बक्रबुद्धि जखन ज्ञानी भऽ सकैत अछि……………..

बक्रबुद्धिक आँखि सेहो खुजि गेलैक!

(नैतिक कथा)

– प्रवीण नारायण चौधरी

all party meet nepalसुबुद्धि आ बक्रबुद्धि एक्कहि गामक दुइ बरोबरि उम्रक युवा छल। सुबुद्धि अपन नामहि अनुरूप सुन्दर कार्य मे ध्यान दैत छल। बक्रबुद्धि अपने जतेक काज करय से बक्रे आ सुबुद्धिक काजक कूचर्चा ओकर खास काज मे सँ एक छलैक। भैर गामक लोक केँ पता छलैक जे ई दुनू युवा गामक शान छी, एकटा नीक करैत अछि, दोसर बस हावाबाजी करैत अछि मुदा लोक सबकेँ खूब हँसबैत अछि। लोक केँ सेहो हँसी एहि द्वारे लगैक जे ओ सुबुद्धिक कैल कोनो नीक काज केँ तेनाक कूचर्चा शुरु करैक जे ओकर कूतर्क सँ लोक केँ अनायासे हँसी छूटि पड़ैक। हँ, तखन कियो नीक लोक आ गंभीर लोक बक्रबुद्धि केँ अपना लंग ठाढो नहि होइ दैक। तेकर दु:ख बक्रबुद्धि केँ एतेक होइक जेकरा ओ अपन कूचर्चा मे लपेटैत आन-आन जे लोक ओकरा खूब सुनैत छल ओतय सुनाबैक।

एक बेर सुबुद्धि मैथिली भाषाक महत्त्व पर एकटा जनसभा केलक। ओहि जनसभा मे विद्वत् वर्ग केँ बजौलक, संगहि भैर गामकेँ हकारि आयल जे आइ अपन गाम मे दूर-दूर सँ विद्वानक मेला लागत, अपने लोकनि जरुर आउ। बक्रबुद्धि केँ सेहो एहि बातक खबैड़ लागि गेल छलैक। ओ कार्यक्रमक दिन भोरहि सँ ई भाँज लगाबय मे लागि गेल जे आइ सुबुद्धिक कार्यक्रम मे के सब वक्ता या श्रोता जा रहल अछि। ओ एतबे लोक सँ एकर चर्चा केलक जेकर पारावार नहि कहल जा सकैछ। सुबुद्धि केँ सेहो कियो इशारा केलकैक जे आइ बक्रबुद्धि किछु बेसिये उताहुल अछि ई जानय लेल कि तोहर आयोजन मे के सब आओत आ कि सब होयत। सुबुद्धि हँसैत जबाब देलकैक जे चले कोनो बात नहि, आब जेहो छूटलहबा लोक होयत सेहो आबि कऽ आजुक विद्वत् सभाक लाभ उठायत। सुबुद्धि केँ बक्रबुद्धिक बक्रचालि आ कूचर्चाक सेहो नीक ज्ञान रहैक, मुदा ओ निर्भीक बनि बस कार्यक्रम आयोजनक दिशा मे बढि रहल छल।

उचित समय पर कार्यक्रम शुरु भेलैक। चारूकातक लोक आ खासकय गंभीर श्रोता आ जनमानसक बड पैघ भीड़ ओतय आबि गेलैक। विद्वत् सभा विषय सहित शुरु भेलैक। विषय छलैक जे मैथिली भाषा कि आ एहि सँ पहिचानक स्थापना कोना, देश मे तेकर स्थान कोन आ सम्मानक अभिन्न अंग भाषा पर राजनीति-कूराजनीति केहेन होइत अछि, इत्यादि। वक्ता लोकनिक बात बहुत तरहक सोझाँ अभरलैक। अन्त मे सभा ई निर्णय सुना देलकैक जे बिना भाषाक सम्मान केने कियो आत्मसम्मान सँ सम्मानित नहि भऽ सकैत अछि। अपन भाषिक पहिचान संग लोक सतौत व्यवहार जँ करैत अछि तऽ ओ जरुर आत्मघाती होइत छैक। सभा किछु रास ओहि गामक उदाहरण सेहो रखलकैक जे कोन तरहें फल्लाँ-फल्लाँ परिवार विद्या ओ बुद्धिक बले फल्लाँ ठामक राजा द्वारा ससम्मान पद, प्रतिष्ठा, पामर आदि पेलक आ कालान्तर मे कोना ओ ओहि राजाक दरबारक संस्कार मे बेसी रमि गेलाक बाद अपन मूल भाषा बिसैर आइ ओकर संतान न घरक न घाटक बनि गेल अछि। ओहि परिवारक नामोनिशान मेटा गेल छैक। ओकर डीह पर मुनहारि साँझहि सँ गिदर भूकैत छैक। कहियो बिसरल-भटकल ओकर कोनो संतान अपन संपत्तिक अता-पता लगाबय लेल आबितो अछि तऽ विचित्र भदेशी – अलगे संस्कार सँ भिजल बस लेंगरचोभ समान गामक लोक बीच अबैत अछि आ बिन काज केनहिये चलि जाइत अछि। कहियो बजैछ जे फेर गामहि आबी से मोन होइछ, फेर बजैछ जे भाइसाहेब गामक आवोहवा सँ फरक मत रखैत छथि तैँ अयबाक आदेश नहि अछि, कहियो कि आ कहियो कि। सभा गंभीरतापूर्वक ई तय कय दैछ जे बिना भाषाक सम्मान कोनो व्यक्ति केर सम्मान संभव नहि छैक। चाहे पढबाक-लिखबाक कार्य लेल हो वा बोली-वचन-व्यवहार लेल हो – भाषा हर संभव जगह पर चाहबे करी। ताहू मे जखन मैथिलीक बात होइत छैक तऽ विश्वक एक लयात्मक (सुमधुर) भाषा होयबाक कारणे एकर सम्मान ओ स्थान गैर-मैथिलीभाषी मे अलगे होइत छैक। यैह कारण छैक जे आइ मैथिलीभाषी कतहु चलि जाइछ, मुदा ओकरा कियो हेय दृष्टि सँ कदापि नहि देखैत छैक। हँ, ओ जँ हिन्दी वा अंग्रेजी आवश्यकता सँ किछु बेसिये झाड़ैत छैक तऽ लोक बुझि जाइत छैक जे ई पक्का बिहारी होयत आ ओतहि सँ ओकर फझेत भेनाय शुरु भऽ जाइत छैक। सभा किछु रास सुमधुर मैथिली गीत सुनैत समापन कैल जाइछ – ई संदेश दैत जे अपन भाषा सँ आत्मसम्मानक लाभ उठाबी, नहि कि एहि मे कतहु दोषभाव वा कूराजनीतिकेँ कोनो स्थान दी।

बक्रबुद्धि सभाकाल धरि एकटा गाछक ओट लागि पूरा सुनलक। ओकर आँखि मे नोर बहैत छलैक। ओकरा ओ सभाक एक-एक टा बात एतेक नीक लगलैक जेकरा ओ हृदय सँ स्वीकार करैत नोर पोछैत अपन संध्याकालक दिनचर्या मे लागि गेल। आइ ओ एकदम चुपचाप छल। मने-मन सुबुद्धि केँ खूब प्रशंसा कय रहल छल। संध्याक भाँगक निशा आइ ओकरा असैर नहि कय रहल छलैक। ओ एकदम गंभीर बनि गेल छल। ओकरा लोक कहबो केलकैक जे मंच पर खाली झा, मिश्र, ठाकुर आ वैह सब छलैक, बक्रबुद्धि, तोँ केना आइ आलोचना करबा सँ पाछू जा सकैत छँ… मुदा बक्रबुद्धि एक्कहि टा बात कहलकैक: “हम भले भूमिहार छी, मंच पर भने ब्राह्मणक जोर छलैक, मुदा जे बात छलैक, जे मर्म छलैक, जाहि तत्त्वक ज्ञान परसल गेलैक ओ सत्य छलैक। हमर आँखि खुइज गेल भाइ।” ओकर प्रशंसक सब ओकरा खौंझेबो केलकैक – कहीं तोरा सुबुद्धि कमीशन तऽ नहि खुएलकौक… बक्रबुद्धि फेर जबाब देलकैक, “सुबुद्धि अपन नामहि समान सुन्दर कार्य करैत अछि। हम ओकर काजक आलोचक सब दिन रहलहुँ, आइ भाषा सँ आत्मसम्मानक बात केँ सभा द्वारा प्रमाणित कय ओ हमर अन्तर्ज्ञान केँ खोलि देलक।” परोक्ष मे निन्दा केनिहार केँ संतोष नहि भऽ रहल छलैक – ओ सब बक्रबुद्धि केर ओ पुरनका तर्क आ निन्दा सुनि सुबुद्धिक काजक उपहास उड़ाबय लेल आतुर देखाइत छल। मुदा आइ सभाक स्वाद बक्रबुद्धि केँ सेहो ओहिना बुद्धि फेर देलकैक जेना हालहि सहरसाक सत्तरकटैया प्रखंडक लछमिनिया गाम मे भोगेन्द्र शर्मा निर्मल केर गाम मे मैथिली सभा सँ ९५% पिछड़ा आ अति-पिछड़ा समाज केर आँखि खुजल छलैक।