मिथिलाक हर-घर मे रामायण: तुलसीदास केर लोकप्रियता जन-जन मे

आइ थीक महाकवि तुलसीदास केर जन्म जयन्ति - पढू विशेष संस्मरण

तुलसीदास पुण्य तिथि पर विशेष

tulsidasसावन मास केर शुक्ल पक्षक सप्तमी तिथि – महाकवि तुलसीदास केर पुण्य तिथि केर रूप मे मनाओल जाएत अछि। आइ सावन मासक शुक्ल पक्ष केर सप्तमी वैह पुण्य तिथि थीक आ महिषी सँ शुभाकांक्षी सर्वप्रिय अमित आनन्द जी मैथिली जिन्दाबाद केँ संवाद पठबैत आजुक विशेषता केँ स्मरण करबाक लेल कहैत छथि। माँ उग्रताराक पवित्र भूमि सँ सदैव जाग्रत अवस्था मे रहनिहार अमित आनन्द एकटा सुपरिचित चेहरा आ सदिखन जनकल्याणकारी नीति, नियम, निष्ठा पर नजरि रखनिहार युवाशक्ति छथि, जिनका संग डेग बढबैत समस्त मैथिली जिन्दाबाद कार्यसमूह आनन्दक अनुभूति करैत अछि। आउ, आजुक विशेष दिवस पर तुलसीदास जी केर किछु विशिष्ट रूप पर चर्चा करी।

संछिप्त परिचय

तुलसीदास जी केर जन्म संवत 1589 केँ उत्तर प्रदेश (वर्तमान बाँदा ज़िला)क राजापुर नामक गाम मे भेल छल। हिनक पिताक नाम आत्माराम दुबे तथा माताक नाम हुलसी छल। हिनक विवाह दीनबंधु पाठक केर पुत्री रत्नावली सँ भेल छल। अपन पत्नी रत्नावली सँ अत्याधिक प्रेम केर कारण तुलसी केँ रत्नावलीक फटकार “लाज नहि आयल अहाँकेँ दौरल अएलहुँ नाथ” सुनय पड़ल जाहि सँ हिनक जीवनहि परिवर्तित भऽ गेल। पत्नीक उपदेश सँ तुलसीक मन मे वैराग्य उत्पन्न भऽ गेलनि। हिनकर गुरु बाबा नरहरिदास छलाह, जे हिनका दीक्षा देलनि।

जन्म विवरण एवं योगदान

लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व संवत 1589 केर श्रावण मासक शुक्ल पक्ष केर सप्तमी तिथिक दिन अभुक्त मूल नक्षत्र मे गोस्वामी तुलसीदास जी जन्म लेलनि। कलियुग केर प्रारम्भ होयबाक बाद सनातन हिन्दू धर्म यदि कोनो महापुरुषक सबसँ अधिक ऋणी अछि तऽ ओ छथि – आदि गुरु शंकराचार्य और गोस्वामी तुलसीदास

शंकराचार्य जी तऽ 2500 वर्ष पूर्व बौद्ध मत केर कारण लुप्त होइत वैदिक परम्परा केँ पुनर्स्थापित करबाक दिग्दिगंत मे सनातन हिन्दू धर्म केर विजय वैजयंती फहरौलनि। विदेशी आक्रमणकारी केर कारण मंदिर तोड़ल जा रहल छल, गुरुकुल नष्ट कैल जा रहल छल, शास्त्र और शास्त्रज्ञ दुनू विनाश केँ प्राप्त भऽ रहल छलाह, एहेन भयानक काल मे तुलसीदास जी प्रचंड सूर्य केर भाँति उदित भेलाह।

ओ जन भाषा मे ‘श्री रामचरितमानस‘ केर रचना करैत एहिमे समस्त आगम, निगम, पुराण, उपनिषद आदि ग्रंथ केर सार भैर देलनि और वैदिक हिन्दू सिद्धांत केँ सदाक लेल अमर बना देलनि। अंग्रेज़ सब हज़ारों भारतीय केँ ग़ुलाम बनाकय मॉरीशस और सूरीनाम आदिक निर्जन द्वीप पर पटैक देने छल। ओहि अनपढ़ ग्रामीण केर पास धर्मक नाम पर मात्र ‘श्रीरामचरितमानस’ केर एक आध प्रति छल। केवल तेकरे बल पर आइ धरि ओतय हिन्दू धर्म पूरा तेजीक संग स्थापित अछि। अनेको ग्रंथ केर रचयिता भगवान् श्री राम केर परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी भले तलवार लैत लड़यवला योद्धा नहि होइथ लेकिन ओ अपन भक्ति और लेखनीक बल पर इस्लामी आतंक केँ परास्त करैत हिन्दू धर्म केर ध्वजा फहराबैत राखय मे अपूर्व योगदान देलनि।

(स्रोत: भारतकोश)

तुलसीदास केर लोकप्रियता मिथिला मे सर्वोपरि

मिथिलाक सिद्ध तंत्र भूमि मे घरे-घर ईश-भक्तिक परंपरा विद्यमान अछि। सीता मिथिलाक बेटी मानल जाइत छथि। सीता संग राम केर कथा केँ रामचरितमानस मे तुलसीदास सहज-सुन्दर भाषा मे गीत समान लयात्मक ढंग सँ प्रस्तुत केने छथि। मिथिलाक स्त्रीगण आ पुरुष सब मे रामायण केर यैह रूप सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल कएलक। एकर जीवन्त प्रमाण छैक जे रामायणक चौपाई पढलाक बाद दोहा संग सम्पुट दोहा सहित लोक गाबि-गाबिकय राम कथा कहैत-सुनैत नजरि पड़ैत अछि आ हरेक बेर जयकारा लगेबाक समय ‘सियावर रामचन्द्र कि जय, उमापति महादेव कि जय, पवनसुत हनुमानजी कि जय, गोस्वामी तुलसीदासजी कि जय, बोलो भाइ सब संतन्ह कि जय’ कहैत अछि। तुलसीदासजी केर नामक आगाँ गोस्वामी समान अलंकारक प्रयोग हुनका प्रति गहिंर आस्थाक द्योतक थीक।

तुलसीकृत् रामायणक खास विशेषता

तुलसीदास द्वारा लिखल गेल रामचरितमानस मे ध्यान लेल श्लोक मे ईश्वरक हरेक रूप केर वर्णन कैल गेल अछि। तदोपरान्त कथा सार केँ चौपाई मे वर्णन कैल गेल अछि। फेर दोहा सँ कोनो एक वृतान्त मे विश्राम देल गेल अछि। जरुरत केर समय गूढ रहस्य केँ वर्णन करबाक लेल छंद (वेदान्त) केर विशेष काव्यरस केर प्रयोग कैल गेल अछि। दोहा केर स्थान अत्यन्त विशेष प्रयोजन पर ‘सोरठा’, यानि दोहाक रूप मे क्रम बदैलकय भक्त-साधकक ध्यान केँ आरो डूबाकय राखबाक प्रयोजन सँ प्रयोग कैल गेल अछि। संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय अन्तर्गत श्यामा महाविद्यालयक व्याकरणाचार्य पंडित जीवनन्दन झा जे एक प्रसिद्ध रामायण मर्मज्ञ मानल जाइत छथि, हुनकर शब्द मे ‘चौपाइ – यानि चारि प्राप्ति, अर्थ, धर्म, काम आ मोक्ष’, ‘दोहा – यानि दुइये टा छथि, सीता आ राम’, ‘छंद – यानि संगीतवद्ध वेदान्त सार’ आ ‘सोरठा – यानि सो रट, ओ याद करू’।

तुलसीदास द्वारा ईश्वर केर व्याख्या

तुलसीदास कृत् ईश्वर प्रार्थना: संत लोकनिक सर्वथा पहिल पसिन कैल दोहा-समूह

sitaram1मैं हूँ श्री भगवान्‌ का, मेरे श्री भगवान्‌!
अनुभव यह करते रहो, साधन सुगम महान्‌!!

प्रभु के चरणण में सदा, पुनि पुनि करो प्रणाम!
यही कहो भूलूँ नहीं, मेरे प्रियतम श्याम !!

राम नाम का प्रथम लो, पीछे लो मुख ग्रास!
ग्रास ग्रास में राम कहो, देखो प्रभु को पास!!

कामीहि नारि प्यारि जिमि, लोभी प्रिय जिमि दाम!
तिनि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहि मोहि राम!!

अर्थ न धर्म न काम रुचि, गति ना चहउँ निर्वाण!
जन्म जन्म रत राम पद, यह वरदान न आन!!

एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास!
एक राम घनशाम हित, जातक तुलसीदास!!

मो सम दीन ना दीन हित, तुम समान रघुवीर!
अस विचार रघुवंस मनी, हरहु विषम भव भीर!!

बार बार वर मांगहु, हरषि देहु श्रीरंग ॥
पद सरोज अनपायनी, भगति सदा सत्संग॥

बिगड़ी जनम अनेक की, सुधरो अबहि आज!
होहिं रामको नाम जपूँ, तुलसी तज कुसमाज!!

तुलसी सीताराम कहो दृढ राखो विश्ववास
कबहू बिगड़े न सुनहि रामचंद्र के दास!!

ॐ तत्सत्!!