पुरूष शेर तँ नारी की – सवाल लेखिका रूबी झाक आ जबाब देथिन पाठक लोकनि

लघुकथा

– रूबी झा

नारी केँ अवला कहल जाइत छन्हि, तकर हम सख्त विरोधी छी। हम अवला नहि छी, हम सवला छी। हम काली, दुर्गा, जानकी छी। फेसबुक पर एक दिन एकटा व्यक्ति प्रश्न रखने रहैथि जे पुरुष केँ शेर कहल जाइत छन्हि तँ महिला केँ कि कहल जाइत छन्हि, ताहि पर हम हुनका जबाब देने रहियनि जे शेर केँ नौ महीना तक अपन गर्भ में रखैय छथि हुनका कि कहल जाय से अहाँ स्वयं सोचि लियऽ। जबाब अपने-आप भेटि जायत। बात बहुत साल पैहने के थिक। गाम केर एक परिवार में दुइ भाय रहैथि। पैघ भायक नाम मुनमुन बाबू आ छोट भाइ के नाम सोहन बाबू रहैन। मुनमुन बाबूक बहुत कम उम्र में निधन भऽ गेल रहैन। कामेश्वरी देवी (मुनमुन बाबूक कनियाँ) अपन दियर-दियादनी केर संगे रहैत छलथि। सम्पत्ति बहुत रहैन, गामक लोकसब हथियाबय के कोशिश में लागल रहैय छलैन। आ दर-दियाद सब सेहो। बहुत तरहके उपद्रव हिनक परिवार पर सब मिलि करैत छलनि। एक दिन गामक किछु उपद्रवी वर्ग लगभग २५-३० गोटे सँ भाला-गड़ाँस लय गारि पढैत हिनकर दलान दिश दौड़ल आबैत रहनि। कियैक तँ खेत में जबरदस्ती किछु गोटे खेसारी उखाड़ैत रहथिन्ह आ सोहनबाबूक बेटा देख लेलखिन्ह आ कहलखिन्ह तोँ सब हमरा खेत में सँ निकल, नहि तँ हम अपन बाबू जी केँ कहि देबनि। तोहर सब के एते हिम्मत हमरा सामने हमरहि खेत में खेसारी ऊखाड़मेँ। ओहि पर बकझक भऽ गेल रहनि। जखन ओहि भीड़ केर आवाज सोहनबाबू दुनू बाप-पुते सुनला तँ ओहो सब लाठी लय केँ निकलला। लेकिन ओ सब ओतेक गोटे आ ई सभ दुइये बाप-पुत, से देखिकय कामेश्वरी देवी घबरा गेलीह आ सोचलीह जे ई सभ दलान चढि जायत, दस गाम में बेईज्ज़ती भऽ जायत। ओ भीड़ केँ भगाबय के उपाय सोचय लगलीह। हुनकर नजरि खरिहानक एक कोण में राखल बांस पर पड़लन्हि। ओ फटाफट ओहि बांस में दुइ-तीनटा धोती केँ लपेटि ओहि पर मटीया तेल ढारि, सलाय खरड़िकय अपन दियर केँ पकड़ा देलनि आ कहली जे “बौआ ई लियऽ! अहि सँ जरलठुआ सबकेँ रेबाड़ू। सोहनबाबू ओनाही केलाह। ई देखि भीड़ ओतय सँ न-दू-एगारह भऽ गेल। अगर ओहि दिन कामेश्वरी देवी ई तरकीब नहि निकालितथि तँ पता नहि हुनकर दियर आ जाऊत केर संग कि होयतनि। हम ओहि वीरांगना महिला केँ नमन करैत छी। पाठक सब जरूर सोचय जाय-जाउ जे नारी अबला छथि कि सबला।