स्वयंसेवाक भाव सँ भाषा, भेष ओ भूषणक काज करू

बात बुझू साफ-साफ

प्रसंगः मैथिली भाषा केँ तोड़बाक कुचक्र आ अनावश्यक चिन्ता पर प्रवीण विचार

ई कलियुग थिक। एखन बेसी लोक अपन स्वार्थ आ भूख मे ओझरायल अछि। परोपकार आ दस के हित के काज लेल बहुत कम लोक उद्यत् होइछ। मैथिली आ कि मिथिला केकरो स्वार्थ नहि थिकैक। ई परोपकारी सभक स्वनिर्णय थिकैक। एहि मे काज करनिहार पर निकम्मा, ढोंगी, जातिवादी, स्वार्थी, आदि अपनहि भावे दोख आ कलंक दैत रहैत छैक। हमरा स्वयं कतेको सँ एहि तरहक उल्हन, उपराग, राग, अलाप, आदि सुनय पड़ल अछि। एखनहुँ कतेको लोक हमर समर्पणक प्रशंसा त छोड़ू उल्टा समर्पण केर पाछू कपोलकल्पित आ भ्रमपूर्ण बात सब करैत अछि। मुदा सच कहू त ओकर ओ उल्टा जप के कारण हमरा ईश्वर केर असीम कृपा आरो बेसी भेटैत अछि। अलौकिकताक अनुभव हम मैथिली के काज करैत-करैत पिछला १० वर्ष मे खूब कयलहुँ अछि।

 
एहेन नहि छैक जे ईश्वरक कृपा पहिने नहि अनुभव कएने रही… पहिनहुँ कृपा सीताराम केर रहबे करनि जे गरीबी आ संघर्ष मे रहल छात्र जीवन सँ तत्काले नीक रास्ता – एक शिक्षक आ विदेश व्यापार कन्सल्टैन्ट केर तौर पर विराटनगर जेहेन जगह मे सफल व्यक्ति (पेशाकर्मी) बनौलनि, लेकिन जहिया सँ बिना जाति, धर्म आ अन्ट-शन्ट अहंताक कोनो बात देखने केवल अपन भाषा आ भाषाभाषी लेल काज करब शुरू कयलहुँ, कोनो छोटो टा के काज पूर्ण कयलहुँ, आ कि तुरन्त जानकीकृपा विशेष रूप सँ भेटल। हमर आस्था दिन ब दिन मजबूत होइत चलि गेल। सफलता सँ डाह आ ईर्ष्या कयनिहारक संख्या स्वाभाविके राक्षस जेकाँ अभरैत रहल, लेकिन ओ सब स्वतः रावणक भोग पबैत स्वतः मोक्ष पबैत चलि गेल अछि। हम शपथपूर्वक कहि रहल छी जे हमरा आइ धरि ओहि दुर्जन सब पर आंगुरो उठेबाक जरूरत नहि पड़ल। शरणागतवत्सल भगवान् शरणागत भक्तक रक्षा ओहिना करैत छथि जेना बालक ध्रुव आ प्रह्लाद सहित कतेको प्रसिद्ध संकटग्रस्त भक्तक कयलनि। तेँ, मैथिली-मिथिला सेवक लोकनि! अहाँ सब आश्वस्त रहू आ अपन स्वयंसेवा केँ समाजक हित आ परोपकार मे बढबैत रहू। अहाँ केँ मोक्ष जरूर भेटत।
 
बेर-बेर चर्चा अबैत छैक जे मैथिली भाषा केँ सब नहि अपनबैत अछि, ई टूटि रहल अछि, कियो बज्जिका मे, कियो अंगिका मे, कियो मगही मे… आदि-आदि… जे टूटल ओकर हश्र कि भेल आ कि होइत छैक तेकर सेहो अध्ययन करियौक। हमर अध्ययन एहि तरहक लोक प्रति बड़ा स्पष्ट अछि – ओ धोबियाक कुकूर जेकाँ भेल देखायल, ओ कतहु भऽ कय नहि रहि सकल, न घरे के, न घाटे के। मैथिलीक दिन सुदिने रहलैक, मैथिलेतर लोक केर साहित्य देखू, शब्दकोश देखू, व्याकरण देखू, शिक्षा-दीक्षा देखू, सामाजिक संस्कार आ व्यवहार देखू… समग्र विकास देखू – ओ घिसियौर कटैत नहि अभरय त जे कहू। तेँ, हम-अहाँ मैथिलीक चिन्ता बेसी नहि कय सिर्फ अपन समाज केँ जगाउ, बुझाउ, बस।
 
हरिः हरः!!