श्रीरामचन्द्रजी समान दयानिधान स्वामी कतहु नहि भेटतः रामचरितमानस सँ सीख – १६

रामचरितमानस सँ सीख केर शृंखलाबद्ध स्वाध्याय मैथिली जिन्दाबाद पर

स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – १६

आइ महाकवि तुलसीदासजी रामचरितमानस मे सेवक आर स्वामीक सम्बन्ध मे भक्तिक महत्व पर प्रकाश देलनि अछि। ई लोक हो अथवा परलोक हो, सेवक भाव सँ स्वामी प्रति समर्पण केर महत्व बहुत पैघ छैक। सेवक केर प्रेम आ समर्पण केर महत्व बहुत बेसी होएत छैक। बाकी ओकर कमजोरी, ओकर दुर्गुण, ओकर पाप इत्यादि स्वामी स्वतः दूर करैत जाएत छथिन। किछु एहि तरहक मर्म सब केँ महाकवि तुलसीदास स्वयं केँ सेवक आ श्रीरामचन्द्रजी केँ स्वामीक रूप मे एतय रखलाह अछि। हम सब सेहो तुलसीदासजीक समान सेवक छी, स्वामी स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्रजी छथि आर एहि पृथ्वी पर सेहो जे कियो हमरा लोकनिक मालिक छथि तिनको हम सब रामचन्द्रजी समान बुझि अपन लौकिक व्यवहार करैत प्रेमपूर्ण जीवन जीबि रहल छी। आउ देखी, आइ १६म भाग केर रामचरितमानस सँ कि सब सीखबाक लेल भेटैत अछि।

रामचरितमानस सँ सीख – १६

१. नीक भाव – प्रेम सँ, खराब भाव – वैर सँ, क्रोध सँ या आलस्य सँ – कोनो भि तरहें नाम जप केला सँ दसों दिशा मे कल्याणे-कल्याण होएत छैक।
 
२. राम केर कृपा कखनहु कृपा करय सँ नहि अघाएत छैक। राम समान उत्तम स्वामी आर हमरा समान बेकार – खराब सेवक, तखनहु ओ दयानिधि अपन दिशि देखिकय हमर पालन केलनि अछि।
 
३. लोक तथा वेद मे सेहो नीक मालिक केर यैह रीति प्रसिद्ध छैक जे ओ विनय सुनिते देरी प्रेमक भाव बुझि जाएत छथिन।
 
४. धनिक-गरीब, गमैया-बहरिया, पण्डित-मूर्ख, बदनाम-यशस्वी, सुकवि-कुकवि, सब नर-नारी अपन-अपन बुद्धिक अनुसार राजाक गुण गबैत अछि – और साधू, बुद्धिमान, सुशील, ईश्वर अंश सँ उत्पन्न राजा सभक सुनिकय ओकर वाणी, भक्ति, विनय आर चाइल केँ बुझिकय अपन सुन्दर वाणी सँ सभक सम्मान करैत छथि। ई स्वभाव भेल संसारी राजाक, आर कोसलनाथ रामचन्द्रजी केर बाते कि कएल जाय जखन ओ चतुर-शिरोमणि छथि।
 
५. ओना त श्रीरामजी विशुद्ध प्रेम टा सँ रीझैत छथि मुदा जगत् मे हमरा सँ बढिकय दोसर कियो मलिन बुद्धि आ मूर्ख नहियो भेलापर कृपालु श्रीरामचन्द्रजी हमर सेवा केर प्रीति आ रुचि केँ अवश्य रखता। ओ पाथर केँ जहाज आ बानर-भालू केँ बुद्धिमान मन्त्री बना लेलनि।
 
६. प्रभुजी भक्तक पापकेँ सुनिकय-देखिकय पर्यन्त ओहि पर ध्यान नहि दैत छथिन कियैक त ओ अपन सुचित्तरूपी चक्षु सँ निरीक्षण कय भक्ति आर बुद्धि मात्र केर सराहना करैत छथिन। बात कहय मे बिगैड़ियो जाय मुदा हृदय मे अच्छापन जरुर हो। श्रीरामचन्द्रजी सेहो भक्त केर हृदयक स्थिति जानिकय रीझ जाएत छथिन।
 
७. प्रभुजीक चित्त मे अपन भक्त सँ भेल भूलचूक याद नहि रहि जाएत छन्हि मुदा ओकर हृदयक भलमानुसता केँ ओ बेर-बेर याद करैत छथिन। जाहि पाप केर चलतबे ओ बालि केँ ब्याध (शिकारी) जेकाँ मारलनि वैह कुचाइल फेर सुग्रीव सेहो चलने छल, ओहने करनी विभीषणजी केर सेहो भेलनि, लेकिन ई सब हुनकर कृपापात्र बनल रहला अपन भक्तिक कारण।
 
८. प्रभुजी गाछक नीचाँ बैसैथ, मुदा सेवक-मन्त्री यानि बानर सब गाछक ऊपर मे बैसय! श्रीरामचन्द्रजी समान शीलनिधान स्वामी कतहु नहि छथि। प्रभुजीक अच्छाई सँ सभक भलाई अछि, हुनकर कल्याणमय स्वभाव सँ सभक कल्याण होएत अछि।
 
हरिः हरः!!