सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन लेल मायक श्राद्ध पर श्रद्धाञ्जलि सभा – मृत्यु व मृत्यु संस्कार पर विमर्श

६ जुलाई २०१९. मैथिली जिन्दाबाद!!

मृत्यु आ मृत्यु संस्कार
 
आइ विराटनगर मे मैथिली भाषाक वरिष्ठ अभियानी तथा आब समाजवादी पार्टीक वरिष्ठ बुद्धिजीवी नेता पूर्व प्राध्यापक राम रिझन यादव केर माता जगिया देवीक १३म दिनक पुण्यतिथि पर कर्मकाण्डीय श्राद्धकर्म सँ इतर एकटा श्रद्धाञ्जली सभाक माध्यम सँ श्रद्धा-शब्द रखबाक लेल ‘मृत्यु आ मृत्यु संस्कार’ विषय पर विमर्श कयल गेल। एहि मे कुल ४ महत्वपूर्ण वक्ता अपन विचार रखलनि। डा. भास्कर गौतम, डा. महादेव साह, डा. प्रदीप गिरी आ डा. बाबूराम भट्टराई – चारू नेपालक विज्ञ-विशेषज्ञ द्वारा विषय पर विचार राखल गेल। ताहि सँ पूर्व स्वयं राम रिझन यादव अपन विचार रखैत बजलाह जे कर्मकाण्डीय रीति सँ श्राद्धकर्म नहि करबाक निर्णय ओ कियैक केलनि, देश मे राजनीतिक परिवर्तनक संग सांस्कृतिक आ सामाजिक परिवर्तनक आवश्यकता सेहो रहबाक तर्क दैत कतेको घर-परिवार एहि परम्परा आ रेबाज मे काफी आर्थिक नोकसान झेलबाक बात सेहो ओ कहलनि। सभाक संचालन करैत मृतक जगिया देवीक पौत्री आ राम रिझन यादवक पुत्री शिखा किरण यादव सेहो एहि श्रद्धाञ्जली सभाक उद्देश्य उजागर करैत हुनक पिता आ समस्त परिजन ‘मृत्युभोज’ केर विरुद्ध रहबाक बात रखलीह।
 
पहिल दुइ वक्ता डा. भास्कर गौतम एवं डा. महादेव साह द्वारा उच्च दार्शनिक पक्ष अन्तर्गत मृत्यु आ मृत्यु उपरान्त कयल जायवला संस्कारक वैश्विक स्थिति पर प्रकाश देल गेल छल। एहि मे विभिन्न धर्मावलम्बी द्वारा अपनायल जायवला संस्कारक व्याख्या करैत मृत्यु उपरान्त मृतकक आत्मा वा शरीर आदिक स्थिति पर दार्शनिक विचार राखल गेल छल। हुनका लोकनिक कहब भेलनि जे मृतकक शरीर जीर्ण भेलाक बाद मरि जाइत अछि, मृतकक मृत्यु वास्तव मे आत्माक हिसाब सँ नहि होइत छैक। पुनर्जन्म ता धरि लोक केँ लेबय पड़ैत छैक जा धरि ओकर कर्म केर भोग पूर्णरूपेण पूरा नहि भऽ जाइत छैक। महात्मा बुद्ध केर उदाहरण दैत डा. महादेव शाह बजलाह जे ओ कुल २६ बेर जन्म लेलनि, अन्तिम बेर मे ओ बुद्ध आ शुद्ध भेलाह। बुद्ध भेलाक बाद ओ मृत्युक नहि बल्कि महानिर्वाणक प्राप्ति कयलनि। स्वर्ग आ नर्क केर परिकल्पना एक तरहक काल्पनिक चेतना मात्र होइत अछि जे लोक अपन सन्तुष्टि लेल विभिन्न तरहक संस्कारक माध्यम सँ पूरा करैत अछि। एहि तरहें राम रिझन यादव अपन माताक संस्कार मे दाह क्रिया केलाक बाद अपन गाम पहुँचि मात्र चारि दिन मे निवृत्तिक बात केलनि जेकरा बहुल्य समाज स्वीकार नहि केलकनि, लेकिन ओ अपन आस्था अनुसार अपन मायक क्रिया-कर्म पूरा केलनि। एहि तरहें आइ १३म दिनक क्रिया-कर्म केर उपलक्ष्य एक श्रद्धाञ्जलि सभाक आयोजन कय उपरोक्त विषय पर चर्चा आ वक्ताक वक्तव्य लैत आम समाज मे परिवर्तन आबय ताहि तरहक उपक्रम कयलनि। अन्त मे ‘मातृ-प्रसाद’ केर रूप मे आगन्तुक-आमन्त्रित सभासद लोकनि केँ स्वरुचि भोज सेहो देल गेल छल।
 
डा. बाबूराम भट्टराईक संबोधन काफी प्रेरणास्पद छल। ओ आस्था अनुरूप सभ अपन-अपन स्वतंत्रता सँ कार्य करय ताहि तरहक पक्ष रखलनि। केकरो पर कोनो विचार थोपल नहि जेबाक चाही, जँ परम्परा मानव समाज केँ ह्रासक दिशा मे उन्मुख कय रहल अछि त परिवर्तन अनबाक कार्य समाज केँ मिलिकय करबाक चाही, ओ सुझाव देलनि। शास्त्र-पुराण मे मृत्यु अथवा मृत्यु संस्कार प्रति जे किछु दावी कयल गेल हो, लेकिन मानवताक धर्म आ अपन निजी अनुभव केँ सर्वोपरि मानि डा. भट्टराई द्वारा देल गेल विचार सर्वथा न्यायोचित छल। श्राद्ध कर्म अपन-अपन आस्था आ मृतक आत्मा प्रति जीबित पारिवारिक सदस्यक अपन विशेष समर्पणक एकटा अभियान होइत छैक, जेकरा जाहि तरहें उचित बुझाइत छैक, ओ ताहि तरहें किछु दिन अपन सर-समाज संग मिलिकय मृत्युक वरण कयल व्यक्ति केँ स्मरण करैत रहैत अछि आर ताहि लेल निर्धारित प्रक्रिया केँ पूरा करबाक कार्य करैत अछि। एहि मे केकरो परम्पराक कोनो तरहक विरोध कएने बिना समग्र हित आ मानव सहयोगी वातावरण मे केहेन परिवर्तन अनला सँ लाभ होयत, ताहि पर डा. भट्टराईक विचार बहुत सारगर्भित छल। हिनका सँ पूर्व डा. प्रदीप गिरीक संबोधन सेहो काफी ओज सँ भरल आ हास्य-व्यंग्य सँ मिश्रित प्रस्तुत विषयक संग देशक समग्र राजनीतिक स्थिति पर सेहो संबोधन कयल गेल छल। डा. भट्टराई सेहो देश मे आयल परिवर्तन केँ बहुत दूरगामी आ उपलब्धिमूलक कहैत कोनो तंत्र केर सफलता-असफलता लेल पब्लिक केँ धरफराकय निर्णय नहि करबाक यानि गणतंत्र केँ दोष नहि देबाक धारणा रखने छलाह।
 
हरिः हरः!!