बाबा महाकालेश्वर केर आविर्भावक अत्यन्त मार्मिक पौराणिक गाथा

द्वादश ज्योतिर्लिंगः महाकालेश्वर बाबा सँ जुड़ल महत्वपूर्ण गाथा
 
किछुए दिन पूर्व सँ आरम्भ कयल द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा-गाथा विवरण अन्तर्गत शिवपुराण मे वर्णित तेसर ज्योतिर्लिंग ‘श्री श्री १०८ श्री बाबा महाकालेश्वर’ केर आविर्भावक कथा मे पढने रही जे कोना एकटा बस्ती पर राक्षसक आक्रमण आ क्रूर अत्याचार विरुद्ध अपन भक्त-साधक तथा आस्थावान् केँ बचेबाक लेल परमपिता परमेश्वर आर्त भक्त-साधकक बीच एकटा खधिया सँ प्रकट भेलाह, बाद मे अपन समस्त भक्तक अनुरोध पर महाकाल महादेव ओतय ज्योतिर्लिंग केर रूप मे विराजैत सभक रक्षा करबाक वचन देलनि, जे आइ उज्जैन (भारत) स्थित बाबा महाकालेश्वर केर प्रसिद्ध मन्दिरक रूप मे विश्व विख्यात अछि। आइ पुनः बाबा महाकालेश्वर सँ जुड़ल किछु अन्य कथा-गाथा एतय राखि रहल छी।
 
उज्जैन नगरी मे स्तिथ महाकाल ज्योतिर्लिंग, शिवजीक तेसर ज्योतिर्लिंग कहाइत अछि। ई एकमात्र ज्योतिर्लिंग थिक जे दक्षिणमुखी अछि। एहि ज्योतिर्लिंग सँ सम्बंधित दुइ गोट कथा पुराण मे वर्णित अछि। शिवपुराणक कथा पहिनहि कहि देल गेल अछि जे अन्य लेख मे सर्च आप्शन सँ पढि सकैत छी।
 

शिवभक्त राजा चंद्रसेन तथा बालक केर कथा

उज्जयिनी नगरी मे महान शिवभक्त तथा जितेन्द्रिय चन्द्रसेन नामक एक राजा छलाह। ओ शास्त्रक गम्भीर अध्ययन कय ओकर रहस्य सभक ज्ञान प्राप्त कयने छलाह। हुनक सदाचरण सँ प्रभावित भऽ कय शिवजी केर पार्षद लोकनि (गण लोकनि) मे अग्रणी (मुख्य) मणिभद्रज राजा चन्द्रसेन केर मित्र बनि गेलाह। मणिभद्रजी द्वारा एक बेर राजा पर अतिशय प्रसन्न भऽ राजा चन्द्रसेन केँ चिन्तामणि नामक एक महामणि प्रदान कयल गेल। ओ महामणि कौस्तुभ मणि तथा सूर्यक समान देदीप्यमान (चमकदार) छल। ओ महामणि देखला, सुनला तथा ध्यान केलापर सेहो, ओ मनुष्यक निश्चिते टा मंगल प्रदान करैत छल।
 
राजा चनद्रसेनक गला मे अमूल्य चिन्तामणि शोभा पाबि रहल छल, ई जानकारी सँ अन्य बहुतो राजा लोकनि मे ओहि मणि केर प्रति लोभ बढ़ि गेलैक। चिन्तामणिक लोभ सँ सब राजा क्षुभित हुअय लागल। ओ राजा सभ अपन चतुरंगिणी सेना तैयार केलक आर ओहि चिन्तामणिक लोभ मे ओतय आबि धमकल। चन्द्रसेन केर विरुद्ध ओ सब राजा एक्कहि बेर मिलिकय एकत्रित भेल छल आर ओकरा सभक संग बड़ा भारी सैन्यबल सेहो छलैक। ओ सब आपस मे मिलिकय ई रणनीति तैयार केलक आर राजा चन्द्रसेनपर आक्रमण कय देलक। सैनिक सहित ओ राजा सभ चारू दिशि सँ उज्जयिनीक चारू दरबज्जा केँ घेर लेलक। अपन पुरी केँ चारू दिशि सँ सैनिक लोकनि द्वारा घेरल देखिकय राजा चन्द्रसेन महाकालेश्वर भगवान शिव केर शरण मे पहुँचि गेलाह। ओ निश्छल मन सँ दृढ़ निश्चय केर संग उपवास-व्रत रखैत भगवान महाकाल केर आराधना मे लागि गेलाह।
 
ओहि समय उज्जयिनी मे एकटा विधवा ग्वालिन रहैत छल, जेकर एकटा मात्र बेटा छलैक। ओ एहि नगरी मे बहुतो दिन सँ रहैत छल। ओ अपन ओहि पाँच वर्षक बालक केँ लऽ कय महाकालेश्वर केर दर्शन लेल पहुँचल। ओ बालक देखलक जे राजा चन्द्रसेन ओतय बड़ा श्रद्धाभक्ति सँ महाकाल केर पूजा कय रहल छलाह। राजा केँ शिव पूजन केर महोत्सव ओकरा बहुते आश्चर्यमय लगलैक। ओ ओहि पूजा केँ देखैते एकदम भक्तिभाव सँ भरिकय महाकाल केँ प्रणाम केलक आर अपन निवास स्थान पर घुरि आयल। ओहि ग्वालिन माताक संग ओ बालक सेहो महाकाल केर पूजाक कौतूहलपूर्वक अवलोकन कयने रहय। ताहि लेल घर वापसी केलाक बाद ओहो शिवजीक पूजा करबाक विचार केलक। ओ एकटा सुन्दर-सा पत्थर ताकिकय अनलक आर अपन वासस्थल सँ कनिके दूर कियो दोसरक वासस्थलक समीप एकान्त मे राखि देलक।
 
ओ अपन मन मे निश्चय कय केँ ताहि पत्थरहि केँ शिवलिंग मानि लेलक। ओ शुद्ध मन सँ भक्ति भावपूर्वक मानसिक रूपें गन्ध, धूप, दीप, नैवेद्य आर अलंकार आदि जुटाकय, ओहि सँ ताहि शिवलिंग केर पूजा केलक। ओ सुन्दर-सुन्दर पत्ता तथा फूल सँ बेर-बेर पूजा केलाक बाद बेर-बेर भगवानक चरण मे मस्तक लगेलक। बालकक चित्त भगवान केर चरण मे आसक्त छल आर ओ विह्वल भऽ कय हुनका दण्डवत कय रहल छल। ताहि समय ग्वालिन भोजन लेल अपन पुत्र केँ प्रेमपूर्वक बजा लेलक। ओम्हर ओहि बालकक मोन शिवजीक पूजा मे रमल छलय, जाहिक कारण ओ बाहर सँ बेसुध रहय। माता द्वारा बेर-बेर बजेलो पर ओहि बालक केँ भोजन करबाक इच्छा नहि भेलैक आर ओ भोजन करय नहि गेल तखन ओकय माय अपने उठिकय ओतय आबि गेलीह।
 
माय देखलक जे ओ बालक पाथरक सोझाँ आँखि बन्द केने बैसल अछि। ओ ओकर हाथ पकड़िकय बेर-बेर खींचय लागल, मुदा एतेक केलो पर ओ बच्चा ओतय सँ नहि उठल, तखन ओकर माय केँ बड तामश उठि गेलैक आ ओ ओकरा बड मारि मारलक। एना खींचने आ मारनो-पीटने जखन ओ बच्चा ओतय सँ नहि हँटल, तखन ओ माय ताहि पत्थर केँ उठाकय दूर फेंकि देलक। बालक द्वारा ओहि शिवलिंग पर चढ़ायल गेल समस्त पूजन-सामग्री केँ सेहो ओ नष्ट कय देलक। शिवजीक अनादर देखिकय ओ बालक ‘हाय-हाय’ कय केँ कानय लागल। क्रोध मे आगि बनल ओ ग्वालिन अपन बेटा केँ डाँट-फटकार कय फेरो अपन घर मे चलि गेल। जखन ओ बच्चा ई देखलक जे भगवान शिवजीक पूजा केँ ओकर माय द्वारा नष्ट कय देल गेल, तऽ कोंढ फारिकय हिँचुकि-हिँचुकिकय ओ कानय लागल। “देव! देव! महादेव!” कनैत-बिलखैत ई बजैत ओ कनैत-कनैत बेहोश भऽ पृथ्वीपर खैस पड़ल। ओकर आँखि सँ नोरक धार बहय लागल। कनेकाल बाद जखन ओकरा चेतना आयल, तऽ ओ अपन बन्द आँखि खोललक।
 
आँखि खुलिते ओ बालक जे दृश्य देखलक, ताहि सँ ओ आश्चर्य मे पड़ि गेल। भगवान शिव केर कृपा सँ ओहि स्थान पर महाकाल केर दिव्य मन्दिर ठाढ भऽ चुकल छल। मणि सभ सँ बनल चमकैत खम्भा ओहि मन्दिरक शोभा बढा रहल छल। ओतुका भूतल पर स्फटिक मणि जड़ि देल गेल छल। एकदम तप्त कयल दमकैत स्वर्ण-शिखर ओहि शिवालय केँ सुशोभित कय रहल छल। ओहि मन्दिरक विशाल द्वार, मुख्य द्वार तथा ओकर कपाट सुवर्ण निर्मित छल। ओहि मन्दिरक सामने नीलमणि तथा हीरा जड़ल बहुतो रास चबुतरा बनल छल। ओहि भव्य शिवालय केर भीतर मध्य भाग मे (गर्भगृह) करुणावरुणालय, भूतभावन, भोलानाथ भगवान शिव केर रत्नमय लिंग प्रतिष्ठित भेल छल।
 
ग्वालिन केर ओ बच्चा शिवलिंग केँ बड़ा ध्यानपूर्वक देखलक आर ओकरा द्वारा चढ़ायल गेल सब पूजन-सामग्री ओहि शिवलिंग पर सुसज्जित ढंग सँ पड़ल देखलक। ओहि शिवलिंग केँ तथा ओहिपर ओकरहि द्वारा चढ़ायल गेल पूजन-सामग्री केँ देखिते-देखिते ओ बालक उठिकय ठाढ भेल। ओकरा मने-मन आश्चर्य तऽ बहुत भेलैक, मुदा ओ परमान्द सागर मे डूबकी लगबय लागल आब। तेकर बाद त ओ शिवजीक कतेको रास स्तुति केलक आर बेर-बेर अपन मात हुनकर चरण मे लगौलक। तेकरा बाद जखन साँझ भऽ गेल त सूर्यास्त भेलापर ओ बालक शिवालय सँ निकैलकय बाहर आयल आर अपन निवास स्थल केँ देखय लागल। ओकर निवास देवता लोकनिक राजा इन्द्र केर निवास समान शोभा पाबि रहल छल। ओतुका सब किछु शीघ्रता सँ सुवर्णमय भऽ गेल रहय, जाहि सँ ओतुका विचित्रतम् शोभा बढि गेल छलय। परम उज्ज्वल वैभव सँ सर्वत्र प्रकाश भऽ रहल छल। ओ बालक सब प्रकार केर शोभादि सँ सम्पन्न ओहि घरक भीतर प्रविष्ट भेल। ओ देखलक जे ओकर माय एकटा अत्यन्त मनोहर पलंग पर सुति रहल छलीह। हुनकर अंग सभ मे बहुमूल्य रत्नादिक गहना सब शोभा पाबि रहल छल। आश्चर्य और प्रेम मे विह्वल ओहि बालक द्वारा अपन माय केँ खूब जोर सँ उठेलक। ओकर माय केँ सेहो भगवान शिव केर कृपा प्राप्त भऽ गेल छलैक। जखन ओ ग्वालिन उठिकय देखलक, तखन ओकरा सब किछु अपूर्व ‘विलक्षण’ सन देखय लेल भेटलैक। ओकर आनन्दक ठेकान नहि रहलैक। ओ भावविभोर भऽ कय अपन पुत्र केँ छाती सँ लगा लेलक।
 
अपन बेटा सँ शिव केर कृपा प्रसाद केर सम्पूर्ण वर्णन सुनिकय ओहि ग्वालिन राजा चन्द्रसेन केँ सूचित केलक। निरन्तर भगवान शिव केर भजन-पूजन मे लागल रहयवला राजा चन्द्रसेन अपन नित्य-नियम पूरा कय रात्रिक समय पहुँचलाह। ओहो भगवान शंकर केँ सन्तुष्ट करयवला ग्वालिन केर पुत्रक ओहि प्रभाव केँ देखलन्हि। उज्जयिनि केँ चारू दिशि सँ घेरकय युद्ध लेल ठाढ ओ राजा लोकनि सेहो अपन गुप्तचर केर मुंह सँ प्रात:काल ओहि अद्भुत वृत्तान्त केँ सुनलनि। एहि विलक्षण घटना केँ सुनिकय सब नरेश आश्चर्यचकित भऽ गेलाह। ओ राजा लोकनि आपस मे बैसार कय केँ पुन: विचार-विमर्श कयलन्हि। एक-दोसरा सँ बातचीत मे ओ सब बजलाज जे राजा चन्द्रसेन महान शिव भक्त छथि, ताहि कारण हिनका ऊपर विजय प्राप्त करब अत्यन्त कठिन अछि। ई सब तरहें निर्भय भऽ कय महाकाल केर नगरी उज्जयिनी केर पालन-पोषण करैत छथि। जखन एहि नगरीक एकटा छोट बालक सेहो एहेन शिवभक्त अछि, तऽ राजा चन्द्रसेन केर महान शिवभक्त भेनाय स्वाभाविके छैक। एहेन राजाक संग विरोध कयलापर निश्चय भगवान शिव क्रोधित भऽ जेताह। शिव केर क्रोध केलापर हमरा लोकनि सब कियो नष्ट हेब्बे टा करब। ताहि सँ हमरा लोकनि केँ एहि नरेश सँ दुश्मनी नहि कयकेँ मेल-मिलाप टा कय लेबाक चाही, जाहि सँ भगवान महेश्वर केर कृपा हमरो लोकनि केँ अवश्य टा भेटत।
 
युद्धक लेल उज्जयिनी केँ घेरनिहार ताहि राजा सभक मन भगवान शिव केर प्रभाव सँ निर्मल भऽ गेलैक आर शुद्ध हृदय सँ सब कियो हथियार राखि देलाह। हुनका लोकनिक मन सँ राजा चन्द्रसेन प्रति बैर भाव निकैल गेल आर ओ महाकालेश्वर पूजन कयलन्हि। ताहि समय परम तेजस्वी श्री हनुमान ओतय प्रकट भऽ गेलाह। ओ ओहि गोप-बालक केँ अपन हृदय सँ लगौलन्हि आर राजा सभक दिशि देखैत बजलाह – “हे राजा लोकनि! अहाँ सब कियो तथा आरो देहधारीगण लोकनि ध्यानपूर्वक हमर बात सुनू। हम जे बात कहब ताहि सँ अहाँ सब गोटाक कल्याण होयत।” एतेक कहिकय हनुमानजी कहलखिन, “शरीरधारी सभक लेल भगवान शिव सँ बढ़िकय अन्य कोनो गति नहि अछि अर्थात् महेश्वर केर कृपा-प्राप्ति टा मोक्ष केर सबसँ उत्तम साधन थिक। ई परम सौभाग्य केर विषय अछि जे ई गोप कुमार शिवलिंग केर दर्शन कयलक आर ताहि सँ प्रेरणा लय केँ स्वयं शिव केर पूजा मे प्रवृत्त भेल। ई बालक कोनो प्रकारक लौकिक अथवा वैदिक मन्त्र नहि जनैत अछि, मुदा ई बिना मन्त्रक प्रयोग कयने अपन भक्ति आ निष्ठाक द्वारा भगवान शिव केर आराधना कयलक आर हुनका प्राप्त कय लेलक। ई बालक आब गोप वंश केर कीर्ति केँ बढ़ाबयवला तथा उत्तम शिवभक्त भऽ गेल अछि। भगवान शिव केर कृपा सँ ई एहि लोक केर सम्पूर्ण भोग आदिक उपभोग करत आर अन्त मे मोक्ष केँ प्राप्त कय लेत। एहि बालक केर कुल मे एकरा सँ आठम पीढ़ी मे महायशस्वी नन्द उत्पन्न होेताह आर हुनकहि ओतय साक्षात् नारायण केर प्रादुर्भाव होयत। ओ भगवान नारायण नन्द केर पुत्रक रूप मे प्रकट भऽ कय श्रीकृष्ण केर नाम सँ जगत मे विख्यात हेताह। ई गोप बालक सेहो, जेकरापर भगवान शिव केर कृपा भेल अछि, ‘श्रीकर’ गोप केर नाम सँ विशेष प्रसिद्धि प्राप्त करत।
 
शिव केर प्रतिनिधि वानरराज हनुमानजी समस्त राजा लोकनि सहित राजा चन्द्रसेन केँ अपन कृपादृष्टि सँ देखलन्हि। तेकर बाद अतीव प्रसन्नताक संग ओ गोप बालक श्रीकर केँ शिवजीक उपासनाक सम्बन्ध मे बतेलन्हि।
 
पूजा-अर्चना केर जे विधि और आचार-व्यवहार भगवान शंकर केँ विशेष प्रिय अछि, सेहो श्री हनुमानजी द्वारा विस्तार सँ कहल गेल। अपन कार्य पूरा कयलाक बाद ओ समस्त भूपाल तथा राजा चन्द्रसेन सँ और गोप बालक श्रीकर सँ विदा लय केँ ओत्तहि तत्काल अर्न्तधान भऽ गेलाह। राजा चन्द्रसेन केर आज्ञा प्राप्त कय सब नरेश सेहो अपन-अपन राजधानी दिशि प्रस्थान कयलन्हि।
 
कहल जाइत अछि जे भगवान महाकाल तहिये सँ उज्जयिनी मे स्वयं विराजमान छथि। हमरा लोकनिक प्राचीन ग्रंथ सभमे महाकाल केर असीम महिमाक वर्णन भेटैत अछि। महाकाल साक्षात राजाधिराज देवता मानल गेलाह अछि।
 
(साभारः अजब-गजब मे पंकज गोयल केर लेख, अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)
 
हरिः हरः!!