मिथिला समाज मे दहेज प्रथा कहियो नहि छल, कन्यादान संग गृहस्थी उपयोगी सामानक दान स्वेच्छा सँ

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

दान आ दहेज मे फरक

अहाँक याद होयत, एक बेर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बड़ा स्पष्ट तौर पर अन्तर्वार्ता मे पूछल एक सवाल ‘भ्रष्टाचार कहिया धरि खत्म होयत?’ केर जवाब मे कहलखिन जे ई तुरन्त खत्म नहि कयल जा सकैत अछि, कम करबाक वचन दैत छी आ खत्म होइ मे समय लागत। नरेन्द्र मोदी २००१ सँ लगातार ‘स्टेटमैन’ केर रूप मे पहिने एकटा राज्यक मुखिया बनिकय जनताक हृदय पर राज करैत अविजित यात्रा कयलनि, फेर देशक प्रधानमंत्री बनिकय अविजित यात्रा निरन्तरता मे छन्हि। एतेक उच्च कद केर नेताक जवाब मे स्पष्ट रूप सँ कहल गेल – भ्रष्टाचार खत्म होइ मे समय लागत। ई धीरे-धीरे कम होइत जायत।

 
दहेज सेहो एक भ्रष्टाचार थिकैक। एकरो तुरन्त खत्म करब संभव नहि छैक। लेकिन कम कयल जा सकैत छैक। आ कम करबाक जिम्मेदारी अपना सँ शुरू होइत छैक। पहिने हम स्वच्छ बनब तखन न दोसर हमर अनुकरण करत। एहि भावना सँ दहेज मुक्त मिथिलाक परिकल्पना छैक।
 
एकटा उदाहरण लियौक –
 
एकटा बहुत प्रतिष्ठित गाम मे उच्च-प्रतिष्ठित लोक सब रहैत छलाह। उच्च कुल-मूल-शील केर ब्राह्मण लोकनि संग आनो जाति-समुदाय मे शिक्षा आ संस्कार उच्चकोटि केर छल। ओहि गाम मे दहेज जे लेथि हुनका घर मे अनिष्ट होबय लागय। एकटा प्रकाण्ड ज्योतिष ई सत्य केँ अन्वेषण कयलनि आ धीरे-धीरे गाम भरि मे शोर भऽ गेलैक जे दहेजक पाय हमरा सभक गामक देवता केँ पसीन नहि पड़ैत छन्हि आ जे ई गलत काज करब त दुष्परिणाम स्वयं भोगब। ३-४ टा घटना एहि तरहक भऽ गेल छलैक। आर लोक सब बात-बात मे ओहि घटना सभक सन्दर्भ दय देल करैक। ई गाम दहेज मुक्त गाम बनि गेल। आइ धरि ओहि गाम के कोनो परिवार मे न दहेज के चर्चा कयल जाइत छैक आ नहिये टका-पैसाक लोभ मे लोक बेमेल विवाह करैत अछि। आर एहि तरहें पीढी-दर-पीढी जे सन्तान आबि रहल छैक ओ सब शूरवीर – सभक सौर्य केर जतेक सराहना करब से कम होयत। एहि बातक चर्चा चारूकात कयल जाइत छैक। गामक प्रसिद्धि आ प्रतिष्ठा एतबे उच्चकोटिक छैक जे केकरो विवाह अत्यन्त उपयुक्त समय मे सहजता सँ भऽ जाइत छैक। बाहरी गामक लोक सब केँ पता रहैत छैक जे ओहि गाम मे बेटी वा बेटाक विवाह करब त जीवन बनि जायत, आर विवाह करबाक मुख्य आधार टका-पैसा नहि बल्कि विवाह करयवला बेटा वा बेटीक अपन प्रतिभा, क्षमता, सामर्थ्य, गुण, धर्म, शील व सौरव मात्र होयत। तेँ ओ विशुद्ध ‘दहेज मुक्त मिथिला’ थिकैक।
 
ईहो कहय मे अतिश्योक्ति नहि होयत जे ओहि गामक बगलहि केर गाम मे फेर दहेज लैत छैक त अनिष्ट-फनिष्ट पर लोकक ध्यानहु नहि जाइत छैक। सन्तान सब बक्रबुद्धि आ मचन्ड प्रकृतिक जन्म लेलक त ‘मर्दक बेटा, वीर बेटा, आदि’ संज्ञा दय केँ लोक अपना केँ बौंसि लैत अछि। बेसी घर मे ग्रेजुएशनो तक पढाई करबाक वा करेबाक अवस्था नहि छैक। बस, जुआ, चोरी, डकैती, हत्या, हिन्सा, लूटपाट आ कि ठगी – जाहि विधिये हो बस टका कमा। टकहि कर्मा, टकहि धर्मा!! आब अहाँ स्वयं सोचू जे ओतय दहेज प्रथा केर अवस्था कोन स्तर पर हेतैक! एहि गाम के लोकक बीच कय बेर पड़ोसी प्रतिष्ठित गामक चर्चा होइत अछि त सब कियो रावण दरबार केर दरबारी जेकाँ ठहाका मारिकय हँसत आ गामक लोक सब केँ नामर्द, नपुंसक, शिखंडी, डरपोक, मौगियाह, आदि अनेकों संज्ञा दैत अपन पीठ अपनहि सँ ठोकैत एक पवित्र गामक खिल्ली उड़बैत भेटत। ईर्ष्या केर मात्रा एतबे जे ओहि नीक गामक धियापुता केँ देखैत देरी एहि गामक बच्चा-बच्चाक खून खौलय लगैत छैक। बिना कारणे झगड़ा-झंझटि मे ओकरा सब केँ फँसाकय मारिपीट करय सँ सेहो परहेज नहि। बिल्कुल मानू जेना देवलोक आ असुरलोक केर हिसाब होइक। अर्थात् ई गाम भेल ‘दहेज युक्त मिथिला’।
 
आरो गाम सभ मे एहि बातक चर्चा चलैत छैक। एहि दुइ गाम केर उदाहरण दूर-दूर धरि लोक सब लैत भेटायत। जाहि गाम मे सब तरहक लोक अछि ओतय धरि बड़ा निरपेक्षता सँ दहेज केर जरूरी वा परित्याग केर विश्लेषण कयल जाइछ। ओहि ठाम मुंहपुरुख सब एकत्रित भऽ अपनहि मे तर्क-कुतर्क करैत घोंघाउज करैत भेटाइत रहता। एक दिन एहने एक गाम सँ गुजरैत रही त एक गोट जेन्टलमैन हमरा देखाकय हँसी उड़ेबाक अन्दाज मे टाउन्ट मारैत कहलखिन जे यैह थिकाह ‘पीएनसी’, सोशल मीडिया मे दहेज मुक्त के अभियान चलबैत छथि, मिथिलाक सरजमीन पर विरले कोनो गाम मे दहेज मुक्ति केर बात संभव भऽ सकल आइ धरि। ओतबे मे कियो गोटे हमरा टोकैत बजा लेलाह, “आउ, आउ! प्रवीण जी, आइ अहींक विषय पर हम सब बात कय रहल छी।” हम दहेजक विषय पर एखन धरि ततेक लोक सँ ततेक पक्ष-विपक्ष सुनि चुकल छी जे आब कतहु ई डिबेट देखैत छियैक त अपने-आप विहुँसब हमर प्रकृति बनि चुकल अछि। हम सब केँ नमस्कार करैत नजदीक भेलहुँ आ हुनका सब सँ जिज्ञासा रखलहुँ, ‘हमरे विषय माने दहेज प्रथा की?’, ताहि पर ओ सब बजलाह हँ।
 
हुनकर सभक ऐगला प्रश्न रहनि जे अपने त इन्टरनेट के संजाल पर मिथिलाक लोक सभक व्यवहारक जानकारी रखैत छी से कहिया धरि उम्मीद अछि जे मिथिला दहेज प्रथाक परित्याग कय देत। हम कहलियनि जे भले हम इन्टरनेट आ सामाजिक संजाल केर जरिये करोड़ों मैथिलजन सँ नित्य रूबरू होइत होइ, मुदा लोकक संस्कार, शिक्षा, आचरण, विचार आ अपन जीवन केँ चलेबाक ओकर निजी स्वतंत्रता – एहि मे स्वयं केँ फँसेनाय व्यर्थ बुझैत छी। हम स्वयं दहेज मुक्त छी, अपन जीवन मे विवाहक अर्थ एक यज्ञ समान उच्चस्तरक मानैत छी। आर तेँ स्वेच्छाचारिता धर्मक अनुकरण करब कर्तव्य छी से बुझैत छी। हँ, हमर एहि सिद्धान्त सँ आरो लोक प्रभावित-प्रेरित होइथ आर ओ यदि एहि मे अपन कल्याण आ जीवन सफल होयबाक आध्यात्मिक भान – वास्तविक सत्य केँ आत्मसात कय सकथि तऽ हुनकर स्वागत अछि। एहि तरहें हम सब समान विचारधाराक लोक जे होयब अथवा छी से ‘दहेज मुक्त मिथिला’ छी। आपस मे कुटमैती आ सम्बन्ध केँ आगाँ बढबैत मानव समाज केर हित कय सकी, यैह टा हमर अन्तिम निर्णय अछि।
 
“से त सही बात, जेहेन अपने रही तेहने कुटुम्ब करी। एहि तरहें जँ जीवन पार लागि जाय तखन त बाते की! सब दहेज मुक्त मिथिला बनि जायत।” – आदि सकारात्मक प्रतिक्रिया दैत गामक मचान केर प्रचलित नियमानुसार चाह-पान करैत आगू बढय सँ पहिने एक गोटा आर प्रश्न पूछि देलाह। “दहेज प्रथा केर कारण लोक केँ जे सुभिस्ता होइत छन्हि, बेटीक पैतृक सम्पत्तिक अंश सहित हुनका लेल नीक घर-वर केर चयन हेतु एकटा ठोस माध्यम थिकैक दहेज। एहि पर अहाँक कि कथन अछि?” हुनका बुझबैत कहलियनि, “बेटी आ कि बेटा, दुनू समान रूप सँ जाहि परिवार मे पालल-पोसल जेथिन त हुनकर परिवार मे विवाह करेबाक कार्य सेहो अभिभावक अपन जिम्मेदारी बुझैत अपन शेखी-सम्पत्ति मुताबिक उचित वर वा कन्याक खोज करथिन्ह। आर खोज पूरा करबाक लेल भ्रष्टाचारिता माने घूस जेकाँ दहेज गानिकय अपन लिलसा पूर्ति लेल सोचथिन्ह त अहाँक कथन सही अछि। आ यदि खोज मे केवल बेटी व बेटाक वास्ते वर या कन्याक आत्मा-मनक मिलानी लेल सोचथिन त दहेज नाम्ना घूसक आधार कदापि नहि अओतनि।”
 
एकटा बात आर फरिछेलियनि जे स्वेच्छा सँ बेटीक विदाई (कन्यादान) लेल जे किछु धन अथवा उपहार देल जाइछ ओकरा दहेज नहि कहल जाइछ, ओ दान भेल। दान कथमपि वर आ कि वरक माय-बाप-परिजनक मांग पर नहि देल जाइछ। अपन-अपन सामर्थ्य आ कुटुम्बजनक प्रसन्नता वास्ते स्वेच्छा सँ देल जायवला उपहार केँ कदापि दहेज नहि कहि सकैत छी। दान शब्द मे पवित्रता छैक। दहेज मे अपवित्रता छैक। दानक चीज-वस्तु सब आरो लोक देखिकय प्रसन्न भेल करय। ओकर सराहना होइक। मुदा यैह चीज जखन तरे-तरे माँगिकय कुटुम्ब सँ लेल जाय लागल आ गामक लोक केँ हकारिकय देखाओल जाय लागल, तखनहि सँ ई दहेज प्रथा, तिलक, आदिक रूप मे समाज लेल अनिष्टकारी भऽ गेल। मिथिलाक विगत इतिहास मे मात्र ३-४ दशक मे ई उग्र रूप धय लेलक, ताहि सँ पहिने केवल दान कयल जाइत छल। कतेको लोक बेटी केँ जमाय सहित गामहि मे बसबैत सेहो छलाह। ‘भगिनमान परिवार’ केर परिकल्पना आइयो धरि कतेको प्रतिष्ठित गाम मे भेटैत अछि। तेँ दहेज जेहेन घूस आ अत्याचारी प्रवृत्ति केँ दान सँ तुलना करब सही नहि। कोनो बेटीक पिता सामर्थ्यवान रहैत बेटीक विदाई पर कंजूसाइ कयलाह – ओकर भविष्यक गृहस्थी लेल ओकर अंश अनुसार दान नहि कयलनि त हुनकर घिनताई हेतनि। समाज थू-थू करतनि। दानहु केर उचित मापदंड शास्त्र कहलक। नचिकेता द्वारा पिता वाजश्रवा केँ बूढ गाय केर दान करैत देखि ओ बालक पिता सँ विनती कयने रहथि, बरु हमरा केकरो दान मे दय दिअ लेकिन ई बूढ गाय जे दान कय रहल छी से जघन्य पाप कय रहल छी पिताजी… ओ टोकि देने रहथिन आ ताहि पर तामशे लाल हुनक पिता नचिकेता केँ मृत्यु केँ दान दय देने छलखिन। याद होयत, ई कथा हमरा लोकनि बालकक्षा मे पढने रही।
 
निष्कर्षतः ई अपन विचार केर बात भेल जे अहाँ अपन जीवन मे पवित्रता आ कि अपवित्रता – कोन तरहक धर्म निभेबाक वास्ते संकल्प लैत छी। यदि जीवन आ पवित्रताक अर्थ मनन कएने रहब त कथमपि दहेजरूपी घूस दय केँ बेटा-बेटी लेल पाप अर्जित नहि करब। स्वेच्छा सँ नीक काज करय लेल लाख खर्च कयलहुँ, करोड़ों के उपहार देलियैक, तेकरा ‘दहेज’ कहबाक अधिकार केकरो नहि छैक। अहाँक पास छल, बेटीक अंश बुझि अहाँ देलियैक। बस। आर यदि अहाँ सेहो ढिंढोरा पीटिकय संसार केँ देखबय लगलहुँ जे देखू-देखू, हे ई समान, हे एना गाड़ी, हे पेटार मे एतेक, गहना मे एतेक भइर, साड़ी बनारसी एतेक जोड़ी, जमाय केँ फल्लाँ ब्रान्डक जुत्ता त फल्लाँ ब्रान्डक सूट… ई सब पुनः पापाचार आ भौतिकतावादक पृष्ठपोषक होयत, कदापि दहेज मुक्त मिथिला नहि होयत। अतः पवित्रता आ स्वेच्छाचारिताक धर्मक विकास करब त स्वतः दहेज मुक्त मिथिला होयत। ई अहाँ पर निर्भर करैत अछि जे श्रेष्ठ आ मोक्षगामी बाट चलब या फेर स्वयं निम्न योनि मे जन्म लय दंड भोगब, ई सभक अपन स्वतंत्रता थिक। सब एक समान उच्च या नीच अपन कर्महि केर कारण बनैत अछि। ॐ तत्सत्! शायद बुझनिहार बुझलनि। जे नहि बुझलनि तिनको प्रणाम!
 
हरिः हरः!!