प्रवीणक किछु रचना संग्रह

१. ११ अप्रैल २०१३ः

अनमोल जीवन

जीवन धन बड मूल्यकेँ, देलनि अछि भगवान्!
सच्चरित्र शिष्टा-सुन्दर, बनियौ बस इनसान!!

हमर वृत्ति जे हमहि करी, देखबय लेल नहि धर्म!
जीवन साफल बनल ओकर, कयलक जे निज कर्म!!

देखू न आवरण देह के, पाबू निज मति दाम!
अपन-अपन स्वभावसँ, बनबू मिथिला गाम!!

रहल ई पावन देश सदा, अयला ऋषि-मुनि धाम!
कियो न बाँचल यदा-कदा, कयने बिन निज काम!!

लोभ मोह मद तीन जे, कयलक सभटा नाश!
नि:स्वार्थ बस जीव बनी, भजियौ सीताराम!!

 

२. २६ मार्च २०१३

कि अहाँ सहीमें अपन मातृभूमि प्रति समर्पणके भावना रखैत छी?

कि अहाँ सचमें अपन जीवनक किछु घडी मिथिला-मैथिलीक सेवामें लगाबय चाहैत छी?

कि अहाँ मिथिलाक खसैत सांस्कृति अस्मिताके कारण राजनैतिक उपेक्षा मानैत छी?

कि मैथिली समान सुन्दर मधुरतम भाषाक संरक्षण चाहैत छी?

कि मिथिलामें रहनिहार सभके मैथिल बुझि एकसमान सम्मान दैत छी?

कि मिथिलाक प्रथम संपत्ति शिक्षाक प्राप्ति जीवनक पहिल लक्ष्य मानैत छी?

कि अहाँ लैंगिक विभेद सऽ दूर समान भावनाके पोषक छी?

कि अहाँ अपन माटि-पानि सऽ जुडल रहयवाला लोक छी?

कि अहाँ भारत व नेपालमें अलग-अलग मिथिला राज्यक स्थापना हो तेकर पक्षधर छी?

कि अहाँ अपन कथनी आ करनी दुनूमें समानता हर परिस्थितिमें एक राखि सकैत छी?

 

३. १४ मार्च २०१३

केकरो हमर भाषा खराब लगैत छैक,
केकरो हमर संस्कारमें मालिकपना देखैत छैक,
कियो हमर भैर दिन कैल जा रहल पोस्ट सऽ घृणा करैत अछि,
कियो गप छाँटैत पकडा गेला पर रगडी खाइते उल्टी करय लगैत अछि,
केकरो हम नेता बनय लेल प्रयासरत देखैत छियैक,
कियो हमरा छवि बनेनहार लेल लालची देखैत अछि,
केकरो अज्ञानी आ बिना जानकारी रखने बजैत देखैत छियैक,
कियो घमंडी आ अहंकारीरूपमें हमर पहचान करैत अछि,
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अहाँ सेहो किछु बुझिते होयब!

४. १३ मार्च २०१३

१०० वर्षक उपेक्षा यदि:

१. मातृभाषा मैथिली सँ दूर कय सकैत अछि,
२. पुस्त-दर-पुस्त मातृभूमि सँ दूर कय सकैत अछि,
३. संयुक्त परिवारक संगठन सँ दूर कय सकैत अछि,
४. पारंपरिक संस्कार सँ बहुत दूर लय जा सकैत अछि,
५. समाजिक सद्भावनामें जातीयताक उपद्रव मचा सकैत अछि,
६. निकृष्ट सँ निकृष्ट कर्म करितो बस परिवारके भरण-पोषण लेल बाध्य बना सकैत अछि,
७. घरक गोसाउनि सँ दूर कय सकैत अछि,
८. धियापुताक मूरन, उपनयन, विवाह लेल पर्यन्त स्वदेशवर्जन करा सकैत अछि….

गानि नहि सकैत छी जे आरो कतेको दुष्प्रभाव देखा सकैत अछि….

बस जेना मैथिली भाषा सँ दूर केलक तहिना मिथिला संस्कृति सेहो सर्वनाशोन्मुख अछि।

एकरा बचाबय लेल के? कोन खास जाति? किछु खास लोक? भ्रष्ट नेतागिरी करनिहार चोट्टा प्रजाति? कंबल ओढि घी पीनिहार तथाकथित विद्वान्‌जन? या फेर माल पीटि महल-अट्टालिका ठाड्ह केनिहार रावणी अहंकार सँ पूर्ण ओ वर्ग जेकरा मैथिली जियल तैयो धैन सन, मिथिला मरल तैयो धैन सन… कतहु छी, ठीक छी – मानसिकतावाला?

के बचेतैक मिथिला के??

५. ११ मार्च २०१३

हम प्रतिबद्ध छी:

अपन आत्मारूपकेँ परमपिता परमात्मा संग सदिखन जोडि राखब।

मिथिला हमर जन्मभूमि थीक, मैथिली हमर मातृभाषा, जेना माता-पिता आ गुरुक सेवा अछि, तहिना अपन मातृभूमि आ मातृभाषाक सेवा। हम लगनशील बनैत सेवारत रहबे करब।

अपन संस्कृतिक लोकसँ पहिले सांस्कृतिक-भाषिक पहचान लेल अपील करब, बादमें यदि मानव समाज चलेबाक लेल जाति-व्यवस्थाक असल अर्थ बुझैत होइथ आ सौहार्द्र मानवताक सर्वोपरि धर्मसँ जनैत होइथ तऽ अपन जातीय पहचान सेहो निर्वाह करैथ।

हमर वादा अछि: कतहु रहब, अपन संस्कारके परित्याग एकदम नहि करब।

जे बाजब से करबे टा करब।

मिथ्याचार सऽ बड नीक हम खुलेआम अपन दुर्गुणकेँ समस्त लोकमानसमें राखब आ क्रमश: अपना आपमें सुधार करब।

जय मैथिली! जय मिथिला!!

६. २२ फरवरी २०१३

साक्छर मिथिला

कोमल कमलके कुसुमकली
किऐ नै जेतै स्कूल?
कि हम पढलियै यैह लेल
जे फेरो हेतै भूल?

हाथमें कापी-कलम आ पोथी
विद्या पेतै सभ संतान!
यदि ठाड्ह हम सभ पढलहबा
पढतै बनतै सभ इंसान!

आउ कसम ली एक-छात्र बस
पढेबै हमहुँ निज घर केँ!
अहिना एक पर एक जोडि के
बनेबै साक्छर मिथिलाकेँ!

६. १८ फरवरी २०१३

मिथिलाक किछु खास विशेषता:

गाम-गाम पोखैर जरुर भेटत।

मन्दिर बिना शायदे कोनो गाम।

ऐतिहासिक सामाजिक समूह अनिवार्य रूपमें भेटत हर गाम में।

जतय खुदाइ भेल ओतहि प्राचिन कलाकृतिक अनेको रास नमूना स्वरूप पत्थर, काँस्य, अष्टधातु आ विभिन्न मूल्यवान् मूर्ति आदि भेटल। लगभग हर गाममें।

एना लगैत अछि जे मिथिला कोनो समय अत्यन्त समृद्ध छल आ सभ ठाम जाग्रत लोकक वास छल।

प्राचिन इतिहास सेहो एक पर एक ऋषि-मुनि-विदेह सभके बात करिते अछि।

लेकिन आइ मिथिला पता नहि केना एतेक पैघ दरिद्री सऽ निकैल रहल अछि जाहिमें कतेको गाम तारी-दारू सऽ भरल अछि, लेकिन सामुदायिक विकास लेल कोनो समूह तक नहि।

एक गामके नमूना राखब। उदयनाचार्य समान महान् दार्शनिक के गाम ‘करियन’ (समस्तीपुर)के ई विपन्नता जे मूल्यवान् मुर्ति आइयो गाछहि तर?

दहेज मुक्त मिथिला एहेन धरोहर के संरक्छण लेल तैयार अछि, लेकिन कार्यकर्ता ओहि गाम के हो! आउ चर्चा करी निम्न लिंक पर।

हरि: हर:!

७. ८ फरवरी २०१३

 

 

मिथिलाक सत्यतथ्य (व्यंगवाणी)

*भैर मिथिला नेते – नेता! आ सचमें एको टा नेता नहि।

*बिहार सरकार आ भारत सरकार के चलाबय लेल जातिवादी नारा लगाय आपसमें गामके लोक के खूब लडाय-भिडाय शासन केनिहार के कमी नहि।

*मिथिला लेल केवल पेटभारा १ पेटपोसा २ आ मुँहतक्का २ कुल ५ कार्यकर्ता, सेहो काजक बेर जरुरी नहि जे भेट जेता। अक्सर हिमालय पहाडके यात्रापर व्यस्त आ तपस्यामें रत।

*८० गो मैथिल के पेट मात्र पहाड, पहिले चुरा-दही-चीनी-अँचार के भोग आ गप देबाक रोग सँ ग्रस्त ऊपरका पीढी रहलाके कारण आब दिन घटलाके बाद कोहुना कोनो काज कयके जीवनयापन करब आ व्यक्तिगत विकास लेल बेसी चिन्ता करब – यैह थीक वर्तमान मिथिला। भाग-दौड आ कूद-फानके जीवन मैथिलक असल तस्वीर।

*मिथिलाक गाम-गाम आब कुकूर भूकैत अछि सुतली रातिमें – ठीक तहिना गामक मुखियाक नाँगरि धेने ५ गो चमचा-बेलचा तारी-दारू पीबि भूकैत अछि हर शांझमें – दिन भरि केना केकर नांगरि छोपब से सोचैत अछि मिथिलाक हर गाम में। तदापि मिथिलाक भूमि अछि बड पवित्र कारण सीताजी अपने अवतरित होइत एकरा सदा-सनातनकाल लेल पवित्र कय चुकल छथि।

*जे सभ सऽ बेसी चोर ओ सभसऽ बेसी नीति सिखायत। ओकरा काज लेल बजाउ तऽ नांगरि सुटकाय केँ-केँ करैत परायत। एहेन चोर सभ चन्दा-चकोरी गबैत अछि, मिथिला-मिथिला भूकैत अछि।

*नाम लेल मरनिहार के कमी नहि। केकरो दोसर पर उम्मीद नहि। अपनो हारल जुआरी आ बहुअक मारल जुआनी कँपायल मायावी छँटैत अछि मिथिलाक ठीकेदारी, सेहो खोखले गप पर।

*हम बाजब, ओ काटत; ओ बाजत, हम काटब; मजा लेत दुनियादारी – यैह होइछ मिथिलाक ठीकेदारी। यैह कहैत अछि समझदारी।

*तुलसीदासजी कलियुग के वर्णन केने छथि ओ सच अछि, देखू करू विचार!
यदि जन्मल एक बापक बेटा आबू बनू समझदार, लगाउ मिथिलाके भवपार!!

हरि: हर:!

 

८. ७ फरवरी २०१३
प्रार्थना
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूतिः पूजामूलम गुरो पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि।।
ॐ गुरु ॐ गुरु
ॐॐॐॐॐॐ
आउ, स्मृतिमें आनी एक बड रोचक प्रसंग। रामचरितमानस पढबाक घडी नित्य हृदयमें एक उत्सुकता रहैत छल जे आइ पुन: किछु महत्त्वपूर्ण सिखबाक लेल भेटत। एक दिन पढा गेल जे श्मसानके अपवित्र छाउर महादेवके श्रीअंगमें शोभा पाबि रहल अछि। दिमाग अकुला गेल, एक तऽ श्मसान, ताहि ठामक अपवित्र छाउर आ फेर महादेव – देवाधिदेव – जगत् गुरु – सभक आराध्य तखन ओ किऐक धारण करैत छथि…. आ करैत छथि तऽ ओ कतेक शोभा पबैत छैक। तुलसीदासजी तुरन्त समाधान केलाह। ‘समरथके नहि दोस गोसाईं’। जी! प्रसन्नता भेटल।

आउ देखी कि संसारमें सेह कतेको लोक कहत जे बाबाक प्रसाद, बाबाक बूटी…. आ कि-कि!  प्रसाद छैक ओतय तक तऽ ठीके लेकिन व्यसन छैक तेकरा नुकाबय लेल बाबाक नामके प्रयोग कनेक अतिश्योक्तिपूर्ण लगैत अछि। ओना प्रसाद के प्रभाव सदैव सुन्दर साधना में सहायक सिद्ध होइत छैक, लेकिन एकर ई प्रभाव कियो ग्रहण नहि करू कि प्रसाद चखैत-चखैत व्यसनरूपमें परिणति हो! हम बहुत गंभीर परिणाम के भुक्तभोगी छी, अत: समस्त लौकिक संसार सँ निवेदन जे एहि मामले कनेक सतर्कता जरुरी।

हरि: हर:!

९.

गंभीर सवाल!

कतेक दिन सँ एक बात सोचि रहल छी,
आइ अहुँ सभ सँ वैह बात पूछि रहल छी!

एतेक सालमें हमर अठासी टा फोलोवर!
हमर प्रेसी मुन्नीके तीन हजार फोलोवर!

हम लिखलहुँ दस हजार कथा आ बात,
मुश्किल सऽ भेटल सौ गो मितवाक साथ!

मुन्नी लिखलक मुश्किल सऽ दू शब्द ‘हाइ’,
लागि गेल छौंडा सभक धरोहिया यौ भाइ!

हम टँगलहुँ मिथिला-मैथिलीके फोटो जते,
बस दु-चारि-दस देखलक शेयरो कतौ कते!

मुन्नी डार्लिंग टँगलक मिनी स्कर्टवला मुस्की,
कतेको भेल लाइक आ लेलक शेयरक चुस्की!

हे यौ! मंगनू बाबु! मैथिली में ई सभ नहि,
मिथिला के गान छैक, शान छैक, प्राण छैक!
कि तही लऽ के मैथिल हिन्दिये में डूबल,
अंग्रेजिनी, भोजपुरनी, नेपलियेमें त्राण छैक?

हरि: हर:!

 

१०.

मिथिला दलान

ई थीक मिथिला के दलान, ऋषि-मुनि के मचान
देखियौ एहि माटिके शान, हे यौ मैथिल महान!

कानि रहल आइ गामक गाम, देखि परदेश अपन संतान,
जानि नजरि कोना लागि गेलै, खखरी उपजय जरय धान,

कहियो रहलै जतय गान, आइ छै बनल सुनसान
देखियौ एहि माटिके शान, हे यौ मैथिल महान!
ई थीक मिथिला के दलान…..

पानि जतय सत् पावन प्राण, रक्षक सदा बनैथ हिमवान,
वन-उपवन फल जान-जहान, तंत्रक भूमि करै छथि त्राण,

बिगडल विधक विधान, कानय ‘प्रवीण’ ध्यान,
देखियौ एहि माटिके शान, हे यौ मैथिल महान!
ई थीक मिथिला के दलान…..

हरि: हर:!

११.

भारत केर स्वतंत्रता दिवस पर मैथिल भाइ प्रति समर्पित एक गीत: (पूर्व-कीर्ति) – दोसर प्रकाशन!

हम तऽ विश्व फीरि के मिथिले वापस आयल छी
गीत मैथिली गाबय छी ना!
सौंसे मारि हथौड़िया खाली हाथ बड़ थाकल छी
गीत मैथिली गाबय छी ना!
हम तऽ विश्व…..

गेलौं गाम त्यागि परदेश, सोचि के लायब नया सनेश-२
कार्तिक बनल घूमल सभ देश, बिसरल बुद्धि जेना गणेश-२
छोड़ि के माय-बाप त्रिलोकी जेना औनायल छी
गीत मैथिली गाबय छी ना!
हम तऽ विश्व फीरि…

लूटलक एक-एक श्रृंगार, रखलक सदिखन बीच मझधार-२
सिखलक कला छीनि सौगात, लिखलक पेटपोसा कपार-२
बरु आब भूखहि पेट माटि अपन ओंघरायल छी
गीत मैथिली गाबय छी ना!
हम तऽ विश्व फीरि….

एकटा बात देखल सभ धाम, सभ जे ओगरै छै निज गाम-२
अपन देशके बनबय शान, गाबय सदिखन अपन बखान-२
कहू फेर मिथिलावासी हम कतय बौड़ायल छी
गीत मैथिली गाबय छी ना!
हम तऽ विश्व फीरि….

जगियौ-जगियौ मैथिल भाइ, सिखियौ दुनिया गति कि आइ-२
करियौ कर्म जनक सम भाइ, तखनहि औती सीता दाइ-२
कहू कि अनकर देक्सी करैत किऐ अन्हरायल छी
गीत मैथिली गाबय छी ना!
हम तऽ विश्व फीरि…

हरिः हरः!

१२.

ई दृश्य हदय-विदारक अछि
ई बात दिमाग उड़ाबक अछिबड़-बड़ दाबी सरकारक छैक
गपमें योजना भरमारक छैक

तैयो भूखल प्राणी सभ ठाम
बस एक सहारा मात्रे राम

अन्नक भंडार सड़य-गन्हाय
कतौ चुल्हा जड़य न मिझाय

जाबत छै गाम-समाज मरल
ई दुनिया असमानता सऽ भरल!

बस मानवता के पाठ सिखू
सम्पन्न संसारक भाग लिखू!

हरिः हरः!

१३.

कियो मनाबय नया वर्ष, कियो जूझय जान-जहान सँ
केकरो मुँहमें मुंगबा लड्डू, कियो लिलोह दिनमान सँकाल्हि-आइ में फरक कते छै देखियौ भैया ध्यान सँ
एक बनय छै भूत तऽ दोसर कहै नया वर्तमान सँ

भोर हँसी आ साँझक कननी एम्हर-ओम्हर शान सँ
जेना दिन आ रातिक रूप छै जीवक दर्शन ग्यान सँ

पेट न खर सींग तेल चोपारि गीत फूइस के गान सँ
यैह थीक कलियुग जन-मन जीवन सभक जान सँ

सत्य कहै छै बिसर मूढपन नेह एक भगवान सँ
कथमपि द्वंद्व धार नहि बहे बने सत्य इन्सान सँ

हरि: हर:!

१४.

 

जीवन

खुश छी
एतबीमें
जतेक अछि
अपना हिसाबसँ!
पात खररब
भूज्जा फाँकब
नोन तेल रोटी
साग भात
जैह जुडत
सैह खायब!
बोइन पर
अधिकार अछि
काज करब
जिनगी जियब!
केकर रहलै
चौजुगी चमक?
के बचल
सभ दिन?
त्याग छै
कीर्ति छै
विद्या छै
वैभव छै
दान छै
धर्म छै
मैथिली छै
मिथिला छै
हम छी
दैव छै
चलू
जीबि ली
जहान छै!

हरि: हर:!

१५. १ मई २०१३

शहीद के प्रणाम!

मिथिला के ओ हर कीर्ति महान्‌
हे शहीद अहाँ के शत्‌ प्रणाम!

करी शत्‌ प्रणाम जगदम्ब नाम
करी शत् प्रणाम अवलम्ब नाम
बलिदान अहाँ के मिथिला त्राण
हे शहीद अहाँके शत्‌ प्रणाम!
मिथिला के ओ हर कीर्ति महान्‌
हे शहीद अहाँके…

अछि ईशक भूमि मिथिला महान्‌
बनय सत्य धर्म अतिथि समान
तैर गेल अहाँके आत्मा नाम
हे शहीद अहाँके शत्‌ प्रणाम!
मिथिला के ओ हर कीर्ति महान्‌
हे शहीद अहाँके…

भले केओ कतबो कंठक धसान
बनि अक्खज आयू विदेहक गाम
मिलि गेल अहाँके हर एक प्राण
हे शहीद अहाँके शत्‌ प्रणाम!
मिथिला के ओ हर कीर्ति महान्‌
हे शहीद अहाँके….

मिथिला राज लेल शहादति देनिहार प्रति समर्पित!
अखण्ड संसार मिथिला के राज!

हरि: हर:!!

१६. २ मई २०१३

कल्पवृक्ष एहेन गाछक नाम थिकैक जेकर नीचाँ जे इच्छा करब से पूरा होयत। एक छोट कथा एहि लेल महत्त्वपूर्ण छैक जेकरा पर हम सभ मनन करी।

एक राजा शिकारक क्रममें संध्या थकित होइत अपन सिपहसलार पर्यन्तसँ छूटल असगर मजबूरीमें एक गाछ जे कल्पवृक्ष रहैत छैक लेकिन राजाक एहि बातक जानकारी नहि ताहि तर संध्या-रात्रि विश्राम लेल घोडा बान्हि नीचेँ आराम करय लेल शरण लैत अछि…. किछु समय लेल सोचैत ओकरा राजसी भोजनक भूख लगैत छैक आ इच्छा होइते ओतय ५६-भोग सोझाँमें हाजिर होइत छैक। राजा विस्मितो अवस्थामें चफैरकऽ भोजन करैत अछि आ तदोपरान्त सुतबाक प्रयास करैत अछि, असहजताक कारणे पुन: इच्छा करैत अछि जे एना होइत जे राज-पलंग आ ओछाइन भेटैत तऽ आराममें सहजता भेटैत… आ पुन: ओकरा राजसी पलंग बिछाउन सहित भेटैत छैक। राजा खुशी-खुशी विश्राम लेल ओहि बिछाउनक प्रयोग करैत अछि। अर्धरात्रिमें राजाक संयोगवश नींद खुजैत छैक तऽ चारू कात अन्हार देखि भयभीत होइत सोचि उठैत अछि जे कहीं कोनो बाघ आबि ओकरा ऊपर आक्रमण नहि करय…. आ ततबा सोचैत एक बाघ आक्रमण कय दैत छैक आ राजा बामुश्किल जान बचाबैत अछि।

सार्थक सोच संग चलनिहार एहि संसारकेँ कल्पवृक्ष समान उपयोग करैत छथि। मैथिली-मिथिला सेहो प्रमाणित कल्पवृक्ष थीक। खबरदार! अशुभ सोचब मना छैक!

हरि: हर:!!

१७. ३ जुलाई २०१३
हे भाय, हेयौ मैथिल!
यदि मैथिली बिसैर गेल छी,
यदि अबैतो बाजैत लाज लगैत अछि,
कोनो तरहक दिक्कत अछि,
तऽ बिना कोनो खर्चाके,
आउ! हमर कोचिंग ज्वायन करू!
मैथिली लिखब आ बाजब दुनू सिखू!
मात्र ७ दिन में!
संगहि अंग्रेजी जे आय रोटीक जोगार दैत अछि,
सेहो सिखू! स्वरोजगारी बनू!!
जे कियो देखाएत छथि मैथिल फेसबुकपर,
ओ बजैत/लिखैत नहि छथि मैथिलीमें,
हुनका सभके सीधा जोडू,
प्रवीणक फेसबुकिया मैथिली कोचिंगमें!

फोटोमें सभ जानकारी अछि, लिंक खोलू आ आबि जाउ। कृपया मैथिली केर लेल एक बेर सभ संग एकरा जरुर शेयर करू।

हरि: हर:!!

१८. १२ जुलाई २०१३
घरक चिन्ता कयले नहि होइछौ, तों करबें मिथिलाके चिन्ता?
पेट अपन भरले नहि होइछौ, तों पोसमें मिथिलाके जनता?बढ एखन किछु आरो दूरी, सोचि-सोचि दरिद्री के!
बनि बहिर्मुख देखे सबटा, वीर सलहेश दीनाभद्री के!!

वीरतापूर्ण कयले नहि होइछौ, तों जितमें मिथिलाके खुट्टा?
कायरता सँ गप हँकय छिहीं, तों सिखेमें मिथिलाके बेटा?

देखैत टा रह केना चलय छै, मस्त अपन चोरदिलीसँ!
कयनिहार सब केना करय छै, गस्त अपन कर्मटोलीसँ!!

नहि किछु केलें नहि किछु करमें, तों जोतमें मिथिलाके खेता?
बाबा बले फौदारी टा बस, तों बनमें बनेमें मिथिलाके नेता?

कामचोर कर्तब्यविमूख तों, बेसीकाल नुकैले रहै छेँ!
किस्मत-हिम्मत हारल तों, छूछे बीख पिबैते रहै छेँ!

कहियो न एलें रणभूमिमें, तों बनमें मिथिलाक सेना?
बुद्धि-विवेकक हीन रे भूल्ला, तों देखमें मिथिलाक सपना?

(अधिकांशत: जे चोर-निकम्मा आ बहानेबाज कर्तब्यविमूढ मैथिल होइछ ओ फेसबुक वा समाजक विभिन्न गाम-ठामपर अगबे गप आ फूइसक समीक्षा करैत नजरि अबैछ, बात एहेन करैछ जेना भगवान् ओकरा सभटा कला-कौशलसंपन्न बनौने छथि, लेकिन कोइढ एहेन जे काजक घडी ओकर कियो मैर गेल रहैछ आ कदापि अपन छोटो टा के कर्तब्य निर्वाहमें ओ सफल नहि बनैछ – ताहि तरहक कोढिया लेल ई रचना समर्पित अछि। मनन केला उपरान्त यदि राजा सलहेश, वीर दीनाभद्री आ कतेको वीर मैथिलपुत्र सँ प्रेरणा भेटय तऽ जीवनमें बस एक छोटो टा के काज जरुर करय लेल सोची, मरबा घडी गोदान करैत वैतरणी पार करयवाला सोच सेहो मिथिला के शिथिला बनेलक अछि, जरुर चिन्तन करी।)

हरि: हर:!!

१९. २० जुलाई २०१३
एकर रूप देखियौ कतेक मस्त यौ! ई कदीमाक फूलबतिया!!
हरियर कंचन पातक ई बीच यौ!! एकर बनतय तरकरिया!!मूरी खोंटि कने सरिसव मसल्ला!
सुरकी झोर जेना मछलीके छल्ला!!

तयपर फूलक रहत तरुआ यौ!! ई कदीमाक फूलबतिया!!
हरियर…

मिथिलाके भोजमें डालना जरुरी!
बिन कदीमा के रस नहि सुरुरी!!

एकर भुजियाक रूपो अनेक यौ! ई कदीमाक फूलबतिया!!
हरियर…

अपन बारी या चार पर फरय!
हरियर पाकल साल भरि रहय!

एकर बियाके भुज्जा बड नीक यौ!! ई कदीमाक फूलबतिया!!
एकर छिलको भुजाइ छय मीत यौ!! ई कदीमाक फूलबतिया!!

हरियर…

हरि: हर:!!

२०. ३० जुलाई २०१३

बेईमान ईन्सान

दूसरोंको उपदेश देना पर खुद उन राहों से हँटकर चलना!

औरोंका शिकायत करना पर अपनी दोषोंके साथ जीना!!

बातें बडे-बडे करना पर कर्म बिपरीत करना या न के बराबर करना!!

औरोंसे अपेक्षा करना पर खुद कर्तब्यविमूढ बनकर अपना योगदान तक न देना!!

माता-पिताके दिये गुणसूत्रोंका अपमान अपनी होशियारीमें करते जाना!!

मातृभूमि के प्रति अपनी देनदारी को समझते हुए भी पीछे भागना!!

प्रकृति ने जो दिया उसका दुरुपयोग करना!

अपनी दायित्वोंको न समझना!!

आदि – आदि!!

कुछ आप भी जोडें! पर यह देखना न भूलें कि सच्ची राष्ट्रीयता के लिये हम बेईमान तो नहीं और हमारे कर्तब्योंको बखूबी निभा तो रहे हैं।

हरि: हर:!!

२१. १० अगस्त २०१३