दौरमा गामक लोकआस्था आ परम्परा पर आपत्तिजनक टीका-टिप्पणी कियैक?

दोरमा (सहरसा) भगवती पर भैरवलाल दासक विवादित बयान केर भर्त्सना आ चौतर्फा विरोध भेल

सांस्कृतिक-पुरातात्विक संपदाक चोर-तस्करक गिरोह मिथिला मे सक्रिय

विश्व भरि मे महत्वपूर्ण एन्टिक्स केर चोरी-तस्करीक समाचार सुनिते रही, आब मिथिला मे सेहो विगत किछु वर्ष सँ एहि तरहक चोरी काफी उच्चस्तर पर घटि रहल अछि। देखिते-देखिते हमरा नजरि मे मात्र रहुआ (मधुबनी) केर पारसनाथ महादेव केर चोरी, कुर्सों राम-जानकी मन्दिर सँ मूर्तिक चोरी, दसौतक राधाकृष्ण मन्दिर सँ राधाकृष्णक विलक्षण आ अति प्रसिद्ध मूर्तिक चोरी… संगहि आरो-आरो कतेको ठाम सँ अमूल्य सांस्कृतिक सम्पदाक चोरी केर घटना घटैत देखल-सुनल अछि एहि विगत केर १० वर्ष मे।

ई लेख ओना हम बड़ा अनमनस्कता सँ लिखि रहल छी। करीब ५-६ वर्ष सँ एहि विन्दु पर किछु लिखय सँ अपना केँ रोकैत रहलहुँ… लेकिन आब लिखबाक आवश्यकता मात्र नहि अनिवार्यता सेहो देखैत लिखि रहल छी।

मैथिली भाषा व मिथिला संस्कृति केर अभियान मे पैछला एक दशक केर सक्रियता बहुत रास विन्दु पर अध्ययन, मनन आ चिन्तन लेल प्रेरित करैत रहल अछि। ताहि मे पुरातात्विक खोजबीन संग पुरातन लेख, पान्डुलिपि, लिपि, मूर्ति, मानव उपभोग्य अन्य चीज-वस्तु जे उत्खनन आदि सँ प्राप्त भेल; ईहो एक महत्वपूर्ण विषय रहल।

एहि चिन्तन-मनन केर क्रम मे २०१६ मे विराटनगर मे ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल सामाजिक अभियन्ता सम्मेलन’ द्वारा नेपाल पुरातत्व विभागक डाइरेक्टर जेनरल भेष नारायण दाहाल केर प्रमुख आतिथ्य एवं वरिष्ठ पुरातत्वविद् डा. तारानन्द मिश्र (हालहि स्वर्गीय), इं. गोपाल झा, इतिवासविद् प्रो. वासुदेवलाल दास, अन्वेषक श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’, अन्वेषक निराजन झा तथा विभिन्न व्यक्तित्वक संग आयोजित द्विदिवसीय सम्मेलन सेहो अत्यन्त महत्वपूर्ण होयबाक तथ्य सर्वविदिते अछि।

यैह सम्मेलन मे ‘मिथिला भारती’ नामक शोधपत्रिकाक संपादकद्वय शिवकुमार मिश्र एवं भैरवलाल दास भारत सँ आमंत्रित छलाह जे उपस्थित नहि भेलाह। संगहि भारत सँ मुख्य अतिथिक रूप मे डा. फणिकान्त मिश्र, क्षेत्रीय निदेशक, भारतीय पुरातन विभाग (कोलकाता) सेहो आमंत्रित छलाह जे किछु कार्य-व्यस्तताक कारण नहि आबि सकल छलाह। तथापि, नेपालक मिथिलाक्षेत्रक विभिन्न पुरातात्विक महत्वक स्थल यथा सिमरौनगढ, मूर्तिया, बनैली, सप्तरी, धनुषा, महोत्तरी, सर्लाही आदिक संग मोरंग, झापा, सुनसरीक अवस्था पर विशेष चिन्तन-मनन कयल गेल छल।

पुरातत्त्वक सर्वथा सहज स्वरूप मिथिलाक गाम-गाम मे उपलब्ध

हम-अहाँ जाहि मिथिला सभ्यताक वर्तमान सन्तति छी ओतय पुरातात्विक महत्वक अनेकौं उदाहरण गाम-गाम आ ठाम-ठाम पर देखय लेल भेटि जाइत अछि।

हमर अपनहि गाम मे अंकुरित भगवती दुर्गा, काली, भैरवी, विन्ध्यवासिनी, शीतला सहित पाँच देवीक एक चाल मे, तहिना भगवान् चतुर्भुज नारायण संग लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, ऋद्दि-सिद्धि आदि दोसर चाल मे तथा तेसर चाल मे सूर्यनारायण, शंकरजी आदि देवी-देवताक अति प्राचीन मूर्ति सहितक मन्दिर अछि। लगभग ३०० वर्ष पहिने बड़की पोखरि केर खनन सँ प्राप्त ई सब मूर्ति बहुतो वर्ष धरि अपूजित अवस्था मे पिपरक गाछक जड़ि मे राखल रहल, जेकरा स्व. हलधर नारायण चौधरीक संकल्पपर मिलिजुलिकय दियाद-वाद आ ग्रामीण लोकनि मन्दिर मे स्थापित कयलनि आर एहि तरहें आजुक समय मे ई मन्दिर पूरे इलाका मे अपन अलग प्रतिष्ठा संग विद्यमान अछि।

किछु एहिना अलग-अलग स्थान पर प्राचीन मूर्ति प्राप्तिक संग मन्दिर स्थापित करबाक कइएक उदाहरण भेटैत अछि। जाहि ठाम जेहेन आस्था, ताहि ठाम तेहेन स्वरूप! धर्म-कर्म पूर्णरूपेण लोकक आस्था पर निर्भर करैत अछि। किछु वर्ष पूर्व धरि गाछहि केर जड़ि मे राखल अनेकौं प्राचीनकालक मूर्तिक कथा सुप्रसिद्ध गाम करियन केर पढने रही।

आजुक सन्दर्भः सांस्कृतिक धरोहर केर चोरीक अपराध आ सक्रिय गिरोह

वर्तमान समय मे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार मे एहि तरहक प्राचीन मूर्तिक कीमत काफी उच्च भऽ गेल अछि। ई मात्र मिथिलहि नहि, संसार भरिक जतय कतहु विकसित सभ्यताक ट्रेस भेटैत अछि, जाहि-जाहि ठाम प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर आदि उत्खनन वा सामान्य गृहस्थीकार्य वा गृह-निर्माण आदिक उद्देश्य सँ कयल गेल खनन कार्य सँ प्राप्त होइत अछि – ताहि सब मूर्ति एवं पुरातात्विक अवशेष केर अपन विशेष महत्व होयबाक कारण चोरी आ अवैध तस्करी, बिक्री आदि कयल जा रहल अछि। एहि सन्दर्भ मे राष्ट्र संघ तक चिन्ता करैत उचित शोधकार्य उपरान्त एहेन अपराध केँ नियंत्रित करबाक लेल उचित परामर्श सेहो जारी कएने अछि। विशेष रूप सँ इराक जतय किछु वर्ष पूर्व धरि काफी उद्वेलनक अवस्था रहल, ओतुका उदाहरण लैत युनाइटेड नेशन्स द्वारा एकटा डाक्युमेन्ट जारी कयल गेल अछि – UNODC 2016 ।

एहि डाक्युमेन्ट मे सांस्कृतिक सम्पदाक चोरी-तस्करी-बिक्री आदि केँ ‘संगठित अपराध’ केर श्रेणी मे राखि विश्व मानव समुदाय केँ सचेत कयल गेल अछि। एकर गहींर अध्ययन सँ पता चलैत अछि जे एहि अपराध मे आखिर के शामिल अछि। निम्न उद्धृत पाँति सँ एहि अपराधक कारक तत्त्व सँ हम-अहाँ परिचित होइत छी –

“There is little systematic study of those who engage in the theft, trafficking, and sale of cultural property. A number of cases of museum and private residence thefts appear unsophisticated with small groups of thieves taking advantage of poor security measures (Council for Museums, Archives and Libraries, 2003). On the other hand, the ability to sell this stolen or looted merchandise for higher prices than those offered by pawn shops requires contacts and connections beyond the ability of small-scale criminals. Selling stolen art, for instance, often involves the corrupt or negligent assistance or facilitation of those working at art galleries, auction houses, transport companies, curators, insurance companies, or government officials.”

स्पष्ट छैक जे ई चोरी-तस्करी संग्रहालय वा निजी सम्पत्तिक स्थानीय व्यवस्थापक, रख-रखाव कयनिहार वा सम्बन्धित व्यक्तिक संग मिलीभगत मे कयल जाइत अछि। पुनः चोरी कयल गेल सम्पत्तिक नीक मूल्य कतय भेटत ताहि लेल बड़ा छुपा रुस्तम टाइप के गिरोह सक्रिय रहैत अछि।

केना होइत छैक ई संगठित अपराध

जैह रक्षक, वैह भक्षक! जेकरा ऊपर कोनो बौद्धिक पुरातन सामग्री (सम्पदा) केर रक्षाक भार रहैत छैक वैह कोनो न कोनो रूप मे चोर-तस्कर लेल माध्यम बनि एहि तरहक अपराध केँ बढावा दैत अछि। ओ महज किछेक धन केर लोभ मे एहि तरहक प्रवृत्ति सँ अपन जिम्मेदारी केँ लीलाम करैत अछि। भले ओ मिथिला केर हुअय वा कोनो दोसर महत्वपूर्ण सभ्यता-संस्कृति केर – सोझाँ सँ रक्षक बनिकय आओत, पाछाँ सँ ओकरा रहैत ओकरहि संस्थान सँ चोरी होयत आर ओ मुंह तकैत अपना केँ असहाय रूप मे प्रकट करत। कियैक तँ भीतर सँ एहि अपराध मे ओ संलिप्त अछि।

मिथिला मे सक्रिय एक एहनो गिरोह

अक्सर देखल अछि जे कोनो खनन कार्य सँ प्राप्त प्राचीन मूर्ति केर अध्ययन लेल कथित पुरातत्त्वविद् तुरन्त अपन असला-खसला लय केँ ओतय पहुँचि जाइत अछि। पुरातन विज्ञान केर नाम पर अनेकों तरहक राय-मशवरा देबय लगैत अछि। ओकर भितरी इच्छा यैह रहैत छैक जे ओहि मूर्ति केँ ओ संग्रहालय मे पहुँचाबय। संग्रहालय मे ओहि पर आर गहींर अध्ययन करबाक संग ओकर सुरक्षाक मुख्य आ पुनीत उद्देश्य रहैत छैक। परन्तु किछु वर्ष पूर्व मे संग्रहालय सँ चोरीक घटना सोझाँ आयल छल। विश्वविद्यालयक संग्रहालय सँ कीमती पान्डुलिपि केर सेहो चोरी भेलैक। एहि तरहक घटना निरन्तर होइत रहैत छैक। कतेक बात प्रकाश मे नहियो आयल लेकिन दुर्घटना घटि चुकल रहैत छैक।

एकटा समूह एहनो अछि जे योग्यता सँ पुरातत्वविद् नहि थिक। जबरदस्ती अपना आप केँ मिथिलाक संस्कृति केर पोषक बना बैसैत अछि। डा. फणिकान्त मिश्र, अवकाशप्राप्त क्षेत्रीय निदेशक (भारतीय पुरातत्व विभाग) अपन भावना साझा करैत मिथिलाक्षेत्रक गिरोहक रहस्योद्घाटन करैत छथि। ओ कहैत छथि जे जाहि व्यक्तिक योग्यता आर्कियोलौजिकल फील्ड मे जीरो अछि, आइ धरि कोनो मोनुमेन्ट केर संरक्षण या साइट केर एक्सकावेशन (उत्खनन) केर किछु जानकारी नहि, ओहो लोकनि एहि विषय पर सामाजिक संजाल मे अपन दावेदारी एना रखैत छथि जेना सब बातक जानकारी हिनका सभक पास हो।

श्री मिश्र सवाल पुछैत कहैत छथि, “एखन धरिक चोरी भेल मूर्तिक कोनो सूची रखने अछि ई गिरोह? चोरी रोकय अथवा चोरायल गेल अमूल्य धरोहरक बचाबय-ताकय मे कि योगदान? सिर्फ बात टा बनेनाय, नहि कि आइ धरि राज्य अथवा केन्द्र केर पुरातत्व विभाग सँ कतहु संरक्षण-संवर्धन काज करा सकबाक रेकर्ड! नहिये कोनो प्रस्ताव आइ धरि ई लोकनि देलाह। बलिराजगढ़ पर पर्यन्त कोनो योगदान नहि – जे भारत सरकार साइट केर खुदाइ कराबय। तखन फेर हावादारी बात कयला सँ निश्चित एहि गिरोह पर शंका होइत अछि जे कहीं फायदा पहुँचेबाक नौटंकी कय अन्दरे-अन्दर नुकसान त नहि कय रहल अछि ई गिरोह।”

दौरमा मन्दिर पर गिरोहक नजरि

सहरसाक सत्तरकटैया प्रखण्ड मे एक प्रसिद्ध दुर्गा मन्दिर अछि ‘दौरमा’ गाम मे। मिथिलाक लिपि आ बौद्धिक सम्पदा, ऐतिहासिक खोज व शोध आदि पर समय-समय पर अपन विचार रखनिहार विद्वान् भैरवलाल दास सामाजिक संजाल (फेसबुक) मे एकटा अत्यन्त आपत्तिजनक पोस्ट लिखैत कहैत छथि –

“लेकिन दौरमा के पण्डित लोग ‘बौरा’ गए हैं। कर्णाटकालीन विष्णु की प्रतिमा को ‘पटककर’ लिंग परिवर्तन करा दिया गया है। ‘ओरिजिनल’ आंख फोड़ दिया गया है, बदले में चांदी का आंख लगा दिया गया है। विष्णुजी के नाक में नथिया पहना दिया गया है और गले में ‘हंसुली’ डाल दिया गया है। धोती के बदले साड़ी पहनाकर एकदम ‘दुर्गाजी’ का लुक दे दिया गया। कमल की आकृृ‍‍ति तो दूर से ही ‍दिखती है, कपडा हटाकर देखा जाए तो लक्ष्मी और सरस्वती के भी दर्शन हो जाएंगे। दुर्गा मंदिर के नाम से प्रसिद्धि दिलाकर धर्म का बड़ा बाजार खड़ा कर दिया गया है। विष्णुजी की मूर्त्ति के सामने बलि-प्रदान। लिखने में भी पाप लग रहा है। लेकिन दौरमा के पण्डितों द्वारा वर्षों-वर्ष से यह अन्याय किया जा रहा है। मंदिर के अंदर मूर्त्ति को ऐसे छिपाकर रखी गई है कि इस रहस्य को कोई जान भी नहीं सकता। मूर्त्ति का फोटो लेने जाइए तो पूजारी एक ही सांस में कह देगा – सेक्रेटरी साहब अमेरिका गए हैं, आएंगे तो बात कर लीजिएगा। फोटो नहीं लेने दिया जाएगा। धर्म का बाजारीकरण तो जायज है लेकिन विष्णु की मूर्त्ति का लिंग परिवर्तन और धर्म परिवर्तन कर सामने में बलि-प्रदान। हरि: हरि:, विष्ण: विष्णु:”

हुनक एहि लेख मे आरो ब्राह्मण जातिक आस्था, विश्वास, परम्परा आ व्यवहार मे मांसाहार आदिक बात कयल गेल अछि।

हिनक एहि पोस्ट मे लगभग ७० गोटे केँ टैग कयल गेल अछि। ताहि टैग व्यक्ति सभ द्वारा सेहो उपरोक्त मूर्तिक लिंग परिवर्तन आ बलि-प्रथाक परम्परा पर आँखि मुँदि धड़ल्ले सँ कतेको रास संवेदनशील प्रतिक्रिया आबि गेल अछि एखन धरि। जखन कि किछु लोक एहि पोस्ट केर कथ्य-शैली आ प्रस्तुति पर सवाल सेहो ठाढ कयलनि अछि। एहने सवाल ठाढ कयनिहार डा. फणिकान्त मिश्र उपरोक्त पोस्ट मे ब्राह्मण जाति एवं हुनका लोकनिक परम्परा पर लिखल गेल आपत्तिजनक टिप्पणी प्रति असन्तोष जतेलनि। किसलय कृष्ण तँ दौरमा मन्दिरक पूर्ण इतिहास केँ स्पष्ट वर्णन करैत हुनकर पोस्ट केर मनसा पर सवाल ठाढ कयलनि अछि –

“यदि ऐसा जान बूझकर किया गया है तो यह कुकृत्य है । किन्तु ऐसा धर्म के बाजारीकरण के लिए किया गया है यह कहना हास्यास्पद और पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता लगता है ।

1930 मे औकाही के रहनेवाले सोनेलाल झा को अपने खेत में जुताई के समय यह प्रतिमा मिलती है और भीत के गहबर में स्थापित कर ग्रामदेवता मान लिया जाता है, नाम पड़ता है राज राजेश्वरी ।

सनद रहे कि सोनेलाल झा किसान थे और उनसे लेकर आज तक वे या उनके वंशज पुजारी नहीं रहे । सहरसा जिले के विभिन्न विद्वान सहित स्थानीय लोगों का कहना है कि मूर्ति में एक साथ विष्णु और दुर्गा दोनों की छवि होने के कारण राज राजेश्वरी नाम दिया गया, जबकि नीचले हिस्से में लक्ष्मी व सरस्वती की उपस्थिति है । दोनों रमा रूप होने के कारण दोरमा नामकरण किया गया है गाँव का । मूर्ति में जय और विजय नामक दो और देवताओं की उपस्थिति कहते हैं जानकार ।

भक्ति में अंध उपसर्ग जुड़ता रहा है, आज भी खुदाई के क्रम में ऐसी प्रतिमाएँ मिलने पर भ्रामक स्थिति उत्पन्न हो जाती है, कारण गाँव में रहने वाले ये लोग न तो पुरातत्वविद होते हैं न ही इतने बड़े विद्वान । बस आस्था और अंधभक्ति गँवई मन को पूजा, मन्दिर की तरफ ले जाता है, नामकरण जो भी हो जाए ।

महिषी की तारा के संदर्भ में सब कुछ स्पष्ट नहीं हुआ आज तक, यह तो महज कुछ गाँव विशेष में परिचिति रखनेवाला स्थान है ।

अब चलिए पूजारी की बात करें… विश्वम्भर झा के मृत्योपरान्त सम्प्रति अशोक झा पूजारी हैं । मन्दिर में इतना भी चढ़ावा नहीं आता कि एक पूजारी के परिवार का भरण पोषण ठीक से हो । इस कारण से गाँव के सर्वजातीय समुदाय से अगहन महीने साली (अन्न) वसूलकर पूजारी को दिया जाता रहा है । यही है इस मन्दिर का.बाजार और बाजारीकरण…

मैं इतना ही जानता हूँ कि यह ग्रामदेवता के रूप में पूजित हैं और मूर्ति पुरातात्विक शोध का विषय हो सकता है किसी जाति विशेष पर अनावश्यक प्रश्नचिन्ह खड़ा करने का नहीं ।

निश्चित ही बलिप्रथा, मन्दिर में दुध बहाना, गाँजा चढ़ाना, निशा पूजा को निस्सां पूजा बना देना कुकृत्य है, इसे दूर किया जाना चाहिए । किन्तु इस बहाने ऐसी आपत्तिजनक पोस्ट करना आप जैसे लोगों को शोभा नहीं देता । क्योंकि यह सोशल मिडिया है जहाँ बिना समझे लोग भेड़ियाधसानी टिपण्णी में व्यस्त और पोस्टकर्त्ता अपनी विद्वता पर मस्त हो जाते हैं । कभी चैन से आइए सहरसा स्वागत । चैन से मन्दिर और मूर्ति का छायांकन भी करेंगे स्टील और विडिओ दोनों, कमल के नीचे सिंह के आकृति को भी देखेंगे मिलकर और इसी बहाने आपसे कुछ पुरातत्व सम्बन्धी ज्ञानार्जन भी करूँगा । सादर ।”

किसलय कृष्ण बहुत बात छानबीन कय केँ ओहि दौरमा मन्दिर, ओतुका मूर्ति आ आस्था-परम्पराक सम्बन्ध मे अपन विचारक संग लिखलनि अछि। लेकिन ओ जाहि व्यक्तित्व सँ पुरातत्व सम्बन्धी ज्ञानार्जन करता हुनका पास पुरातत्त्व सम्बन्धी अध्ययन की, योग्यता की, अनुभव कतेक… एहि सन्दर्भ मे भारतीय पुरातत्व विभागक क्षेत्रीय निदेशक डा. मिश्र सँ जिज्ञासा कयला उत्तर पता चलैत अछि जे आइ धरि तेहेन कोनो प्रस्ताव तक नहि देखायल जाहि सँ पोस्टकर्ता अथवा पोस्ट पर धड़ल्ले सँ मूर्तिक फोटो आ आपत्तिजनक पोस्ट करनिहार शिवकुमार मिश्रक बात-विचार देखल।

रक्षक स्वयं भक्षक – चोर केर दाढी मे तिनका त नहि?

स्रोत सँ पता लागल जे दरभंगा संग्रहालय जेकर शिवकुमार मिश्र क्युरेटर छथि तेकर आइ धरि एन्टिक्विटी रजिस्टर तक केर पता नहि अछि। एन्टिक्विटी कतय छैक से पता नहि, कय गोट रजिस्टर छैक से पता नहि, डाक्युमेन्टेशन लिस्ट कोनो भरोसा लायक कतहु प्रकाशित नहि…। म्यूजियम केर दुर्दशा देखिते कनबाक मोन होयत। डिस्प्ले सिस्टम चरमरायल अछि। विजिटर्स दिनानुदिन कम भेल रहल अछि। पैछला क्युरेटर सब जतबो ध्यान दैत छलाह ताहि मे सेहो शिवकुमार मिश्र फेल छथि। म्यूजियम पर हिनकर ध्यान शून्य आ राजनीति आ सरकारी भत्ताक भोग कोना होयत ताहि पर गिद्ध-दृष्टि बनौने रहैत छथि। न्युजपेपर मे प्रायोजित समाचार हरेक दुइ दिन पर भेटैत रहत, जाहि मे शिवकुमार जीक स्टेटमेन्ट सब अबैत रहैत अछि। ई छानबीनक विषय थिक। हिनकर फेसबुक वाल स्वतः प्रमाण दैत अछि।

मूर्तिकलाक आधारभूत ज्ञान तक नहि छन्हि लेकिन मूर्तिक निर्माण कालखंड सँ लैत ओकर आकार-प्रकार पर विशेषज्ञ राय देबाक लेल शिवकुमार आगुए रहैत छथि। पौटरीक ज्ञान नहि, टेराकोटाक ज्ञान नहि, मन्दिर स्थापत्यकलाक ज्ञान नहि – परञ्च प्रो. रत्नेश्वर मिश्र जे आधुनिक भारतक ज्ञाता छथि हुनका पुरातत्त्व मे राखि गलती-सलती सब पर मोहर लगबैत रहैत छथि। – ई विशेषज्ञ राय थिक शिवकुमार मिश्र केर सम्बन्ध मे।

शिवकुमार मिश्र केँ लोकआस्थाक पवित्र मन्दिर मे सँ भगवती वा भगवानक फोटो नंगा अवस्था मे चाही।

पढू हिनकर कुतर्कपूर्ण टिप्पणी एतयः

स्रोत सँ ईहो ज्ञात भेल अछि जे प्रो. अयोध्यानाथजी जे पुरातत्वक विद्वान् छथि हुनका किनारा केवल एहि लेल लगा देने छथिन जे ओ गलती केँ गलती कहि दरकिनार कय दैत छथिन।

अर्थशास्त्र सँ एमए भैरवलाल दास द्वारा विगत किछु समय सँ अलग-अलग ऐतिहासिक विषय जेना मिथिलाक्षर, कैथी लिपि, आदि पर सेहो विज्ञ-विशेषज्ञ राय सब अबैत रहल अछि। कैथी लिपि केँ काइस्थ जातिक लिपि कहनिहार परम विद्वान् जार्ज अब्राहम ग्रियर्सनक मैथिलीक लिखित कैरेक्टर मे तीन प्रकारक वर्णन आर ताहि मे मिथिलाक्षर ब्राह्मण जातिक लोक द्वारा प्रयोग केर चर्चा केँ सम्पूर्ण लिपि ब्राह्मणक एकाधिकारक वस्तु घोषित करबाक कार्य सेहो कयलनि अछि।

हाल ‘दौरमा मन्दिर’ ऊपर हिनकर कौचर्य केर उद्देश्य आन कि भऽ सकैत अछि जखन प्रयोग कयल गेल भाषा स्वयं एहि बातक प्रमाण राखि रहल अछि जे वगैर समुचित योग्यता अपन कुत्सित मानसिकता आ जातीय ईर्ष्या-डाह सँ समाज मे दुर्गन्ध टा पसारब!

निष्कर्षः

एहि लेख केर उद्देश्य एतबा अछि जे मिथिला समाज मे अयोग्य व्यक्ति जखन पाकल परोड़ बनिकय सामाजिक-पारम्परिक-सांस्कृतिक-ऐतिहासिक परिवेश पर कुतथ्य आ कुतर्क सँ भरल टिप्पणी लिखय-बाजय तँ समाज केँ एकदम सतर्क भऽ जेबाक चाही।

 

नितान्त आस्था आ विश्वासक आधार पर ९० वर्ष पूर्व स्थापित मन्दिरक मूर्तिक लिंग निर्धारणक विषय हो अथवा समय-समय पर देल जा रहल अलग-अलग विषय पर टिप्पणी – पहिने लोकक योग्यता आ प्रस्तुत दावाक मुख्य आधार जाँच करबाक चाही। कौआ कान लय उड़ि गेल तँ कौआ केँ खेहारब कतहु सँ उचित नहि!

 

हरिः हरः!!