NewsIndiaSociety नोकरी करबै, मेम कहेबै चेहरा खिलतो बाउ हो ! By रवीन्द्र भारती - Sep 23, 2017 237 “रविन्द्र भारती” मधुबनी, बिहार, दिनांक २२/०९/२०१७ दिन – शुक्र मैथिलि – रचनाकार “बिभूति आनंद” जी केर कलम सँ, गीते सन, इ अति-सुन्दर प्रेरक रचना “मैथिलि जिंदाबाद” पs पहिल बेर प्रस्तुत अछि, पैढ उचित टिप्पणी करबाक कष्ट करू। मैया के गेहूँ मिललै हय, चावल मिललै हय मैया के तेल के कारण दीया जललै, अपन मड़ैया बाउ हो ! बिभूति आनंद जी केर फेसबुक देवाल सँ हमरो मिललै साइकिल, मिललै हय बेरहट हमरो इसकुल गेली बुद्धी खुललै, पिय’ न दारू बाउ हो ! पढ़बै हमहूँ भैयो पढ़तै, डिरेस पीन्ह के टुपटुप बोलबै नोकरी करबै, मेम कहेबै चेहरा खिलतो बाउ हो ! गेलो आब बितलाहा जिनगी, निरबुद्धी जिनगी आब गेलो सुन’ न तनिका कहै छियो जे, तुहूँ न पढ़हो बाउ हो ! बिभूति आनंद जी केर फेसबुक सँ अपना संगे सपना जीतो, सपना मे फिन सपने जीतो मर गेलो औंठा के जिनगी, मछरी अनहो बाउ हो ! मैथिलि जिंदाबाद पs यदि अपनहु सब किछ रचना प्रकाशित करबइ चाहैत छी तs लिख पठाउ हमर ईमेल पs – [email protected]/ watapps – +919534303907