सबके… ताहि दुआरे पचासो बेर बजाबय जाईये त नै आबैत रहै छियै…

युवक: – अपने ऐहि समाजक लोक छी……बेर कुबेर समाजक काजो आबै छी अपने…आ कदाचित् ई अपनेक पहिल गलती हुअय,
सुधार करू………………..

अन्यथा ऐहि “खच्चरैहि ” के लेल समुचित पारितोषिक भेटि सकैछ अपने के…….. (फुसफुसाके ) जमानत नै भ सकत……….