मिथिलाक चर्चित गजलकार मो. असरफ राईन

विशिष्ट परिचयः मैथिली गजलकार-गीतकार-कवि मो. असरफ राईन

संकलनः विन्देश्वर ठाकुर, दोहा, कतार।

ashraf rainप्रवासी मैथिल सर्जकसबमे चिर-परिचित नाम अछि – मो. असरफ राईन। नेपालक धनुषा जिल्लाक सिनुरजोडा गामक मूल निवासी असरफ एखन वैदेशिक रोजगारीक सिलसिलामे क़तार देशक राजधानी दोहाक एकटा कम्पनीमे कार्यरत छथि । विगत किछु दिन सँ गजल विधामे खूब कलम चला रहला अछि। हालहिमे ओरेक नेपालक सहयोग तथा आदरणीय साहित्यकार श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षिक विशेष सकृयतामे तैयार भेल एलबम – ‘हम सीया छी’ मे सेहो हिनकर रचित एकटा गीत केँ स्थान देल गेल अछि।

प्रवासमे रहियोकय अपन माटि-पानि आ मातृभाषा लेल सदैव तत्पर रहनिहार असरफ जतबे कुशल सर्जक छथि ओतबे प्रतिभाशाली व्यतित्व सेहो । मैथिली भाषाक सर्वथा लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘हेल्लो मिथिला’  निरन्तर सुननिहार सबकेँ पते होयत जे हिनकर रचनासब बराबर संचालक श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि द्वारा कार्यक्रम मार्फत प्रसारण आ प्रशंसित होएत रहैत अछि । हिनकर गजल संग्रह सेहो जल्दिए प्रकाशन होयत।

आइ मैथिली जिन्दाबाद केर पाठक लेल युवा गजलकार मो. असरफ राईन केर किछु चर्चित गजल राखल जा रहल अछिः
गजल -१
 
सहरक लागल पसाहि गाम धरि पसरैत गेलै
झापल माथक दुपट्टा आब नीचा ससरैत गेलै
 
पश्चिमक हवा बही एलै एहन गति मे जे गाम
बिदेशी अपना क अपन संस्कार बिसरैत गेलै
 
अप्पन पोषाक भेल छै अपने गाम सँ सुड्डाह
समीज साडी सब छोड़ि बिकनी पहिरैत गेलै
 
पुरखाक बाचल इज्जत ओहो एलै बाट पर
नाचै नंगटे सगरो , अपन संस्कृति बहरैत गेलै
 
अपने हाथे झापि चलब आँखि आब अशरफ़
बृद्धि भेलै कुकर्म केर लाज सरम झहरैत गेलै
 
गजल -२
 
चारु भर लागै नारा बस इंकलाब छै
झूठ पर पर्दा साँच पर बस जवाब छै
 
भूख सँ छटपटाइत गरीबक पेट एत
आतंकी लेल होएत खर्च बेहिसाब छै
 
ज़रा दै छै घर जेकरा घर चूल्हि नै जरै
ओकरे पर होएत अन्याय पथराब छै
 
सुनैत छि भेट गेलै अधिकार सब के
मुदा सदति नारी होइते बेनकाब छै
 
काट रहै जे पहिने भिड़ते चुभैत छल
देखाओट लेल भेल आई ओ गुलाब छै
 
गजल -३
 
मोज मे छल जिनगी दुखक पहाड़ धरा देलौ
लिखबाक छल दर्द आहाँ अखबार धरा देलौ
 
हम त शायर छलौ हिया बहुत नाजुक छल
कलम मंगने छलौ हाथमे तलवार धरा देलौ
 
हमरा सँ राजनीती किन्नो नै भ सकत कहियो
जिनगी हमर छै जंग आहाँ सरकार धरा देलौ
 
कलमक नोक सँ देश बदलबाक इक्क्षा छल
मुदा आहाँ बम बारुध के ब्यापार धरा देलौ
 
हारि बारि सब काज सँ जखन थाकि गेलौ
अंतमे ओहे खाड़ी मुरुभूमि कतार धरा देलौ