मैथिल ब्राह्मण आ विवाह

आलेख

– कुमुद मोहन झा

हिन्दू धर्ममे सोलह संस्कार अन्तर्गत विवाह एकटा एहेन संस्कार थीक जे वंश परम्परा के चलबैत छैक । एक पीढी सं दोसर पीढी धरि अपन आनुवंशिक गुण के संचारित करैत छै । तदर्थ अपन कौलिक तेज आ संस्कार के अक्षुण्ण रखवाक हेतु विवाह के परा पूर्व काल सँ एकटा संस्था के रुप मे विकसित कयल गेल अछि । ई संस्था उपयुक्त नीति नियम द्वारा संचालित होइत आयल अछि । उपरोक्त नीति नियम पूर्णत: वैज्ञानिक, व्यवहारिक एवं सुसंस्कृत भेलाक कारण वैवाहिक सम्बन्ध केँ संस्कार कहल गेल छैक ।

हमर पूर्वज लोकनि विवाह संस्कार के पूर्णत: अनुशासित एवं व्यवस्थित बनयबाक हेतु अनेक प्रयास कयने छथि । जकर परिणामस्वरुप ब्राह्मण कुलोद्मव संतान सभ अपन ओज आ प्रतिभा सँ विश्व ख्याति प्राप्त करैत रहलाह । ब्राह्मण समाजक एहि आनुवंशिक विशिष्टता के प्रखरतर बनेवाक उद्देश्य सँ जे वैज्ञानिक प्रयास सभ कयल गेल अछि तकर संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कऽ रहल छी ।

प्रारम्भिक अवस्था मे जखन सम्पूर्ण आर्यावर्त के ब्राह्मण एक छलाह तखनहिं तत्कालिन मनीषी लोकनि के सपिण्ड वा समान रक्त मे विवाह के आशंका होमए लागलन्हि । तत्सम्बन्धी दोष निवारणार्थ गोत्र धारण परम्पराक शुरुवात कएल गेल । तत्कालीन समय मे गुरुकुल के नाम पर गोत्र धारण कएल गेल । सम्प्रति जतेक गोत्र अछि से सभटा कोनो ने कोनो मुनिक नाम सँ प्रचलित अछि । गोत्र के विशेष महत्व देल गेल ई गोत्र कोनो पूर्वज के छिटफुट भऽ बसोबास कयनिहार सन्तान सभ के कुल बन्धुत्वक सूत्रमे समाहित कऽ परस्पर स्नेह, सहायता एवं संवेदनाक आधार बनल । गोत्र ब्राह्मणक एकटा विशिष्ट परिचय थीक जे हुनकर मौलिक, बौद्धिक, सामाजिक, साँस्कृतिक एवं पराक्रमक स्मृति हेतु अछि ।

पाणिनी के अष्टाध्यायी अनुसार “अपत्यं पौत्र प्रभृति पद गोत्रं” अर्थात एक पुरुखा के पुत्र पौत्रादि जतेक संतति होयत कएक गोत्र के कहाओत । प्राचीन कालहिँ सँ ऋषिलोकनि सगोत्री विवाह के निषेध कयने छथि कारण सगोत्र विवाह सँ उत्पन्न सन्तान मे आनुवंशिक एवं शारिरीक रोग, अल्प रोग निरोधक क्षमता, अपांगता, विकलांगता एवं मन्द बुद्धि होएवाक सम्भावना प्रबल होइत छैक । ब्राह्मण समुदाय मे सगोत्र विवाह नहि होएबाक परिणाम थीक जे ई कुल गुरुकुल कहबैछ ।

पश्चात जखन एहि वंश के आशानुकुल वृद्धि होमए लागल आ वंशज लोकनि सम्पूर्ण आर्यावर्त के भूमि पर पाटि गेलाह तखन आन आन विभिन्न समस्या सभ यथा भाषा, वेश, रीति रिवाज, सँस्कृति आदि के कारण सँ बेमेल विवाह आ तकर दुष्प्रभाव के रोकवाक हेतु ब्राह्मण केँ दु भाग मे वर्गीकृत कयल गेल ।

“गौण द्राविण भेदेन तयोर्भेदा दशस्मृता:” अर्थात ब्राह्मण के दु वर्ग गौड आ द्रविड़ होइत अछि । उपरोक्त दु वर्ग के पुनश्च पाँच पाँच उपवर्ग मे विभाजित कएल गेल । ओ थीक :

कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविणा महाराष्ट्रका: गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविणा बिन्ध्यदक्षिणे । तहिना सारस्वता: कान्यकुब्जा: गौणा उत्कल मैथिला: पञ्चगौणा इति ख्याता ।

बिन्ध्य पर्वत के मध्य मानि उपरोक्त सामुदायिक विभाजन भौगोलिक अवस्थिति, भाषा, वेश, रीति रिवाज, साँस्कृतिक एवं पारम्परिक मूल्य मान्यता के आधार पर कयल गेल । प्रत्येक समुदाय के ब्राह्मणक वैवाहिक सम्बन्ध अपने समुदाय मे होमए लागल तकर कारण जे वर आ कन्याक पारिवारिक रहन सहन, रीति रिवाज, आ विधि विधानक असमानता सन्तानक भविष्य मे बाधक सिद्ध नहि हो ।

ई सभ व्यवस्था सम्पूर्ण आर्यावर्तक ब्राह्मण हेतु भेल छल किन्तु एतए मुख्य चर्चा मैथिल ब्राह्मणक भऽ रहल अछि तऽ ई कहैत अत्यन्त गौरवान्वित भऽ रहल छी जे हमर पूर्वज के सामाजिक, साँस्कृतिक एवं व्यवहारिक समृद्धता एतेक प्रबल अछि जे कहल गेल छैक कि ”धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिला व्यवहारत:“ । अर्थात् मिथिलाक प्रत्येक व्यवहार परीक्षित अछि धर्म सम्मत अछि । अस्तु, मैथिल ब्राह्मण द्वारा अंगिकार कयल गेल विवाह पद्धतिक परिचर्चा अनिवार्य बुझना जाइत अछि । मैथिल अपन परिचय केँ आओर परिष्कृत करैत मूलग्रामक व्यवस्था कएलन्हि जे मात्र एहि समुदायक परिचय के विशिष्टता थीक । एकरा अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्तिक वंशबृक्ष तैयार कऽ पञ्जी प्रबन्ध कयल गेल । एहेन तरहक वंश परम्परा के लिखित धरोहर मैथिल ब्राह्मण मात्र के उपलब्ध अछि । एहि सभ व्यवस्था पर चर्चा करए सँ पूर्व मैथिल ब्राह्मणक इतिहास, वैवाहिक सम्बन्धमे देखल गेल विकृति, आ ओहि विकृति के दूर करबाक हेतु बनायल गेल नीति नियम पर परिचर्चा आवश्यक बुझना जाइत अछि । तदर्थ ई संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कऽ रहल छी ।

महाराज रहुगणक राजकुमार लोकनि जखन धरती पर खाली पड़ल भूमि के छेकि अपन अपन राज्य विस्तार करए लगलाह तखन ओहि राजकुमार सभमे एक राजकुमार निमि सदानीरा जे वर्तमान मे गण्डक नदी कहबैछ केँ टपि खाली भूमि केँ छेकि अपन राज्य विस्तार कयलन्हि । हिमालयक कछेर मे अनेक नदी नद सँ वेष्टित ई भूमि दलदल युक्त छल । नदी तीर के भूमि केँ यज्ञाहुति द्वारा सेदि सेदि के सकताओल गेल । यज्ञाहुति सँ सेदल एहि क्षेत्र के नाम पड़ल तिरहुत । राजा निमिक सँग आयल ओएह अग्निहोत्री ब्राह्मण लोकनि मिथिलाक याज्ञिक ब्राह्मण भेलाह । एतहिँ सँ मैथिल ब्राह्मणक परम्पराक शुरुआत भेल ।

राजा द्वारा हुनका सभ के विशिष्ट बास आ अन्य सुबिधा प्रदान कएल गेल । जखन हुनका सभक वंश वृद्धि होमए लागल तखन ओ लोकनि मिथिलाक विभिन्न भाग मे गाम बसओलन्हि । मिथिलाक प्राय: सभटा प्राचीन गाम ब्राह्मण प्रधान अछि । पश्चात ओ लोकनि अपन आवश्यकतानुसार अन्यान्य जाति के सेहो गाम मे बसोबास देलथिन्ह ।
क्रमश: बढैत गेल जनसंख्याक परिणामस्वरुप एहि समुदायक परिवार के बीच आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक स्तर मे भिन्नता आबए लागल आ एहि भिन्नताक कारण प्रभुत्वशाली व्यक्ति लोकनि परा पूर्वकाल सँ अबैत मूल्य मान्यता के तोडि समाज मे अपन प्रभुत्व कायम करए लगलाह । एतहि सँ शुरु भेल मिथिला मे वैवाहिक व्यवस्थाक अध:पतन । धनिक आ ख्याति प्राप्त विद्वान लोकनि बहु विवाह के अपन प्रतिष्ठा सँ जोडि अनेको विवाह करए लगलाह । शुरु भेल बहुविवाह, बाल विवाह आ अनमेल विवाहक प्रथा । ओ लोकनि जतए जाहि गाम मे विवाह करैत छलाह कन्या के ओतहिँ पिता के संरक्षण मे छोडि दैत छलखिन । परिणमस्वरुप जैज नजैज संतानक ढेरी लागि गेल आ मैथिल ब्राह्मण समुदाय मे एकटा प्रतिभाहीन, संस्कारहीन आ हीनाचरण वर्ग पनपय लागल ।

अनुचित विवाहक परिणामस्वरुप वर्णशंकर आ मूर्ख संतानक जन्म सँ ब्राह्मणत्व के संस्कार घटय लागल । एहेन बिषम काल मे मैथिल ब्राह्मणक किछु श्रेष्ठ चिन्तक लोकनि एहि पतन के कारण आ तकर निदानक व्यवस्था पर चिन्तन कऽ एहि वर्गक अध:पतन के मूल कारण सभक खोज कयलन्हि । ताहि मे किछु प्रमुख कारण सभ जे देखल गेल ओ छल :

क. सपिण्ड, सगोत्र अथवा समान रक्तक कन्या आ वरक विवाह सँ उत्पन्न संतान के समुचित शारीरिक एवं मानसिक विकास हीन होएवाक सँगहि ओकर प्रतिभा आ संस्कार हीन होएत ।

ख. उपरोक्त संतानोत्पत्तिक प्रमुख कारण बाल विवाह, अनमेल विवाह एवं बहु विवाह थीक तदर्थ एहेन कुरीति केँ नियन्त्रित कयल जाय ।

ग. वर आ कन्याक साँस्कृतिक मान्यता, पारिवारिक रीति रिवाज, विधि विधानक असमानता संतानक सुसंस्कार एवं उज्ज्वल भविष्य मे बाधक होइत अछि तदर्थ एहेन विवाह के प्रतिबन्धित कयल जाय ।

घ. उपरोक्त व्यवस्था कार्यान्वयनक हेतु मैथिल ब्राह्मण के कर्म एवं संस्कार अनुकुल भेद केँ पंजीबद्ध कऽ वंशबृक्ष तैयार कयल जाय ।

उपरोक्त अनुसार पंजी प्रबन्ध के पूर्ण रुपेण कार्यान्वयन १४ म शताब्दीमे कर्णाट वंशीय महाराज हरि सिंहदेव के राज्य काल मे सम्भव भऽ सकल । एहि पंजी प्रबन्धक अनुसरण कऽ मैथिल ब्राह्मणक वैवाहिक सम्बन्ध पुनश्च मार्यादित बनल । मातृक पक्षके ५ आ पैतृक पक्षके ७ पीढीक वैवाहिक सम्बन्ध के देखि सम्बन्ध नहि ठहरला पर पञ्जिकार द्वारा विवाहक हेतु अनुमति पत्र देल जाइत अछि जकरा हम सभ सिद्धान्त कहैत छी ।

पञ्जी प्रबन्धक समय मे मैथिल ब्राह्मण के रक्त सम्बन्ध के आओर नजदीक सँ ब्याख्या करबाक उद्देश्य सँ मूलग्राम के व्यवस्था कएल गेल । मैथिल ब्राह्मणक ई विशिष्ट परिचय थीक जे अन्य कोनो समुदाय मे नइ छै । मूलक अर्थ होइत अछि जड़ि अर्थात कोनो वंशक बीजी पुरुष के छलाह । सँगहि मूल के ग्रामाधार देल गेल अर्थात हुनकर प्रारम्भिक निवास कतए छल । पंजी सँ पूर्वहि जे बीजी पुरुष छलथिन्ह से भेल मूल आ पंजीक समय जाहि गाम मे निवास छल स भेल ग्राम । एक गोत्र अन्तर्गत अनेक मूल होइत अछि । तहिना एक मूल अन्तर्गत अनेक ग्राम अथवा डेरा होइत अछि ।

उपरोक्त पंजी प्रबन्ध मे तात्कालीन मैथिल ब्राह्मण के कर्म आ संस्कार के आधार पर ५ भाग मे बाँटल गेल छल । १. श्रोत्रिय २. योग्य ३. पञ्जीबद्ध ४. जयवार ५. निम्नश्रेणी ।
परन्तु खेद एहि बातक जे पञ्जिकार संस्था आ पंजी प्रबन्ध दुनू सम्प्रति विलुप्त होएवाक अवस्था मे पहुँचि गेल अछि । पञ्जीकरण अद्यावधिक नहि भऽ रहल अछि । स्थिति आओर विकराल रुप धारण कयने जा रहल अछि । बहुत खेदक सँग स्वीकार करय पड़ि रहल अछि जे हमरा समाजक अनपढ गवारक कोन कथा जे शिक्षित सुसंस्कृत परिवार सभ केँ अन्तरजातीय विवाह के स्वीकार करबाक विवशता सम्मुख भऽ गेल अछि । कतए जा रहल अछि हमर भविष्य ? कतय लऽ जा रहल छी हम सभ अपन पुरुखाक गौरवशाली अतीत के ?

लेखकः कुमुद मोहन झा अप्पन ब्राह्मण समाज विराटनगर, नेपाल केर अध्यक्ष थिकाह।