मिथिला समाज मे लैंगिक विभेदक निन्दनीय अवस्थाः कि एखनहुँ बदलि सकल अछि समाज?

मैथिलीक असल साहित्य लिखि रहली अछि आम साधारण गृहिणी लोकनि

विचार

– श्वेता चौधरी

अपन समाज मे लोक सब केँ बजैत-कहैत देखल जाइत अछि – “बेटी बोझ होई छै”, “बेटी पराया धन होई छै”, “हे जल्दी बियाह क लियऽ, बेटी के बोझ हटाउ, बेटी जातेक जल्दी अपन घर चलि जाय ओतबे नीक” – एतय सवाल उठैत छैक जे एतेक दिन तक बेटी दोसर घर में पलाइत छल की? कनी विचार करब।

कोनो नवविवाहिता केँ आशीर्वाद मे भेटत ‘पुत्रवती भवः’। जानकारी लेल बता दी जे एतय पुत्र केर मतलब खाली पुत्रे टा होइत छैक, पुत्री नहि। ओतबे नहि, जखन पहिल संतान लड़की भेल त “अच्छा! कि करबय, पैहलठ बच्चा किछ होइत छै से नीके होइ छै”। एतय किछ के की मतलब जे बेटी के कोनो अस्तित्व नहि। बेटा होइतैक त बड नीक। आ जँ पहिल संतान छै तेँ स्वीकार कय लेल जायत कोहुना।

जँ निःसंतान रहि गेलैथ कियो त “भगवान बड जुलुम कय देलखिन, एगो बेटियो भऽ जइतैक”। एतय बेटियो के कि मतलब जे नीक त नहिये भेलैक परंतु किछियो संतान त हेतैक। “दाय, हमरा बेटी/बेटा के एहि बेर नीक सन दय दिहथिन देवता पितर”, मतलब जँ बेटी भऽ गेल त ओ खराब सन भऽ जायत। “बेटी के जन्मे नहि कर्मे डराइ” – कियैक? बेटा के कर्म नहि होइत छै? बेटा बाँझ नहि होइत छै? बेटा आवारा नहि होइत छै? बेटा बेरोजगार नहि होइ य? बेटा के बियाह मे देरी नहि होइ य? बेटा संगे गलत नहि होइ य? बेटा के रोग नहि होइ य? बेटा खराब जमाय नहि होइ य? बेटा पियक्कर नहि होइ य? बेटा मे सब नीके होइत छैक? बेटा पढ़ाई मे बापक पैसा उड़बैत नहि अछि की? बेटी के परवरिश मे पाय खर्च होइत छैक आ बेटा मंगनी मे पोसा जाइत छैक? बेटा डिमांड नहि करैत छैक? बेटा सब सबटा कर्म नीके करय लेल जन्म लैत अछि की? विचार करब।
“कुमारि बेटी मरे भगवन्ता के, बियाहल मरे अभगला के” – ई केहेन फकरा भेल जानकी केर मिथिला मे? ई बात सुइन सुइन कय हम बड दिन सँ व्यथित आ दुखित रहैत छी। दिन राति एहन शब्द हमर हृदय केँ विदीर्ण कएने अछि। बदलाव बड भेलैक समय केर हिसाब सँ स्त्रीगणहु केर जीवन मे, मुदा मानसिकता एक बेटी लेल ओकर जन्मस्थाने सँ शुरू भऽ जाइत अछि। कहल जाइत छैक जे “घर दही त बाहरो दही”। एखनहुँ कतेको लड़कीक जन्म बेटा के आस मे भेल अछि। कतेको बेटी पहिल संतान छथिन तेँ सहज स्वीकार्य छैक। अच्छा! जेकरा दू टा बेटा भऽ जाइत छैक वा एक बेटा या एक बेटी भऽ जाइत छैक, ओतय दू टा संतान काफी छैक, आ जेँ कि दू टा बेटी भ जाइत छैक त बेटा जन्मक लेल प्रयासरत रहै छी। किया? तखन दू टा संतान वला नियम बिला जाइत छैक की? आ जखन धैर बेटा नहि भऽ संतान केर ढेर लगाकय दिनराति बेटी सब केँ अपराधबोध कराबी से उचित भेलैक? आ ओहो स नहि मोन भरल त जा धरि पुत्र प्राप्ति नहि हुए ता धरि भ्रूण केर लिंग जाँच करा-करा कन्या भ्रूण हत्या करबाबैत रही?
अपन मिथिला समाज मे व्याप्त ई लोकभावना आ लोकाचार मे द्वैतभाव आ लैंगिक विभेद केँ समाप्त करबाक दिन नहि जानि कहिया आओत!