केकरा लेल पूसक जाड़! – टिल्लू भाइ केर मर्मस्पर्शी कविता

shiv-kumar-jha1ककरा लेल पूसक जाड़ !

– शिव कुमार झा टिल्लू 

 

कांपि रहल हाड़
दरिद्रक …
वाह रौ पूसक जाड़ ?

मुदा ककरा लेल

कोनो परवाहि नहि
समर्थ लोक केँ

दांत पर दांत गड़ौने ..
मजूर गरीब अवलाक नेना

सीमा चौकी पड़ तकैत सेना
संग संग तथाकथित अवारा जीव

बपहारि काटि रहल
नेँगड़ा कुकुर

ओकर कोन मोजर ?

कोनो उद्योगपतिक उत्जोगी शिकारी कुक्कुर
इंग्लिश फॉक्सहाउंड थोड़े थिक…

ओकरा बरोबरि नहि ककरो मोजर
बरु होथु बड़का मनेजर
नोकरी चलि गेल छलनि एकटा ससुरेक.
कुकुर जे कहि देने छलथि
अनचोकेमे मेमसाहेबक सोझाँ
मेमसाहब त’ साहेबो सँ बेसी मानैत छथि ..
ओहि फॉक्सहाउंड कुकुर रूपी भगवान केँ
ओ हुनक सहचर छन्हि ..
सकल काल तारण

साहेबक ड्राइवर …
जाड़ सँ अपन दुनू तरहत्थी
करजोरि..जकाँ रगड़ैत बाजल
“यौ टिल्लू बाबू– एहि मनुक्ख जीवन सँ नीक,
कोनो मेमसाहेबक -रहितहुँ कुकुर !
ने वात ने बसात !
ने कोन ने कात !
की रहितय छल कोनो परवाहि ?