कहीं हमहुँ-अहाँ एहि रोग केर शिकार त नहि?

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

#वाणीसूल_बीमारी

काफी समय अध्ययन सँ एक विशेष तरहक रोग केर पता चलल, एहि रोग केर नाम छी ‘वाणीसूल’। जेना सूलवाइह (डिसेन्ट्री) पेट के रोग छी तहिना निज भाषा छोड़ि आन भाषा अपनेनिहार मे वाणी बदलबाक कारण वाणीसूल नामक रोग होइत छैक। एहि रोग मे अपनहि वाणी सँ आत्मीयता समाप्तिक दोष मुख्य छैक।
 
वाणी अर्थात् आवाज लोकक मोनक भावना अनुरूप शाब्दिक अभिव्यक्ति थिकैक। शब्दक उच्चारण करैत अपन मोनक बात वाणीक रूप मे लोक व्यक्त करैत अछि। भाषा सेहो एहि अभिव्यक्तिक माध्यम केँ मानल जाइत छैक। मातृभाषा मनुष्यक भ्रूण निर्माण सँ विकास आ फेर जन्म सँ मरण धरि एक्के होइत छैक। जबरदस्ती दोसर भाषा केँ अपनेला सँ अपन मातृभाषा सँ दूराव देखेबाक ढोंग-नाटक आ बलजोरी करैत-करैत आखिरकार ई ‘वाणीसूल’ अर्थात् ‘आवाजक सूलवाइह’ बीमारी भऽ जाइत छैक जेकर कय रंगक लक्षण सब सेहो छैक, अपन असलियत सँ भगनाय, देखाबटी आ आडम्बर मे फँसनाय, झूठ-फरेब मे रहनाय, कुटिलता देखेनाय… आदि एहि बीमारीक स्पष्ट आ खतरनाक लक्षण सब थिकैक।
 
एहि तरहक रोगी हमरा-अहाँक संगहि आसपास अनेकों लोक मे सहजहि देखल जा सकैत अछि। सब सँ पहिने ई चेक करू जे अहाँक आत्मा केर समस्त मित्र जे चौजुगी संगे चलि रहल अछि, अर्थात् मोन आ बुद्धि संग समस्त ५ ज्ञानेन्द्रिय, ५ कर्मेन्द्रिय आ ५ प्राणेन्द्रिय – ई सत्रहो केर अनुकूल सहज भाषा अन्दरे-अन्दर बात करैछ से मातृभाषा थिक, आर तेकरा नुकेबाक या प्रयोग करय मे लाज करबाक, घर मे लोक सब केँ जानि-बुझि दोसर भाषा मे बजबाक व बाजय लेल प्रेरित करबाक – यैह ‘वाणीसूल’ रोग थिक। एहि रोग केर कारण मृत्यु भेल लोक केँ ‘मोक्ष’ प्राप्ति नहि भऽ सकैत छैक, कारण ओकर आत्मा व १७ सनातन मित्रक बीच ‘वाणीसूल’ रोग केर कारण ऐक्यता समाप्त भऽ गेल रहैत छैक, मरबाक समय ओकर मोन एहि इहलोक मे उलझल रहि जेबाक कारण ओकरा पुनः जन्म लेबय पड़ैत छैक।
 
तेँ, सदिखन अपन मातृभाषा यानि आत्मीय भाषा केँ उच्च सम्मान दैत अपन अन्तिम समय मे केवल परमपिता परमेश्वर मे सर्वाङ्ग-शरीर लीन रहैत मृत्यु प्राप्त करबाक चेष्टा आवश्यक छैक। संसारक सब उपलब्धि – अर्थ, धर्म, काम आ मोक्ष प्राप्तिक यैह सर्वोत्तम मार्ग थिक। मातृभाषा लोक केँ एहि लोक मे एकटा विशिष्ट पहिचान प्रदान करबाक संग-संग मोक्ष प्राप्ति धरिक एकमात्र सर्वोच्च साधन होइछ, एकरा प्रति तिरस्कारक भावना कथमपि नहि आबय देबाक चाही। अस्तु!
 
एहि तरहक रोग सँ निजात पेबाक लेल समय मे ई ज्ञान होयब आ वाणी शुद्धि करब परमावश्यक छैक। व्याकरण पढिकय वाणीक शुद्धीकरण आ शुद्ध मंत्रोच्चारक जहिना वातावरण आ प्रकृति मे अत्यन्त प्रभावकारी असरि देखैत आ सुनैत छी, विज्ञानहु जेकरा आब सिद्ध आ सत्यापित मानैत अछि, ठीक तहिना एहि रोग सँ मुक्ति लेल जन-जन मे जागरुकता बढेबाक जरूरत अछि।
 
हरिः हरः!!