सीता जी संग हनुमान जी मैथिली मे संवाद कयलनिः सन्दर्भ वाल्मीकिरामायण एवं रामायणमर्मज्ञ संत मोरारी बापूजी

लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

(२०१४ फेसबुक नोट्स मार्फत प्रकाशित)

मैथिलीमे मिथिलाक धिया सिया संग मिथिलाक भगिनमान हनुमान केर वार्ता: अशोक वाटिका, लंकामे!

एखन भाइ संजय कुमार मिश्र चर्चा केलैन जे ओ श्री मोरारी बापु केर रामकथा सुनैत घडी ई प्रसंग सुनलैन जे हनुमानजी सियाजी संग मैथिली भाषामे वार्ता केलैन, जाहिसँ सियाजीकेँ विश्वास बढलैन जे ई केओ कपटरूपी नहि वरन् अपन लोक थिकाह। आउ, संजय जी केर माँग अनुसार विस्तार सँ एहि पर चर्चा करी। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण केर सुन्दरकाण्ड अन्तर्गत निम्न प्रसंगक चर्चा विस्तारसँ कैल गेल अछि।

हनुमानजी द्वारा समुद्र लाँघि लंका पहुँचला उपरान्त लघुरूप धरि सीताजी केर खोजी घर-घरमे केनाय, हुनका कतहु नहि देखि चिन्तित भेनाय, फेर रावण सहित अन्य राक्षस सबहक घर मे तकनाय, मन्दोदरीकेँ एक बेर सीता मानि भेटि गेलीह से सोचि प्रसन्न भेनाय, पुन: ओ सीता नहि थिकी से जानि फेर सँ अन्त:पुरमे तकैया केनाय, ओतहु नहि पाबि सीताक मरण केर आशङ्का होइते एक बेर एकदम शिथिल भेनाय मुदा उत्साहकेर आश्रय लेलापर अन्य-अन्य स्थानपर ताकय लेल गेनाय मुदा फेर सँ सीताजी कतहु नहि भेटला पर चिन्तित भेनाय…. फेर हनुमानजी द्वारा ई निश्चय केनाय जे सीताजी आब एहि लोक मे नहि रहली से सोचनाय मुदा श्रीराम सँ एहेन समाचार कहलापर अनर्थ होयबाक आशंकासँ हनुमानजी लंकासँ नहि लौटबाक निर्णय करैत छथि आ फेर सँ ताकैत-ताकैत अशोक वाटिकामे घूमय लेल विभिन्न प्रकारक सोच मन मे आनैत छथि… ओहि वाटिकामे प्रवेश करिते अशोक केर गाछमे छुपिकय रहैत छथि आ ओतहि सँ सीताक अनुसन्धान करैत छथि। ओ मने-मन हुनक शील आ सौन्दर्यक सराहना करैत मुदा हुनका कष्टमे देखि स्वयं सेहो हुनका लेल शोक करैत छथि।

ताहि क्षण रावण अपन स्त्रिगण सब संग ओतय अबैत छथि आ ताहि घडी सीताक अवस्था आरो बेसी दयनीय – दु:ख, भय आ चिन्तामे डूबैत छन्हि। रावण कतेको तरहक प्रलोभन आलाप-प्रलाप करैत छथि, मुदा सीताजी रावण केँ कडा शब्दमे उलटा बुझाबय लगैत छथि आ रामक सोझाँ ओकर अस्तित्व नगण्य होयबाक कठोर वाणसँ रावणकेँ बिंधैत छथि। रावण हारि-थाकि गीदरभभकी दैत छन्हि जे दुइ मासक अवधिमे सीता हुनक बात मानि लैथ आ ओतय सँ ओ वापस अपन स्त्रिगण सबहक संग महल मे जाइत छथि। राक्षसी सब सेहो सीताकेँ बुझेबाक अथक प्रयास करैत अछि, मुदा सीताजी केकरहु बात मनबासँ एकदम नकारि दैत छथिन, राक्षसी सब हुनका मार-काट करबाक धमकी दैत छन्हि, शोक-संतप्त सीता नहि-नहि करैत विलाप करय लगैत छथि, ओ अपन प्राण तक त्याग करबाक लेल उद्यत होइत छथि।

त्रिजटा नामक राक्षसीकेँ सपना देखाइत छैक, ओ सीतासँ श्रीरघुनाथजीकेर सेनाक आगमन ओ विजयी प्राप्त करबाक सूचना हुनका दैत छथिन। सीताजी केँ सेहो शुभ शकुन होवय लगैत छन्हि।

आब हनुमानजी निर्णय करैत छथि जे हम माता सँ बात करी। एहि समय कवि वाल्मीकि बड विलक्षण लेखनी करैत हनुमानजीकेर मनोभावना सब रखैत छथि, यैह प्रसंगकेर निर्णयरूप थीक सीता संग देव-भाषा वा अन्य कोनो भाषाक प्रयोग नहि कय स्थानीय मानवी भाषाक प्रयोग कयलापर हिनका विश्वास हेतैन जे ई अवश्य केओ कपटी राक्षस नहि, रावणक लोक नहि, वरन् श्रीरामक दूत थिकाह आ वास्तवमे यैह प्रसंगकेँ सब केओ कथा गेनिहार अपना-अपना तरहें वर्णन करैत आयल छथि। यैह प्रसंग थीक जे मोरारी बापु सेहो हनुमानजी द्वारा सीता संग वार्तामे मैथिली भाषाक प्रयोगपर प्रकाश देलैन अछि।

यथा तस्याप्रमेयस्य सर्वसत्तवदयावत:।
समाश्वासयितुं भार्यां पतिदर्शनकाङ्क्षिणीम्॥
– श्लोक ६, सर्ग ३०, सुन्दरकाण्ड, वाल्मीकीयरामायण
“श्रीसीताजी असीम प्रभावशाली एवं सब जीवपर दया केनिहार भगवान् श्रीरामकेर भार्या थिकी। ई अपन पतिदेवकेर दर्शन पेबाक अभिलाषा रखैत छथि, अत: हिनका सान्त्वना देबाक उचित होयत।” आज्ञानुसार हनुमानजीकेँ मात्र सीता कतय छथि से पता लगेबाक छलन्हि, मुदा परिस्थितिवश यैह बात सोचैत हनुमानजी निर्णय करैत छथि जे आब हिनका संग वार्ता सेहो जरुरी अछि। आरो बहुत रास मनोभावना सब हिनका अबैत छन्हि। मुदा सीता जे प्राण तक त्याग करय लेल उद्यत छथि हुनका संग बिना वार्ता केने आ बोल-भरोस देने वापस नहि जायब से सोचि ओ बात करबाक निर्णय करैत छथि। मुदा बात कोना करी? ई प्रश्न हिनकर दिमागमे बेर-बेर अबैत छन्हि।
अहं ह्यतितनुश्चैव वानरश्च विशेषत:।
वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम्॥
– श्लोक १७, सर्ग ३०, सु., वा.रा.
 
“एक तऽ हमर शरीर एकदम सूक्ष्म अछि, दोसर हम वानर छी। विशेषरूपेण वानर रहितो हम मानव द्वारा बुझय योग्य संस्कृत भाषाक प्रयोग करब।”
यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृताम्।
रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति॥१८॥
“मुदा एना करबामे एक बाधा अछि, जँ हम द्विज समान संस्कृत-वाणीक प्रयोग करब तँ सीता हमरा रावण समान बुझि भयभीत हेती।”
 
अवश्यमेव वक्तव्यं मानुषं वाक्यमर्थवत्।
मया सान्त्वयितुं शक्या नान्यथेयमनिन्दिता॥१९॥
 
“एहेन दशामे अवश्य हमरा एहेन सार्थक भाषाक प्रयोग करबाक चाही, जे हिनकर आसपास मे रहनिहार साधारण जनता बजैत अछि, अन्यथा एहि सती-साध्वीकेँ हम उचित आश्वासन नहि दय सकब।”
 
एहि तरहें जनकनन्दिनी सीता लेल हनुमानजी कतेको तरहें सोचैत अन्त-अन्तमे निर्णय करैत छथि जे मैथिलीमे हिनका संग बाजब आ ताहि अनुसारे ओ यैह मधुर भाषामे वार्ता केलैन।
हरि: हर:!!