राक्षस जाति केर इतिहास आ रावणक विशेष परिचय

आलेख

– अनुवादक प्रवीण नारायण चौधरी

राक्षस केर उत्पत्ति केना भेल?

एखन भारतीय दूरदर्शन सँ ३३ वर्ष उपरान्त रमानन्द सागर कृत् रामायण धारावाहिक केर दोबारा प्रदर्शन चलि रहल अछि। एक तरफ कोरोना वायरस केर प्रकोप सँ लगभग पूरे मानव संसार ठप्प पड़ि गेल अछि, दोसर दिश मानव जीवन मे आगाँ कोना जीवन प्रक्रिया निरन्तरता पाओत ताहि लेल अत्यन्त गूढ, गम्भीर आ गहींर विमर्श सेहो चलि रहल अछि। एहेन समय मे रामायण धारावाहिक केर प्रदर्शन समय-सान्दर्भिक आ ओतबे लोकप्रिय कहि सकैत छी जतेक ई पूर्व मे भेल छल। रावण एक बलशाली राजा छल। राक्षस जाति केर राजा रहैत ओ तीनू लोक मे अपन वीरताक डंका पीटबौलक। अनेकों तपस्याक सिद्धि आर अपन बहादुरीक बल सँ ओ त्रिलोकी राजा बनि गेल छल। ओकर राजधानी स्वर्ण अट्टालिका सँ सुसज्जित विशिष्ट प्रदेश ‘लंकापुरी’ कहाइत छल।

एखन राक्षस जाति केर चर्चा जोर पकड़ब स्वाभाविके अछि। हमहुँ जिज्ञासावश राक्षसक इतिहास उल्टेलहुँ। एकटा संछिप्त आ सुन्दर इतिहास भेटल, लेखकक नाम अनिरुद्ध जोशी शतायू अछि आर वेबदुनिया पोर्टल सँ साभार लेल गेल अछि।

इतिहास

वेद, पुराण आदि धर्मशास्त्र मे प्राचीनकाल केर कतेको मानव जातिक उल्लेख भेटैत अछि – देवता, असुर, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि। देवता लोकनिक उत्पत्ति अदिति सँ, असुर केर दिति सँ, दानव केर दनु, कद्रू सँ नाग केर मानल गेल अछि।

यैह तीनू कश्यप ऋषि केर पत्नी छलीह। जहां तक राक्षस जाति केर सवाल अछि तऽ प्रारंभिक काल मे और रक्ष यैह दुइ तरह केर मानव जाति छल।

राक्षस लोक पहिने रक्षा करबाक लेल नियुक्त भेल छलथि, लेकिन बाद मे हिनका सभक प्रवृत्ति बदलबाक कारण ई अपन कर्म केर कारण बदनाम होइत चलि गेलाह आर आजुक संदर्भ मे हिनका असुर और दानव जेहेन टा मानल जाइत अछि। 

पुराणक अनुसार कश्यप केर सुरसा नामक रानी सँ यातुधान (राक्षस) उत्पन्न भेल, लेकिन एक कथा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा समुद्रगत जल और प्राणीक रक्षा लेल अनेकों प्रकारक प्राणीक उत्पन्न कयल गेल छल जाहि मे सँ किछु प्राणी रक्षाक जिम्मेदारी सम्हारलनि तिनका राक्षस कहल गेलनि, आर किछु यक्षण (पूजन) केर कार्य करब स्वीकार कयलनि ओ यक्ष कहेलाह। जल केर रक्षा करबाक महत्वपूर्ण कार्य केँ सम्हारबाक कारण ई राक्षस जाति पवित्र मानल जाइत छल।

राक्षसक प्रतिनिधित्व दुइ महान लोक केँ सौंपल गेल – ‘हेति’ और ‘प्रहेति’। ई दुनू भाइ छलाह। ई दुनू सेहो दैत्य केर प्रतिनिधि मधु और कैटभ केर समान अत्यन्त बलशाली और पराक्रमी छलाह। प्रहेति धर्मात्मा छल तऽ हेति केँ राजपाट और राजनीति मे बेसी रुचि छलैक।

हेति द्वारा अपन साम्राज्य विस्तार हेतु ‘काल’ केर पुत्री ‘भया’ सँ विवाह कयल गेल। भया सँ ओकरा विद्युत्केश नामक एक पुत्र केर जन्म भेलैक। ओकर विवाह संध्याक पुत्री ‘सालकटंकटा’ सँ भेलैक। मानल जाइत अछि जे ‘सालकटंकटा’ व्यभिचारिणी छल। एहि कारण जखन ओकरा पुत्र जन्म लेलकैक तऽ ओकरा लावारिस छोड़ि देल गेलैक। विद्युत्केश सेहो ओहि पुत्र केर ई जानिकय कोनो परवाह नहि कयलक जे नहि जानि ई केकर पुत्र थिक। बस, एतहि सँ राक्षस जाति मे बदलाव आयल….।

पुराण अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती केर ओहि अनाथ बालक पर नजरि पड़लनि और ओ लोकनि ओकरा सुरक्षा प्रदान ‍कयलन्हि। ओहि अबोध बालक केँ त्याग देबाक कारण मां पार्वती द्वारा शाप देल गेलैक जे आब सँ राक्षस जाति केर स्त्रिगण जल्दी गर्भ धारण करती आर हुनका सब सँ जन्म लेल बालक जल्दिये बढिकय माताक समान अवस्था धारण कय लेत। एहि शाप सँ राक्षस मे शारीरिक आकर्षण कम, विकरालता बेसी रहतैक।

शिव और पार्वती द्वारा ओहि बालक केर नाम ‘सुकेश’ राखल गेलैक। शिव केर वरदानक कारण ओ निर्भीक छल। ओ निर्भीक भऽ कतहु विचरण कय सकैत छल। शिव द्वारा ओकरा एकटा विमान सेहो देल गेल छलैक।

सुकेश द्वारा गंधर्व कन्या देववती सँ विवाह कयल गेल। देववती सँ सुकेश केँ तीन पुत्र भेलैक – १. माल्यवान, २. सुमाली और ३. माली। एहि तीनू केर कारण राक्षस जाति केँ विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त भेलैक।

एहि तीनू भाइ द्वारा शक्ति और ऐश्वर्य प्राप्त करबाक लेल ब्रह्माजी केर घोर तपस्या कयल गेल। ब्रह्माजी हिनका लोकनि केँ शत्रु सभपर विजय प्राप्त करबाक आर तीनू भाइ मे एकता ओ प्रेम बनल रहबाक वरदान देल गेल। वरदान केर प्रभाव सँ ई तीनू भाइ अहंकारी भऽ गेलाह।

तीनू भाइ मिलिकय विश्वकर्मा सँ त्रिकुट पर्वत केर निकट समुद्र तट पर लंका केर निर्माण करौलनि और ओतय अपन शासन केर केंद्र बनौलनि। एहि तरहें ओ लोकनि राक्षस सब केँ एकजुट कय राक्षसक आधिपत्य स्थापित कयलनि आर ओकरा राक्षस जाति केर केंद्र सेहो बनौलनि। लंका केँ ओ सब धन और वैभव केर धरती बनौलनि आर एतय तीनू राक्षस द्वारा राक्षस संस्कृति केर लेल विश्व विजय केर कामना कयलनि। हुनका लोकनिक अहंकार बढ़ैत गेलनि आर ओ सब यक्ष एवं देवता लोकनि पर अत्याचार करब शुरू कयलनि जाहि सँ संपूर्ण धरती पर आतंक केर राज कायम भऽ गेल।

माल्यवान, सुमाली और माली सँ त्रस्त भऽ कय सब कियो भगवान विष्णु सँ प्रार्थना कयलनि। तखन विष्णु द्वारा तीनू भाइ सँ युद्ध कयलनि मुदा ओहि तीनू भाइ लोकनिक तथा राक्षस जाति केर एकजुटताक चलते विष्णुक लेल हुनका लोकनि केँ हरेनाय मुश्किल भऽ गेल छलन्हि, तखन भगवान विष्णु द्वारा अपन संपूर्ण शक्ति सँ तीनू भाइ लोकनि केँ लंका सँ भगा देलगेल आर तीनू भाइ ओतय सँ रसातल मे जा कय अपन जान बचौलनि।

एहि तीनू भाइ लोकनिक वंश मे आगू चलिकय राक्षस जाति केर विकास भेल। तीनू भाइ केर वंशज मे माल्यवान केर वज्र, मुष्टि, धिरूपार्श्व, दुर्मख, सप्तवहन, यज्ञकोप, मत्त, उन्मत्त नामक पुत्र और अनला नामक कन्या भेलनि। सुमाली केर प्रहस्त, अकन्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राश, दण्ड, सुपार्श्व, सहादि, प्रधस, भास्कण नामक पुत्र तथा रांका, पुण्डपोत्कटा, कैकसी, कुभीनशी नामक पुत्री भेलखिन। ओहि मे सँ कैकसी रावण केर माय छलीह। माली रावण केर नाना छलाह। रावण द्वारा हिनकहि बलबूते अपन साम्राज्य केर विस्तार कयल गेल और शक्ति बढ़ायल गेल।

माली केर अनल, अनिल, हर और संपात्ति नामक चारि पुत्र भेलनि। ई चारू पुत्र रावण केर मृत्युक पश्चात् विभीषण केर मंत्री बनल छलाह। रावण राक्षस जाति केर नहि छलाह कियैक तँ हुनकर माता राक्षस जाति केर छलीह लेकिन हुनकर पिता यक्ष जाति केर ब्राह्मण छलाह।

जखन माल्यवान, सुमाली और माली आदि राक्षस केँ लंका सँ भगा देल गेलनि, तखन लंका केँ प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धनपति कुबेर केँ सौंपि देल गेल छल। कुबेर रावण केर सौतेला भाइ छलाह। महर्षि पुलस्त्य केर पुत्र विश्रवा केर दुइ पत्नी छलीह – इलविला और कैकसी। इलविला सँ कुबेर और कैकसी सँ रावण, विभीषण, कुंभकर्ण केर जन्म भेल। इलविला यक्ष जाति सँ छलीह त कैकसी राक्षस जाति सँ।

कुबेर तपस्वी छलाह। ओ तप कय केँ उत्तर दिशा केर लोकपाल बनलाह। हुनक अनुचर यक्ष निरंतर हुनकर सेवा करैत छलाह। कुबेर रावण केर सौतेला भाइ हेबाक बावजूद राक्षस जाति या संस्कृति सँ नहि छलथि। भगवान शंकर द्वारा हुनका अपन नित्य सखा स्वीकार कयल गेल छल ताहि लेल कुबेर पूज्यनीय मानल जाइत छथि।

रावण केँ राक्षस लोकनिक अधिपति बनायल गेलनि, तखन रावण राक्षस जाति केर हेरा चुकल सम्मान केँ पुन: प्राप्त करबाक वचन देलनि आर अपन विश्व विजय अभियान शुरू कयलनि। एहि विजय अभियान मे रावण स्वयं भगवान शिव सँ सेहो टक्कर लेलाह।

कुबेर जखन रावण केर अत्याचारक विषय मे सुनलाह तऽ अपन एक दूत केँ रावणक पास पठौलनि। दूत द्वारा कुबेरक संदेश देल गेल जे रावण अधर्म केर क्रूर कार्य केँ छोड़िकय यक्ष सबपर अत्याचार करब बंद करथि।

रावण द्वारा नंदनवन उजाड़लाक कारण सब देवता ओकर शत्रु बनि गेल छलाह। रावण तखन क्रुद्ध भऽ ओहि दूत केँ अपन खड्ग सँ काटिकय राक्षस सब केँ भक्षणार्थ दय देल गेल छल। कुबेर केँ एहि घटना सँ बहुत आघात पहुंचलनि।

अंत मे रावण तथा राक्षस सब केँ कुबेर तथा यक्ष सब सँ युद्ध भेलनि। यक्ष जतय यक्ष बल सँ लड़थि ओतहि राक्षस माया सँ, अत: राक्षस विजयी भेल। रावण मायावी छल और ओकरा पास कतेको प्रकारक सिद्धि छलैक। ओ मायावी रूप धारण कय कुबेर केर माथा पर प्रहार करैत हुनका घायल कय देलक आर बलपूर्वक हुनकर पुष्पक विमान हुनका सँ छीनि लेलक।

रावण ई काज अपन माता कैकसीक कहला पर कयलक। कुबेर केँ रावण लंका सँ भगा देलक आर हुनकर समस्त संपत्ति सेहो छीनि लेलक। कुबेर अपन पितामहक पास गेलाह। पितामहक प्रेरणा सँ कुबेर पुनः शिवआराधना हेतु हिमालय चलि गेलाह। जतय हुनका ‘धनपाल’ केर पदवी, पत्नी और पुत्र केर लाभ भेलनि।

रावण तखन लंका केँ नव सिरा सँ बसाकय राक्षस जाति केँ एकजुट कयलक और फेर सँ राक्षस राज कायम कयलक।