लाल बनल शंकराचार्य – पोसनिहारि जननी भेल ‘बताहि सँ बतहिया’

shankaracharya nishchalaanand

स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती: एक परिचय

अनंतश्री विभूषित स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती,जगद्गुरु शंकराचार्य, पूरी पीठाधीश्वर केर जन्म मिथिलाक हृदयस्थली ग्राम हरिपुर बक्शी टोल जे हाल उत्तरी बिहारक मधुबनी जिला मे पड़ैत अछि ओहि पावन धरती पर भेलन्हि। ई गाम प्रकांड विद्वानक बस्ती छल आ आइ धरि एकर पहिचान किछु ओहि तरहक विद्यमान अछि। महामहोपाध्याय मुकुंद झा “बक्शी” केर व्यक्तित्व आ कृतित्व सँ प्रकाशित एखनहुँ एहि बस्ती मे आध्यात्मिक चिंतन विद्यमान अछि।

स्वामीक जन्म आ माता-पिता सँ बिछुड़न

स्वामी निश्चलानन्द केर असल नाम निलाम्बर झा आ गाम-घर मे ‘घूरन’ नाम सँ संबोधित कयल जाइत छलाह। एक साधारण किसान परिवार आ अत्यन्त विद्वान् पिता लालवंशी झा केर तीन पुत्र मध्य सब सँ छोट बालक केर रूप मे स्वामी निश्चलानन्दक जन्म उपरान्त किछुए वर्ष मे पिता तथा माताक क्रमश: देहावसान भऽ गेल छलन्हि।

स्वामीक लालन-पालन: भाइ, भौजाइ आ बहिन द्वारा

हिनक लालन-पालन हिनकहि जेठ भ्राता आयुर्वेदाचार्य डा. श्रीदेव झा व हुनक धर्मपत्नीक संग एक बाल-विधवा बहिन जे सासूर-परित्यक्ता छलीह तिनका सबहक द्वारा भेल छल। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्दजीक बाल्यकालहि सँ आध्यात्मिक चेतना जाग्रत छलन्हि। अत्यन्त मेधावी छात्र सेहो छलाह। पूर्व केर शिक्षा प्रणाली मे कक्षा ७ मे बोर्ड परीक्षा होइत छल जाहि मे प्रथम स्थान सँ उतीर्ण भेल छलाह। जिद्द आ क्रोध स्वभाव मे देखल जाइत छलन्हि। तप्त कोनो वस्तु देखि जी हदमदा लगैत छलन्हि, कतेको बेर उल्टी सेहो भऽ जाइत छलन्हि।

घूरना बनि गेल शंकराचार्य, पोसनिहारक हाल बेहाल

शंकराचार्य केँ पोसि-पालि पैघ करनिहार जेठ भाइ ओ जेठ बहिन हाल धरि जीबिते छथि। जेठ भ्राताक उम्र लगभग १०० वर्षक छन्हि, बहिन करीब ९० वर्षक छथि। अपन जीवनक स्वर्णिम काल मे केरलक एक संस्कृत विद्यालयक आचार्य बनि आयुर्वेदक नीक जानकार रहबाक कारणे औषधीय उपचार सेहो करैत छलाह। गामक लोक केँ मुफ्त चिकित्सकीय उपचार करबाक लेल सुप्रसिद्ध छलाह डा. श्रीदेव झा। परञ्च सबहक सेवा सँ पुष्ट स्वयं निश्चलानन्द केँ पोसिकय भारत केँ शंकराचार्य सँ विभूषित कएनिहार भाइ ओ बहिन केर वर्तमान वृद्धावस्था अत्यन्त दयनीय अछि। ई एकटा अजीब विडंबना आ विस्मयकारीक संग-संग लेखक सहित संपादक-पाठक सबहक हृदयकेँ विदीर्ण करयवला प्रतीत होइछ।

स्वामीक बहिन बताहि सँ बतहिया

गाम-समाज मे एहि बाल-विधवा बहिनक नाम बच्चहि मे बताहि पड़ल, ओ आइ धरि बताहिये बनि जीबि रहल छथि। विवाहक तुरन्त बाद पतिक देहावसान भेला सँ दग्ध हृदय सँ सासूर द्वारा तिरस्कारक संग भगा देल गेलनि। ताहि समय सँ आइ धरि हरिपुर बक्शी टोल मे जीवन गुजारि रहली ‘बताहि बहिन’ केर कथा सुमिरैत केकर आँखि नहि नोरायत। आइ न केओ दबाइ लेल पूछनिहार छन्हि आ नहिये दु साँझक भोजनक कोनो निस्तुकी व्यवस्थाक पता देखाइछ हिनका लेल। हिनक माझिल भाइ सुकदेव झा सेहो आयुर्वेदक नीक जानकार छलाह। ओ दिल्ली मे रहिकय अपन गुजर-बसर संग समूचा परिवारक परिचर्जा करैत छलाह। हुनकर हाले किछु वर्ष पुर्व मृत्यु भऽ गेलाक बाद एहि परोपकारी परिवारक दशा दयनीय भऽ गेल।

स्वामी संग जुड़ल संस्मरण: कनिष्ठ सहपाठी उमाकान्त झा ‘बक्शी’

संन्यासी जीवन मे प्रवेश कैल शंकराचार्य सँ चारि वर्ष छोट लेखक उमाकान्त झा ‘बक्शी’ हालहि अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन-२०१५ केर विराटनगर सँ सीधे मधुबनीक अपन मधुर गामक यात्रा कएने छलाह, ताहि समय ओ बताहि बहिन सँ भेंट करैत – वैद भाइ सँ भेंट करैत अपन सौहार्द्र आ प्रेमक अनुपम भेंट दैत पुन: भूकंपक त्रासदीपूर्ण अवस्था उपरान्त हुनका लोकनिक हाल-खबड़ि लैत मैथिली जिन्दाबाद संग ई संस्मरण प्रकाशनार्थ निवेदन कएलनि। अपन संस्मरण मे ओ लिखलनि जे:

“स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीक जेठ भ्राता, डॉ श्रीदेव झा, जनिकर आयु १०० वर्षक होयत, अपन धर्मपत्नी, एक परित्यक्ता बेटी आ एक वालविधवा बहिन जिनकर उम्र ९० वर्ष सं ऊपर होयत, अपन जीवनक अत्यन्त विपन्नावस्था मे, न दवाइ न भोजनक उपाय – न कोनो समाजक व्यवस्थित सहयोग, बस मृत्यु केर प्रतीक्षा मे जीवन बिता रहल छथि। अपन जीवनक स्वर्णिम काल मे केरल मे एक संस्कृति विद्यालय के आचार्य छलाह। आयुर्वेदाचार्य डॉ श्रीदेव झा पूरा बस्ती केँ मुफ्त चिकित्सा करैत छलाह। अपनहि घर मे जड़ी-बूटी सँ दबाइ बना बीमारक मुफ्त उपचार करैत छलाह। हम गाम पर जखन-जखन जाइत छी हुनकर बहिन, जिनका लोक बताही बहिन कहैत छन्हि, आब वास्तव मे किछु मतिभ्रम केर शिकार सेहो छथि, यथासाध्य किछु आर्थिक मदति करैत छी। स्वाभिमानी डॉ श्रीदेव झा ककरो सं एखनहुँ याचना नहि करैत छथि। ई दोसर अयाची मिश्र, अयाची मिश्रक दृष्टांत सँ कतेको ऊपर छथि। यदि वास्तव मे देखल जाय तँ शकराचार्य सं कोनो माने मे ई कम नहि छथि। मैथिलि जिंदाबाद डॉट कॉम के एक बेर एहि पर ध्यान आकृष्ट कायल।”

संपादक-पाठक सबहक मन द्रवित

नोरे-झोरे बेहाल प्रवीण एहि कथाकेँ पढैत-गुनैत मैथिली जिन्दाबाद लेल विशेष रूप सँ लेखक उमाकान्त झा बक्शी संग दूरभाष पर वार्ता करैत पूछलक जे कि एहि विषय मे शंकराचार्य केँ जनतब नहि छन्हि…. उमा बाबु कहैत छथि जे ‘हम अपन प्रयास सँ कतेको बेर बरौनी प्रवास सँ लैत मधुबनी, कोलकाता आ पुरी तक जा कय हुनका जानकारी मे सब किछु देलहुँ। लेकिन संन्यास दीक्षाक कठोरता कही, आ कि लोक-समाज जे हुनका चारूकात पसरल अछि तेकर दबाव आ कि अन्य अन्जान कोनो कारण, लेकिन स्वयं शंकराचार्य एहि लेल मात्र अविरल नोर बहाय मौनताक अलावे अन्य कोनो सहायता अग्रसारित नहि कय रहला अछि। आदिगुरु शंकराचार्य केर सेहो अपन माता संग किछु एहने दुखद प्रसंग पढैत रही, मुदा हमरा सँ मात्र चारि वर्ष ज्येष्ठ, खुद हमरहि परिवारक भगिनमान परिवारसँ शंकराचार्य, १२ वर्ष धरि हमरा लोकनि सहचर बनि पाठशालाक शिक्षा संगे ग्रहण कएने रहितो आइ विडंबनापूर्ण व्यवहार देखि विस्मित छी।’

दार्शनिक निष्कर्ष

निश्चित रूप सँ शंकराचार्यक नाम पर लाखों-करोड़ोंक वारा-न्यारा भऽ रहल अछि। खुद हुनकर अपनहि गाम व मधुबनी जिलान्तर्गत कतेको ठाम शंकराचार्यक स्मृति मे एक सँ बढिकय एक कीर्ति ठाढ करबाक होड़ लागल अछि, लेकिन स्वयंकेर स्वाभिमानी जेठ भाइ व बहिन जे पिता ओ माताक स्थान लय शंकराचार्य प्रदान करैत देश केँ मानवर्धन केली हुनकर ई अवस्था एकटा बहुत पैघ प्रश्न छोड़ैत अछि समाजक सोझाँ मे। नहि जानि आध्यात्मक मर्यादा ओतय कोना रहि पाओत जँ जनक समान भ्राता ओ बहिनकेर सम्मान छहोंछित होइत रहत। मानैत छी जे डा. श्रीदेव झा एखनहु मुस्कुराइत अपन दिव्यज्ञानक दर्शन सँ हमरा सबकेँ सान्त्वना दैत छथि – ‘हम कोना जाउ अपन अनुजक शरण मे? ओ शंकराचार्य बनि गेल अछि। हम जेठ भ्राता छियैक। सोझाँ गेला पर ओ हमरा प्रणाम करत आ कि हम ओकरा प्रणाम करबैक – द्वंद्व मे छी।’ बस यैह द्वंद्व मे नोरायल आँखिये एहि संस्मरण आलेख केँ हम प्रवीण एतहि विराम दैत छी।