विचारक कतहु कमी नहि, योगदान देनिहारक घोर अकालः मिथिला आन्दोलन पर विमर्श

विमर्श

– परितोष मिश्र

मिथिला राज्य आन्दोलन An intellectual mistake….. 

मिथिला राज्य आन्दोलन एक असमान्य कालखंड सय गुजरि रहल अछि, रेणु शब्दावली के अनुदित करैत अगर कही त इ “अजगुत आ आत्महंता संजोग” अछि । एहि कालखंड में हमरा सभ के माथक ऊपर कोनो देवता सभ वाला नीलाकाश नहि अछि, ओतय से कोनो आकाशवाणी नहि होमय वाला अछि । मिथिला राज्य आन्दोलन के आकाश में आब ओजोन के फाटल छेद देखा रहल अछि जाहि में हमर सबहक सभ टा सुभ स्वप्न खत्म भय गेल अछि । कई दशक सय मिथिला राज्य आन्दोलन केर वांग्मय आन्दोलाकारी सभ के द्वारा बनाओल भूलभुलैया में भटकि रहल अछि । मिथिला राज्य आन्दोलन फेसबुक रूपी जंतर मंतर के लोकतंत्र, आ दरभंगा मधुबनी के समाजवाद के पाँछा ठनठना रहल अछि जेना की कुक्कुर के नांगरि में बान्हल कोनो खाली कनस्तर । आन्दोलन अप्पन शुरूआती दौर में Savita Jha Khan के शब्द में कहि त नोस्टाल्जिया के काफी हद तक सहारा लय कय आगू बढ़ल ।

मिथिला राज्य आन्दोलन के वर्तमान काल में तमाम शाब्दिक बाण के स्वरूप सभ सय बड़का वीभत्स सत्य सामने आबि गेल अछि । मिथिला राज्य आन्दोलन (“आई कमिट टू द फ्लेम” हे तमाम दर्शन हम अहाँ केँ अग्नि के समर्पित करैत छी) केर लेल एक पंक्ति एतेक अमोघ आ अपरिहार्य भय जायेत या इ कही जे भय गेल अछि ।

कनि दिन पाहिले जग्गनाथ पूरी गेल रही, ओतय गोवर्धन मठ के शंकराचार्य सय भागवत कथा में एक टा श्लोक व्याख्या सहित सुनलौं
“वक्ता श्रोता च वाक्यं च सदा त्वकिलं नृप, सममेति विद्यायां तदा सोर्थे प्रकाशते” – अर्थात् हे राजन बोलने वाले की इक्छा होने पर जब वक्ता श्रोता और वाक्य तीनों अविकल भाव से सम स्थिती में आतें हैं तब वक्ता द्वारा कहा हुआ वाक्य प्रकाशित होता है । पृथक मिथिला राज्य आन्दोलन अप्पन उत्तरोत्तर अओर अनगढ़ आधुनिकता के वर्तमान समय में कखनो उपरोक्त स्थिति में नहि आयेल । मिथिला आन्दोलनकारी केँ हजार बेर कहला के बादो हुनकर वक्तव्य प्रकाशित नहि भेल कारण वक्ता, श्रोता और वाक्य सम भाव में कहियो नहि आयेल । आन्दोलन के मंच सय कहल गेल तमाम शब्द नीललोहित (अति जामुनी) तितली बनि कय हुनके मंच पर लौटि कय धीरे धीरे मृतप्राय भय जाएत अछि ।

पृथक मिथिला राज्य आन्दोलन अप्पन निर्माण में स्वयं दुत्तल्ला ठाढ़ केलक । पहिल त सामने सय टोटल दार्शनिक आ दोसर तल्ला के निर्माण अव्यवहारिक, अप्रासंगिक, बिना लक्ष्यबेधि खिड़की के संग । मिथिला राज्य आन्दोलन केँ “दार्शनिक गोल्डन रुल” में थ्रू द लूकिंग ग्लास के ध्यान अबैत अछि ग्लोरी (गरिमा) शब्द के ल का बहस भय रहल अछि….. एलिस…. You know what I mean ओतय बात काईट कय हंमटी-डंपटी कहैत अछि.. It means that you choose it to mean- neither more nor less! एहि उपन्यास में आगाँ चलि कय एक टा विलक्षण वाक्य अछि.. But the rule is Jam yesterday and Jam tomorrow but never jam today । 

हमारा भीतर के “डिस्टोपीया कहि वा नचिकेता” इ पुछय चाहैत अछि की Pravin Narayan Choudharyजी के मंच सय Dhanakar Thakur जी, Uday Shanker Mishra, बैजू जी केँ दलाल आ धनाकर ठाकुर जी केर मंच स प्रवीण जी के दलाल एवं अप्पन आन्दोलन के अलावा सभ आन्दोलाकारी के तथाकथित सामजिक-असामाजिक, अभ्यागत-अनागत, चोर-बनोर, इत्यादि शब्द केँ रोकि कय कोनो बीच के स्पेस बनाबय के चाही । कोनो आदमी अप्पन कन्हा पर अपने नहि चढ़ि सकैत अछि मुदा दोसर कनहा के पाछाँ सय फूफ्कारी त दय सकैत अछि जाहि सय लोक डेरा कय दूर रहय । मिथिला राज्य आन्दोलन में पता नहि कि चलि रहल अछि जे के मुंह अछि आ के मुखौटा । के नहिं जनैत अछि मिथिला आन्दोलन में 

  • डॉ. धनाकर ठाकुर
  • श्री बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ 
  • डॉ. भुबनेश्वर प्रसाद गुरुमैता
  • डॉ. कमलकान्त झा 
  • श्री उदयशंकर मिश्र
  • प्रो. अमरेन्द्र झा 
  • श्री शिशिर झा 
  • श्री रत्नेश्वर झा
  • श्री कृपानंद झा 
  • श्री प्रवीण नारायण चौधरी इत्यादि महाभाग सभ नहिं रहितैथ त इ आन्दोलन उपयुक्त, शशक्त आ जनसामान्य सय जुड़ल होइत ।लेकिन सच्चाई त इहो अछि जे एहि आन्दोलन में इ सभ गोटे नहि रहितैथ त एतेक अजगुत, विचारणीय, विलक्षण, वैचित्रमयी नहि रहैत । गौर करबाक गप्प थिक मिथिला राज्य आन्दोलन में आन्दोलनकारी लोकनि के विशेषज्ञता और होमय वाला मैथिल राज्य के जनता के अनभिज्ञता के बीच के आवागमन के विलक्षण सुरंग के खोजि कय निकालय पड़त । एहि लेल हमारा अहाँ के प्रेमचंद के सलाह लिय पड़त । प्रेमचंद रंगभूमि में लिखैत छथि जे “विशेषज्ञों में एक संकीर्णता होती है जो उनकी दृष्टि को सिमित रखती है, वे किसी विषय पर स्वाधीन होकर विस्तृत दृष्टि नहीं डाल सकतें हैं । नियम सिद्धांत परम्परागत व्यवहार और भेदोपभेद केर चिंता मिथिला राज्य आन्दोलन आन्दोलन केँ फैलय नहीं दय रहल अछि, सहजबुद्धि लोक अगर सूक्ष्मदर्शी नहि होइत अछि त संकुचित सेहो नहि होइत अछि । डा. Kailash Kumar Mishra सौ बात के एक बात कहैत छथि आन्दोलन के सहजबुद्धि होबाक चाही । अगर अहाँ मिथिला राज्य आन्दोलन के हाथ थामि दू डेग चलय के कोशिश करब त लागत जे एतेक औचक क्रासिंग, भूलभुलैया, आ उत्पाटित दिशाभ्रम लागत जे सभ गडड-मड्ड भ जायत । मिथिला राज्य आन्दोलन के विमर्श स उत्पन्न एतेक शाखा-प्रशाखा भ गेल अछि जे पता नहि चलि रहल अछि जे के जड़ि छैथ, आ के तना, आ ओहि में स सभ तन-तना रहल छथि । कहबी छैक “जतय विमर्शरूपी जंगल अत्यधिक भ जैत अछि ओतय उद्देश्य रास्ता भटकि जैत अछि” । मिथिला राज्य आन्दोलन केर कुशल-क्षेम पुछय वाला आन्दोलन सय ज्यादा नमहर बनाबय पड़त । मिथिला आन्दोलनकारी सभ सय आग्रह….. All things have been already said, as nobody listen, It is necessary to begin again!

परितोष मिश्र केँ प्रवीण नारायण चौधरी द्वारा कहल गेल विचार निम्न अछिः

(नोटः परितोष मिश्र स्वतंत्र विचारक होयबाक संग-संग भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक दल केर कार्यकर्ता सेहो छथि आर एखन धरि राजनीतिक दल केर मिथिला प्रति कि सोच अछि ताहि पर विचार नहि लिखि सकला अछि। परन्तु मैथिली-मिथिला केर विभिन्न विषय पर लिखब-सोचब मातृभूमि प्रति समर्पण केर प्रक्रियाक रूप मे हम मानैत छी। – प्रवीण नारायण चौधरी)

प्रिय परितोष मिश्र जी,

मिथिला राज्य आन्दोलन पर अहाँ अपन बौद्धिकता सँ परिचर्चा शुरु कएलहुँ, हमरा एकटा पार्टी (पार्ट) मनलहुँ, सब बात केँ समग्रता मे समेटबाक चेष्टा कयलहुँ, ई सब बात हमरा काफी मार्मिक लागल। विमर्श होयब कोनो बेजा बात नहि छैक, आर यैह टा आन्दोलनक सफलता थिकैक। जाहि प्रकृतिक आन्दोलन ‘मिथिला राज्य’ लेल भऽ रहलैक अछि ताहि मे अहीं जेकाँ ‘टन्ना-दुक्खा’ अपन बौद्धिक विमर्श सब करैत रहथिन, एतबे सँ संतोष करू।
 
शुरु-शुरु मे हम राज्य अलग करबाक पक्ष मे नहि रही। ज्ञानक अभाव बुझू! हमरा राज्य गठनक इतिहास पते नहि छल। फेर जखन अध्ययन गहिंर भेल त दिमाग मे ई बैसि गेल जे संघीय गणराज्य भारत हो अथवा संघीयता लेल संघर्षरत नेपाल (तहिया) – मिथिला केँ राज्य रूप मे मान्यता देनाय अनिवार्य छैक – नहि त ई सभ्यता धीरे-धीरे लिपि केर लोप होयबा जेकाँ विलुप्त भऽ जेतैक। राज्यविहीनता सँ एतुका सब वैशिष्ट्य लगभग मृतप्राय छैक। वगैर राज्य मूल्य केँ बचेनाय एतय संभव ओहिना नहि छैक जेना आर्थिक पूर्वाधार, सरकारी संरचना आदि केँ अपने मिथिलाक लोक द्वारा नष्ट करबाक प्रवृत्तिक कारण नहि बचायल जा सकलैक। लोक अपन घर-बार छोड़ि सीधे परदेश जाय संघर्ष करैत २ पाइ मजूरी कमा परिवारक रक्षा करय लेल बाध्य छैक आइ। प्रकृति सेहो परिवर्तित होएत चलि गेलैक अछि धीरे-धीरे।
 
मिथिला आन्दोलन मे लागल लोक केँ हम ‘गद्दार’ कहियौक, अथवा फझीहत करियौक, ई गलत आरोप अछि अहाँक। हम सब केँ नमन करैत छी, करैत रहब। विरोध कार्यशैलीक होएत छैक। आर से करब गलत नहि छैक खासकय तखन जखन हम ओहि कार्यशैली केँ अपन अलग शैली सँ सुधार कय सकी। धनाकरजी संग १० दिसम्बर २०१२ जन्तर-मन्तर पर जखन अपने मे कहा-सुनीक घटना सुनलहुँ त हम दिल्ली मे युवा सब केँ एहि दिशा मे सहयोग करबाक जे अपील कएने रही ताहि चलते स्वयं जिम्मेवारी लैत ८ जनवरी, २०१३ केर मिथिला चौकक ‘कन्नारोहट कार्यक्रम’ सँ एकटा निश्चित रूपरेखाक संग एहि आन्दोलन मे अपन सक्रिय योगदान देबाक निस्तुकी केने रही। तहिया सँ आइ धरि अपन योगदान दैत जतेक संभव भेल अछि करैत रहल छी, करैत रहब।
 
आन्दोलनक कमजोरी
 
१. हमर अनुभव कहैत अछि जे कियो संगठन प्रमुख एक-दोसर केँ गारि नहि पढैत अछि। अपन कमजोरी नुकेबाक लेल दोसर पर आंगूर ठाढ करबाक प्रवृत्ति हावी अछि हमरा सब पर।
 
२. संगठन केँ माटि पकड़ेबाक कूब्बत केकरो नहि भेलैक अछि एखन धरि।
 
३. कनिकबा टा सफलता भेटला पर फूइल कय कूप्पा होयबाक मानसिकता सँ हारैत छी हम सब।
 
४. जमीन पर मौजूद कार्यकर्ता आ नेता केँ एहि मुद्दा लेल जिम्मेदारी आ संगठन कार्यशैली तय नहि कएल जा सकल अछि।
 
५. संगठन पर मात्र किछु अगुआ अपन मजबूत पकड़ बनेबाक लेल आतूर रहबाक कारण सिद्धान्त सँ समझौता करैत अछि।
 
६. आर्थिक अवस्था केकरो सुदृढ नहि छैक। आ नहिये ताहि तरहक कोनो दीर्घकालीन स्रोत आदि बनि सकलैक अछि आन्दोलन संचालन हेतु।
 
७. काज शून्ना आ बाजब दून्ना – एम्टी वेसेल्स साउन्ड मच केर हालत छैक।
 
८. मुद्दा एखन धरि जनमानस केर भावना मे मैसिव स्केल पर प्रवेश नहि पेलक अछि। आर यैह कारण थिकैक जे कतेको लोक राज्य बनत तेकरा असंभव मानैत अछि।
 
९. समीक्षा आ प्रतिक्रिया देनिहार बेसी, मुदा योगदान देनिहार कतहु नहि। अहाँक अपनहि पोस्ट पर देख लेब, आखिरकार यैह प्रवृत्ति सिद्ध होयत।
 
कतेक गनाउ….!
 
व्यक्तिगत रूप सँ हम ‘नेता’ बनबाक लेल एहि मुद्दा केँ कहियो नहि समर्थन कएलहुँ। ई अपरिहार्य आ नितान्त जरुरी मानैत छी – कारण एहि सँ मिथिलाक वैशिष्ट्य केर रक्षा होयत आ आर्थिक विकासक संग-संग समृद्ध भूगोल पूर्वहि जेकाँ ‘मिथिलादेश’ केर रूप मे रहत।
 
एहि दिशा मे हमर अन्तिम प्रयास ‘मिथिला राज्य निर्माण सेना’ अछि। मुदा ओत्तहुँ किछु स्वार्थी तत्त्व बेर-बेर ‘पदाधिकारी’ बनय लेल कूचक्र करैत अछि आर पदक चक्कर मे ई संगठन माटि पकड़ैत-पकड़ैत बिगैड़ जाएत अछि। तथापि, प्रयास जारी अछि आ रहत। सफल होयब एक दिन।
 
हरिः हरः!!