जा रहल कतय समाजः ज्योति झा के कविता
कविता
- ज्योति झा, काठमांडू
जा रहल कतय समाजदहेज नै लेब नै देब कहिते कहिते उमेर तिस पार भ' गेलै गे बहिना बेटा बेटी कुमारे रहिगेल...
” दहेज मुक्त विवाहसँ दाम्पत्य जीवनमे सुख आ शांतिक वृद्धि होइत अछि”
-- आभा झा।
लेखनीकेँ धार - समाजकेँ लेल आदर्श विवाह आजुक समय में जतेक जरूरी अछि ओतबे...
“आदर्श शब्द जखन विवशतामे परिणत भ’ जाइत अछि…”
-- कृति नारायण झा।
आदर्श बिवाह केर अर्थ होइत छैक ओ बिवाह जकर समस्त आयोजन मे आदर्श बातावरण उपस्थित...
“आदर्श बिआह ककरा कहल जाए..!”
-- उग्रनाथ झा।
मानव जीवन के सोलह संस्कार में स एकटा संस्कार छै _...
“छटपटाइत मिथिला”
-- उग्रनाथ झा।
मानव जीवन के मुलभूत आवश्यकता में प्रमुख अछि - रोटी ,...
“आखिर कहिया धरि…!”
-- आभा झा।
मिथिलामें वर्तमान समयमें स्वास्थ्य व्यवस्था - अपन मिथिलाकेँ वर्तमान समयमें स्वास्थ्य व्यव्स्थाकेँ स्थिति चरमरायल...
“मिथिलाक लचरल स्वास्थ्य व्यवस्था”
-- कृति नारायण झा।
मनुष्य केर मूलभूत आवश्यकता भोजन, वस्त्र आ आवास के अतिरिक्त चारि-पाँच टा...
गप मारबाक प्रवृत्ति पर प्रवीण गीत
स्वरचित गीत
- प्रवीण नारायण चौधरी
१. गीत
गप मारू मुरारी सब मिल-मिल के
भले मिथिला मरय देखू तिल-तिल के
गप मारू मुरारी.....
गाम छूटल घर छूटल, छूटल भजार
भटकै छी...
“बरसाइत पाबनि केर महत्व”
-- आभा झा।
सावित्री सत्यवानकेँ कथासँ प्राप्त भेल सीख -
वट सावित्री जेठ मासक अमावस्या...
“निष्ठावान आ पतिव्रता स्त्रीक भीतर समाहित अद्वितीय शक्तिक कथा”
-- उग्रनाथ झा।
सावित्रि सत्यवान कथा एक निष्ठावान आ पतिव्रता स्त्री के अंदर समाहित...