कि थिक मलमास आ एहि मासक कि सब होइछ विशेषता – आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र संग मन्थन

आध्यात्मिक चर्चा

– आचार्य धर्मेन्द्र नाथ मिश्र

कियैक होयत अछि पुरूषोत्तम मास

मलमास के पुरूषोत्तममास, अधिमास आ अधिकमास केर नाम सँ जानल जायत अछि। समान्यतया अधिकमास ३२ महीना १६ दिन ४ घड़ी केर अन्तर सँ आबैत अछि। धर्मग्रंथ में प्रत्येक २८ मासक पश्चात आ ३७ मास सँ पहिने अधिकमास होबाक बात कहल गेल अछि। अधिकमास में सूर्यक संक्रमण कोनो राशि पर नहि होयत अछि, ताहि कारण ई मास अलगे रहैत अछि।
पृथकता केर कारणेँ एकरा अधिकमास सेहो कहल जाइत अछि। शास्त्रक उक्ति अछि कि जाहि मास में सूर्य केर कोनो राशि में संक्रमण नहि होय ओ ‘अधिकमास’ आ एक मास में दू संक्रांति भेला सँ ओ क्षयमास कहबैत अछि। यदि कोनो महीना में सूर्यक संक्रांति केर अभाव होय आ दू संक्रांति संयुक्त क्षयमास पुर्व या पश्चात – बाद में तऽ दूनू मलमास क्रमश: “संसर्प” आ “अहंस्पति” केर नाम सँ जानल जाइत अछि। अर्थात् कोनो वर्ष में दूटा अधिकमास हुए तँ प्रथम केँ “संसर्प” आ दोसर केँ “अहंस्पति” कहल जाइत अछि।
एहि बेर तारीख १७/०९/२०२० सँ तारीख १६/१०/२०२० धरि मलमास रहत। जाहि मास में सूर्य संक्रमित होइत अछि ओ समान्यमास होइत अछि, जाहि में वेदविहित मंगलादि कार्य सम्पादन होयत अछि तथा ‘संसर्प’ में सूर्यक संक्रांति नहि भेला सँ मंगलकर्म वर्जित भ जायत अछि। शास्त्रानुसार पहिने संसर्प मास में मंगलकर्म वर्जित भ जाइत अछि किन्तु पितृकर्म (श्राद्धादिकर्म) कयल जेबाक विधान अछि। अर्थात् प्रत्येक वर्ष माता-पिता केर मरणतिथि पर जाहि प्रकारेण श्राद्धादि पितृकर्म होइत अछि ओही प्रकार सँ एकोदिष्ट आदि कर्म मलमासो में तत्र-तत्र तिथि उपस्थिति भेलापर करबाक चाही, ई परम कर्तव्य थिक।
अधिकमास केँ पुरुषोत्तमो मास कहल जाइत छैक। पुरुषोत्तम मासक विशेष माहात्म्य महिमा अछि। प्राचीन समय में जखन अधिकमास केर उत्पत्ति भेल ताहि मास में सूर्यक संक्रांति नहि छल आ नै ओ मासक कियो स्वामी छल। ताहि हेतु ओ मास में मंगलकर्म करब निषेधित भऽ गेल। भगवान स्वयं तखन एहिमास केर अधिपति बनलाह। ताहि समय सँ एहि मासक दोसर नाम पुरुषोत्तम मास केर संज्ञा भेटल। ताहि लेल प्रत्येक तीन वर्ष पर संसारी मानव केँ अधिकमास में व्रत, पूजनादि कर्म तथा मारकेशादि महादशा, अन्तरदशा ग्रहक दशा पर, शान्ति कर्म, दानादि भक्ति आदि कर्म पूर्ण श्रद्धा-विश्वास पूर्वक करबाक चाही। जाहि सँ परमधाम, गोलोक केर प्राप्ति कय परम सुख शान्तिक अनुभव कय सकैत छी।
 

मलमास केर कर्तव्य-अकर्तव्य पर एक दृष्टिः

नित्यनैमित्तिके कुर्यात्प्रयतः सन्मलिम्लुचे।
तीर्थस्नानं गजच्छायां प्रेतस्नानं तथैव च॥
गर्भे वार्धुषिकृत्ये च मृतानां पिण्डकर्मसु।
सपिण्डीकरणे चैव नाधिमासं विदुर्बुधाः॥

मलमास में कि करबाक चाही कि नहि करबाक चाही ताहि विषय पर देवगुरु वृहस्तपतिक वचन अछि जे प्रतिदिन करऽवला कार्य जेना – पञ्चयज्ञ आ कोनो नियमित रूप सँ होइवला कर्म या कोनो विशेष उद्येश्यक प्राप्तिक लेल निरन्तर करऽवला ग्रह शान्ति आदि अनुष्ठान आ श्राद्धादि कर्म नियंत्रित आ पवित्र भऽ कय मलमासो में करबाक चाही। संगहि तीर्थ स्नान, चन्द्र-सूर्यग्रहण निमित्तक श्राद्ध, मरण निमित्तक स्नान, गर्भाधान संस्कार, नाममात्र सुइदलाभ केर आधारपर जरुरतमन्द केँ यज्ञादि अनिवार्य कर्मक निष्पादन हेतु कर्जादिक सहयोग देनाय, मृत व्यक्ति निमित्तक पिण्डनादि कर्म, पितर लोकनि केँ सम्मान में करऽवला विशेष श्राद्धादि अनुष्ठान, बुद्धिमान जन, अधिमास जन्य दोष नहि मानि ई समस्त कर्म मलमासो मे करय योग्य कर्तव्य थिक। कोनो देवताक प्राण-प्रतिष्ठादि, उद्यापन, धार्मिक व्रत, मुंडनसंस्कार, उपनयन संस्कार, किनको देहावसानोपरान्त वृषोत्सर्ग कर्म, राजतिलक, इनार वा जलाशय वा तालाब प्रभृति परोपकारक कर्म तथा यज्ञादि केँ मलमास में अकर्तव्यक रूप मे नहि करबाक निर्देश देल गेल अछि।