संगीताक विवाह आ वरक परिछन

मिथिला मे नारी-समाजक विशेषाधिकार सँ जुड़ल एक चर्चा

– रूबी झा

आय सँ करीब तीस-बत्तीस साल पहिनहु तक गाम-घर में बेटा-बेटी केर विवाह में मायक बाजय के कोनो अधिकार नहि रहैत छलन्हि, अधिकांश घर में। लेकिन मिथिला में वर के जे विवाह राति में परिछन होइत छन्हि, ओहि विधक अर्थ हमरा जनतबे यैह होइत छैक जे कन्याक माय, बहिन, पीसी, मौसी, दादी, नानी आ टोल समाजक महिला लोकनिक पूरा अधिकार छन्हि  जे वर केर परीक्षण कय जँ वरण कय रहल कन्याक योग्य ओ नहि होइथ तँ ओतहु सँ विवाहक आगाँक प्रक्रिया रोकि वर केँ घुमा सकैत छथि। ताहि द्वारे एहि विधक नाम परिछन कहल गेल छैक। अगर वर में कोनो कमी छैक जे कि कन्यागत सँ छूपाओल गेल छन्हि तँ महिला वर्ग केँ ई अधिकार छन्हि जे ओ वर केँ घर घुमा सकैत छथि। ताहि द्वारे मिथिला में वरक गंजी-कुरता खोलि पूरा देहक निरीक्षण करैत छथि महिला सब, जे वर पूरा सोझ-साझ छथि या नहि। आब तँ वर विवाह करय धोती-कुर्ता छोड़ि कोट-पैंट पहिरि अबैत छथि शहरी तौर-तरीका में। या वर परीक्षा में पास नहि केला अथवा महिला समाज सँ पूछल प्रश्नक उत्तर नहि द पेलाह तैयो हुनका घर घुमायल जा सकैया। एहि विधि केर सार्थकता केँ हमहुँ सब अपन सोझाँ में देखने छी, आइ वैह बात अपने लोकनिक सोझाँ राखि रहल छी।

संगीता (काल्पनिक नाम) केर विवाह छलन्हि। पूरा गाम उत्साहित छल। भरि गामक पुरुष-स्त्रीगण लागल छलथि तैयारी मे। बरियातीक स्वागत केर व्यवस्था में सब पूरा भेल छल। पहिने आय-काल्हि जेना सभकिछु हलुवाई नहि बनबैत छलाह, किछु गुणी महिला सब मिलिजुलि वर-वरी, तरुआ-तरकारी बनबैत छलथि। आर आय-काल्हि जेना टेंट हाऊस सँ सब समान किराया-भाड़ा पर नहि आबैत छल, भरि गाम सँ समान आनि सारा व्यवस्था होइत छलय। भरि गामक लोक एहि में लागल रहैत छलथि जे हमरा सबहक तरफ सँ कोनो तरहक कमी नहि रहि जाय, गामक अपजस नहि भऽ जाय। तय समय पर वर-बरियाती दलान पर एलाह। मंच सजल रहै ओहि पर वर आ हुनक पिता बैसलाह। बरियाती सबहक स्वागत होबय लागल, ठंडा-गरम, नाश्ता-विग्जी सब परोसल जा रहल छल। तकरा बाद समय आयल वरक परिछन केर। परिछन के समय वर सँ मिथिला के नारी सब सवाल पर सवाल पूछैय लगलीह। जहन मिथिला में रामजी सँ ढ़ेरों सवाल नारी सब पूछलीह तँ आम वर के कोना छोड़तीह। ओ तँ हुनका सभक अधिकार आ परम्परा छन्हि। जहन वरक कुरता खोलाओल गेल तँ महिला सब देखलीह, वरक हाथ में किछु परेशानी छन्हि। कुरता खोलय में बहुत समय लगलैन। काना-फूसी होबय लागल। कन्याक माय बजेलीह कन्याक पिता केँ आ कहली, “हम बेटी केर विवाह एहि वर सँ किन्नहुँ नहि करब। वरके घूमा दियौक”, कन्याक पिता कहय लगलाह जे लोक-समाज कि कहत, दरवज्जा पर सँ वर-वरियाती घुमि जायत तँ फेर बेटीक कतहु विवाह नहि होयत। कन्याक माय जिद्द पर अड़ि गेलीह आ अपन पति केँ अन्ततः समझाबय में कामयाब भ गेलीह। कहली हमरा (नारी) लोकनि  वरक दलान पर नहि जायब ताहि द्वारे हमर पूर्वज ई विधि बनेने छथि। हम वर केँ वापस कय देबनि से हमरा लोकनिक अधिकार थिक। वरक बाप-पित्ती सब अहाँ सँ कियैक छुपेलनि ई बात। टोल-समाज कि कहत से कहय दियौन? हयरा ओहि सँ कोनो मतलब नहि अछि। आर हमर बेटीक विवाह कियैक नहि होयत, ककरो बेटी समाज में कुँवारी छैक जे हमर रहत? एखन पहिने एहि वर केँ वापस करू।

ओहि दिन में किछु ज्यादा पुरुषवर्ग केर वर्चस्व घर-बाहर दुनू जगह रहैत छलन्हि, लेकिन संगीताक माय किनको एक नहि सुनलीह। पूरा गामक मान्यगण सब समझाबय में असफल भेलाह। आर आखिरकार वैह भेल जे सब नारीक मोनक इच्छा रहनि। वर-वरियाती केँ घर घुमायल गेलनि। हमरा गर्व अछि संगीता माय सनक माय पर, जे अपन बेटी लेल पति, टोल, समाज सब सँ लड़ि गेलीह। पहिने कि होइत छलैक, माय केँ बाजय तक केर कोनो अधिकार नहि होइक आ बाप केँ जतय जेहेन मोन होइत छलन्हि ततय बेटी केँ दहा-भसिया दैत छलखिन्ह। ताहि द्वारे लूल्ह, लांगर, बौक, बहिर, आन्हर, पागल-बताह, बुढ बुढानूस सब पुरुषक विवाह भऽ जाइत छलन्हि। बहुत दुखद स्थिति छल। आब किछु सुधार भेल आर किछु बाँकी अछि। सब बाप बेटीक प्रति खराबे सोच रखैय छलैथ सेहो नहि छैक मुदा मिथिलाक कमजोर आर्थिक अवस्था मे एहेन बेसी रास घटना मोन पड़ैत अछि।