प्रसिद्ध गीतकार डा. चन्द्रमणि केर नवका गीत ‘हाय रे तोरी भल्ला के!’

गीत

dr. chandramani2– डा. चन्द्रमणि झा, दरभंगा

हाय रे तोरी भल्ला के !

खाली अपने देह ने तकियौ
ओहि गामवाली के देखियौ
कनसा के ओ मोटकी कनियाँ
छोड़िके भगलै पहिलुक दुनियाँ
जकरा घर बुनियाँ छनि रहलै
ढेका धएलक लल्ला के।। हाय रे तोरी…

ओकरा घर मे जाधरि रहलै
सतभतरी सन उलहन सहलै
आब समध कए नव घर एलै
महासती सतवर्ती बनलै
मर्यादा भए गेलै मुरब्बा
के छोड़ै रसगुल्ला के।। हाय रे तोरी…

एहि मोटकीके अगबे पेट
खाइ सोहारी गेंटक-गेंट
छाल्ही-डाढ़ी ठोर मे लागल
रहै बुबूक्षा सदिखन जागल
लबका घर मे पेट नइ भरतै
भगतै छोड़ि पुछल्ला के।। हाय रे तोरी..

कोना कहू हम एकर चरित्तर
सोना-भेष मे ई अछि पित्तर
टाका पर कीनू ने एकरा
हमर बात नहि मानू फकरा
मोट हसामी राति बियाहय
बदलै नित्य निठल्ला के।। हायरे तोरी…

छोड़ू ई सब बात पुरनकी
पति-पत्नी नहि मानै लबकी
सपता-सपती फूसि-फटक्का
टाका बाप आ टाका कक्का
जाधरि सत्ता ताधरि संगे
करिया-गोरका-भुल्ला के।। हाय रे तोरी…