मिथिलाक एक अति विशिष्ट जातीय समुदायः भूमिहार
आलेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
भूमिहार – जन्म सँ ब्राह्मण मुदा कर्म सँ क्षत्रीय


सर्यूपारी सनाढ़याश्च भूमिहारो जिझौतियाः।
प्रकृतश्च कान्यकुब्जानां भेदो पञ्च प्रकीर्तितः॥
“हिस्ट्री अफ इन्डियन रेसेज” (वाल्युम-१) केर मुताबिक भूमिहार शस्त्रधारी सैनिक जेहेन जीवन जिबयवलाी जाति थिक। प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान् शेरिंग अपन प्रख्यात ग्रन्थ “हिन्दू कास्ट्स एण्ड ट्राइब्स” केर पृष्ठ संख्या २३-३९ पर उल्लेख कएलनि अछि जे ‘भूमिहार सरबरिया दलक अंग’ थिक। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन सेहो भूमिहार केँ श्रेष्ठ जाति मध्य विलक्षण मानलनि अछि। ओ अपन पुस्तक “नोट्स अन द डिस्ट्रिक्ट अफ गया” (१८८३) मे एहि जातिक विस्तृत चर्चा कएने छथि।

मिथिला मे सेहो अदौकाल सँ परशुरामवंशी भूमिहारक संख्या निवास करैत आबि रहल अछि। राजा जनक पर्यन्त परशुरामक प्रिय छलाह। हुनक राज्य मिथिला मे परशुरामपूजक केर संख्या उल्लेख्य होयब स्वाभाविके बुझल जा सकैत छैक। धनुष भंग प्रकरण मे परशुराम जी केँ पूर्व जनतब नहि भेटबाक कारणे ओ क्रोधित भेल छलाह, कारण ओ पिनाक नामक शिवधनुष वैह राजा जनक केँ धरोहर समान रखबाक लेल उपहार रूप मे देने छलाह। राजा जनक केर गोसाउनिक घर मे ओ धनुष सम्मानित ढंग सँ राखल गेल छल। भगवती घर निपबाक क्रम मे कुमारि सीता ओहि धनुष केँ बाम हाथ सँ उठा लेने छलीह जाहि दृश्य केँ देखि महारानी सुनयना आ महाराज जनक अपन वीरांगना बेटी लेल तेहने महान वीर राजकुमार संग विवाह करबाक लेल ठनने छलाह जे ओहि धनुष केँ भंग कय सकत। आर राम जखन ओ धनुष केँ भंग कय देलनि ताहि क्षण परशुराम ओतय अबैत धनुष-भंगक बात बुझैत छथि त एक बेर तमसा उठैत छथि, लक्ष्मणजी संग बहस से भऽ जाएत छन्हि – लेकिन श्रीराम द्वारा मर्यादित रूप सँ हुनका बुझेला उपरान्त ओ साक्षात् परमपिता नारायणक दर्शन कय सम-शान्त होएत ओतय सँ प्रस्थान कय जाएत छथि। मिथिला मे भूमिहारक आदिपुरुष केर आरो विभिन्न गाथा होयत, लेकिन ई प्रसंग किछु बेसिये प्रसिद्ध अछि।
डा. श्रीवास्तव बड़ा रोचक ढंग सँ लिखैत छथि जे मिथिला मे एकटा प्रचलित कहावत अछि, “धान आ बाभन (भूमिहार) केर किसिम अनगिनत होएछ”। एतय बाभन शब्द भूमिहार लेल प्रयुक्त अछि। हलाँकि आब ई बाभन शब्द ब्राह्मणक अपभ्रंशक रूप मे बेसी प्रचलित होएत आम कर्मकांडहीन ब्राह्मण जातिक लोक लेल सेहो ओतबे प्रयुक्त होएत अछि। लेकिन एहि शब्दक यथार्थ प्रयोग परशुरामवंशी भूमिहार लेल रहल उपरोक्त कहावत सँ सिद्ध होएछ। भूमिहार बाभनक प्रचलित गोत्र जे मिथिला मे भेटैत अछिः हारित, सूर्यगेण, द्रोणवार, पिलिअबार, यससियार, मालवे, शेरियार, विश्वामित्र, वात्स्यायन, आदि प्रमुख अछि। माउर (मुंगेर) निवासी श्रीबाबू (श्रीकृष्ण सिंह) – बिहारक पहिल मुख्यमंत्री शेरियार कुल केर छलाह। एहि कुलक मुख्य केन्द्र तोयगढ (बरबीघा) मानल जाएत अछि। ‘शेरेशिरियार बारहगाँव’ कहावत सेहो खूब प्रचलित अछि।
बुकानन हेमिल्टन अपन ‘दिनाजपुर-वृत्तांत’ केर पृष्ठ संख्या २० पर बंगालक पालवंशी राजा केँ ‘भुंगिया’ अथवा ‘भुजियार’ बतौलनि अछि, संगहि ईहो स्पष्ट कएलनि अछि जे काशी आ बेतियाक राजा ओही जातिक छथि। प्रकारान्तर सँ ओहो हिनका लोकनिक भूमिहार होयबाक संकेत कएने छथि। तहिना अपन ‘पुर्णियां वृत्तांत’ केर पृष्ठ संख्या ४० पर ओ एहि बात केँ दोहरौने छथि। अकबर केर नवरत्न मे ‘टोडरमल’ सेहो भूमिहारकुलीन छलाह जे पूरे मुगल सम्राज्य केर भूमिक प्रथमतः सर्वे (पैमाइश) करौने छलाह।
भारतक स्वतंत्रता आन्दोलन मे भूमिहार जातिक बहुत अहम् भूमिका देखल गेल अछि। बिहार केसरी डा. श्रीकृष्ण सिंह, मिथिला गौरव श्री रामचरित्र सिंह, श्री महेश प्रसाद सिंह, सर चन्देश्वर प्रसाद नारायण सिंह, श्री लंगट सिंह, सर गणेशदत्त सिंह, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’, साहित्यकार एवं प्रखर समाजवादी रामवृक्ष बेनीपुरी, प्रभृत्ति सुविख्यात लोक सब एहि कुल केर रहला अछि।
रामभक्ति शाखाक रामावत सम्प्रदायक वैष्णव भक्त मे भूमिहारक संख्या बेसी देखल जाएत अछि। समाजवाद और आध्यात्म बीच समन्वयकर्ता तथा ‘अखिल भारतीय किसान सभा’ केर प्रवर्तक स्वामी सहजानन्द सरस्वती सेहो एहि कुल मे भेलाह। हुनका द्वारा ‘ब्रह्मर्षि-वंश-विस्तार’ नामक ग्रन्थ मे भूमिहारक भिन्न-भिन्न शाखाक नाम गनायल गेल अछि – यथा, तिरहुत मे ‘पछिमा’, मगध मे ‘बाभन’, बनारस मे ‘भूमिहार-ब्राह्मण’ तथा उत्तर प्रदेश केर अन्य क्षेत्र मे ‘त्यागी’, पंजाब मे ‘महियाल’, कश्मीर मे ‘पंडित’, महाराष्ट्र मे ‘चितपावन’, गुजरात मे ‘सिपाहीनागर’, उड़ीसा मे ‘सलुआ’, राजस्थान मे ‘गोलापूरब’, आदि।
भूमिहार केर नामान्तक अनेकों उपाधि जे प्रचलित अछि – यथा, तिवारी, चौबे, सिंह, शुक्ल, शाही, ठाकुर, मिश्र, पाण्डेय, झा, ओझा, दूबे, द्विवेदी, राय, चौधरी, देव, ईशर, उपाध्याय आदि। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक सेहो महाराष्ट्रीय ‘चितपावन’ भूमिहार कुल मे जन्म लेने छलाह, कियैक तँ ओ काशीक एक सार्वजनिक सभा (१९१६ ई.) मे स्वयं घोषणा कएने छलाह – “हमहुँ वैह वंशक छी जाहि वंशक काशी नरेश छथि।” काशी नरेशक भूमिहार कुलक होयब सर्वविदिते अछि – प्रताप नाम्ना पत्रिका जे कानपुर सँ १९१६ ई. मे प्रकाशित भेल छल ताहि मे एकर उल्लेख भेटैत अछि। सुविख्यात समाजवादी चिन्तक एवं जुझारू नेता श्री राजनारायण सेहो एहि कुल केर प्रख्यात पुरुष छलाह। भूमिहार जातिक बौद्धिक विशेषता प्रसिद्ध अछि। मिथिलाक लोकमानस मे एकटा लोकोक्ति जे हास-परिहास मे बेसी प्रयोग कएल जाएछ “भूमिहारी बेसी नहि सिखाउ”, ईहो भूमिहार वंशक लोकक बौद्धिक सामर्थ्य किछु विशिष्ट होयबाक बात केँ सिद्ध करैत अछि। पटना, आरा, छपरा, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, मुंगेर – एहि सब क्षेत्र मे भूमिहार आ भूमिहारी सँ जुड़ल अनेको गाथा आ हास-परिहासक लोकोक्ति सब सेहो एहि जाति विशेषक आन्तरिक सामर्थ्यक परिचायक मानल जा सकैछ। संपूर्ण भारत मे आ खासकय बिहार-झारखंड मे लगभग सब निकाय मे एहि समुदायक हस्ती सब राज्य संचालनक मुख्य जिम्मेवारी सम्हारने भेटिते टा छथि।
हरिः हरः!!
Nov 16, 2017 - 8:51 am
Your news is completely on Castism and Hattism . you should avoid that
Nov 16, 2017 - 1:26 pm
Kindly write your detailed views – I could not understand what you want to say with castism or hattism… sorry indeed. It is just an article and that has to say whatever read/learned about one very popular caste “Bhumihar”. You may raise points of objection rather than judging it.