परस्पर प्रतिस्पर्धा या आपस मे घात-प्रतिघात

मिथिलाक महापुरुष सब पर आक्षेपक पड़ताल

– प्रवीण नारायण चौधरी

किछु दिन पहिने एकटा लेख मार्फत मिथलाक लोकक कूटनीति-रणनीति सँ नौकरशाहीक क्षेत्र मे उल्लेख्य कथा-गाथा पठेबाक अनुरोध कएने रही। किछु कथा एहेन आयल अछि जे पढिकय हमर मस्तिष्क मे एकटा सवाल ठाढ भेल अछि। कथा सेहो कोनो बेसी दूर के नहि, आ नहिये कोनो बेसी अन्चिन्हार लोकक अछि। सामान्य पाठक लेल सेहो सुपरिचित चेहरा – बिहारक पूर्व डीजीपी रामचन्द्र खान जेहेन प्रतिष्ठित आ ईमानदार लोक केँ कोना फँसाओल गेल आ ३४ वर्षक बाद ताहि लेल ३ वर्षक सजाय सुना देल गेल।

 
उपरोक्त केसक तह मे गेला सँ पता चलैत अछि जे आईपीएस रामचन्द्र खान १९८६ मे राँची मे पदस्थापित छलाह, ताहि समय बिहार आ झारखंड संयुक्त छलैक। विभागीय बजट व्यवस्थापनक जिम्मेदारी हिनकहि ऊपर छलन्हि। आरोप लगलैन जे वर्दीक दाम वाजिब दर सँ फाजिल स्वीकृत कयलाह, नियम आदिक अनदेखी कय केँ वर्दी आपूर्तिकर्ताक चयन कयलाह, आदि। एहि मे हिनका सहित कुल १० गोट लोक केँ आरोपी बनौने छल भ्रष्टाचार अधिनियम अन्तर्गत सीबीआई। १९८६ सँ केस चलैत-चलैत २००७ मे आबिकय चार्जशीट फाइनल कयल गेलनि। जखन कि श्री खान २००२ मे रिटायर कय गेल छलाह। पुनः २०१६ मे एक बेन्च हिनका सहित ८ आरोपी पदाधिकारी केँ ‘सबूतक अभाव’ मे आरोप-मुक्त सेहो कय देलकनि – परञ्च फेर कोनो विरोधी लोक जे जानि-बुझिकय हिनकर ईमानदार छवि केँ कलंकित करय चाहि रहल छल ओ गवाही दैत २०१७ मे ३ वर्षक सजाय तय करबा देलकनि।
 
 
केस चलेबाक प्रक्रिया आ फैसला देबाक समय पर मंथन करब तँ एतबे बुझू कि एहि बीच ६ आरोपी स्वर्गवासी सेहो भऽ गेल छलाह।
 
एहेन-एहेन दू टा आरो प्रसिद्ध चेहरा (श्री रत्नेश्वर मिश्र व श्री उपेन्द्र ठाकुर) केर नाम एखन धरि भेटल अछि जे अपन पद आ अधिकार संग कहियो गलती नहि कयलनि, लेकिन कोनो न कोनो ढंग सँ हुनकर लोकप्रियता सँ जलन-ईर्ष्या कयनिहार व्यक्ति वा व्यक्तिक समूह द्वारा जाल बिछाकय फँसायल गेलाह। ईहो कथाक वर्णन फेर कहियो लिखब।
 
रामचन्द्र खान केँ चिन्हनिहार प्रथम श्रेणीक पदाधिकारी लोकनिक बीच एक अलग छवि एखनहुँ स्थापित छन्हि। ओ सब एतबे कहैत छथि जे श्री खान एक ईमानदार पदाधिकारी रहलाह, लेकिन गंदा राजनीति मे फँसाओल गेलनि। एकर गहिंराई मे गेला सँ पता चलैत अछि जे एक ईमानदार आ लोकप्रिय पदाधिकारीक साख पर बट्टा लगेनिहार भ्रष्ट लोकक समूह सब ठाम रहैत छैक, ओकर स्वार्थ कतहु पूरा नहि भेला पर वैह सब पाछाँ पड़िकय कोनो न कोनो वियौंत सँ फँसा दैत छैक।
 
हरिः हरः!!