“मिथिला महान”

311

शिव कुमार सिंह।                             

#मिथिला में अतिथि सत्कार

एना त अतिथि सत्कार के नाम प मन गदगद भ जाय य।घर प बराबर कोनो मेहमान अबैया त हमरा बड़ निक लगैया।खास क कोनो काम काज भेल त जेना शादी बियाह,मुण्डन,ओहि में त सब कर-कुटुम अबै छै।जखन धरि रहै छै त बहुत नीक लागत मुदा चलि जाई छै त घर अंगना सूना -सूना लागत।

एना त भारतीय परम्परा छै ‘अतिथि देवो भव.’ अतिथि के देवता के समान मानल जाय छै। अपन मिथिलांचलक संस्कार में रग-रग में भरल छै अतिथि के सत्कार केनाय।इ बात पूरा दुनिया जनै छै।कियाकी एठिठाम स्वयं राम भगवान पाहुन बनि आयल छेलखिन।मिथिला में जे हुनका सत्कार भेलैन ,ताहि सँ ओ बहुत प्रसन्न भेला।

मिथिला में त जखने मेहमान आयल त सभ सँ पहिने हुनका बैसऽ लेल कहल जाइत अछि।फेर हुनका पानि दैत अछि।तकर बाद कुशल क्षेम,चाय नाश्ता होई छै।खाना में त कतेक तरहक व्यंजन दालि भात प अलग अलग कटोरा मे दू-तीन रंग के सब्जी ,भुजिया ,पापर ,चिप्स,तरूआ रहल।पहिने त तिलकोर पातक तरूआ अनिवार्ये छेलै,मुदा आब कम देखल जाई छै।

सब सँ खास बात इ कि जिनका सँ गरमेलो रहत उहो अगर दरवाजा प आबि गेल त हुनका उचित सम्मान मिलै छै।

खास क जमाय के माने ससुराल में किछ विशेष सत्कार छै।हमहुँ सुनने छेलौं मेहमानी होई छै त ससुराल में। हमर बियाह त नै भेल अछि त हम एक बेर अपन भैया के ससुरारि गेलौं।मुदा सारि सब खुब स्वागत सत्कार केलैन,ऊपर सँ गारि पढ़ि क स्पेशल सम्मान देलैन।खाना हम बढ़िया से देख क खेलौं, कियाकी सुनने छेलौं ससुरारि में ठकबो करै छै,दूभि पातक तरूआ ,केला पातक तरूआ आओर किछ -किछ द दै छै।मुदा हम ओहि सँ बाँचल रहलौं।