“सात समदि की मसि करौं, लेखनि सब वनराई”

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अखिलेश कुमार मिश्रा।                 

  • मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के बारे में हम सभ सामान्य आदमी की आ कते लिखि सकै छै। कहल गेल अछि न,
    सात समदि की मसि करौं, लेखनि सब वनराई।
    धरती सब कागज करौं, हरि गुण लिखा न जाई।। तथापि निबन्ध के विषय जे विषय अहि बारे में तs अप्पन ज्ञान हिसाबे लिखनाई जरूरी अछि। सभ सँ पहिले बुझि जे राम शब्द के अर्थ की। राम रम धातु सँ बनल शब्द अछि जेकर अर्थ होइत अछि रमण केनाइ अर्थात भगवान राम सभ भक्त केँ हृदय में सदिखन रमण करै छैथि। हिनकर नाम के आगाँ में मर्यादा पुरुषोत्तम लगैल गेल अछि, मतलब भगवान मनुष्य योनि में जन्म लेलाक बाद मनुष्य के सभ मर्यादा के पालन करैत जीवन कोना जीवल जाइत अछि पूरा जीवन ही आदर्श स्थापित करैत रहलाह। एक आदर्श पुत्र,भाई, पति, दोस्त आ क़ि आदर्श दुश्मन भी। अप्पन पूरा मनुष्य जिंदगी में ही आदर्श के कतौ भंग नै होब देलैथि।सभ गोटे तs बचपन सँ ही राम कथा सुनने आ रामायण देखने होयब। तैं भगवान रामक जीवनी के बारे में की बताउ। त्रेता युग में भगवान विष्णु अप्पन सातम अवतार में ऐलाह।सूर्यवंशी अयोध्या के राजा दसरथ जेखन अप्पन चारिम पन में पहुँच गेलाह तैयो संतान सुख सँ वंचित रहैथि। अप्पन दुखड़ा कुलगुरु वशिष्ठ के कहलाह आ सन्तानोत्पत्ति के लेल सुझाव माँगलाह। हुनकर सलाह के अनुसारे ऋषि श्रृंगी के द्वारा पुत्रकामेष्ठि यज्ञ सम्पन्न करायल गेल। तत्पश्चात राजा दसरथ के अप्पन ज्येष्ठ रानी कौशल्या सँ पुत्र के रूप में भगवान राम जन्म लेलाह। ताहि दिन चैत्र महिनाक शुक्लपक्षक नवमी तिथि रहै तs हम सभ ओहि तिथि कs रामनवमी मनबैत छी। श्रीराम अपन तीनू अनुज सहित कुलगुरु वशिष्ठ के आश्रम में सभ शिक्षा अर्जन कs अयोध्या एलाह। महर्षि विश्वामित्र के द्वारा राक्षस सभ सँ आश्रम के रक्षार्थ अनुज लक्ष्मण सहित श्रीराम के दसरथ जी माँगि लेल गेलाह। श्रीमान अनुज लक्ष्मण समेत राक्षसी तारका वध आ मरीचि के भगा देलैथि। महर्षि विश्वामित्र के द्वारा अस्त्र सस्त्र में निपुण भs हुनके आदेशानुसार मिथिला एलाह जतय शिव धनुष भंग कs सियासुकुमारी सीता सँग विवाह केलाह। विवाह के बाद अयोध्या एलाह आ एतय प्रजा के मन्तव्य पाबि राजा दसरथ श्रीराम के राज्याभिषेक के तैयारी करय लगलाह। मुदा अप्पन छोटकी पत्नी के देल वचन के कारण हुनकर बात मानि राज्याभिषेक सँ पहिले ही श्रीराम के चौदह वर्षक वनवास भेज देल गेल। श्रीराम पिता आज्ञा मानि अप्पन भार्या सीता आ अनुज लक्ष्मण समेत वनवास लेल चलि पडला। वनवास के दौरान सभ ऋषि मुनि सभ सँ भेंट, रास्ता आ जंगल के राक्षस सभ सँ मुक्ति दियेनाइ काज रहल। अहि बीच में राक्षस राज छल सँजनकदुलारी केँ हरण कs लंका ल गेल। ओहि बीच मे श्रीराम अनुज सहित सीता के ढूंढ के लेल वने वन ढूंढ में लागि गेलाह। अहि बीच में पवनपुत्र हनुमान सँ भेंट, बानरराज सुग्रीव सँ मित्रता, बालि वध आदि घटना घटल। महर्षि अगस्त्य सँ बहुत तरहक दिव्यास्त्र प्राप्त कs समुद्र पर बांध बांधी क लंका पर चढ़ाई कs रावण वध क सियासुकुमारी के मुक्त करेलाह। रावणक अनुज विभीषण के लंका के राजा बना अयोध्या वापस आबि गेलाह। एतय अनुज भरत अप्पन जयेष्ठ श्रीराम के राज गद्दी पर विराजमान केलाह। श्रीराम अयोध्या के राज काज बहुत कर्तव्यनिष्ठ भs केलाह। अहि बीच में अप्पन सभ सुख सुविधा छोड़ि जनताक इच्छा बुझि अप्पन प्राण प्यारी सियासुकुमारी के वनवास देलाह जतय हुनका दु टा पुत्र लव-कुश भेलैन्ह जे बाल्यकाल में ही महर्षि वाल्मीकि सँ शिक्षा प्राप्त कs अत्यधिक बलशाली भेलैथि। बाद में माँ सीता लव-कुश के अप्पन पिता के सौंपि धरती में समा गेलीह। बाद में भगवान श्रीराम सेहो अप्पन देह त्याग सरयू नदी में जा कs केलाह।