कृष्ण-दीवाना रसखान जी

स्वाध्याय लेख

– श्रीमती भगवती जी गोयल, अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी

हमरा लोकनिक बाँकेबिहारी कोनो न कोनो अहैतुकी लीला करिते रहैत छथि। हुनकर मायाक कियो पार नहि पाबि सकैत अछि। नहि जाइन केकरा ऊपर रीझि जाइथ! नहि जाइन कहियो कोन जीव पर कृपा भऽ जाय! बजेला पर तऽ ओ कहियो अबैत नहि छथि, चाहे माथे पटकि-पटकिकय मरि जाय लोक। नहि तप सँ भेटैत छथि, न जप सँ भेटैत छथि, नहिये ध्यान सँ भेटैत छथि। जँ हिनका एहि तरहें भेटबाक रहितनि तखन योगी, यति, ऋषि ध्यान करैत रहैत छथि, मुदा ओ हुनका सब दिश तकितो नहि छथि। जखन कृपा करैत छथिन त अचानक करैत छथिन।

कृष्णक दीवाना रसखान एक मुसलमान छलाह। एक बेरक घटना थिक। ओ अपन उस्ताद संग मक्का-मदीना जा रहल छलाह। हुनकर उस्ताद कहलखिन, “देखू! रस्ता मे हिन्दू सभक तीर्थ वृन्दावन आयत, ओतय एकटा कारी नाग रहैत अछि। अहाँ आगू-पाछू नहि देखब; नहि तऽ ओ अहाँ केँ काटि लेत। अहाँ बस हमरा पाछू-पाछू अबैत रहू। अपन दायाँ-बायाँ सेहो नहि देखब, नहि तऽ जखनहि मौका देखत, अहाँ केँ काटि लेत।”

बस, रसखान जीक मोन मे एक उत्कंठा जेकाँ जागि गेलनि जे कि हमरा ओतय कारी नाग देखाय पड़त… ओ यैह सोचैत जा रहल छलाह, एतबा मे हुनका श्रीबाँकेबिहारी संग नेह लागि गेलनि। फेर कि छल! जहिना ओ श्रीवृन्दावन अयलाह, उस्ताद हुनका फेरो कहलखिन, “रसखान! आब सावधानीपूर्वक चलब, ई हिन्दू सभक तीर्थ छी। एतहि ओ कारी नाग रहैत अछि।”

उस्तादक एतबा कहब छलनि कि हमरा लोकनिक लीलाधारी अपन लीला आरम्भ कय देलनि। कखनहुँ दाहिना त कखनहुँ बाम दिश, मीठ-मीठ बाँसुरीक धुन बजेनाय शुरू कय देलनि। दोसर दिश नूपुर केर मधुर झंकार होमय लागल। ई सब सुनिकय बेचारा रसखान जी मुग्ध भऽ गेलाह। दुनू दिश मधुर तान आर झंकार सुनिकय ओ बौरा गेलाह। हुनका सँ दायाँ-बायाँ देखने बिना नहि रहल भेलनि। अन्त मे जखन यमुनाक किनार पर पहुँचलाह त ओ एक दिश ताकि देलखिन। ओतय प्रियाजीक संग श्रीबाँकेबिहारीजीक सुन्दर छवि केर दर्शन भेलनि आर ओ मोहित भऽ उठलाह। बिसैर गेलाह अपन उस्ताद केँ, आर निहारिते रहि गेलाह ओहि प्यारा छवि केँ। अपन सुध-बुध बिसरि गेलाह, अपन ध्याने नहि रहलनि जे कतय छथि, ओहि ठाम व्रज-रज मे लोट-पोट भऽ गेलाह। हुनका मुंह सँ झाग निकलि रहल छलनि, आर ओ ताकि रहल छलाह ओहि मनोहर छवि केँ, मुदा एखन धरि तऽ प्रभुजी अन्तर्धान भऽ गेल छलाह।

कनी दूर गेलाक बाद उस्ताद पाछू दिश तकलनि। रसखान हुनका नहि देखाय पड़लनि, ओ वापस एलाह। रसखान केर दशा देखिकय बुझि गेलाह जे एकरा वैह काला नाग काटि लेलकैक। आब ई हमर मतलब के नहि रहि गेल। उस्ताद आगू बढि गेलाह।

रसखान जी केँ जखन होश एलनि त ओ वैह प्यारा मनमोहक छवि ताकि रहल छलाह अपन चारू दिश। सब सँ पुछलथि, ओ साँवरा-सलोना, मोहिनी मूर्तिवला अपन बेगम संगे कतय रहैत अछि, कियो त कहि दिअ। कियो रसखान जी केँ बिहारीजीक मन्दिरक पता देलकनि। ओ ओतय गेलाह। कियो हुनका अन्दर नहि जाय देलकनि। तीन दिन धरि भुखले-पियासले ओत्तहि पड़ल रहलाह। तेसर दिन बिहारीजी अपन प्रिय दूध-भात चाँदीक कटोरा मे लय केँ एलाह आर अपनहि हाथे खुऔलनि।

भोरे लोक सब देखलक जे कटोरा नजदीक मे राखल अछि। रसखानजीक मुंहपर दूध-भात लागल अछि। कटोरापर बिहारीजी लिखल अछि। रसखान जी केँ उठेलक। लोक हुनकर चरण-धुलि माथ पर लगेनाय शुरू केलक। ओ गली-गली गबैत फिरैथ, “बंसी बजाके, सुरत दिखाके, क्यों कर लिया किनारा…।” आइयो रसखानजीक मजार पर बहुतो रास लोक जाकय हुनकर दिव्य कृष्ण प्रेम केँ याद करैत छथि।