मधेश-शहीदक अपेक्षा आ पुरखाक भूल लेल माफीक संयोग

प्रसंगवश…. नेपाल मे किछु मास पूर्वे दुनियाक सबसँ बेसी दिन धरि चलयवला आन्दोलन समाप्त भेल। दर्जनों लोक एहि आन्दोलन मे शहादति देलक। आन्दोलनक स्वरूप पर सेहो घमर्थन चलैत रहल। राज्य द्वारा आन्दोलन केँ हिंसक आ आम जन केर हित विरुद्ध हेबाक बात कहल जाएत रहल। असन्तुष्ट पक्ष द्वारा दंभी सत्ताभोगी आ शासकवर्ग सँ अन्तिम युद्ध कहल जाएत रहल। आशा-निराशा मे महीनों धरि ई आन्दोलन चलल जे देशक दशा-दिशा सब बदैलकय राखि देलक, नहि बदलल तऽ जिद्दी शासक आ जिद्दी आन्दोलनकारी। अन्त मे परिणामविहीन आन्दोलन केँ रोकबाक लेल आन्दोलनकारी अपने बाध्य भेल। तदोपरान्त एहि बातक गंभीर समीक्षा कैल जा रहल अछि जे आखिर आन्दोलनक औचित्य कतेक छल, स्वरूप उचित कतेक छल, आदि। एहि मे किछु मधेश अधिकारवादी सब सेहो सक्रियता सँ लागल छलाह। एहि मे सँ गोटेक वेत्ता-सज्जन लोकनि वर्तमान समय एकटा विचित्र मुहिम केर संचालन कय रहला अछि। हुनका सबहक मानब छन्हि जे पूर्व मे दलित आ पिछड़ा वर्गक लोक पर सामंतीवर्गक लोक द्वारा काफी अत्याचार भेल। ओहि अत्याचारक कारण मधेशक जनमानस मे अन्तर्विभेद एखनहु धरि कायम अछि। ओहि अन्तर्विभेद वा अन्तर्भावना मे आपसी मनभेद केँ दूर करबाक लेल ‘क्षमायाचना मुहिम’ चलाओल जाय। एहि मुहिम मे तथाकथित सामंतीवर्ग उच्च जातिक वर्तमान संतति दलित एवं पिछड़ावर्गक समाजक लोक सँ भेटय, हुनका सँ क्षमायाचना करय, सहभोज करय, छुआछुत आदिक मानसिक प्रताड़णा सँ ओहि वर्ग केँ आबहु स्वतंत्र करय। विगत किछु दिन सँ ई मुहिम नेपाल मे काफी चर्चा मे अछि। किछेक मधेशवादी व्यक्तित्व डोम, चमार, दुसाध, मुसलमान व अन्य सीमान्तकृत समुदायक लोक संग भेट रहला अछि, माफीनामा चढा रहला अछि आ भूतकालक ओहि अमिट कलंकरूपी विभेद केँ वर्तमान मेलजोल आ स्नेहिल सौहार्द्रपूर्ण संबंध सँ मेटेबाक भरपूर प्रयास कय रहला अछि। आर, एहि सबहक सन्दर्भ मे एकटा लेखक मैथिलीक जनवर्गीय बोली मे अपन किछु भावना निम्न लघुकथा मे राखलनि अछि। कथाक मर्म काफी रोचक अछि। एकर प्रेरणा सँ सब केँ एकटा सीख भेटैत अछि। अतः एकरा जहिनाक-तहिना एतय प्रकाशित कय रहल छी।

– संपादक

लघु कथा:

– संकलनकर्ताः अशोक कुमार सहनी (मूल लेखकः अज्ञात)

madhesh storyअषाढ़ महिना जोन बोनिहारके लेल कमाए के महिना । इहे महिना काम कर के जेहे ढ़ेउआ बचा लै छै ओइ से आशीन कातिक दुख सुख से निकल जाई छै । नाम त हई ओकर सुखीया लेकिन सुख ओकरा कहियो नसीब न होलई । इहे मधेश अन्दोलनमें सुखीया के घरबाला रजकुमरा के पाटी बला सब ले गेलै धरना देबे खातिर । सब घर से एक गोरे जाही परतै इहे अडर अलै मालिक मुख्तार के, न गईला पर पाँच सौ टका जुरमाना देबे के अडर रहै त रजकुमराके घरे ओकरा छोड़ के कि त बुढ बाबु रहई कि त छोटका बचबा त रजकुमराके जाही के पड़लई ।

रजकुमरा बहुत दिन से बलडपेसर के बिमार रहलैय, दबाई खात रहलै, पाटी बला सब कहलकै आब भन्सार पर न होतै धरना, आब रजमर्का (राजमार्ग) बन्द करेके…सब के हड़का के ले गेलई रजमर्का । तीन दिन हो गेलई रुपनी में…रजकुमरा न सोचले रहई कि रातो रहे के होत, ओकर दबाई सठ गेलै ।
कोई लाबे बाला न, २ दिन से मालिक मुख्तार के कहलकै दबाई खातिर मुदा कोई धीयान न देलकै ।

४ बजे के समय धूप तेज रहई ओकर मोन लगलई घुमे । एतने में कन्चनपुर ओरी से बहुते नाईट बस सब के कटाबे खातीर पुलिस के गड़ी आबे लगलई ।

सड़क पर जमा भईल लोग सब नारा लगबे लगलई, ओनी कारी दूर में पुलिस सब एकलाईन से खड़ा हो गेलई पता न कहाँ कोन बात भेलई कि फटाक फटाक के अवाजके साथे लोक सब भागे लगलई ।

रजकुमरा सेहो खेत दिसन भागे लगलई कि ओकरा चक्कर आ गेलई आ उ अइसन गीरलई कि फेरो चार गोरे के कन्हे पर उठलई ।

छोड़ गेलै रजकुमरा आपन बुढ माई बाप, सुखीया आ छोट छोट ३ गो ननकिरबा, ननकिरबी के ।

कुछ दिन तक लोक सब सुखीया घरे अबैत रहलई, ई मिलतो- उ मिलतो, आशा देखाबत रहलई मुदा कुछो न मिललई । कमाए बाला मुनसा चल गेलई त बुढबा बाबु के गामे के गौसाला में गाय माल के देखभाल करेबाला काम मिललै ।

बाद में पाटी बाला नेता मे से कोई अलई त कहलकई जे रजकुमरा के गोली न लागल रहलई त ओकरा सरकार “शहीद” न मानतई आ “शहीद” बाला “सुविधा ?” नमिलतई कह के सब आशा पर पानी फेरके उ नेतबा चल गेलई ।

सुखीया ईहो न पुछ सकलई कि सरकार त न देतई मुदा आहाँ आउर जे कहले रहली से त दू, न त कोनो उपाय त कर दू… न सुखिया मुंह खोलके कह सकलई न उ सब कोई सुखीया के दुख बुझ सकलई ( कि बुझीयो के नबुझलकई-भगवाने जाने) ।

परसुए सुखीया के गामें के लोक कहलकई जे तोरा हियाँ शहर से कुछ बाबु भैया अतउ “माफी” मागेँ …सुखीया पुछलकई कथीके माफी ? बताबे बाला सेहो ठीक से न बता सकलई खाली एतना कहलकई जे ३ / ४ गोरे के खाना, चाय – पानी के बेबस्था करेके होतउ, कर लिहे ।

सुखीया के मनमें छोटका आशा जनमलई कि हो न हो रजकुमरा जे शहीद हो गेलई, आ कुछो अभी तकले केकरो से न मिललई ईहे देरी के न जनु “छेमा” माँगे बाबु भैया लोग अबै छथ । जनु कुछो राहत मिलतै… ।

दुखी सुखीया के तनका मनमें उमेद होबे लगलई, फुसके छप्पर चुब रहल छै – तनका ढ़उआ छारे में खर्च करेके होतै, बच्चा सबके कपड़ा न हई, सास के दबाई …ईहो सब में कुछ खर्च करेके होतई…ई सोचिते सुखीया ओई दिन रोपाई के काम में न जा के घर दूरा साफ सुफ करे लगलई ।

कुछ ढ़ेउआ जमा रहई जई से मन्सूली अरबा चाउर, दाल हटीया से तनका तरकारी खरीद के ललकै । रजकुमराके चल गेलाके बाद आाईए ओकरा घरे नीमन खाना बन रहल छै । सुखीया के बेटी आशा के एगो मुर्गी हई जे हरेक दिन अन्डा दई छई, आशा के कुछ दिन बाद स्कुल डरेस के उजरा सट आउर नीला घघरी चाही, कुछ पैसा हई आ कुछ अन्डा बेचके आशा जमा क रहल हई ।

सुखीया अपन बेटी आशा के कहलकई गे आशा ! शहर से कुछ लोग आ रहल हई, जनु तोहर बाप के मुईला पर कोनो पैसा तैसा देबे खातीर आ रहलई ह, निमन से सुआागत करेके होतई, तोहर मुर्गी दे न दे, ओकरा आाउर के खियबई !

आशा लगलै काने कि हम त अन्डा बेचके सट, घघरी लेबै, मुर्गी न रहतै त हम केना लेबै ?

माय कहलकई जे उ लोक सब जे ढउआ देतै ओई में से ले न लिहे, अभी दे दे तोहर मुर्गी ! मन न मानैत रहै मुदा मायके बात न काट सकलई आशा, कहलकई ठीक हई काट दही !

खाना उना बन गेलई त करीब ४ बजे तरफ ४ गोरे अलई । असोरा पर पोरा के चटाई बिछा के ओई पर कपड़ा के गदेली बिछाके सबके बैठलकई सुखीया… ।

चाह पानी होलई, दुख सुख के बात होलई, सुखीया त अपन मुह झपले रहलई , नहुँ नहुँ कुछ कुछ बोलई । अन्जान लोग से बातो करेमें झीझकै..कि तबले सुखीया के ससुर भोला सेहो आ गेलई, बाले बच्चे गाम के से २ गोरे मिलके खाना परोसके लोकके खुअलकई ।

एक तरह से छोटका भोजे हो गेलई सुखीया के घरे, खाना के बाद सुखीया के ससुर भोला अपन घर आाएल हाकिम हुकुम से पुछलकई कि हजुर रजकुमरा के शहादत मादे कि केतना सहयोग मिल सकै छै ?

त जे जबाब मिललै से सुनके भोला अबाके रह गेलई, आा सुखीया के टाँग के नीचा से मानू धरती खीसक गेलई ।

उ हाकिम हुकुम सब कहलकई जे “हमरा आाउर कोनो राहत, सहयोग ले के न आाएल छी, हमनी त हमर पुर्खा जे आहाँ सबके पुर्खा के उपर कोनो विभेद कईले रहे, ओकर माफी माँगे आाएल छी ! हमरा माफ कर दू” कह के हाथ जोड़ लेलकई !
तभीए चार गोरे में एगो लोक कैमरा ले के फटाफट सबके फोटो खीचे लगलई, कभी भोला साथे, कभी बच्चा साथे त कभी सबके बैठा के…।

सुखीया के कुछो न सुझाईत रहलई, दिमागमें साँई साँई एक्केगो बात चलत रहलई कि आशा के जे आशा टूटतई ओकरा केना उ जोड़तई ?

ई जे खर्चा भेलई तै से उ पुरा पलिबार आशीन कातीक में कमसेकम १० दिन तक त जरुरे खईतई…२ दिन के बोन से गेलई…।

ई सब सोचते सोचते सुखीया के आँख से आँसू ढलके लगलई तभीए असमानों मानू सुखीया के दुखपर काने लगलई हल्का बुन्दा बुन्दी होबे लगलई… उहे पानी के बुन्द साथे सुखीया के आँसू बहैत रहलई- जे न देखलक, कोइ…।

काल्पनिक कथा __अज्ञात