जीविकोपार्जन लेल कलाक एक अद्भुत स्वरूपः बहुरूपिया एखन खजौलीमे

रविन्द्र भारती, खजौली, मधुबनी। जनवरी १७, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!

bahurupiyaमनुष्य लेल जीविकोपार्जनक अनेको बाट होएत छैक। जे मेहनत कय केँ अपन आ परिवार केर पेट भरबाक लेल उपार्जन करैत अछि वैह स्वाभिमान, आत्मसम्मान आर समाजक बीच मे अपन इज्जत-प्रतिष्ठा बना पबैत अछि। एहने जीविकोपार्जनक एकटा अत्यन्त महत्वपूर्ण बाट थिकैक कला प्रदर्शन कय केँ मेहनताना कमेनाय। आर कला मे सेहो विविधता अनेक होएत छैक, कियो गायन मे, कियो चित्रकारी मे, कियो अभिनय मे, कियो जादू, कियो मदारी, कियो पमरिया, कियो बक्खो… कला प्रदर्शनक विभिन्न रूप केँ मानव समाज सदैव स्वागत करैत आयल अछि। मिथिलाक लोकपरम्परा मे बहुरूपिया सेहो एकटा एहने कलाक स्वरूप थिकैक।

bahurupiya2आइ-काल्हि खजौली बजार व आसपासक क्षेत्र मे चलैत-फिरैत लोक केँ अचानक आदिवासी डोमक रूप मे त कखनहु शिव स्वयं त्रिशूल लेने लोक सब केँ आशीर्वाद दैत – त कखनहु काली जी जीह निकालने तरुवारि हाथ मे लेने लाल टुहटुह आँखि सहित देखाय दैत छथिन। ई सब रूप केँ एक्के टा कलाकार मेक-अप सँ अपनहि केँ बनबैत अछि आर फेर समाजक बीच मे घूमि-घूमि लोकक मनोरंजन आ भाव मे परिवर्तन अपन रूप देखा-देखा करैत अछि। प्रतिफल मे लोक स्वेच्छा सँ १०-२० टका आर्थिक सहयोग करैत छैक। स्थानीयवासी कहैत छथि जे बहुरूपियाक विभिन्न रूप देखि एक बेर केहनो चिन्ता मे डूबल व्यक्तिक चिन्ता पर्यन्त हेरा जाएत अछि। सच छैक! कलाक एहि अद्भुत रूपक जतेक सराहना कएल जाय ओ कम होयत। कलाविहीन मनुष्य केँ ओहुना पशु समान मानल जाएत छैक, आर फेर जीविकोपार्जन एहेन महत्वपूर्ण सवालो त मुंह बाबिकय ठाढ रहैत छैक। आखिर पापी पेटक सवाल छैक!