मैथिल संस्कृतिक दर्पण : अरिपन

साहित्य लेख

“मैथिल संस्कृतिक दर्पण : अरिपन”

– सुरेन्द्र झा,
ग्राम + पो० – डखराम, बहेड़ा, दरभंगा ।
मकर संक्रांति, दि० – १४.०१.२०१८

(लेख संकलन एवं सम्पादनः श्री राज कुमार झा, मुम्बई)

मैथिल संस्कृति अत्यन्त प्राचीन अछि । विद्वान लोकनि एहि तथ्यकेँ एकस्वरसँ स्वीकार करैत छथि । ई संस्कृति कतS आ कहिया आरंभ भेल ई तS गहन शोधक विषय अछि मुदा एतबा निर्विवाद रूपेँ कहल जा सकैछ जे आर्य लोकनिक आगमनसँ पूर्व हिमालय, गंगा, कोशी आ गंडकी सँ आवृत भूभाग मे समुन्नत संस्कृति विद्यमान छल । प्रकृति प्रदत्त सामग्रीसँ देवाराधन करबाक परम्परा एहि संस्कृतिक वैशिष्ट्य आ पहिचान रहल अछि जेकर ज्वलन्त प्रमाण अरिपन अछि । अरिपन गोचर्म परिभित भूमिकेँ गायक गोबरसँ नीपि शालिचूर्ण (चाउरक चिक्कस) केर पिष्टी (पिठार) बनाय आङुरसँ लीखल जाइछ । मिथिलाक पावनि-तिहार, उपनयन, मुंडन, विवाह आदि शुभकार्यक आरंभ अरिपन लेखनहिसँ होइछ ।

मिथिलाक सामाजिक संरचना स्मृति सम्मत वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित होयबाक कारणें मैथिल स्मार्त्त कहबैत छथि । सूर्य, दुर्गा, गणाधिपति, अग्नि आ रूद्रक पूजक होयबाक कारणे मैथिल पंचदेवोपासक कहबैत छथि । सङहि मिथिलामे नवग्रह आ दश-दिक्पालक पूजा सेहो कयल जाइछ । “कलौ गौरी महेश्वर:” मान्यतानुसार गौरी आ महादेव अर्थात साम्बशिव, दोसर शब्दमे शिव आ शक्ति आ सांख्यदर्शनक अनुसार प्रकृति आ पुरूषक पूजा तँ मिथिलाक प्रत्येक घरमे अनिवार्य रूपमे नित्यप्रति आ विशेष अवसर पर अरिपन लीखिकS समारोहपूर्वक कयल जाइछ ।

मिथिला शक्ति स्वरूपा वैदेहीक प्राकट्य-भूमि थीक । येह कारण अछि जे एहि भूमिकेँ प्रकृतिक अवदान प्रचुर रूपमे भेटल छैक । संसारक मानचित्र पर मिथिले एकमात्र एहन क्षेत्र अछि जाहिठाम छवो ऋतु वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त, वसंतकश आ ग्रीष्म होइत अछि । अत्यन्त उर्वरा भूमि, सदानीरा नदी आ ओकर शाखा, प्रशाखा आ छाड़निक विस्तृत जाल, बाध बोनमे पसरल हरीतिमा, बारहो बिरहिन्नीसँ भरल खेत-खरिहान, नानाविध फलसँ लदल गाछी आ विविध फूलसँ भरल फूलवाड़ी; बुझना जाइछ जेना प्रकृति सुन्दरी सोलहो श्रृंगार कS कS एतS विराजमान होथि आ हुनक शोभा आ सुषमा नन्दन काननोके लज्जित कS रहल हो । निम्नभूमि आ वर्षाक अधिकता होयबाक कारण मिथिला धानक कटोरा कहबैछ । चओर चाँचरमे भेट आ कमल फुलाइछ आ पोखरि-झाखरि माछ-मखानसँ भरल पूरल रहैछ। सतरिया, मालभोग, कनकजीर आदि सुगंधित धानक जेतेक प्रभेद मिथिलामे उपजैछ तेतेक अन्यत्र कतहु नहि । मखान तँ स्वर्गहुमे दुर्लभ अछि । कमलक फूल पूजामे प्रशस्त अछि । कमलक बर्री (कमलाक्ष) केर माला बनाओल जाइछ जेकरा मंत्र-जापक लेल उत्तम मानल जाइछ । कमलक पात पर भोजन करयबाक प्रथा मिथिलामे प्रचलित अछि । कमलक पात पर पानि नहि टिकैछ । मिथिलाक एहि भौगोलिक, सामाजिक आ आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्यमे अरिपनक चर्चा करब अपेक्षित अछि ।

ध्यातव्य अछि जे अरिपन मिथिलाक सीमा नांघिकS अल्पनाक रूपमे भारतक आनो आन प्रदेशमे प्रचलित भेल । मुदा मिथिलासँ बाहर ई कला शोभाकारक वा सौन्दर्यवर्द्धक कलाक रूपमे अपनाओल गेल । अपन उत्पत्ति स्थान मिथिलामे ई कला एखनहु देवाराधनक अनिवार्य अंगक रूपमे प्रचलित अछि आ विना अल्पना लिखने कोनो धार्मिक, आध्यात्मिक आ सांस्कृतिक अनुष्ठान सम्पन्न नहि होइछ ।

अल्पनामे ज्यामितिक आकृति यथा रेखा, त्रिकोण, वर्ग, षटकोण वृत्त (मंडल) आदिक लेखन प्रतीकक रूपमे होइछ । प्राय: सब अल्पनामे त्रिकोण भिन्न भिन्न संख्यामे लिखल जाइछ जेकरामे अवसर भेदसँ भिन्न-भिन्न अर्थवत्ता होइछ । त्रिकोण त्रिगुण अर्थात सत्त्व, रज आ तम जाहिसँ सृष्टि निर्माण भेल अछि केर प्रतीक अछि । ई त्रिदेव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु आ महेश, त्रिदशा (बाल्यकाल, यौवन आ जरा) त्रिकाल (प्रातः, मध्याह्न, संध्या) आदिक प्रतीक सेहो थिक । प्रसंगवश कहि दी जे मिथिलामे कुश, दूबिक मूड़ी आ बेलपातमे सेहो त्रिदेवक उपस्थिति मानल जाइछ ।

अरिपनमे कमलक फूल आ मण्डलक रूपमे कमलक पात लिखल जाइछ । नौ केर संख्यामे लिखल मण्डल नवग्रहक, दस केर संख्यामे लिखल दश दिक्पालक, चारिक संख्यामे लिखल चारि वर्ण आ चारि आश्रमक सङहि पुरूषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम आ मोक्षक) केर बोधक थिक । कतहु कतहु मण्डलक स्थान पर रेखा सेहो एहि सबहिक प्रतीकक रूपमे पारल जाइछ ।

योगसँ मिथिलाक अटूट संबंध रहल अछि । ई तथ्य अरिपनमे भिन्न-भिन्न संख्यक दलयुक्त कमलक लेखनसँ उजागर होइछ । मधुश्रावणीक अरिपन एकर प्रमाण थिक । एहि अरिपनमे नीचासँ ऊपर लम्बवत छओ टा कमल लिखल जाइछ जे योगक षट्चक्रक बोधक थिक । सबसँ नीचाँ चारि दलयुक्त कमल (मूलाधार चक्र) ताहिसँ ऊपर षट्दल अर्थात छओ दलयुक्त कमल (स्वाधिष्ठान चक्र) ओहिसँ ऊपर दशदल कमल (मणिपूरक चक्र) तेकरा ऊपर बारह दलयुक्त कमल (अनाहत चक्र) ताहिसँ ऊपर सोलह दलयुक्त कमल (विशुद्धाख्य चक्र) आ सबसँ ऊपर द्विदलयुक्त कमल (आज्ञा चक्र) बनाओल जाइछ । एहि सबकेँ आवृत कS कS तीन टा रेखा पारल जाइछ जे इड़ा, पिंगला आ सुषुम्नाक द्योतक थिक । लम्बाकृति मेरूदण्डक प्रतीक थीक जेकरा शीर्षभाग पर लिखित त्रिकोण ब्रह्मरंध्र आ ओहि मध्य अंकित विन्दु सदाशिवक प्रतीक थिक । चारूकात लिखल दश संख्यक पात दशेन्द्रियक प्रतीक, चित्रक दहिन भागमे बनाओल पाँचटा मण्डल पंचतत्त्वक आ बाम भागमे लिखल सर्पयुग्मक चित्र कुण्डलिनीक बोधक थिक । यौगिक प्रक्रिया द्वारा साधक आधारचक्र स्थित कुण्डलिनी केँ जाग्रत करैत छथि जे मेरूदण्डमे इड़ा आ पिंगला नाड़ीक मध्य स्थित सुषुम्ना नाड़ीक अवलम्बन कS स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र आ विशुद्धाख्य चक्र होइत आज्ञा चक्र पर पहुँचि सदाशिवसँ सम्मिलित भS जाइछ । अरिपनमे पारल छोट-छोट नाग संततिक प्रतीक थिक । एहि अरिपनक संदेश अछि जे नवदम्पति संयमित रहि दाम्पत्य जीवनक निर्वाह करथि ।

कार्त्तिक मासक तुला संक्रांतिक दिन लिखS जायवला गबहा संक्रांतिक अरिपन तथा कार्त्तिक शुक्ल एकादशीकेँ देवोत्थानक अवसर पर लिखS जायवला चतु:शख अरिपन विशेष रूपेँ उल्लेख्य अछि । एहि दुनू अरिपन द्वारा मिथिलाक प्राचीन कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था पर प्रकाश परैछ । प्राचीन मिथिलाक लोकजीवन कृषि आधारित छल । लोकजीवनसँ जुड़ल धार्मिक, आध्यात्मिक वा दोसर शब्दमे लौकिक-पारलौकिक समस्त क्रिया कलापक जड़ि कृषिये छल । नीक उपजा भेल तँ गृहकार्य, परिवार पालन आ देवता-पितरक काज सुचारू ढ़ंगसँ सम्पादित भेल आ जँ दाही-रौदी भेल तँ सब काजमे आपट खसि पड़ल । तैँ गृहस्थ नीक उपजाक कामनासँ देवताक अराधना करैत छलाह आ गृहणी लोकनि मनोयोगसँ अरिपन लिखैत छलीह । ई क्रम अविछिन्न रूपें एखनहु चलि रहल अछि ।

गबहा संक्रांतिक अरिपन लम्बवत होइछ आ भगवतीक घरक मोखसँ आरंभ कS भगवतीक पीड़ी लग धरि लिखल जाइछ । मोख लग कमलक फूलक चित्र लिखल जाइछ आ ओहिसँ आगाँ तीन पोरक बाँसक करची लागल टुकड़ीक चित्र बनाओल जाइछ । पोरक शीर्ष पर अष्टकोण यंत्रयुक्त अष्टदल अरिपन आ भगवतीक पीड़ी पर शक्तिक प्रतीक स्वरूप षट्दल अरिपन पारल जाइछ । अरिपनक निम्न भागक कमल पर चरण-युग्मक ऊर्ध्वमुखी चित्र, पहिल पोर पर दहिना चरण तल , दोसर पर बामा चरण तल, तेसर पर दहिना चरण तल तथा पोरक शीर्ष पर बनल कमल पर पुन: ऊर्ध्वमुखी चरण-तल-द्वयक चित्र आँकल जाइछ जे भगवानक आगमन आ तीन डेग चलि शक्तिपीठक सम्मुख उपस्थित होयबाक प्रतीक थिक । पीड़ी पर बनल अष्टचक्र यंत्रक मध्य अधोमुख चरण-तल-द्वयक अंकन कयल जाइछ जे भगवतीक चरणक प्रतीक थिक । संकेत ई अछि जे शक्ति आ शिव आमने-सामने ठाढ़ छथि । भगवतीक पदचिन्हक चारूकातक कोणमे सूर्य, चन्द्र आ भगवतीक अस्त्र-शस्त्रक चित्र अंकित कयल जाइछ ।

देवोत्थानक एकादशीक अवसर पर बनाओल जायवला अरिपनक चारू कोन पर शंखक चित्र पारल जाइछ तैँ एकरा चतु:शंख कहल जाइछ । ई चारू शंख चारू वेदक प्रतीक थिक जेकर ध्वनि दिद्गिन्तमे व्याप्त अछि । ई अरिपन आङनक मध्यसँ भगवतीक (गोसाउनिक) पीड़ी लगधरि लिखल जाइछ । अरिपन निम्नभागमे चारि दलयुक्त कमल पारल जाइछ जे चारिवर्षक सूचक थिक । मध्य भागमे आयाताकार आकृतिक चारू पटलपर अंकित दू दू टा रेखा अष्टसिद्धिक द्योतक थिक । आयतक मध्य चरण-युग्मक चिन्ह अंकित कयल जाइछ जे विष्णुक चरणक प्रतीक थिक । ओहि ठामसँ भगवतीक पीड़ी दिसि जायवला एक एक टा पदचिह्न विष्णुक गोसाउनिक स्थान दिसि जयबाक सूचक थिक । भगवतीक पीड़ीक आगाँ बनाओल कमलक मध्य भागमे आयताकार आकृतिक बीचमे चित्रित एक शंख आ दू पदचिह्न क्रमश: शरीर एवम् पुरूष आ प्रकृतिक सूचक थिक ।

चतु:शंख अरिपनक दक्षिण भागमे ऊपर सँ नीचाँ पाँच पंक्तिमे घरेलू समान आ कृषिसँ संबंधित उपस्कर सबहिक चित्र पारल जाइत अछि । पहिल पाँतिमे हाँसू-खुरपी, दोसर पाँतीमे कड़ाही, करछु, झाँझ, छोलनी, तेसरमे खाट, सूप, चालनि, चारिम पाँतीमे अन्न संचयार्थ काजमे आबS वला उपकरण कोठी, बखारी, स्थान परिष्करणक लेल बाढ़नि आ सबसँ नीचाँ पाँचम पाँतीमे हSर जोतैत हरवाहक चित्र पारल जाइछ । एहि अरिपनसँ ई तथ्य उजागर होइछ जे कृषि मिथिलाक अर्थ-व्यवस्थाक आधार आ मैथिल लोकक जीवनक प्राण थिक । अन्य व्यवसायक स्थान गौण अछि । एहि अरिपनसँ सांकेतिक रूपेँ इहो संदेश भेटैछ जे छोटसँ छोट वस्तु, बाढ़नि, सूप पर्यन्तक निरादर नहि करी, ओहूमे देवत्व भाव राखी ।

मनुस्मृति यज्ञमे स्त्रीकेँ अधिकार नहि दैछ किन्तु यज्ञस्थल पर मण्डल निर्माण अरिपन द्वारा करब अनिवार्य अछि जे स्त्रीगणे द्वारा संपादित कयल जाइछ । एवम् प्रकारेण यज्ञमे स्त्रीगणक सहभागिता स्वतः सिद्ध अछि । अरिपन द्वारा यज्ञकार्य, पूजा-अर्चा तँ आंशिक रूपेँ सम्पन्न भइये जाइत अछि । सच पूछल जाय तँ अरिपन गागरमे सागर सदृश अछि जाहिमे समस्त श्रुति, स्मृति, आध्यात्म, गृह्यसूत्र आ मैथिल समाजक सम्पूर्ण जीवन-दर्शन साकार भS उठैछ । अरिपन वैविध्यपूर्ण अछि, जेहन अवसर तेहन अरिपन । स्थानाभावसँ अरिपन पर विशद रूपेँ चर्चा करब एतS संभव नहि अछि ।

ध्यातव्य जे प्राचीन मिथिलामे मूर्त्ति-पूजाक कोनो स्थान नहि छल । पूजा प्रक्रिया अत्यन्त सरल आ आडम्बर रहित छल । दैवी शक्तिक आवाहन आ स्तवन मंत्र द्वारा होइत छल । पूजा कार्यक समापन (विसर्जन) सेहो मंत्रेसँ कयल जायत छल । पंचोपचार आ षोडसोपचारक आरम्भ परवर्ती युगमे भेल । “देवता पितर भाव आ वाक्य (मंत्रक) केर इच्छुक होइत छथि, उपचारक नहि” ई उक्ति तँ एखनहु मिथिलामे प्रचलित अछि । अरिपनमे मात्र दू टा सामग्रीक प्रयोजन अछि; पिठार आ सिनूरक । प्राचीन मिथिलामे चित्र लेखनमे केवल एही दू वस्तुक उपयोग होइत छल । चित्रलेखनमे रंगक प्रयोग बहुत बादमे जाकS आरम्भ भेल ।

जँ वैदिक साहित्य श्रुति परम्परामे जीवित रहल तँ मैथिल ललना लोकनि पूजा-आराधनाक प्राचीन परम्पराकेँ अरिपन द्वारा जियाकS रखने छथि । नव पीढ़ी पुरान पीढ़ीसँ ई लूरि सिखैत छथि आ पुनः अगिला पीढ़ीकेँ सिखाबैत छथि । वस्तुत: अरिपनकेँ अनुकरणे द्वारा जिया कS राखल गेल अछि । बहुतो स्त्रीगण नहि जनैत छथि जे अरिपनमे ओ जे लीखि रहल छथि ओकर मर्म की छैक, गूढ़ार्थ की छैक, रहस्य की छैक, तथापि अनजानेमे सही हुनका द्वारा देवताक आराधना तँ भइये जाइत अछि ।

अरिपन पर गहन शोधकेर प्रयोजन अछि । तखने मैथिल समाज जानि सकत जे ओकर सभ्यता आ संस्कृति केतेक प्राचीन छैक । तखने मैथिल जानि सकताह ओ के छथि, केहन छथि ।