पहिने बेटी बेचल जाइत छल, आब बेटा बेचल जाइत अछि – मिथिला समाज सँ गम्भीर सवाल

लेख

– रूबी झा

हम जहन छोट रही, करीब पन्द्रह साल केर, त एकटा टोल के दीदी (बुआ) बुलैय लेल अंगना एलीह, माँ कहलक दीदी छथिन गोर लगहुन। हम गोर त लागि लेलियनि लेकिन जहन दीदी चैल गेलखिन्ह त माँ केँ हम सवाल पर सवाल पूछैय लगलियैक। हम छोटे सँ बहुत जिज्ञासु छलहुँ। हरेक चीज के बारे में जानय लेल किछु बेसी जिज्ञासा रहैत छलय। “माँ! ई कुन दीदी छथिन? हिनका त कहियो देखनहो नहि छलियन्हि? ई कतय रहैत छथिन? ई कियै नै कहियो आबैय छथिन? तुँ त हिनका बारे में कहियो बतेनहो नै छलें?”

प्रश्न बहुते छल हमर, माँ के जबाब एकेटा, “अहि बहिनदाय केर सासुर बड दूर छन्हि, ताहि द्वारे ई कहियो नहि आबैय छथिन। हम एहि जबाब सऽ संतुष्ट नहि भेलहुँ, आ फेर सँ कहय लगलियैन, “माँ, एहि दीदीक बारे में तों कहियो बतेलें किया नहि? टोल-पड़ोस केर जतेक दीदी सब छथिन तों सबहक चर्चा हरदम करैत रहैय छेँ, लेकिन हिनकर चर्चा कहियो नै करैत सुनलियौक?” माँ कहलक हिनका तऽ हमहुँ नै कहियो देखने छलियैन्ह त तोरा कि कैहतियौक। आब हमर जिज्ञासा और बढि गेल दीदी के बारे में जानैय लेल। तहन हम पहुँच गेलौं अपन दादी लग।

“दादी बताबे न! माँ हिनका आय तक किया नहि देखने छलैन? मां केर विवाहक कतेक साल भेलैक?” दादी कहलक तोहर माँ केर विवाहक २७ साल भऽ गेलैय। आ तोहर माँ एकरा केना देखितथिन्ह, ई कहियो आय धरि आयले नहि छलैक। हम पुछलियैक दादी सँ, “दादी गै! दीदी के माय-बाप, भाय-भौजाय कहियो अनलकैय नहि?” दादी कहलक, “गै बाउ! एकर बाप एकरा नौमे साल मे दक्षिण भर कऽ बेचि देलकैय। तहिया सँ ई कहियो नहि आयल। लय केँ के अबितय, लय केँ फेर के जइतय, वर बड बूढ रहथिन्ह, किछुए समय बाद मरि गेलखिन्ह।”

आब त हमर जिज्ञासा और बढल, “बेटी बेचनाय कि होय छैक? जहन दीदी नौ साल केर छलय त हिनक वर कियैक बूढ? एखन तक अगर विवाह दान में कतहु गीतो सुनलियै त बेटा बेचै वला, बेटी बेचैय बला कतहु नै?” दादी के सवाल पर सवाल पूछै लगलियैक। तावत में माँ आबि गेल आ दादी केँ कहलक, “माय! ईहो कि एकरा संगे लागल छथि!” आर हमरा डाँटि कय ओतय सँ भगा देलक, कहलक जो पढे-लिखे गऽ। एतय कि करैय छेँ, जो एतय सँ। अन्ततः बहुत रास अनुत्तरित प्रश्नक जिज्ञासा रहितो हम हँटि गेलहुँ ओतय सँ। 

ओहि दिन तँ हमरा जबाब अपन माँ और दादी सँ आधा-अधूरा भेटल लेकिन समय अपनहि सब बातक जबाब दय देलक।

आब हमर सवाल समस्त मैथिलजन सँ अछि, कि हम सब काल्हि बेटी बेचैत छलहुँ आर आय बेटा? जहन बेटी केँ बेचि देलियैक त ओकरा पर कुनू अधिकारे नहि, त बेचल बेटा पर कुन अधिकार जतबैत छियैक? हम त कहब जे बेटा बेचैत छी ओ अपना बेटा सँ मुखाग्नि तक लगेबाक अधिकारी नहि छी। बेचल चीज पर कुन अधिकार? आ पुतोहु पर कुन दाबी? ओकर बाप त ओकरा लेल अहाँक बेटा केँ कीनि कय उपहार स्वरूप में दय देने छैक। तहन कहबैक बेटा सुनैयै नहि, आ पुतोहु सेवा नहि करैया? जे सब बेटा में दहेज लेने छथि अगर हुनकर पुतोहु हुनका एक लोटा पानि तक द दैय छथिन तँ बहुत कय देलखिन्ह से बुझू।