युवा रचनाकार बीरेन्द्र कुमार सिंह केर मैथिली रचना

साहित्य

युवा कवि-लेखक बीरेन्द्र कुमार सिंह केर साहित्य रचना

१.

कविता – “सहोदर सँ लगियौ छाती”

प’ह फटलै कोइली कुहकलै
सिहरि उठलै छाती
मीठे-मीठे कूक सुनादे बगड़िया
गबैत चल सुन्दर पाँती

कोसी कमला झिर-झिर बहैय’
एहि मिथिला-मधेशक माटी
खा ले हमर किरिया सप्पत
हम सभ नाती-परनाती

जागू यौ कक्का डेग उठबियौ
“सहोदर सँ लगियौ छाती”
निर्मल जल भरि सभ केँ जुडबियौ
जुनि देखू रंगभेद कि जाती

सुखले गणतंत्र ढोल पीटैछै
आब की रहलै बांकी
निर्दोष निहत्था केँ पेरि-पेरि क’
कोलहू मे लगबै छाकी

निर्बल निश्छल कोरा‍ खाइ छै
पीटै छै अबला छाती
अँचरा उठा काकी दिनकर सँ कहिहें
रहिह’ दिनकर साखी

भाइ-भाइ मे फूट मचाबै
घर-घर बान्हय टाटी
संबिधान बेचारा कहिया धरि रेंगतै
ओहो मांगै बैसाखी

काग डकैछै‍ गाय हुकरैय छै
हठ्ठाक बरद गेल फांसी
जाबी खोल बाबू जोति छिटका दे
के भाँजय छै लाठी

गला-सँ-गला मिलाले बगड़िया
ठोढ़ कियैक उदासी
रौ हम तों कहियो अलग नय हेबे
सब छै मिथिले-मधेशक ‍बासी

पैरते डिगडिगिया सगरो फूलेतै
गेना हेना हजारी
रचि-रचि माला तोरो पहिरेबौ
नेसब दियाबाती

प’ह फटलै कोइली कुहकलै
सिहरि उठलै छाती
मीठे-मीठे कूक सुनादे बगड़िया
गबैत चल सुन्दर पाँती

२.

“बात कहे ! मुँह पs मालिक”
१. देश और मधेश में पहिलका आ एखुनका परिस्थिति
                      आबक जूग जबाना तेहन नैs रैह गेलैय’ आबक लोग स्वतंत्र सs जिबा लेल सिख गेल छै ज्ञांत अछि २००७ सालसँ  अखन धैर बहुते कुदका-कुदकी आ छरपा-छरपी भेलै आब तs सर्ब साधारण लोग के’ अनपीरिय लागिरहल हेतैक मुदा भुझनूक आ, लाल बुझक्कर सभ के’ नचैत-नचैत मन नैs थाकि रहल अछि । कहियो राणा-शासन के लड़ाई छलैक तs कहियो निर्दल बहुदल आ, जनमतसंग्रह के माओबादीक जनयुद्ध कालमें कतेक दुःख पीड़ा आ, अथक प्रयाश के बदौलत राजतंत्र सेहो चलिए गेलै, आब की लूट तंत्र चली रहल छै…… ?  हम कहियो राजनीति शास्त्र नेपाली किताब में पढ़ने छलहुँ जे “पूर्ण स्वतन्त्रता ‘जंगली गदहा’ को आबारागर्दी को सिद्धांत हो”  मुदा परिणाम वास्तब में साफ-साफ देख रहल छी बस ओहने तs भरहल छै, रोड़ा फेका-फेकी चोरी,डकैती,खून,बलात्कार।
                  गणतंत्र केर दोसर नाम “राम राज्य” छन्हि से धैर बहुत नीक मुदा ओ त्रेता युग नैs छै, अखन केर लोग “खीर देखने भीड़ करैत अछि” स्वक्छ राजनीति आ सत्य बात केनिहार देख लेल तs सेहन्ते लागि ज्यात लोग के सोंचबाक चाही की असंख्य लोगकs बलिदानी आ कर्मठ लोग केर साहस के प्रतिफल आजुक ई नेपाल देश बहुभाषिक आ, बहुसांस्कृतिक कहा रहल छन्हि मुदा राजा काल के देश आ अखन के देश में जमीन आसमान केर फरक लगैत अछि। बहुत पुराण कहाबत छै की “गरीब बेटी धनिक घर गेल आ, एक सूपा धान में टन-मन भेल” तs ई कौवा लड़ाई कहिया धैर चलत कही एहेन नैs भs जाई कि देखते-देखते में झपटि कs क्यो और नै भाईग जाई……………
२.  मतभेद केर बात आ हमर भोगाई
                      खाइर देश में तs जे-जेन्ना मुदा: जे अपना मिथिला या मधेश में चली रहल अछि से बहुत अ-प्रसंसनीय बात अछि पीड़ा केर  बात अछि जेहने राज छोट होएत जाई छै राजनीती आ कुटिल बातक बर्चस्व त’तबे दिन दुगुन्ना आ राति चौगुणा भs रहल छै। हम ऊ कोंढ़ में किछ और आ मुँह में किछ और नै बजे छी, ओन्ना तs पुरे दुनिया में छै मुदा जेहन गलिन के राजनीति तराई मधेश में भs रहल छैक तेहन कतौ और नै, बिदित अछि हमर परदेशी जिनगीक भोगाई, की कोण तरहे अपना गाउँ-ठाउँ के लोग संग बेह्बार अछि आ, केन्ना दोसर ठाउँ केर लोग सँ अन्य-अन्य समाज केर लोग में मेल-जॉल त’तबे छै। ओना अपना जगह में…… जे-जेन्ना मुदा देश सs बाहर प्रदेश में हुनका सभ में क्यो फरक नै छूटा सकै छी, मुदा अपना ओरी के लोग में काँट पर काँट राखल अछि। राजनीतिक पार्टी के बात करि तब तs और बहुत बढ़का बिडम्बना अछि, मधेशी पार्टी सब केर राजनीति तs ‘जोकर-शैली’ के राजनीति अछि। अपने आप में आत्म बल जन्ना छीहे नै कखनो किछ तs कखनो किछ जब हम सभ मधेशी एकैह सामान छी तखन फरक-फरक मुद्दा किया फरक-फरक मत किया सभ केर एक मत और एक आबाज केर मूल्यांकन कs देखु हम आहाँ अपने आप में एगो संपन्न मधेशी कहा सकैछी तेहन बिचार कतेक % लोग के अछि।
३. धर्म और भाषा केर नाम पर राजनीति केहन आ किया ?
                   जेहन पुरे दुनिया में नफ़रद केर आगि लागि रहल छैक तेहन अपना नेपाल आ, मधेशमें कहियो नहि रहनि मुदा: अखन हाल केर परिस्थिति बहुत गंभीर थिक लोगक मनसाय फ़िल्मी स्टाइल क़े सौख सेहन्ता बाला राजनीति करयमें लागल अछि। मुदा: रीयल हीरो भेटनाई आ, भगवन सँ मिलनाई बराबैर भगेल बुझाईय। किछ बिगारु लोग सभ अन्न-पानि उठा लेने अछि एक दोसर में झगर लबाब’ लेल अधिकांश  लोगक सोंच बिभेदकारी आ, बिखण्डनकारी नय मुदा ओ कहै छैs ने जे एक दुगोट भाइरस पुरे शरीर क़े ख़राब कs दैs छैक सेहे बात छै, हिन्दुवत्व समाज क़े लोग छैन्ह जे, सभक मनसाय क़े बराबरी नजैरसँ देख चाहैत अछि। नै तs दुनियाँ में एहेन कोनो जगह नैs जाहि ठाम ९६ %  लोग ४ % क़े सामान करैत छन्हि और निकसँ भाब आ कदर करैत अछि ई आतंक मचौनिहार कुतर्क लोग क़े सोंचबाक चाही परम्परा सँ चली आबिरहल मेल-मिलाप क़े बारेमें, जे एक दोसर में भाई चारा क़े नातासँ देखल जाई छन्हि।
                              ई लेख मैथिलिमें लिख’ क़े हमर प्रयास नै थिक मैथिलिमें लिख’ क़े हमर सेहन्ता थिक जन्म सँ अखन धैर जेs नसे- नस दौरि रहल अछि जेs भाषा सेs मैथिलि अछि दोसर कोनो नै ओना तs बहुते भाषा केर काम लगैत अछि, हाथ मुँह जोड़ क़े लेल आ एगो छोट छीन साहित्यकार क़े नाते सेहो, ओना किनको कतबो किसिमके भाषा केर ज्ञान अछि तs ऊ कोनो बेकार नय तs फेर बिबाद किया अगर तेहेन बात छै तखन एहन किसिम क़े बिबाद केनिहार ब्यक्ति ‘किरिया’ खाऊ जे आहाँ दोसर भाषा दीस नै तकै छी, जँ आहाँ अपनों दोसर भाषा क़े चाहक चुस्की लs रहल छी सेवा बजारहल छी तहँन  दोसर क़े बिरोध किया ? हँ हम एगो बात क़े महशुश जरूर करब जे अप्पन माटि-पानि आ मातृ भाषा केर संरकछन करै छी, जगजियार कs रहल छी तय क़े लेल कोटि कोटि नमन आ “साधुबाद”
                              हमर ब्यक्ति मोह मैथिलि आ मिथिला प्रति सभ सँ बेसी अछि। कियाक तs हम कोइरी, कुशवाहा (जनरेशन) सँ छी त्रेता केर पुरसोत्तम भगवान् अयोध्या क़े राजा ‘राम’ आ ‘सीता’ केर पुत्र कुश क़ेर बंसज कुशवाहा कहबै छी सीता केर बहुते उपनाम में सँ एगो नाम (मैथिलि) सेहो छलिन्ह  ई कोनो मनगढंत आ हाबा कहानी नय शास्त्र बेद में बिदित छन्हि, ओहि (मैथिलि) सीता क़े हिंसाबे हमरा सभ केर ममहरा क़े मूल भाषा मैथिलि अछि। मुदा किछ लोगक ईसारा कुशवाहा बर्ग पर नकारात्मक किसिम क़े अछि, कुशवाहा अथबा कोइरी, महतो, मेहता, सिंह, पांडे, सैनी,मौर्या, कछवाहा, माली, भाजी, हरदिया, मुराऊ, ई सभ ‘मगही’ भाषा केर बात आ मुद्दा पर अडिग अछि, मुदा एहन किसिम क़े लोग क़े लेल हम ई कsहs चाहै छी, की….. मैथिलि आ मगही भाषा में कोनो आकाश-पाताल क़े फरक नैs छैs बस भाषा कनेक लबानी अछि। पुरनका ईतिहांश मगध केर लोग क़े बोली-चाली छल तैं मगही कहल जाई छै और ई भाषा और बर्ग सभ में अछि जाना कि ब्राह्मण, क्यास्थ, यादब, पाल, थारू, दनुवार,तेली, सूरी, सदाय,राम,धानुक,कियोट आ मधेश क़े मुशलमान सेहो  अथबा अन्य बहुते में अछि तब मिथिला भाषा केर बिरोधी क़े ?
                      बस किछ लोग कनेक दोसर ढंग सँ मैथिलि क़े प्रयोग करैत अछि तs ओ शुद्ध मैथिलि कहाबैत अछि ? एहि छियै रगड़-झगड़ आ, बाद-बिबाद क़े जैर जन्म सँ क्यो महान नैs होई थिक कर्म सँ महान होई थिक, कनेक सोंच में फरक छन्हि, जना की क्यो संपन्न ब्यक्ति अपन पोशाक धोती-कुरता में लील छांटी कs इस्तिरी लगाक’ पेरहैत छैक आ क्यो ओहने तs की ओहने पैरह बाला ब्यक्ति क़े पोशाक क़े नाम धोती-कुरता नय भs कs चेथरी होबाक चाही ?  की ओहो धोतीये-कुरता थिक” अपना ब्यक्तिगत स्वार्थ क़े लेल किनको गलत किसिम क़े अभिब्यक्ति नै देबाक चाही। सत्य बात कोनो बिद्वान केर तर्क सँ नहीँ मुझा सकैत अछि, सत्य सत्ये रहै छन्हि हाँ छै की तs कहियो काल शेर-शेर येक-आपस में दोस्ती कs उपद्रब जरूर मचा सकैछ मुदा एहेन किसिम क़े किर्याकलापसँ लोगक मनसाय आंदोलन क़े कगार पर पहुंचा सकैय तय बुद्धिमानी एहि छन्हि की एक-दोसर क़े सम्मान करी अपनों सम्मान पाबी,
                                                                                                         जय मिथिला !
                                                                                                          जय जानकी !!
कवि-लेखक केर परिचयः
बीरेंद्र कुमार सिंह (कुशवाहा)
सिरहा- अर्णामा गाउँपालिका-३
हाल- दोहा कतार