अविस्मरणीय आ अभूतपूर्व विद्वान् श्री शम्भू शरण सिंह सर केर जन्मदिन पर प्रवीण शुभकामना

शुभकामना सन्देश

– प्रवीण नारायण चौधरी

अविस्मरणीय आ अभूतपूर्व विद्वान् श्री शम्भू शरण सिंह सर केर जन्मदिन पर प्रवीण शुभकामना
 
“कोनो भी सभ्यता केर विकास सँ एकटा भूगोल केर निर्माण होइत छैक, मुदा ओहि भूगोल केर सुरक्षा ओतुका संस्कृतिक विकास संग निर्वाह कैल जा सकैत छैक। मिथिलाक सभ्यता एकटा निश्चित भूगोल तय केने छैक, मुदा जेना-जेना संस्कृति मे ह्रास अबैत जा रहल छैक, एकर संरक्षण समस्या मे घेरायल देखाय लागल छैक। अत: हर सभ्यता मे विकसित लोकमानसक ई कर्तब्य बनैत छैक जे अपन संस्कृतिक विकास निरन्तर करैत रहय।”
 
– डा. शंभु शरण सिंह, इग्नु क्षेत्रीय निदेशक (ताहि समय सहरसा मे पदस्थापित)
 
प्रवीण केर जीवन मे बहुत रास अविस्मरणीय प्रकरण सब भेल छैक। एहने एकटा अविस्मरणीय दिन छल २० अगस्त २०१४, मिथिलाक दिग्गज उद्घोषक आ एकटा विलक्षण महापुरुष ‘प्रो. मायानन्द मिश्र’ केर प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित ‘मायानन्द स्मृति उत्सव’। एहि कार्यक्रम मे अतिथिक तौर पर मैथिली अभियानी प्रवीण केँ एक अभूतपूर्व विद्वान् – स्रष्टा संग मंच साझा करबाक अवसर भेटल छल, ओ विद्वान् रहथि डा. शम्भू शरण सिंह। मैथिली-मिथिला लेल सजल हरेक मंच केर सौभाग्य होइत छैक जे नहि केवल अमर विद्यापति केर साक्षात् दर्शन होयत, बल्कि अनेकों जीवित विद्यापति लोकनि संग सहजहि भेंट-साक्षात्कार अहाँ केँ भऽ जायत। एहि गुण केर कारण हमरा मैथिली-मिथिला मे परमानन्दक प्राप्ति होइत अछि। कतय पाबी विद्वान् आन समय! त, डा. सिंह जे इन्दिरा गान्धी खुला विश्वविद्यालयक क्षेत्रीय निदेशक सेहो छथि, हुनका संग भेंट एहि लेल सेहो अभूतपूर्व कहल जे हुनकर उपरोक्त कथित उक्तिक संग हरेक वाक्य हमरा लेल अमर-वाक्य छल। एकटा आर हुनकर कथन जे हमरा लेल ब्रह्मवाक्य सिद्ध भेल –
 
“भाषा सँ साहित्य, साहित्य सँ संस्कार, संस्कार सँ संस्कृति, संस्कृति सँ सभ्यता, सभ्यता सँ भूगोल” – डा. सिंह केर उद्बोधन सँ उद्धृत
 
मिथिलाक परिभाषा करैत मैथिली भाषा आ संस्कृति पर ओजस्वी सम्बोधन हमरा लेल बहुत पैघ प्रेरणादायक छल, आर ब्रह्मवाक्य एहि लेल जे यैह ‘वेदान्त’ थिक। मैथिली व मिथिला केँ परिभाषित करय लेल एहि सँ बेहतर दोसर कोनो वाक्य हमरा लेल नहि भऽ सकैत छल। हुनकर एहि उक्ति केँ हम हजारों-हजारों बेर उद्धृत करैत आबि रहल छी। हुनकर विद्वता हमरा समान नवागन्तुक मुमुक्षु आ मैथिलीसेवी लेल ‘अमृत’ सिद्ध भेल अछि।
 
अति-राजनीति सँ मिथिलाक सर्वजातीय सद्भावना केँ पछातिकाल बहुत हद तक खन्डित कय देल गेल अछि। आइ नेपाल हो या भारत, दुनू बगल के मिथिला मे ‘राजनीतिक कारण’ सँ सब अपनहि-अपनहि जाति मे ओझरायल देखाइत अछि। समग्र ‘मैथिली-मिथिला’ प्रति चिन्तन, मनन आ समर्पण विरले कोनो सपूत मे भेटि जाय, धरि सामान्य चिन्ता अपन पेटक, अपन जातीय अहंता केर आ फूसि-फटक्का देखावटी-बनावटी ‘स्वाभिमान-सम्मान’ प्रति लोक ध्यानकेन्द्रित कएने देखाइत अछि।
 
परञ्च डा. सिंह समान विद्वान् आइयो मिथिला धरती मे लगभग हरेक गाम, हर स्थान मे छथि, यैह एहि धरातलक विशेषता थिकैक। आबहु जँ मिथिला आ जनक समाजवाद केँ जीबित देखय चाहि रहल छी तऽ सब कियो एहेन विद्वान् लोकनि केँ ताकि-ताकिकय सङ्गोर बनाउ। मिथिला छैक सनातन, मुदा सनातनी सूर्यक अस्तगामी होयबाक स्थिति स्वाभाविक रूप सँ हमरा जेहेन बेटा सब केँ चिन्तित कएने अछि। यैह कार्यक्रम सँ हमरा एकटा आरो गुरुज्ञान भेटल छल – तिल आ तिलक लड्डू समान मिथिलाक बिखड़ल मोती केँ समेटबाक काज करय पड़त – ई वाक्य कहने रहथि प्रो. विद्यानन्द मिश्र, आर एहि वर्ष ठीक ऐगला मास सितम्बर केर पहिल सप्ताह खत्म होइते दिल्लीक साईंधाम सँ ‘मैथिली महायात्रा’ शुरू कयल जे एखन धरि नेपाल-भारतक विभिन्न हिस्सा धरि पहुँचैत मैथिली-मिथिलाक विभूति सब केँ समेटबाक-जोड़बाक विहंगम काज कयलक अछि। ई यात्रा हम आजीवन जारी राखि सकी, से अपने सब सँ आशीर्वाद मंगैत छी। हमहीं कि, आरो लोक सब ई काज करथि, ई यात्रा सब मिलिकय करी।
 
डा. सिंह पूज्य विद्वानक आइ जन्मदिन थिकन्हि। हुनका चरणस्पर्श करैत अपन ओजस्विताक अंश मात्र हमरो प्राप्त हो से आशीर्वाद मंगैत जन्मदिन पर अनन्त मंगलमय शुभकामना समर्पित कय रहल छी। भगवती अहाँ केँ सदिखन प्रसन्न आ सुखी, स्वस्थ, समृद्ध, सम्पन्न, समर्पित राखथि, बस यैह प्रार्थना। ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!