मिथिलाक एक अति विशिष्ट जातीय समुदायः भूमिहार

आलेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

भूमिहार – जन्म सँ ब्राह्मण मुदा कर्म सँ क्षत्रीय

बिहार निर्माण आ संवरण मे उल्लेखनीय भूमिका निर्वाह कएनिहार एक सँ बढिकय एक कुलीन आ विद्वान् वेत्ता व विशिष्ट व्यक्तित्व केर राज्य संचालनक तिनू निकाय मे बेजोड़ दखल देखल जाएत अछि, ओ समुदाय ‘भूमिहार’ जातीय पहिचान रखैत अछि। सुन्दर संयोग अछि जे डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव केर पोथी लोक-संस्कृति कोश (मिथिला खंड) केर अध्ययन कय रहल छी आर एहि मे आजुक अध्ययन ‘भूमिहार’ पर केन्द्रित अछि। आउ किछु महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करी एहि विशिष्ट जातीय पहिचान सम्बन्ध मे।
 
द्विज केर एक जाति विशेष – भूमिहार शब्द केर व्युत्पति मे १. भूमैः हारः इति भूमिहारः – अर्थात् जे पृथ्वीक शोभा अछि, ओकरा भूमिहार कहल जाएछ। २. भूमेः हृणोति यः स भूमिहारः – यानि भूमि केर मंथन कएनिहार केँ भूमिहार कहल जाएत अछि। “दशविध ब्राह्मण संहिता” – पृष्ठ ३९ पर उल्लेख कएल गेल अछि जे कान्यकुब्ज ब्राह्मणक पाँच भेद मे सँ एक भेद ईहो थिक।
 
सर्यूपारी सनाढ़याश्च भूमिहारो जिझौतियाः।
प्रकृतश्च कान्यकुब्जानां भेदो पञ्च प्रकीर्तितः॥
 
“हिस्ट्री अफ इन्डियन रेसेज” (वाल्युम-१) केर मुताबिक भूमिहार शस्त्रधारी सैनिक जेहेन जीवन जिबयवलाी जाति थिक। प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान् शेरिंग अपन प्रख्यात ग्रन्थ “हिन्दू कास्ट्स एण्ड ट्राइब्स” केर पृष्ठ संख्या २३-३९ पर उल्लेख कएलनि अछि जे ‘भूमिहार सरबरिया दलक अंग’ थिक। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन सेहो भूमिहार केँ श्रेष्ठ जाति मध्य विलक्षण मानलनि अछि। ओ अपन पुस्तक “नोट्स अन द डिस्ट्रिक्ट अफ गया” (१८८३) मे एहि जातिक विस्तृत चर्चा कएने छथि।
 
विभिन्न आलेख व शोध आदिक आधार पर जातीय गुण-अवगुण-विशेषताक अध्ययन अनुरूप विद्वान् वेत्ता लोकनि भूमिहार जातिक लोक केँ ‘जन्मना ब्राह्मण तथा कर्मणा क्षत्रिय’ कहलनि अछि। आरम्भहि सँ अयाचकता ग्रहण करैछ भूमिहार वंशीय पुरुष। श्रमशीलता, कृषि-कर्म तथा भूमि व्यवस्था मे एहि जातिक लोक निपुण होएछ। ई सब भूमि आर जनेऊ (यज्ञोपवित) केँ एकसमान महत्व दैछ। भूमिहार कुलोद्भुत क्षत्रिय कर्मा परशुराम द्वारा ब्राह्मणत्व केर तेज केँ प्रदीप्त करबाक निमित्त संकल्प लय केँ तत्कालीन क्षत्रिय सभक अत्याचार सँ समाज केँ मुक्त करबाक काज कएने छलाह। एहि क्रम मे हुनका द्वारा एक्कैस बेर क्षत्रिय राजा संग युद्ध कयकेँ पराजित करबाक बहुत रास आख्यान सब भेटैत अछि। परशुरामजी भूमिहार वंशक ‘आदिपुरुष’ मानल जाएत छथि।
 
मिथिला मे सेहो अदौकाल सँ परशुरामवंशी भूमिहारक संख्या निवास करैत आबि रहल अछि। राजा जनक पर्यन्त परशुरामक प्रिय छलाह। हुनक राज्य मिथिला मे परशुरामपूजक केर संख्या उल्लेख्य होयब स्वाभाविके बुझल जा सकैत छैक। धनुष भंग प्रकरण मे परशुराम जी केँ पूर्व जनतब नहि भेटबाक कारणे ओ क्रोधित भेल छलाह, कारण ओ पिनाक नामक शिवधनुष वैह राजा जनक केँ धरोहर समान रखबाक लेल उपहार रूप मे देने छलाह। राजा जनक केर गोसाउनिक घर मे ओ धनुष सम्मानित ढंग सँ राखल गेल छल। भगवती घर निपबाक क्रम मे कुमारि सीता ओहि धनुष केँ बाम हाथ सँ उठा लेने छलीह जाहि दृश्य केँ देखि महारानी सुनयना आ महाराज जनक अपन वीरांगना बेटी लेल तेहने महान वीर राजकुमार संग विवाह करबाक लेल ठनने छलाह जे ओहि धनुष केँ भंग कय सकत। आर राम जखन ओ धनुष केँ भंग कय देलनि ताहि क्षण परशुराम ओतय अबैत धनुष-भंगक बात बुझैत छथि त एक बेर तमसा उठैत छथि, लक्ष्मणजी संग बहस से भऽ जाएत छन्हि – लेकिन श्रीराम द्वारा मर्यादित रूप सँ हुनका बुझेला उपरान्त ओ साक्षात् परमपिता नारायणक दर्शन कय सम-शान्त होएत ओतय सँ प्रस्थान कय जाएत छथि। मिथिला मे भूमिहारक आदिपुरुष केर आरो विभिन्न गाथा होयत, लेकिन ई प्रसंग किछु बेसिये प्रसिद्ध अछि।
 
डा. श्रीवास्तव बड़ा रोचक ढंग सँ लिखैत छथि जे मिथिला मे एकटा प्रचलित कहावत अछि, “धान आ बाभन (भूमिहार) केर किसिम अनगिनत होएछ”। एतय बाभन शब्द भूमिहार लेल प्रयुक्त अछि। हलाँकि आब ई बाभन शब्द ब्राह्मणक अपभ्रंशक रूप मे बेसी प्रचलित होएत आम कर्मकांडहीन ब्राह्मण जातिक लोक लेल सेहो ओतबे प्रयुक्त होएत अछि। लेकिन एहि शब्दक यथार्थ प्रयोग परशुरामवंशी भूमिहार लेल रहल उपरोक्त कहावत सँ सिद्ध होएछ। भूमिहार बाभनक प्रचलित गोत्र जे मिथिला मे भेटैत अछिः हारित, सूर्यगेण, द्रोणवार, पिलिअबार, यससियार, मालवे, शेरियार, विश्वामित्र, वात्स्यायन, आदि प्रमुख अछि। माउर (मुंगेर) निवासी श्रीबाबू (श्रीकृष्ण सिंह) – बिहारक पहिल मुख्यमंत्री शेरियार कुल केर छलाह। एहि कुलक मुख्य केन्द्र तोयगढ (बरबीघा) मानल जाएत अछि। ‘शेरेशिरियार बारहगाँव’ कहावत सेहो खूब प्रचलित अछि।
 
बुकानन हेमिल्टन अपन ‘दिनाजपुर-वृत्तांत’ केर पृष्ठ संख्या २० पर बंगालक पालवंशी राजा केँ ‘भुंगिया’ अथवा ‘भुजियार’ बतौलनि अछि, संगहि ईहो स्पष्ट कएलनि अछि जे काशी आ बेतियाक राजा ओही जातिक छथि। प्रकारान्तर सँ ओहो हिनका लोकनिक भूमिहार होयबाक संकेत कएने छथि। तहिना अपन ‘पुर्णियां वृत्तांत’ केर पृष्ठ संख्या ४० पर ओ एहि बात केँ दोहरौने छथि। अकबर केर नवरत्न मे ‘टोडरमल’ सेहो भूमिहारकुलीन छलाह जे पूरे मुगल सम्राज्य केर भूमिक प्रथमतः सर्वे (पैमाइश) करौने छलाह।
 
भारतक स्वतंत्रता आन्दोलन मे भूमिहार जातिक बहुत अहम् भूमिका देखल गेल अछि। बिहार केसरी डा. श्रीकृष्ण सिंह, मिथिला गौरव श्री रामचरित्र सिंह, श्री महेश प्रसाद सिंह, सर चन्देश्वर प्रसाद नारायण सिंह, श्री लंगट सिंह, सर गणेशदत्त सिंह, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’, साहित्यकार एवं प्रखर समाजवादी रामवृक्ष बेनीपुरी, प्रभृत्ति सुविख्यात लोक सब एहि कुल केर रहला अछि।
 
रामभक्ति शाखाक रामावत सम्प्रदायक वैष्णव भक्त मे भूमिहारक संख्या बेसी देखल जाएत अछि। समाजवाद और आध्यात्म बीच समन्वयकर्ता तथा ‘अखिल भारतीय किसान सभा’ केर प्रवर्तक स्वामी सहजानन्द सरस्वती सेहो एहि कुल मे भेलाह। हुनका द्वारा ‘ब्रह्मर्षि-वंश-विस्तार’ नामक ग्रन्थ मे भूमिहारक भिन्न-भिन्न शाखाक नाम गनायल गेल अछि – यथा, तिरहुत मे ‘पछिमा’, मगध मे ‘बाभन’, बनारस मे ‘भूमिहार-ब्राह्मण’ तथा उत्तर प्रदेश केर अन्य क्षेत्र मे ‘त्यागी’, पंजाब मे ‘महियाल’, कश्मीर मे ‘पंडित’, महाराष्ट्र मे ‘चितपावन’, गुजरात मे ‘सिपाहीनागर’, उड़ीसा मे ‘सलुआ’, राजस्थान मे ‘गोलापूरब’, आदि।
 
भूमिहार केर नामान्तक अनेकों उपाधि जे प्रचलित अछि – यथा, तिवारी, चौबे, सिंह, शुक्ल, शाही, ठाकुर, मिश्र, पाण्डेय, झा, ओझा, दूबे, द्विवेदी, राय, चौधरी, देव, ईशर, उपाध्याय आदि। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक सेहो महाराष्ट्रीय ‘चितपावन’ भूमिहार कुल मे जन्म लेने छलाह, कियैक तँ ओ काशीक एक सार्वजनिक सभा (१९१६ ई.) मे स्वयं घोषणा कएने छलाह – “हमहुँ वैह वंशक छी जाहि वंशक काशी नरेश छथि।” काशी नरेशक भूमिहार कुलक होयब सर्वविदिते अछि – प्रताप नाम्ना पत्रिका जे कानपुर सँ १९१६ ई. मे प्रकाशित भेल छल ताहि मे एकर उल्लेख भेटैत अछि। सुविख्यात समाजवादी चिन्तक एवं जुझारू नेता श्री राजनारायण सेहो एहि कुल केर प्रख्यात पुरुष छलाह। भूमिहार जातिक बौद्धिक विशेषता प्रसिद्ध अछि। मिथिलाक लोकमानस मे एकटा लोकोक्ति जे हास-परिहास मे बेसी प्रयोग कएल जाएछ “भूमिहारी बेसी नहि सिखाउ”, ईहो भूमिहार वंशक लोकक बौद्धिक सामर्थ्य किछु विशिष्ट होयबाक बात केँ सिद्ध करैत अछि। पटना, आरा, छपरा, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, मुंगेर – एहि सब क्षेत्र मे भूमिहार आ भूमिहारी सँ जुड़ल अनेको गाथा आ हास-परिहासक लोकोक्ति सब सेहो एहि जाति विशेषक आन्तरिक सामर्थ्यक परिचायक मानल जा सकैछ। संपूर्ण भारत मे आ खासकय बिहार-झारखंड मे लगभग सब निकाय मे एहि समुदायक हस्ती सब राज्य संचालनक मुख्य जिम्मेवारी सम्हारने भेटिते टा छथि।
 
हरिः हरः!!