रमेश बाबुक वैसाखीक सहारा चलबाक राज

संस्मरण

satya narayan jha– सत्यनारायण झा, पटना

लगभग 30-40 साल पहिनेक बात छैक, एकबेर हम कोनो काज सँ बेनीपट्टी –सरिसब गाम गेल रही । ओहि गाम मे हमर सम्बन्धी लोकनि छथि । गाम तए ओना रोडे कात मुदा बर पिछरल । हम कुटुम्ब कए दलान पर बैसल रही । कतौ सँ रमेशजी पहुँचलाह । बैसाखी सहारे चलैत देखि बर आश्चर्य़ भेल । पुछलियैन –रमेशजी, बैसाखी सहारे चलैत छी, की भेल ? अहाँक त’ दुनु पैर दुरुस्त छल ? तखन एहि हालत मे ? हुनके मुँहक कहल बात आइ अचानक मोन परि गेल । सोचल गप्प त दुखक छैक मुदा छैक रोचक । तैं पाठक लग एहि रोचक प्रसंग कए राखक चाही, से लिख रहल छी ।

जाहि गामक रमेशजी छथि ओ गाम सभ 30-40 बरख पहिने बर पिछरल छलैक ।ओहि गामक कतेको लोक मधुबनी नहि देखने छलैक । रमेशजी एक बेर अपन समधियान मगरपट्टी गेलाह । बेचारे ओहि सँ पहिने मगरपट्टी नहि गेल छलाह । कोनो सुबिधा छलैक नहि, तै बेचारे रमेशजी पैरे गेलाह । मुनाढ़ि साझ मे मगरपट्टी पहुँचलाह । समधिक आगमन पहिल बेर भेल छलनि, तैं घरबैया हुनक आदर सत्कार बर नीक जकाँ केलखीन ।

आब सभ सँ पहिने मगरपट्टी गामक वर्णन कए दैत छी । ई गाम कनिकेटा छै, जेकरा दक्षिण मे रेलवे लेन, पुब मे कमला नदी, पछिम मे बहुत पैघ चौर आ उत्तर मे खोरि-परिहारपुर गाम । रमेशजीक कुटुम्बक घर रेलवे लेन कए बहुत समीप ।कुटुम्बक दलान पैघ छलनि आ दलानक पुब एकटा पोखरि । पोखरि आओर दलानक बीच महिस आ बरद बन्हबाक खुट्टा खुट्टी रहैक, ओना मालक घर दलानक उत्तर । राति कए माल सभ मालक घर मे बान्हल जाइत छलैक । रमेशजी के भोजन करैत करैत रातिक 11 बाजि गेलनि । भात दालि 21 टा तरकारी-तरुआ, दही –चीनी, मधुर आ उठयकाल अपना महिसक शुद्ध छाली सँ भरल एक बट्टा दुध रमेशजी उदरस्त केलनि । अहूँ सभ सँ उपर समधिन सभक गीत नाद । बेचारे रमेशजी खूब आनन्द सँ भोजन केलनि आ तृप्त भए दलान पर सुतय अयलाह ।रमेशजी, हुनकर समधि आ घरक चरबाह दलान पर सुतै जाइ गेलाह ।

मास माघ रहैक । जार बर जोर परैत रहैक । रमेशजी सिरक (रजाई) ओढ़ने रहथि ।थोड़ेक काल कच्छ मच्छ करैत नीन्द परि गेलाह । गाढ़ नीन्द मे सुति रहलाह ।दलान पर लालटेन जरैत रहैक । राति के दु बजलैक । दरभंगा-जयनगरवाली पैसेन्जर गाड़ी (ट्रेन) जयनगर दिस जाइत रहैक । रमेशजी कए नहि बुझल रहनि जे रेलवे लेन घरक एतेक समीप छैक । गाड़ीक अवाज धीरे धीरे बढ़ैत गेलैक आ जहिना गाड़ी घर लग अयलैक अवाज बहुत तेज भए गेलैक संगहि गाड़ीक जोर सँ सिटी बजलैक । गाड़ीक अवाज आ सिटी सँ रमेशजीक नीन्द टुटि गेलनि । हुनका किछु बझेबे नहि केलनि जे आखिर कथीक अवाज छैक । एकाएक आँखि फुजि गेलनि आओर ओ रजाई सँ मुँह निकालि लेलनि । लालटेनक इजोत मे रमेशजी देखलनि जे फुसक दलान हिल रहल छैक । गाड़ी जखन घर लग सँ गुजरलै त अवाज बहुत जोर सँ भेलैक । रमेशजी कए भेलनि जे निश्चितरुप सँ भूकम्प भए रहल छैक । डर सँ रमेशजी कए घाम दए देलकनि । ओ सीधे रजाई फेकैत दलान सँ परेलाह मुदा दलानक आगू महिसक खुट्टा रहैक ,ओ सीधे खुट्टा पर खसलाह मुदा जोश मे फेर उठलाह आ भगलाह मुदा आगू वरदक खुट्टा मे फेर जवहदस्त चोट लगलनि आ ओंघरा कए खसि परलाह । एकटा पैर टुटि गेलनि । बेहोश भए गेलाह । खुट्टा लग बेहोश परल रहथि । तीन बजे कए करीब हुनक समधि लघुशंका करए उठलाह त अन्हार मे देखलखीन जे कियो ओंघरैल छैक । नौकर के उठेलखीन जे देखहीन कोनो पागल परल छैक । नौकर अन्हारे मे देखि कहलकै जे मालिक सिरिया पगला छैक । मालिक कहलकै – मार सार के । नौकर दस लात उपर सँ देलकै । बेचारे रमेशजी अघमरू भए गेलाह । हुनकर बैसाखीक राज यैह छलैक ।

रमेशजीक प्रसंग सुनि दुख भेल संगहि एहि अद्भुत घटनाक दृश्य सोचि असगरो मे हँसियो लगैत छल ।