बसन्तक द्वार पर माँ सरस्वतीक अभिनन्दन

586
  • किसलय कृष्ण, समाचार सम्पादक

 

जयति जय हे श्वेतवसना, जयति माँ हे सरस्वती…
सकलविश्व कल्याण करू,विनती करी हे भगवती…

वीणा केर झंकार बनि स्फटिक सन शीतल रही…
मंत्र केर उच्चार बनिके माँ सतत भावमे तीतल रही..
परसि दिऔ बुद्धिक इजोत माँ, पसरल सगरे दुर्गति…
जयति जय हे श्वेतवसना, जयति माँ हे सरस्वती…

अहाँक हंस वाहन जेना जिनगी सभक बेदाग हो…
सकल समाजमे गूँजित वीणासँ निकलैत राग हो…
विद्या बढ़य, नवयुग गढ़य, घर घरमे पसरय उन्नति…
जयति जय हे श्वेतवसना, जयति माँ हे सरस्वती…

ज्ञानदीप सँ प्रदीप्त माँ, सभ गाम, नगर, टोल हो…
मैथिलजनक ठोर पर सतत मृदु मैथिलीक बोल हो…
अन्हार छँटि उजास हो, चहुँदिसि लखय बस प्रगति…
जयति जय हे श्वेतवसना, जयति माँ हे सरस्वती…

अहाँक आगमनसँ शारदे, बिहुँसैत आयल बसंत छै…
ठाढ़िसँ किसलय फूटल, उल्लसित दसो दिगन्त छै…
स्वीकारियौ ई शब्दपुष्प, जानी अहाँ सभ परिणति…
जयति जय हे श्वेतवसना, जयति माँ हे सरस्वती…