मैथिली मात्र नहि बल्कि आनहु भाषा मे विज्ञता आ जनजुड़ाव नगण्ये होइत छैक

मैथिलीक हरेक मंच, हरेक पुरस्कार, हरेक पत्रिका, हरेक अभियान आ हरेक गतिविधि मे सबके चेहरा देखायत तखने सबकेँ अनुभूति हेतैक।

– आदरणीय डा. सुरेन्द्र लाभ

आइ सामाजिक संजाल मे जानल-मानल सामाजिक-सांस्कृतिक अभियन्ता राजकुमार महतो नेपालीय मिथिलाक्षेत्रक जानल-मानल विद्वान् डा. सरेन्द्र लाभ केर उपरोक्त उक्ति शेयर कयलनि अछि। जनकपुर मे लगातार एहि विषय पर मंथन चलि रहल अछि जे ब्राह्मणेतर मैथिल केँ अपन मातृभाषा मैथिली केर लेखन-पठन-पाठन मे कोना उचित ढंग सँ जोड़ल जा सकैत अछि, एहि लेल लेखनी मे सहजीकरण केर विन्दु पर पिछला दिन एकटा बैसार सेहो आयोजित कयल गेल छल।

सवाल उठैत छैक जे मातृभाषाक विकसित स्वरूप सँ नेपाल मे कतेक प्रतिशत लोक परिचित अछि? मैथिली मात्र नहि, एकल भाषा नेपाली जेकरा राज्य द्वारा सम्पोषण देल गेलैक आ संगहि पठन-पाठन आ राजकीय कामकाज मे सेहो अनिवार्य रूप सँ प्रयोग करबाक बाध्यता रहलैक तेकरा छोड़ि आन कोनो भाषाभाषी मे अपनहि भाषाक पूर्ण वा आंशिक ज्ञानक घोर अकाल देखल जाइत छैक। ओना त मैथिली सेहो जहिया सँ ‘मिथिलाक्षर’ छोड़ि देवनागरी केर प्रयोग करैत लेखनी कयलक तँ बुझू जेना नेपाली लेखनशैली अथवा हिन्दी लेखनशैली वा संस्कृत लेखनशैली सँ परिचित लोक लेल ‘मैथिली’ लिख लेनाय, पढि लेनाय – से सब सहज बनि गेलैक। लेकिन एहि मे एकटा बड पैघ नोक्सान कि भेलैक जे मिथिला सभ्यताक अपन अनुपम वैशिष्ट्य ‘मिथिलाक्षर’ आइ लोप भऽ गेल, बंगाल आ आसाम मे जाकय जियैत अछि मुदा मिथिलाक लोक अपनहि लिपि सँ कटि गेल।

आब आउ डा. लाभ केर कथन पर गहींर मंथन करी। विदित अछि जे यदि शिक्षा सब केँ भेटत, अवसर सब केँ भेटत, संस्कार केवल आ केवल शिक्षा आ साहित्य केर अध्ययन सँ अबैत छैक – ई तथ्य केँ सब बुझत – तखनहि डा. सुरेन्द्र लाभ केर उपरोक्त सपना पूरा होयत। मात्र मैथिली नहि, आनो-आनो भाषाक बजनिहार आ जियनिहार मे यैह तरहक अवस्था छैक। भाषा, साहित्य आ संस्कृति मे केवल वैह वर्ग आगू भऽ पबैत अछि जेकर अन्तर्मन मे शिक्षाक महत्व आ भाषाक महत्व स्थापित भऽ पेलैक।

हिन्दी भाषा आइ विश्वस्तरीय भाषा बनि गेल अछि, सिनेमाक कारण क’-ट’ कय केँ सब बाजि लैत अछि, वृहत् प्रयोगक कारण अन्दाजहु आ अशुद्धो सब लिखि पबैत अछि, धरि भाषा-साहित्यक दृष्टिकोण सँ ओ आइयो मात्र ५ सँ १०% विज्ञ लोक केर पहुँच मे मात्र पड़ैत अछि। एकर मतलब की? हिन्दी सँ कियो शत्रुता करैछ? कियो कि अपना केँ हिन्दीक विरोध मे ठाढ करैछ? नहि! बिल्कुल नहि!!

मैथिली मे सेहो यैह विपन्न अवस्था छैक। स्कूल मे पढाइयो नहि छैक। तखन त शिक्षा आ संस्कारक बल सँ सबल किछेक लोक एहि भाषा मे बढि-चढिकय हिस्सा लैत अछि, यैह बहुत भेल।

हँ, आब नेपाल मे संघीयता आयल अछि। सभक भाषा सबल बनत। सरकार द्वारा शिक्षानीति मे सभक मातृभाषा मे पाठ्यक्रम आ पढाई केर विकास होयत। निश्चय, किछु दशक बाद मैथिली पर सभक समान राय आ विचार रहत। जेना आइ भारत मे देखि सकैत छी। हम सब जे बहस नेपाल मे अनेरौ लेल कय रहल छी, ओ बहस भारत मे बन्द भेलैक। तखन एखनहुँ बोलीक रूप मे बज्जिका आ अंगिका केँ भाषा मे परिणति लेल ओतय प्रयास जारी अछि। तेँ मैथिलीक अपन सृजन आ समृद्धि कम भेल से नहि, ई बढैत जा रहल अछि।

भारतक संघीय लोक सेवा आयोगक परीक्षा मे सेहो जा कय मैथिलीक समृद्धि मे चारि चाँद लागि गेल। प्रदेशक लोक सेवा आयोग मे ई पहिनहि सँ छल। हालहि झारखंड मे सेहो ई दोसर राजभाषाक रूप मे विकसित भेल अछि। नीति-नियमानुसार ओतहु आब वैकल्पिक भाषाक रूप मे मैथिली केँ स्वीकृति प्रदेश लोक सेवा आयोग परीक्षा मे देल जायत। विश्वविद्यालय आ शोध आदि लेल मैथिलीक छात्र लेल नव-नव विकल्प उपलब्ध होयत। दिल्ली विश्वविद्यालय मे सेहो मैथिली प्रवेश पाबय लेल जोरदार प्रयास कय रहल अछि। एहेन अवस्था मे नेपाल मे आखिर गलत आ कुत्सित राजनीति मैथिलीक विरोध मे कियैक, ई एकटा प्रश्नक समाधान सब विद्वान् केँ तकबाक चाही।

मैथिली भाषाभाषी लेल त सौभाग्यक बात अछि जे अहाँक अपन शब्दकोश, व्याकरण, लिपि, वर्ण, साहित्य, इतिहास आदि सब किछु अति प्राचीनकाल सँ विकसित अछि। आवश्यकता त ई छैक जे राज्य (केन्द्र व प्रदेश संग स्थानीय स्तर) द्वारा शिक्षा मे मैथिली सहित समस्त उपेक्षित मातृभाषा जेकरा आब नेपालक संविधान द्वारा ‘राष्ट्रीय भाषा’ केर दर्जा सेहो देल गेल अछि, से शीघ्रातिशीघ्र आरम्भ हो। भाषा आयोग अपन सिफारिश शीघ्रातिशीघ्र संघीय सरकार केँ सौंपय। प्रदेश सरकार द्वारा प्रज्ञा प्रतिष्ठानक संचालन हो। सब भाषा मे अधिकाधिक लेखन आ प्रकाशन हो। सभक भाषा मे संचारकर्म केँ वित्तीय सम्पोषण दय, संचारकर्मी केँ भत्ता व सुविधा दय बेसी सँ बेसी काज करायल जाय। ई काज होइत देरी सभ केँ अपन भाषाक मजबूत अनुभूति होबय लागत। गलत परिकल्पना पर मार्केटिंग कय आपस मे टूटबाक काज बन्द हो, जतबे काज मैथिली-मिथिला लेल कियो कय रहल अछि वैह प्रचूर अछि।
हरिः हरः!!