कबिलपुर गामक यथार्थ कबिलताइः २० मिनट मे हेडफोन निर्माण सँ विश्व रेकर्ड ठाढ

कबिलपुर केर सुभाषचन्द्र झा वर्ल्ड रिकार्ड बनेलानि - समाचार विस्तार सँ पढू

आलेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

सुकर्मे नाम या कुकर्मे नामः सन्दर्भ गाम ‘कबिलपुर, लहेरियासराय’
 
हरेक गाम केर मर्यादा विख्यात आ कुख्यात दुनू तरहक लोक सँ होएत छैक। गामक इतिहास आर ऐतिहासिक पुरुष सँ प्रतिष्ठाक मापन अथवा अन्दाज (कल्पना) कएल जाएछ। यदि बेसी नकारात्मक लोक भेटत त निश्चिते गामहुँ केर पहिचान नकारात्मक रूप सँ मन-मस्तिष्क मे बैसैत छैक; एकर उल्टा जँ सार्थक आ सकारात्मक व्यक्तित्व बेसी अभरैत छैक त गामहुँ केर प्रतिष्ठा ताहि अन्दाज मे बुझल जेबाक मानव स्वभाव भेटैत छैक।
 
विगत किछु दिन सँ गाम कबिलपुर हमर माथ मे नाचि रहल अछि। मैथिली भाषाक दिग्गज स्रष्टा डा. रामदेव झा केर गाम थिक कबिलपुर। फेसबुक (सोशल मीडिया) पर परिचित चेहरा सब मे विजयदेव झा, कृष्णदेव झा आ शंकरदेव झा भेटला अछि। विभिन्न अभियानक समाचार-विचार पर हिनका लोकनिक टिप्पणी-प्रतिक्रिया सब बहुत पूर्वहि सँ भेटैत रहल अछि। निश्चिते एक चर्चित गाम कबिलपुर केर निवासी आ ताहू मे आदरणीय सर्जक रामदेव बाबूक बालक केर रूप मे हिनका लोकनिक प्रतिष्ठा नमन योग्य अछि।
 
मुदा विगत किछुए दिन पूर्व अकारण शंकरदेव झा कोनो विषय पर देल अपन विचार केर प्रतिक्रिया मे भाषा-संस्कृति प्रति चलि रहल विभिन्न अभियान केँ अपन बौद्धिक परिवेष्ठन (सीमा) मे मापन करैत कठोर टिप्पणी दैत कहलनि जे हमर ‘दोकानदारी’ ठीक सँ चलि रहल अछि कि नहि। एक बेर त घोर विस्मय भेल। कि भेलनि जे ई अचानक एहि तरहक बात लिखलनि। फेर धीरे-धीरे बात बुझय मे अबैत गेल, मुदा ताबत धरि त बात स बतंगड़ भऽ गेल छलय। स्वाभाविके छैक जे केकरो व्यक्तिगत समर्पण केँ बिना बुझने सीधे ‘दोकानदारी’ कहि अपमान करबैक त लोक पूछबे करत जे आखिर एहेन कोन डाह-ईर्ष्या भेल जे अपने एहि तरहक कठोर अपमानजनक बात बजलहुँ। जबाब जे आयल से आरो छुब्ध करयवला छल। विराटनगर सँ कोलकाता धरि हमर कोनो धंधाक सन्दर्भ रखलनि। हमरा अपनो नहि बुझल अछि जे कोलकाता मे सेहो हमर कोनो धंधा पल्लवित-पुष्पित अछि। पैछला जन्मक अबैध सन्तान सभक जँ कोनो धंधा पल्लवित-पुष्पित हो आर ओ सब शंकरदेव बाबू केँ कहने होथिन जे हमर ‘बाप’ छथि प्रवीण नारायण चौधरी तखन त कोनो बाते नहि…. ओना सच पुछी त हमर कोनो धंधा नहि अछि ओतय। हँ, मोरंग ब्यापार संघ केर परामर्शदाताक रूप मे यदा-कदा कोलकाता बन्दरगाह आ सीमा शुल्क कार्यालयक बैसार, नेपाल कन्सूल केर कार्यालयक बैसार, विभिन्न शिपींग कम्पनीज आ अन्य सरोकारवाला (स्टेकहोल्डर्स) सभक बैसार मे आमंत्रित अतिथिक तौरपर कोलकाताक यात्रा करैत रहल छी, तहिना अपन पेशा सँ जुड़ल सेहो निजी यात्रा ओतय करैत रहलहुँ अछि, मैथिली-मिथिला अभियानी सब सँ सेहो २०१४ मे मैथिली महायात्राक दौरान भेंटघांट आ सहकार्य आदि करबाक अवसर भेटैत रहल अछि। अपन अभियानक संचालनक क्रम मे सेहो कतेको रास सहयोगी लोकनि भेटैत रहला अछि। सब ठाम निःस्वार्थ आ समर्पित लोकक संग नसीब भेल, किछु लोक जे बड बेसी भाव-बट्टा तकलैन तिनका पूछबाको दरकार कहियो न पड़ल आ न जानकीक दया सँ कहियो पड़त। सहयोगी सज्जन सब समर्पित छलाह, यैह सनातन सूत्र काजक रहल। तखन शंकरदेवजी केँ कोन धंधा नजरि पड़लनि आ कोन दोकानदारीक बात माथ मे घुरघुरेलनि से वैह जानथि। बाद मे हुनकर भाइ विजयदेवजी जिनका हम निरपेक्ष लेखक व संचारकर्मीक रूप मे जनैत रही ओहो घोंसियाकय बात के बतंगड़ बनय मे खूब नून-मेरचाइ गुड़लाह।
 
हमरा दाबी जे कुर्सों ड्योढिक संतान छी जेकर कृतिक चर्चा आइयो धरि कएल जाएछ। अपन समर्पण आ कृति-निर्माण सह समाजिक कार्य करबाक लेल तत्परताक पैतृक गुण केँ कियो गारि देत से ततेक कमजोर आ काँच माटिक गोली नहि खेलेने छी। बघन्डो, अट्ठा, झूटका, पैसा आ शीशाक गोली खूब खेलेने छी, बच्चा मे। आर, ई खेला-वेला सब बहुत पैघ शिक्षा सेहो देने अछि। कतेक लोक एकरा दम्भ मानैत छथिन, मानौथ। मुदा जे बात छैक से कहय मे कोनो हर्ज नहि। हमर पैतृक सन्दर्भ आ गामक नाम कहिते शंकरदेव बाबू सोझाँ स कबिलपुर केर सन्दर्भ देलनि। एक बेर त कबिलपुर केर ढेर काबिल शंकरदेव बाबू पर पहिने लिखिये चुकल छी सन्दर्भ सहित, मुदा आब गाम केर नाम पर रौशन मैथिल केर प्रेरणा सँ गूगल-शोध केलौं त सच मे कबिलपुर गामक प्रतिष्ठा बहुत सारगर्वित आ उच्च मूल्यक बुझायल। परिस्थितिक असैर त एहेन भेल छलय जे कबिलपुरक काबिल आ बिन बुझने – पढने बात बुझयवला आ अपन ज्ञानक दम्भ भरयवला लोक – बिना चिन्हने ‘चन्दा नारायण’ कहयवला लोक, हमर गाँजाक सोंठ पर उड़यवला लोक केर चर्चा करैत रही – मुदा आइ हमरा एकटा नीक उदाहरण भेट गेल कबिलपुर केर। हम तेकर चर्चा करब।
 
साभारः भास्कर न्युज, अक्टूबर १४, २०१६.
 
20 मिनट में बनाया मैकेनिकल हेडफोन, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम
 
Bhaskar News | Oct 14, 2016, 05:01 IST
 
दरभंगा.
 
दरभंगा सहित पूरे मिथिलांचल की धरती आदि काल से ही ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में काफी उर्वर रही है और समय-समय पर यहां के विद्वानों ने अपने ज्ञान से पूरे विश्व को अचंभित किया है। ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है दरभंगा जिला के लहेरियासराय स्थित कबिलपुर ग्राम निवासी रामनरेश झा एवं आशा देवी के बेटे सुभाष चन्द्र झा ने। सुभाष ने महज 20 मिनट में बेकार स्टेशनरी सामान का उपयोग कर हेडफोन बनाकर एक नया कीर्तिमान बना दिया है। क्यों खास है मैकेनिकल हेडफोन…
 
– एक रिकॉर्ड समय में ठोस माध्यम में ध्वनि संचरण की गति के सिद्धांत के आधार पर एक मैकेनिकल हेडफोन का निर्माण कर सुभाष ने यह साबित कर दिया कि योग्यता व सफलता किसी की मोहताज नहीं होती और मेहनत करने वालों को सफलता जरूर मिलती है।
 
– दिलचस्प यह है मैग्नेट स्पीकर एवं इलेक्ट्रिक करेंट या बैट्री के बिना ही यह हेडफोन काम करता है।
 
– अपने इस कीर्तिमान की बदौलत सुभाष का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस के साथ ही लिम्का बुक ऑफ नेशनल रिकार्डस में दर्ज हो चुका है।
 
– सुभाष की इस सफलता पर उनके परिवार व ग्रामवासियों के साथ ही मिथिलांचल ही नहीं बल्कि पूरे देश को गर्व महसूस हो रहा है।
 
– बचपन में अक्सर वे नए प्रयोगों से अपने सहपाठियों व शिक्षकों को विस्मित करते रहे हैं। इंटर तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद पटना से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का कोर्स किया।
 
क्यों खास है मैकेनिकल हेडफोन
 
– मैकेनिकल हेडफोन का कॉन्सेप्ट पहली बार दुनिया के सामने लाया है सुभाष झा ने।
 
– उन्होंने पहली बार दुनिया के सामने मैकेनिकल हेडफोन की अवधारणा को स्थापित करने का प्रयास किया है।
 
– यह उपकरण मुख्य रूप से स्कूली छात्रों के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है। स्कूली छात्र इसे एक वैज्ञानिक उपकरण के तौर पर कर सकते हैं।
 
सामान्य जीवन में प्रायोगिक हो शिक्षा
 
– शिक्षा के प्रति समाज का परम्परागत नजरिया महज एक नौकरी प्राप्त कर लेने तक सीमित हो कर रह गया है।
 
– भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा कि हमें शिक्षा को अपने सामान्य जीवन में सैद्धांतिक मात्र न रखते हुए प्रायोगिक होना चाहिए।
 
– स्कूली पाठ्यक्रम के विषयों के सिद्धांत और सूत्रों को महज कंठस्थ करने के बजाय उनके मूलभूत आधार को समझने का प्रयास हो।
 
काल्हि विजयदेव गूगलदेवक चर्चा सेहो कएने छलाह। यथार्थतः गूगल केर सदुपयोग ज्ञानार्जन मे बहुत बेसी समय-सान्दर्भिक छैक। आब कबिलपुर केर यथार्थ कबिलताइ मे स्वयं डा. रामदेव बाबूक अतिरिक्त उपरोक्त समाचार सँ प्राप्त व्यक्तित्वक ज्ञान त भेटल कम सँ कम। ओना आरो बहुत नाम छल कबिलपुर केर। हालहि जे मनोज चौधरी नामक युवा केँ दरभंगा मे सरेआम सड़क पर पेट्रोल छींट आगि लगा देल गेल छल, ओहो एहि गामक छलाह। एक प्रसिद्ध डौन केर नाम सेहो भेटल कबिलपुर सँ। रौशन चौधरी मैथिल जिनका स्नेहवश हम छीटखोपड़ी सेहो कहैत छी ओ त हमरा एहि गाम घूमय लेल आर एहि पर डक्युमेन्ट्री बनबय तक लेल एक तरहें प्रेरणा दय देलनि। आर, हम गछैत छी जे ई शुभ कार्य हम जरुर करब। अस्तु! बहुत बेसी समय लागि गेल होयत अपने पाठक लोकनिक, मुदा बाते तेहने छलैक जे कहय पड़ि गेल। मोट-मोट किताब त अहाँ सब पढब नहि, तखन एहने-एहने आलेख मार्फत नीक-बेजा के चर्चा करैत छी। गुस्ताखी माफ!
 
हरिः हरः!!